तमाचा – परमा दत्त झा :  Moral Stories in Hindi

अरे न्यू मार्केट चलेगा -राधा ने टैम्पो वाले से पूछा।

जी चलिए -वह विनम्रता से बोला।

पर मैं डेढ़ सौ रूपए दूंगी।-वह बोली।

इसपर उसने हां में सिर हिलाया।

वह बैठी तो आराम से अपना बैग टैम्पू में रख दिया।इतना ही नहीं न्यू मार्केट तक वह एक शब्द नहीं बोला।

बस वह न्यू मार्केट आकर बोली -दस -बीस मिनट का काम है,अगर रूक सकते हो तो।

जी-वह बोला तो राधा मार्केट में चली गई।

वह चाय पी रहा था,आज छुट्टी का दिन था वह भी पंद्रह अगस्त।जब वह आयी तो मां से बात कर रहा था।अभी मैं दवाई खरीद लाऊंगा,चिंता मत करो।

बस फिर क्या था?

वह टैम्पो में बैठी और कौन बीमार है-रहा न गया तो पूछ बैठी।

मां-उसे कैंसर है ,कीमो करानी होती है।

और भाई बहन -बडी बहन गुजर गयी,जीजा जी कभी कभार मदद करते हैं।बस हो ही जाता है।

अभी दवाई ले ले, फिर छोड़ देना।-कहती पांच सौ का नोट दे दिया।

वह दवाई लेकर आया और इसके  घर पर उतार दिया।

मैडम आपका किराया मात्र चार सौ हुआ,मगर मेरे पास पैसे नहीं हैं -वह गंभीर होकर बोला।

सुन मेरा नंबर ले ले ,अगली बार 

फिर जाना होगा तो–वह उसे देखती बोली।

जी कहता वह चला गया। फिर दिन भर सवारी और काम में खोया कब रात के दस बजे वह समझ नहीं पाया।

मगर रात के दस बजे जब गाड़ी खड़ी की तो पीछे बैग पर नजर गयी।पूरे रूपये से भरा बैग था।

अब क्या करें,न जाने किसका बैग है?-बेटा जिसका है लौटा देना,बरकत होगी।

जी माई,कहता वह खाना खाकर सो गया।अगले दिन सुबह फोन लगाया तो सभी बेचैन थे।

वह आराम से दिए पते पर पहुंचा और वहां से थाने पर चला गया।

सभी बेसब्री से इंतजार कर रहे थे।

क्यों रे पैसा लेकर भाग गया था -थाने में जाते ही थानेदार दहाड़ा।

सुनो , मैं पैसा छिनकर नहीं भागा,मैडम भूल आयी थी।दूसरी बात जैसे ही मुझे पता चला मैंने अपने फोन से बताये पते पर आ गया।चोर होता तो।

बड़ा सयाना बनता है-दरोगा लपकना चाहा।बस बहुत हुआ -आप सभी बी डी ओ देखें किस प्रकार घूस खाने पुलिस बाले गरीब को तंग करते हैं।जी एस पी साहब आप कुछ करेंगे या मैं डी जी पी को वीडीओ भेजूं।

अब दरोगा सहित पूरा स्टाफ भन्ना गया।

सुनिए मैडम हम गरीब हैं, सरकारी कर्मचारी नहीं -कहता पूरे बैग वापस किया और सौ रूपए भी दे दिए।

बस बहुत हो गया।हमारी कमाई इतनी है कि किसी का पैसा,समान की जरूरत नहीं। और हां टी आई साहब आप डी जी पी आफिस चलिए वहीं आपसे बात करते हैं।

बस इतना कहकर वह चल दिया।उसने बड़े जोर का तमाचा मारा था।

#रचनाकार-परमा दत्त झा, भोपाल।

#शब्द संख्या-700कम से कम।

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