तनाव – वीणा सिंह : Moral stories in hindi

मैं मणि मध्यम वर्गीय परिवार में पली बढ़ी लड़की.. बेफिक्र बिंदास हंसती खिलखिलाती.. कब मध्यम वर्गीय परिवार की  की हीं इकलौती बहु बनकर ससुराल आ गई पता हीं नहीं चला… मां की गोद से स्कूल कॉलेज का सफर तय करते करते ससुराल की देहरी पर सपनों के साथ कदम रख दिया… जैसे वक्त पंख लगा कर उड़ चला हो..

            अब तक# तनाव #शब्द से पाला नही पड़ा था.. पर दादी कहती थी ससुरा है सो असुरा है…

                      सुबह जल्दी उठकर पूजा करके सबको चाय गरम पानी से शुरू करती तो रात ग्यारह बजे के बाद हीं बेड रूम में आने की मोहलत मिलती… कहां मां चाय बनाकर बालों में उंगलियां फेरती उठाती थी.…थोड़ी देर और मां…मां कैसा चाय बनाई हो सिर्फ चीनी हीं चीनी है…मां फिर से चाय बना कर लाड़ली बेटी को देती.…और यहां ससुराल में सपने में भी चिंता और तनाव बना रहता उठने में देर हो गई तो सासु मां का धाराप्रवाह प्रवचन शुरू हो जायेगा.. मां पापा से लेकर संस्कार परवरिश तक पर उंगली उठेगी…

                         मायके जाती तो आने के दिन पहले तय हो जाता… जी भर के खुश भी नही हो पाती तनाव बना रहता चार दिन बाद फिर वहीं जाना है… वही रूटीन…

            शादी के दो साल तक मां नही बनी तो सासु मां ने कुणाल की दूसरी शादी की बात करने लगी.. एक साल में कुछ नहीं हुआ तो… अब ये तनाव उफ्फ… डॉक्टर से दिखाने के बाद कंसीव की.. अब पहले पहले बेटा हीं होना चाहिए… सभी कहते खुश रहा करो पर बेटा के डिमांड ने पूरे नौ महीने तनाव में रखा..

खैर भगवान को तरस आ गई और कान्हा का जनम हुआ… तनाव और भय इस कदर हावी था कि दर्द से तड़प रही मैं अर्ध बेहोशी की हालत में नर्स से पूछा बेटा हीं हुआ है ना.. नर्स के हां कहते हीं मै उस दर्द में भी मुस्कुरा दी…

                   पहला बच्चा कोई अनुभव नहीं अनाड़ी थी मैं…मां ने बहुत आरजू मिन्नत की पर ससुराल से जाने की इजाजत नहीं मिली..सासु मां अपनी बेटी के पास चली गई…अगले महीने डॉक्टर ने डेट दिया था…नानी बनने की खुशी और जिम्मेवारी में अपना कर्तव्य भूल गई….

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कान्हा ज्यादा देर सोया रह जाता तो घबड़ा जाती क्या हो गया… ज्यादा देर रोता तो मुझे भी रोना आ जाता.. सर्दी खांसी बुखार हो जाता तो चिंता से मेरे प्राण सूखने लगते.. घर के काम और कान्हा को संभालते संभालते मैं अक्सर तनाव में आ जाती.. पति ट्रेडिसनल श्रवण कुमार थे जो जिसे मां ने सिखाया था तेरी जिम्मेदारी सिर्फ पैसा कमाना है बच्चे की परवरिश मां की जिम्मेदारी है… कामवाली भी सासु मां के हिदायत से हीं चलती थी.…

      खैर कान्हा पांच साल का हो गया था.. अब प्ले स्कूल से निकाल कर उसका एडमिशन ऐसे स्कूल में कराना था जहां से प्लस टू करके हीं निकले.. पढ़ाने की जिम्मेदारी मेरी थी.. कौन सा नौकरी करती हो.. बच्चे को तो कम से कम पढ़ाओ… अगले हफ्ते टेस्ट था कान्हा का.…कान्हा बेफिक्र था .. पांच साल के बच्चे से और उम्मीद हीं क्या कर सकते हैं… और मैं तनाव में… अच्छे स्कूल में एडमिशन नहीं मिला तो…

                         भगवान की दया से अच्छे स्कूल में कान्हा का एडमिशन हो गया.. रात में सोने जाते समय चिंता रहती सुबह जल्दी उठना है फिर कान्हा को उठाना और लंच बनाना.…खिलाना तो किसी जंग से कम नहीं था…आधी नींद में रहता कान्हा…मुंह में निवाला डाले  रहता…

मुंह बंद कर लेता..ओह छोटे से बच्चे के साथ पढ़ाई के नाम पर इतनी ज्यादती. स्टॉपेज पर ऐसे हीं छोटे बच्चों को इतनी सुबह  लेकर किसी की मां किसी के पापा तो किसी के दादा दादी दिख जाते…स्कूल बहुत दूर था… अब तनाव और चिंता बनी रहती छोटा बच्चा आते जाते थक जाएगा… स्कूल में ठीक से खाया होगा या नहीं.. खेलने में कहीं गिर गया चोट लग गई तो जाते जाते कितना टाइम लग जायेगा…जब कान्हा स्कूल से नही आता ध्यान उधर हीं लगा रहता..

      फिल्मों में टीवी में और शादी शुदा रिश्ते की बड़ी बहनों और सहेलियों से सुना था पति कैसे तारीफ करते हैं… सज संवर कर कुणाल के पास जाती तो उनकी ठंडी प्रतिक्रिया देख मन संशय से भर जाता कहीं कोई और तो इनकी जिंदगी में नही है.…और मैं तनाव से भर जाती.. आंखों के नीचे पड़े काले घेरे चुगली करते… कभी कभी सोचती मेरी जिंदगी का नाम टेंशन हीं होना चाहिए..

                       सासु मां जब कुणाल से मेरी शिकायत लगाती तो बिना कुणाल के कुछ बोले हीं मैं भयभीत हो जाती और उनकी चुप्पी मुझे नाराजगी जैसी लगती और मैं परेशान परेशान हो जाती… कभी कभी लगता मुझे कोई मानसिक बीमारी तो नही है बेवजह तनाव लेने की…

               वक्त का पहिया यूं हीं तेजी से आगे बढ़ता रहा.. कान्हा के एग्जाम से लेकर उसके रिजल्ट तक मैं उससे ज्यादा परेशान और तनाव में रहती…. चेहरा उतर जाता.. भूख प्यास खतम हो जाता नींद नही आती…

        ऐसे हीं कान्हा प्लस टू अच्छे नंबरों से पास कर इंजीनियरिंग कॉलेज में चला गया… बच्चे को खाना ढंग का मिलता होगा या नहीं… कान्हा हंसते हुए कहता मम्मा स्वीगी और जोमैटो है ना… आप टेंशन मत लो…

             और कान्हा का अब कैंपस प्लेसमेंट शुरू होने वाला है कल से… कान्हा का जब से फोन आया है मम्मा थोड़ा डर लग रहा है थोड़ी टेंशन हो रही है… मैने उसे तो हिम्मत दे दी है… आत्मविश्वास और अपना 100परसेंट देने की सलाह दी है… निश्चित रूप से तुम्हारा अच्छे कंपनी में सिलेक्शन होगा ये विश्वास दिलाया है.. पर खुद कितने तनाव में हूं क्या हीं कहूं… कितनी दुआएं मांगी है भगवान से… मन्नत मांगी है और उपवास भी करूंगी.. मेरा कान्हा….

        कान्हा अक्सर मुझे छेड़ते हुए कहता मम्मा आपका नाम नानाजी ने मणि क्यों रखा उन्हे चिंतामणि रखना चाहिए था…

                      कल कान्हा की जॉब लग जायेगी तब मैं क्या तनाव और चिंता से मुक्त हो जाऊंगी ये सवाल मैं खुद से पूछती हूं… शायद नही… उसकी शादी फिर बच्चे…. शायद जब तक सांस चलेगी मेरी ये चिंता फिक्र तनाव यूं हीं जीवन का एक अंग बना रहेगा…

     Veena singh

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