“तलाक” – ऋतु अग्रवाल

आज कुछ ख़ामोश सा था दिल। न जाने क्यों? पर बार बार उसकी याद आ रही थी। तीन साल हो चुके मेरे तलाक को पर शायद ही कोई लम्हा गया हो उसे याद किए बिना।

  कितने खुश थे हम दोनों। छोटा सा परिवार था मेरा। मम्मी, पापा,मैं और शुभ्रा। शुभ्रा, माँ- पापा की पसंद थी।हम खुशी से रह रहे थे।मम्मी पापा भी इतनी प्यारी,सुघड़ बहू पाकर खुश थे। शुभ्रा थी ही इतनी प्यारी कि हर कोई उससे घुट घुटकर बातें करता।

  वो भी सबसे ही तो हँस हँसकर बात करती। बचपना झलकता उसकी बातों में। सब रिश्तेदार, मित्र, पड़ोसी उसकी खुशमिज़ाजी की तारीफ करते न थकते थे और उसकी यही खुशमिज़ाजी हमारी बर्बादी की वजह बन गयी।

  हमारी शादी के बाद होली का त्योहार आया। सभी लोग रंग में रंगीले हुए पड़े थे कि अचानक शुभ्रा के चिल्लाने की आवाज़ आयी। मानो किसी को जोर जोर से डाँट रही हो। हम सब भागकर वहाँ पहुँचे तो देखा तो शुभ्रा रो रही थी और मेरे जीजाजी हाथों में रंग लिए खड़े थे।


   मुझे देखकर शुभ्रा मुझसे लिपट कर रोने लगी।

“क्या हुआ शुभ्रा, तुम रो क्यों रही हो?”मैंने पूछा।

“वो….जीजाजी, रंग लगाने…..”, शुभ्रा की हिचकी बँध गई।

“बोलो,क्या हुआ? घबराओ मत।”मैंने उसके सिर पर हाथ रखकर कहा।

“अरे,कुछ नहीं,सलहज साहिबा रंग से डर गई।”जीजाजी ने ठहाका लगाया।

इतना सुनकर सब लोग हँसने लगे।

“नहीं, इस आदमी ने रंग लगाने के बहाने मेरे ब्लाउज में हाथ डाला,”शुभ्रा जोर से चिल्ला कर बोली।

  इतना सुनते ही वहाँ सन्नाटा छा गया। जीजाजी वहाँ से चले गये और शुभ्रा की हालत देखकर मुझे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूँ?

“ये झूठी है। तेरे जीजाजी ऐसा कर ही नहीं सकते।ये तो है ही ऐसी,देखो तो जरा सबसे कैसे हँस हँस कर बातें करती है।तेरे दोस्तों से भी तो घुल मिल कर बातें करती है और मेरे पति पर इल्ज़ाम लगा रही है।कुल्टा,छिनाल कहीं की।” दीदी चिल्लाईं।

 उसके बाद तो शुभ्रा पर न जाने कितने इल्ज़ाम लगाए गए। उसके गुण,अवगुण बनते चले गए। मैं किंकर्तव्यविमूढ सा देखता रह गया।मम्मी पापा भी दीदी की ही भाषा बोले जा रहे थे।

  शुभ्रा उसी दिन मायके चली गयी। मैं उसे वापिस लाना चाहता था पर मम्मी ने अपनी जान देने की धमकी देकर मेरे पैरों में बेड़ियाँ डाल दीं। फिर पापा ने तलाक के कागज़ात तैयार करवाकर मेरे साइन करवाये और शुभ्रा के दस्तखत भी करवा लिए।


 तबसे मैं शुभ्रा के बिना जी रहा हूँ। बिना मियाद की सजा झेल रहा हूँ। वो कहाँ है? मुझे नहीं पता।

 इतना जानता हूँ कि एक व्यक्ति की कुत्सित भावना मेरा प्यार लील गई।

“क्यों बेटी दामाद का रिश्ता बेटे बहू के रिश्ते पर हमेशा हावी हो जाता है।”

“क्यों?????”

स्वरचित

ऋतु अग्रवाल

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