तनाव – पूजा शर्मा : Moral stories in hindi

दिन भर का थका हारा राजन जैसे ही ऑफिस से घर आया। घर का माहौल बहुत तनाव पूर्ण हो रहा था। उसकी मां ममता जी अपने कमरे में बैठी बड़बड़ाये जा रही थी। उसने उन्हें इस वक्त छेड़ना उचित नहीं समझा।

और सीधा अपने कमरे में चला गया। रसोई में काम करती उसकी पत्नी मनीषा ने अपने पति को देखकर पानी का गिलास लाकर दिया और वो भी अपनीअलग शिकायतें लेकर शुरू हो गई। देखो जी मुझसे अब तुम्हारी मां की तानाशाही बर्दाश्त नहीं होती है !हर बात में अपनी चलाती हैं।

सारा दिन चिक चिक करती रहती हैं । मुझे अपने हिसाब से काम करने भी नहीं देती। कभी सब्जी में नमक कम है कभी ज्यादा है तुमसे अब तक खाना बनाना नहीं आया। अगर बच्चों को उनकी गलती पर डांट ्देती हूं तो भी मुझे ही बच्चों के सामने डांटती हैं बच्चों को तो और शह मिल जाती है अब आप ही बताओ क्या मैं अपने बच्चों की दुश्मन हूं क्या उन्हें गलती पर डांटना भी नहीं चाहिए। मनीषा जानबूझकर ही तेज बोल रही थी

ताकि उसकी बातें उसकी सास सुन सके। आवाज ऊंची होने की वजह से सारी बातें राजन की मां के कमरे में भी जा रही थी और वह भी सब सुन रही थी। राजन ने धीरे से कहा देखो मनीषा मेरे सर में बहुत तेज दर्द है तुम अपनी सारी शिकायतें थोड़ी देर बाद कर लेना मुझे जल्दी से एक कप चाय बना कर दे दो।

लेकिन मनीषा अपनी धुन में बोले ही जा रही थी इस पर राजन ने कहा यार तुम तो समझदार हो बचपन से ही पिताजी के गुजर जाने के बाद मां ने मुझे कपड़े सिल सिलकर पढ़ाया लिखाया है । पिताजी की थोड़ी सी पेंशन में घर का गुजारा नहीं चलता था। थोड़ा सा सुख उन्होंने अभी तो देखा है, मानता हूं मेरी मां थोड़े तेज स्वभाव की है लेकिन वह दिल की बुरी नहीं है बहुत प्यार करती हैं हम सब से।

अरे एक कान से सुन लिया करो और दूसरे से निकाल दिया करो। उनकी बातों को दिल से लगाना छोड़ दो। बुढ़ापे में इंसान थोड़ा जिद्दी हो जाता है। तुम ही बताओ मैं माँ से क्या कहूं मैं तुम्हें तो कह सकता हूं। तुम नहीं समझोगी तो कौन समझेगा? हां हां आप सही कह रहे हो मैं आपकी लगती ही कौन हूं

आपको तो सारी परवाह अपनी मां की है? कहना आसान होता है और झेलना बहुत मुश्किल, खुद पर बीतती है तो पता चलता है।दिन भर में ही उनके साथ रहती हूं। मैं और बर्दाश्त नहीं कर सकती और भुनभुनाती हुई मनीषा अपने पति के लिए चाय बनाकर ले आई और ममताजी के लिए शुगर होने के कारण फीकी चाय भी बनाकर ले आई और अपने पति से बोली ,

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अब आप ही अपने हाथों से अपनी मां को चाय पिला कर आओ मेरे देने से तो लेगी भी नहीं। मुंह फुला हुआ है मुझसे उनका। राजन अपनी और अपनी मां की चाय लेकर रेवती जी के कमरे में चला जाता है। उसके पीछे-पीछे ही मनीषा भी आ जाती है। राजन अपनी मां को अपने साथ चाय पीने के लिए कहता है, ममताजी भी उसी पर बरस जाती हैं,

हां मैं तेरी लगती ही कौन हूं। अब कल की आई दूसरी लड़की ने तेरे ऊपर इतना जादू कर दिया है सीधा अपने कमरे में ही चला गया माँ से तो पूछा भी नहीं क्या हुआ? मुझे पता है तुम लोगों को अब मेरी दो रोटी भी भारी लगने लगी हैं मैं अपना सिलाई का काम फिर शुरू कर दूंगी मैं किसी पर बोझ नहीं बनूंगी । अभी तो मेरे हाथ पैर सलामत हैं अभी से यह हाल है तो जाने बुढ़ापे में और कितना बुरा होगा मेरे साथ। ओफो मां

 चाय पी लीजिए क्यों जरा सी बात का बतंगड़ बना रही हो और फिर यह ् बोझ वाली बात कहां से आ गई अपने माता-पिता किसी पर बोझ नहीं होते

और फिर बताओ करती तो सब कुछ मनीषा ही है मैं तो दिनभर ऑफिस में रहता हूं घर की सारी जिम्मेदारी वही तो निभाती है। थोड़ी बहुत गलती तो सबसे हो ही जाती है। आप बड़ी हैं उसे प्यार से समझा सकती हैं जरूरी तो नहीं हर बात गुस्से में ही की जाए। हां हां बेटा यही कसर रह गई थी

मुझे तो अक्ल नहीं है सीधा-सीधा क्यों नहीं कहता। राजन को अब बर्दाश्त नहीं हो रहा था उसने चिल्लाकर बोला मैं तंग आ गया हूं तुम लोगों की रोज-रोज की चिक चिक से आखिर तुम क्यों नहीं समझते मुझे ऑफिस में कम तनाव नहीं है। घर आने से पहले भी यही सोचता रहता हूं कि जाने कैसा माहौल मिलेगा?

तुम दोनों के बीच एक पेंडुलम की तरह बन गया हूं मैं, । पता भी है इस समय मेरा बीपी 260 है, ऑफिस में चक्कर आने के कारण मेरा दोस्त रवि ही मुझे डॉक्टर के पास लेकर गया था। डॉक्टर से चेकअप करा कर आया हूं। घर तक भी अपनी गाड़ी से मुझे वहीं छोड़कर गया है। डॉक्टर ने तनाव लेने को बिल्कुल मना किया है।

और वह अपनी दवाई वही फेककर मारता है लेकिन मुझे अगर मरना ही है तो मुझे यह दवाई नहीं खानी तब रहना तुम दोनों आराम से। यह सब सुनते ही ममता जी और मनीषा दोनों ही घबरा जाती हैं। ममता जी उसको अपने पास अपनी गोद में सर रखकर लिटा लेती हैं और उसके बालों में हाथ फेरते हुए कहती हैं

मुझे माफ कर दे बेटा मै तुमसे अब कोई शिकायत नहीं करूंगी। और मनीषा भी आंखों में आंसू भर यही कहती है आप चिंता ना करो मैं कोशिश करुंगी कि घर में अब तनाव का माहौल न बने। आप हमारे घर की रीड की हड्डी है अगर आप सही नहीं रहेंगे तो हम भी कहां सही रह पाएंगे यह छोटी-छोटी बातें हैं

जिन्हें हम अब आपस में ही सुलझा लिया करेंगे? मां जी आप भी मुझे माफ कर दीजिए। मैं आपको कोई शिकायत का मौका नहीं दूंगी। नहीं बेटा मेरे अंदर ही असुरक्षा की भावना आ गई थी शायद मुझे लगने लगा था मेरा बेटा अब मुझसे पराया हो गया है लेकिन मैं भूल गई थी कि हर रिश्ते की अपनी-अपनी अहमियत होती है।

मां की जगह पत्नी नहीं ले सकती और पत्नी की जगह माँ नहीं ले सकती। और सच में उस दिन के बाद घर का माहौल बदल गया था। शायद ममता जी और मनीषा दोनों को समझ में आ गया था कि उनकी लड़ाई के बीच में राजन बिना गलती के ही पिस रहा था।

 पूजा शर्मा

स्वरचित।

 दोस्तों आजकल यह अधिकांश घरों की कहानी है। मैंने इस कहानी के द्वारा केवल अपने विचार प्रस्तुत किए हैं कृपया कमेंट करके बताएं मेरी रचना आपको कैसी लगी।

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