सुनिए जी… आकाश का फोन आया था… कह रहा था उसके कॉलेज की दो महीने की फीस साथ में ही जमा करनी है… सुजाता ने अपने पति नवीन से कहा
नवीन: क्या..? 2 महीने की फीस एक साथ..? यह कॉलेज वाले तो बस फरमान जारी कर देते हैं… पिता की हालत कैसी है उनसे उनको कोई मतलब नहीं… ठीक है मैं देखता हूं
फिर नवीन किसी तरह आकाश की फीस जमा करवा देता है… कुछ दिनों बाद सुजाता कहती है… सुनिए जी अगले महीने पिंटू की शादी है उसके पत्नी के लिए सोने का कुछ तो लेना पड़ेगा, वरना खानदान में हमारा नाम खराब हो जाएगा..
नवीन: अरे बाबा हमें शादी पर जाना ही नहीं है… फिर तो कोई खर्च करना नहीं पड़ेगा ना..? अभी-अभी आकाश की फीस को जैसे तैसे भरा हूं… दूसरा खर्च कहां से संभालूंगा..? तुमसे कुछ छुपा है क्या..?
सुजाता: यह कैसी बातें कर रहे हैं आप..? हम शादी में जाए या ना जाए, गिफ्ट तो तब भी देनी पड़ेगी… अपने घर की शादी है और आप तो जानते ही हैं अपनी बुआ को… पूरे खानदान में यह बात फैला देगी कि हम देने के दर से उनके बेटे की शादी पर नहीं गए…
तभी नवीन की मां अंजू जी कहती है… हां सही कह रही है सुजाता और शादी ब्याह कौन से रोज-रोज होते हैं… इतना तो करना ही पड़ता है…
नवीन: ठीक है मैं देखता हूं… उसके बाद नवीन ने गिफ्ट का भी इंतजाम कर लिया
कुछ दिनों बाद अंजू जी नवीन से कहती है… बेटा सामने के मंदिर में पत्थर लगाए जा रहे हैं… तो शर्मा जी ने कहा कि जिससे जितना बन पाए… वह दान करें… तो मैं भी पैसे ना देकर एक पत्थर दान करने का सोच कर उनसे एक पत्थर देने का वादा कर दिया.. तो अगले महीने सबसे पहले एक पत्थर खरीद लेना, बाकी के खर्च उसके बाद होंगे
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नवीन: मां… मैं कोई लाख रुपए की नौकरी नहीं करता, जो आप लोग बात-बात पर फरमाइश करते चले जा रहे हैं.. कभी यह कभी वह… थक गया हूं मैं ऐसे बीच में आए खर्चों को संभालते संभालते… इतने तनाव में रहता हूं के अपने काम पर भी ध्यान नहीं दे पाता और गलतियां कर बैठता हूं
अंजू जी: अरे वाह बेटा.. आज मां के वादे को निभाने में तुझे फालतू खर्च लग रहा है… तू इस घर का मर्द है तो तेरा तो काम ही घर के खर्च चलाना है, फिर तुझे तनाव किस बात का रहता है..? तू इस दुनिया में अकेला नहीं है जो यह काम कर रहा है, फिर इतना तेवर किस बात का…
ठीक है मैं मना कर दूंगी शर्मा जी को और हां आज के बाद मुझ पर कोई खर्च मत करना… मैं नहीं चाहती मेरी वजह से तू तनाव में रहे… यह सुनकर सुजाता नवीन से कहती है… क्या जरूरत थी मां को ऐसे बोलने की..? देखा ना उन्हें कितना बुरा लगा..? क्या आप भी हर वक्त बस पैसों को लेकर किच-किच करते रहते हैं… मेरे भैया भी तो घर चलाते हैं पर उन्हें आप जैसे की पैसों के लिए किच-किच करते कभी नहीं देखा…
नवीन कहना तो चाह रहा था बहुत कुछ, पर ना जाने क्यों उसका कुछ भी कहने का मन नहीं हुआ… अब वह सुबह जल्दी घर से निकल जाता और रात सबके सोने के बाद आता.. वह घर पर होकर भी मानो घर पर नहीं होता… उसके इस बदले रवैया से सुजाता और अंजू जी भी हैरान थे,
पर वह अब देख रहे थे कि नवीन ने पैसों के लिए किच-किच करना बंद कर दिया.. एक दिन अंजू जी नवीन से कहती है… बेटा तुझे हो क्या गया है..? कैसे थका थका दिखता है… पूरे दिन बाहर रहता है… हमें कुछ बताता भी नहीं… आखिर हुआ क्या है तुझे..?
नवीन: मां मुझे कुछ नहीं हुआ… मैं तो बस इस घर का मर्द बनने की कोशिश कर रहा हूं… आप लोग सही कह रहे थे की सारी दुनिया में, मर्द तो यही करते हैं ना… अगर उनकी तनख्वाह कम है तो उन्हें कोई पांच और काम करके घर के खर्चों में बढ़ोतरी करनी चाहिए…
इसमें इतना तनाव में रहने की क्या जरूरत और यकीन मानिए मां मैं अब बिल्कुल तनाव मुक्त हूं… बस थोड़ा नहीं बहुत थक जाता हूं… पर उससे क्या..? मैं इस घर का मर्द हूं… और सभी मर्द तो यही करते हैं ना..? यह कहकर नवीन फिर से घर से निकलने को हुआ ही था कि सुजाता और अंजू जी जोर से हंसने लगे
नवीन: क्या हुआ..? आप दोनों हंस क्यों रही है..?
अंजू जी: पहले बैठ यहां पर फिर बताते हैं.. सुजाता तुम ही बता दो..
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सुजाता: यह आप पर फिजूल खर्ची का दबाव डालना, आपको बात-बात पर ताने देना, यह हमारा नाटक था ताकि आपको सबक सिखा सके
नवीन: क्या मतलब..?
अंजू जी: मतलब यह कि तू कितना कमा कर लाता है… यह हमसे छुपा नहीं है… पर फिर भी तू घर के खर्चे, जो की सामान्य होते हैं उसमें भी नुक्स निकालता रहता है… जैसे दाल 2 किलो की जगह 3 किलो क्यों खर्च हुआ..? हर बार तो इतने में राशन हो जाता है फिर इस महीने ज्यादा क्यों हुआ..?
तुम औरतों को बस फिजूल खर्ची आती है… जिस तरह से तेरे काम में कोई दखलंदाजी करें और कहे यह तो आम बात है… तुमने कुछ महान तो नहीं किया इस बात पर इतना तनाव में आ गया के तू दिन रात काम करने लगा… तो सोच जब तू हमारे काम पर टिप्पणी करता है और हर जगह यही कहता फिरता है कि हम करती ही क्या है..? बस फिजूल खर्ची जबकि हम भी बचत के बारे में ही सोचते हैं, तो हम तनाव में नहीं आते क्या..?
सुजाता: उस दिन भी हम जब मनीषा की शादी में गए थे… तब आपने सबके सामने कहा… हां जी औरतों का काम ही होता है फिजूल खर्च करना… जो उनके हर काम और खर्च का हिसाब ना रखो तो वह दिन दूर नहीं जब कटोरा लेकर हमें भीख मांगना पड़ जाए… उस दिन यह कहकर आपने तो खूब ठहाके लगाए थे… पर शायद आप वह उपहास करते वक्त मेरी तरफ देखना भूल गए थे… बस तभी से हमने भी ठान लिया कि आपको सबक सिखाना जरूरी है…
नवीन अपनी मां और पत्नी की बात सुनकर एक हैरान सा चेहरा बनाकर हंसे या रोए, सोचने लगा फिर थोड़ी देर चुप्पी के बाद वह कहता है… धन्य है जो इस घर में अब भी मेरी कदर है… पैसों के लिए नहीं… बस मेरी ही कद्र है.. पर अब मुझे अपनी गलती का एहसास हो चुका है… अब से मैं सिर्फ अपने काम पर ही ध्यान दूंगा… और आज के बाद गलती से भी किसी औरत का उपहास नहीं बनाऊंगा… फिर सभी हंसने लगे
दोस्तों… ज्यादातर मध्यम वर्गीय के घरों में खर्च मर्द चलाते हैं, तो औरतें भी उसी हिसाब से चलना सीख जाती है… अगर मर्द अपने शौक दबा रहे है, तो औरतें भी कोई महारानी सा ठांट नहीं करती… इसके बावजूद हर बार औरत को जब यह कहा जाए कि तुमसे बचत नहीं होता या फिर तुम फिजूल खर्ची करती हो… तब यकीन मानिए औरतें भी तनाव में आ ही जाती है और जब घर की औरतें तनाव में रहने लगे, पूरे घर का तनाव में आ जाना तो स्वाभाविक है…
धन्यवाद
#तनाव
रोनिता कुंडु