बस की खिड़की से ठंडी — टंडी हवाएं नीतू के गालों पर आकर उसके लंबे बालों को उलझा रही थीं, किंतु इन सब बातों से बेखबर नीतू पेड़ों को भागता देख रही थी।
उसे बचपन के वो दिन याद आ गए ,जब मम्मी पापा के साथ गर्मी की छुट्टियों में नानी के घर बिहार जाती थी,तो निधि मम्मी की गोद में आराम से सोती रहती , और वो पापा से पूछती ,पापा क्या पेड़ दौड़ रहे हैं ? तब बहुत प्यार से पापा समझाते नहीं बेटा , वो हमारी बस तेज़ी से जा रही है,इसलिए पेड़ पीछे छूटते जा रहे हैं । पेड़ों को देखती हुई नीतू बचपन की मधुर स्मृतियों में खो गई ।
नीतू मुझे भी खिड़की के पास बैठना है , वंदना ने लगभग झिंझोड़ते हुए कहा, ओके ! बैठ जाओ ,कहकर वो थोड़ा आगे खिसक गई।
नीतू हम लोग कितने बजे तक गांव पहुंच जाएंगे, वंदना ने नीतू से पूछा , शाम के 7:00 बजे तक पहुंच जाएंगे वंदना। नीतू और वंदना दोनों लॉ कॉलेज की स्टूडेंट थी। प्रत्येक शनिवार को नीतू अपनी मां से मिलने गांव चली जाती थी, क्योंकि उसके पापा बचपन में ही चल बसे थे वंदना भी उसके साथ हॉस्टल में साथ रहती थी , दोनों में बहनों सा प्यार था।वह भी इस बार उसके साथ साथ नीतू के घर जा रही थी। बस से उतरते ही बस स्टैंड पर रिक्शा वालों ने नीतू को घेर लिया ,चलिए दीदी चलिए दीदी !
सभी ने उसे कहना शुरू किया । नीतू बोली रुको , मैं अभी एक ऑटो लेती हूं, अरे !नहीं दीदी जल्दी पहुंचा दूंगा , कहकर लखन ने उसके हाथ से उसका छोटा सा बैग ले लिया । अच्छा ठीक है चलो भाई तुम लोग भी बहुत परेशान करते हो। नहीं दीदी परेशान नहीं ,मुझे भी आप लोगों का ही आसरा रहता है,यह जब से ऑटो चलने लगी है, हम लोगों को सवारी मिलती ही कहां है? वंदना ने धीरे से फुसफुस कर पूछा क्या तुम्हें यह रिक्शावाला पहचानता है? अरे हां ! यहां के सभी रिक्शा वाले मेरे घर तरफ के ही हैं , इसलिए सभी पहचानते हैं, कहकर नीतू मुस्कुरा दी।
मार्च का महीना था, सर्दी खत्म हो रही थी और हवाओं में थोड़ी-थोड़ी ठंडक थी। वंदना को नीतू के घर आकर बहुत अच्छा लग रहा था, क्योंकि वह हमेशा से ही शहर में पली बढी थी उसे ऐसे गांव देखने का कभी मौका नहीं मिला था। नीतू ने उसे अपने कमरे दिखाएं , जिसमें उसके साथ उसके पापा की तस्वीर लगी थी, देखते ही वंदना पूछ बैठी अरे ! नीतू ये तेरे पापा तो बिल्कुल तेरे जैसे लगते हैं, नीतू बोली नहीं वंदना , मैं पापा के जैसी लगती हूं।
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शाम को सभी ने नाश्ता किया और वंदना एक मेहंदी के पेड़ को देखकर पूछ बैठी अरे ,नीतू यह तो मेहंदी का पेड़ जैसा लगता है, नीतू ने कहा, हां मेहंदी ही है, लगाएगी क्या?
निधि बोल उठी ,दीदी यह मैं तोड़ दूं,इसे पीसकर पत्तियां बालों में लगाने से बाल बहुत अच्छे हो जाते हैं।
नीतू की मम्मी बोली वंदना से मिलकर लगता ही नहीं है, कि यह पहली बार हमारे घर आई है है ना ! नीतू ? मम्मी ने बेटियों के मनपसंद दाल पूड़ी ,धनिया की चटनी बनाई।
रात में खाना खाने के बाद सभी सो गए । बंदना को यह देखकर बहुत आश्चर्य हो रहा था ,कि नीतू की मम्मी लगभग 40 वर्ष की खूबसूरत सी महिला थीं । वह नीतू की बड़ी बहन सी लगती थीं । वो हल्के गुलाबी रंग के सलवार कमीज में बहुत ही सुंदर लग रही थी।
वंदना ने नीतू को अपनी ओर लगभग खींचते हुए कहा —
अरे यार !एक बात बोलूं, अब मेरी तलाश पूरी हो गई ।
नीतू ने चौंकते हुए पूछा , मतलब ?
अरे यार ! तू हमेशा क्या बोलती रहती है ,आकाश को क्या कहकर इंतजार करवा रही हो ,यही न , कि पहले मम्मी को देखने वाला कोई मिल जाए ,फिर शादी करूंगी , क्योंकि अब निधि भी एयरहोस्टेस बन गई है ,वो भी तो जानेवाली है ज्वाइन करने दिल्ली,है कि नहीं?
पर मां के लिए इस उम्र का रिश्ता खोजना आसान नहीं इसलिए तो कह रही हूं ,बहन ….
मेरी मां से बात हुई थी , उनके चचेरे भाई हैं ,जो अमेरिका में रहते थे, उनकी पत्नी नहीं हैं,एक बेटा बहू है , वो अमेरिका रहता है, मामाजी मुंबई में रहते हैं। शादी के लिए अच्छे परिवार की लड़की ढूंढ रहे थे ,जैसे तू ढूंढ रही है ,वैसे ही ,कहकर वंदना ने जोर से चिकोटी काटी ।
अब तो तू मेरी बहन हुई , अगले ही दिन दोनों वापस हॉस्टल आ गई ,किंतु मां को ph कर सारी बातें वंदना ने बताया , मामाजी का विडिओ कॉल आया , सारी बातें सुनकर मां ने हामी भर दी , दोनों का विधिपूर्वक विवाह हुआ , अमेरिका से बेटा , बहू , आया । निधि ने मां को अपने हाथों सजा दिया , मैरून रंग का लहंगा ,और डायमंड सेट में खूब खिल रही थीं, विदाई के बाद मां नए पिता के साथ मुंबई गईं,लेकिन उनकी शर्त ये थी कि गांव में जो मकान है ,उसे देखने आती रहेंगी ।जिंदादिल और
रईस अनुराग जी को भला क्या एतराज होता,वो तुरंत मान गए ।
मां ने नीतू को गले लगाया,और खूब रोई , तू तो मेरी मां है
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री ……. अपनी शादी करने छोड़कर मेरी करवा दी तूने ।
उनके पति बोल उठे ,अब मैं करवाऊंगा अपनी दोनों बिटिया की शादी ।
विदाई के बाद आकर नीतू ने कहा , थैंक्यू यार ! तू तो मेरी चिंता ही समाप्त करवा दी , मैंने मां को हमेशा दुखी देखा है , वो कितनी तकलीफ़ से हम दोनों बहनों को पढ़ाई हैं।
यार नीतू अब तू शुरू मत कर ,जा तैयार होकर आ , साहबजादे 5 बजे लेने आनेवाले हैं, नीतू ने कहा ,अरे बाबा तू आकाश को इतना रिस्पेक्
ट दे रही है ,दिमाग तो सही है तेरा …
अच्छा ,मेरी बहन अब जाओ ,कहकर वंदना रूम के अंदर आ गई , नीचे बाइक के हॉर्न सुनकर दोनों सहेलियां हँस पड़ी । गर्मी की छुट्टियों में निधि और नीतू जब मुंबई गई , उसके पापा स्वयं लेने आए। , काफी हंसमुख और सुलझे हुए हैं । नीतू की मंगनी आकाश के साथ धूमधाम से हुई , उन्होंने खुद कन्यादान किया , नीतू को ऐसा लगा मानो उसकी जीवन की तलाश पूरी हो गई।
स्वरचित।
सिम्मी नाथ