” दादी.. ऊंssss…।” मनु अपनी दादी देवकी जी से बात करते ही रोने लगा।पास खड़ी उसकी बहन तान्या ने फ़ोन ले लिया और बोली,” दादी..आज फिर से मम्मी-पापा में..।” वह चुप हो गई।
” फिर से क्या..? और मनु क्यों रो रहा है? बता मेरी बच्ची..घर में सब ठीक तो है..।” देवकी जी चिंतित हो उठी।तान्या बोली,” कुछ नहीं दादी..मम्मी-पापा में तेरे-मेरे होने लगा तो मनु रोने लगा।”
” तेरे-मेरे…नहीं- नहीं बच्चे…मैंने तो कभी नहीं देखा।”
” आप के जाने के बाद होता है ना दादी..।” तान्या रुआँसी हो गई।देविका जी बेचैन हो उठीं।
देविका जी के पति महेन्द्रनाथ रेलवे में नौकरी करते थे।दो बच्चे थे, विपिन और अनन्या।विपिन बैंगलुरु के एक आई टी कंपनी में नौकरी करता था।ज़ाॅब लगने के दो साल बाद महेन्द्रनाथ ने बेटे का विवाह अपने मित्र की बेटी साक्षी जो विपिन को बहुत पसंद करती थी, से कर दिया।साक्षी भी कंप्यूटर साइंस में इंजीनियरिंग पास करके ज़ाॅब ढ़ूँढ़ रही थी।बैंगलुरु जाने के बाद उसे भी एक कंपनी में नौकरी मिल गई।
अनन्या की पढ़ाई में कोई विशेष रुचि नहीं थी।किसी तरह से उसने अपना ग्रेजुएशन पूरा किया तब उसके पिता ने अपने ही शहर के एक खाते-पीते परिवार के लड़के निशांत के साथ उसका विवाह करा दिया जो बैंक में नौकरी करता था।
महेन्द्रनाथ की अभी पाँच साल की नौकरी थी, इसीलिये देविका जी को जब भी समय मिलता तो वो अकेले ही बेटी से मिलने चली जाती थी।जब पोती होने वाली थी तब दो महीने पहले ही बेटे के पास चली गईं थीं।मनु के जन्म के बाद तो वो वहाँ तीन महीने रह गईं थीं।आकर जब पति को वहाँ के किस्से बताईं तब महेन्द्रनाथ बोले,” बस..कुछ महीनों की बात है..उसके बाद तो मैं भी तुम्हारे साथ चलूँगा।
साक्षी ने एक फुल टाइम आया रखी थी जो दोनों बच्चों को संभालती थी और एक मेड थी जो घर की साफ़-सफ़ाई और किचन संभालती थी।तान्या का पढ़ाई और होमवर्क वह स्वयं कराती थी।समय निकालकर विपिन भी बच्चों को बाहर घुमाने ले जाता था।
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महेन्द्रनाथ की जब इलाहबाद(प्रयागराज) में पोस्टिंग हुई थी तभी उन्हें शहर भा गया और उन्होंने वहीं पर अपना स्थाई आवास बनवा लिया।सेवानिवृत्त होकर वे पत्नी संग महीना भर बेटे के पास रहते और बच्चों के साथ समय बिताते।तान्या और मनु भी दादा-दादी के साथ खूब मस्ती करते।
पिछले महीने मनु का जन्मदिन था..पति-पत्नी बच्चों के पास पंद्रह दिन रह कर आये थें…सब बहुत खुश थे।अब अचानक पोती के मुख से बेटे-बहू के बीच तेरे-मेरे की बात सुनकर तो देविका जी बेचैन हो उठीं।पति को बोलीं कि मेरा टिकट करा दीजिये..बैंगलोर जाना है।
महेन्द्रनाथ पत्नी का चेहरा देखकर समझ गये कि कुछ बात है लेकिन उन्होंने पूछा नहीं और उनका टिकट करा दिया।
दादी को देखकर तान्या और मनु तो बहुत खुश हुए लेकिन माँ को अचानक देखकर विपिन ने पूछ लिया,” आप..माँ…अचानक!।” देविका जी पूरी तैयारी के साथ आईं थीं, बोलीं,” तेरे पापा को दिल्ली जाना था तो मैंने सोचा..मैं मनु-तान्या से मिल आती हूँ।”
” हाँ दादी…।” दोनों देविका जी की गोद में बैठ गये।
डिनर के समय डाइनिंग टेबल पर तान्या और मनु खाते-खाते अपनी दादी से बातें भी करते जा रहें थें लेकिन विपिन चुपचाप खा रहा था, बच्चे कुछ पूछते तो साक्षी हा-हूँ कर देती थी।बच्चे अपनी दादी के पास ही सो गये।
करीब ग्यारह बजे देविका जी वाॅशरुम जाने लगी तो उनको सुनाई दिया-
” पिछले दो बार से मैं ही तान्या की पीटीएम अटेंड कर रही हूँ…इस सैटरडे तो आपको जाना चाहिये..।”
” मैं..तुम अच्छी तरह से जानती हो कि इस बार की मेरी मीटिंग कितनी ज़रूरी है..फिर भी..।वैसे भी तुम उसे पढ़ाती हो तो तुम्हें ही जाना चाहिए।”
” हर बार मैं ही क्यों…आप क्यों नहीं…मिस्टर अग्रवाल भी तो अपनी बेटी का पीटीएम अटेंड करते हैं ना..।”
” तुम समझती नहीं..।”
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” आप क्यों नहीं समझते कि..।” दोनों के बीच तकरार होने लगी।देविका जी कमरे में आ गईं..सोने का प्रयास करने लगीं लेकिन नींद आँखों से कोसों दूर थी।बच्चों की लाइफ़ में उथल-पुथल हो तो भला माँ चैन की नींद कैसे सो सकती है।तान्या-मनु ने उन्हें कुछ हिंट तो दिया था..अभी उन्होंने अपनी कानों से भी सुन लिया।
अगले दिन आया ने बच्चों को तैयार करके स्कूल भेज दिया…मेड ने सबका नाश्ता टेबल पर लगा दिया और साक्षी-विपिन का लंच पैक करने लगी।देविका ने विपिन से पूछा कि ऑफ़िस का काम कैसा चल रहा है?
” ठीक है माँ..।” कहकर वह नाश्ता खत्म करके चला गया… साक्षी ने ‘ मम्मी..जल्दी आ जाऊँगी’ कहकर ऑफ़िस के लिये निकल गई।
स्कूल से आकर दोनों बच्चे आया के साथ पार्क चले गये।साक्षी ने फ़्रेश होकर चाय बनाई और सास के साथ बालकनी में बैठकर बातें करने लगी।वह सास से पूछने लगी कि पापाजी कैसे हैं..अनन्या कैसी हैं..आपकी सेहत..वगैरह-वगैरह और देविका जी उसे एकटक देखे जा रहीं थीं।
” तुम लोग बताओ.. कैसे हो? सब ठीक..।” देविका जी के इतना कहते ही साक्षी की आँखों से झर-झर आँसू बहने लगे।उसके आँसू पोंछते हुए देविका जी ने पूछा,” क्या बात है? तुम दोनों के बीच..।”
साक्षी कहने लगी,” सब अच्छा चल रहा था मम्मी लेकिन अब मनु भी स्कूल जाने लगा है।मैं दोनों को समय नहीं दे पाती और ना ही दोनों के लिये बार-बार स्कूल जाना संभव नहीं हो पाता है।ऑफ़िस में काम का प्रेशर होता है।बच्चे बीमार पड़ते हैं तो मुझे ही छुट्टी लेनी पड़ती है।जब विपिन से कहती हूँ तो हमारे बीच बहस हो जाती है।बार-बार यही कहते है कि नौकरी छोड़ दो.. पर ये तो कोई बात नहीं हुई ना मम्मी।कल रात भी इसी बात पर हमारी तकरार हो रही थी।आपने तो सुना ही..।”
” नहीं तो..मैं तो टैबलेट लेकर सोती हूँ तो बस…।” देविका जी अनजान बन गई।
” अब आप ही बताइये मम्मी…मैं क्या करुँ…।”
” देखो बेटा…।” साक्षी के कंधे पर अपना हाथ रखते हुए देविका जी बोलीं,” आपसी तकरार अथवा बातचीत बंद करना तो समाधान नहीं है लेकिन यह भी सच है कि दोनों बच्चों को इस समय तुम्हारी ज़रूरत है।हम जब जमालपुर में थें तब लेडिज़ क्लब में एक मिसेज़ सिन्हा थीं।हम तो उन्हें अपनी तरह ही गृहिणी समझते थें लेकिन तुम्हारे पापा ने बताया कि वो और डी के सिन्हा क्लासमेट थें।मिसेज़ सिन्हा ने दो साल नौकरी करने के बाद अपने बच्चों के लिये ज़ाॅब छोड़ दिया।जब छोटी बेटी पाँचवीं कक्षा में थी तब वो एक प्राइवेट फ़र्म में फिर से नौकरी करने लगी।”
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” मतलब कि मुझे ही झुकना पड़ेगा।” साक्षी का स्वर तीखा हो गया।
” इसमें झुकने वाली तो कोई बात ही नहीं है बेटा।तुम दोनों के तेरे-मेरे करने से बच्चों का कोमल मन आहत होता है।कल को वो पढ़ाई में पिछड़ भी सकते हैं।इस समय तो उनकी पढ़ाई ..उनके स्वास्थ्य को ही प्राथमिकता देना तुम दोनों का पहला कर्तव्य है।” कहकर देविका जी चुप हो गईं।फिर बोली,” अच्छा..एक काम करो..सात दिनों की छुट्टी लेकर बच्चों के साथ समय बिताओ…तुम्हें आराम मिल जायेगा और सोचने के लिये वक्त भी..।”
सास की बातों से साक्षी बहुत रिलेक्स हुई।डिनर के बाद तान्या-मनु दादी से बातें करके सो गये।देविका जी ने देखा कि साक्षी ड्राॅइंग रूम में बैठी लैपटॉप पर काम कर रही है तो वे बेटे के पास चली गईं।
” कुछ काम कर रहे हो विपिन..।”
” नहीं माँ…आईये ना..।” अपना लैपटाॅप बंद करके साइड में रखते हुए विपिन बोला।
” सब ठीक तो है ना।”
” हाँ..बस ज़रा सा..।” कहते हुए विपिन की आवाज़ लड़खड़ाने लगी।
देविका जी बोली,” देख बेटा..परिवार की गाड़ी पति-पत्नी नाम के दोनों पहिये के आपसी तालमेल से चलती है तभी बच्चे रुपी पैसेंज़र अपने गंतव्य पर सुरक्षित पहुँच पाते हैं।बेवजह की तकरार से कोई फ़ायदा नहीं..बच्चों को सिर्फ़ माँ की नहीं पिता के साथ की भी ज़रूरत होती है।समझदारी से हर समस्या का हल निकाला जा सकता है।”
” मैं समझता हूँ माँ लेकिन साक्षी को भी तो…।” विपिन का स्वर उग्र हो गया।
देविका जी बोली,” हर बात के लिये साक्षी को दोषी मत ठहरा।तुम दोनों एक-दूसरे से कतराने लगे हो…ये क्या मुझे दिखाई नहीं देता।बच्चों से तू सही से बात नहीं करता..ये सब क्या ठीक है? बचपन में तेरी या अनन्या की तबीयत खराब होती थी तो तेरे पापा अपने मैनेजर को साफ़ कह देते कि रेलवे का काम मैं नहीं तो कोई और कर देगा लेकिन मेरे बच्चों का पिता सिर्फ़ मैं ही हूँ।एक बार तूने भी तो कहा था कि पीटीएम में मनीष उदास हो जाता है क्योंकि उसके पापा साथ नहीं आते थें।ज़रा सोच…तेरे न जाने से तान्या-मनु को भी कितना दुख होता होगा।
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” साॅरी माँ..मैं अब ध्यान रखूँगा।”
देविका जी ने बेटे को आशीर्वाद दिया और अपने कमरे में चली गईं।साक्षी ने भी अपना लीव एप्लीकेशन मेल कर दिया।
अगले दिन बस स्टॉप पर मम्मी को देखकर मनु बहुत खुश हुआ।उस दिन विपिन ने ही तान्या का होमवर्क कराया तो देविका जी को बहुत खुशी हुई।दो दिन बाद वो यह कहकर कि ‘तेरे पापा आ गये हैं’ वापस इलाहबाद चलीं गईं।
मम्मी-पापा के संग दोनों बच्चे बहुत खुश थें।अब उनके स्कूल की डायरी में कोई कंप्लेन भी लिखकर नहीं आता था।साक्षी ने एक निर्णय लिया और विपिन को बता दिया कि बच्चे अब खुश हैं..इसलिये मैं ज़ाॅब छोड़कर उन्हें समय दूँगी।तब विपिन बोला,” साॅरी यार..मैंने गुस्से में बहुत-कुछ गलत कह गया।मुझे माफ़ कर दो।तुम अभी continue करो..मैं हूँ ना तुम्हारे साथ।दो महीने बाद मैं दूसरी कंपनी ज्वाइन कर रहा हूँ..तब तुम भी वहाँ अप्लाई कर देना।वहाँ काम भी कम है और पैकैज़ भी..।” कहते हुए उसकी आँखें चमक उठी।
बच्चों की छुट्टियाँ हुई तो विपिन सपरिवार इलाहाबाद गये।डिनर के बाद सब लाॅन में बैठे तब साक्षी ने बताया कि हम दोनों अब एक ही कंपनी में काम कर रहें हैं।ऑफ़िस का काम मैं घर पर नहीं लाती हूँ।तान्या कहने लगी,” हाँ दादी..हम मम्मा के साथ ही पार्क जाते हैं।विपिन बोला,” माँ..अब मैं आपका अच्छा बेटा बन गया हूँ।”
” और मेरे अच्छे पापा भी..।” मनु बोला तो सब हँसने लगे।
“देखा..कितना समझदार बेटा है।” देविका जी बोलीं।
” आखिर बेटा किसका है..।” अपनी मूँछों पर ताव देते हुए महेन्द्रनाथ बोलें।
” मेरा है..मैंने इसे जनम दिया है।” देविका जी बोलीं।
” अच्छा..मैंने इसे अपने कंधों पर..।”
” आ.हा.हा..मैंने इसे..।
दोनों की मीठी तकरार देखकर तान्या और मनु तालियाँ बजाने लगे और विपिन मुस्कुराते हुए साक्षी को देखने लगा जैसे कह रहा हो,” ये नहीं सुधरेंगें।”
विभा गुप्ता
स्वरचित ©
# तकरार
आज पति-पत्नी दोनों ही नौकरी करते हैं।ऐसे में बच्चों को लेकर उनके बीच तकरार होना स्वाभाविक है।ऐसे में उनके माता-पिता ही उन्हें सही राह दिखाते हैं जैसा कि देविका जी ने किया।उन्होंने बेटे को समझाया और बहू को भी अपना फ़ैसला खुद लेने दिया।