छोटे बेटे की शादी में विशंभर जी को डांस करते देखकर पता नहीं क्यों उनकी पत्नी और बेटी की आंखें भर आई, इतने सालों में कभी विशंभर जी को इतना खुश नहीं देखा, छोटा बेटा बहुत ज्यादा सीधा था, इस नए जमाने की हवा उसे लगी ही नहीं थी, इस जमाने का श्रवण कुमार था वह, सभी घरवालों को बहुत उम्मीद थी उससे!
कहने को तो विशंभर जी के तीन बेटे और एक शादीशुदा बेटी थी, किंतु दोनों बड़े बेटे केवल नाम मात्र का ही फर्ज निभा रहे थे, दोनों बेटे दूसरे शहर में रहते थे, छोटे भाई की शादी में भी ऐसा लग रहा था मानो घर में मेहमान आए हो और उनकी खातेदारी में कोई कमी ना रह जाए, जैसे बेटे वैसी ही उनकी बीवियां, जिन्हें अपने साज श्रृंगार से ही फुर्सत नहीं मिलती!
विशंभर जी को हमेशा ही यह डर सताता था की पता नहीं शादी के बाद कहीं छोटा बेटा भी अपने बड़े भाइयों के नक्शे कदम पर न चलने लग जाए, उनकी एकमात्र उम्मीद वह भी टूट जाएगी, किंतु ऐसा नहीं हुआ! छोटा बेटा सुनील दोनों बड़े भाइयों से ऊंचे पद पर था फिर भी घमंड लेश मात्र छू नहीं पाया और जब बेटा अपने माता-पिता की हर आज्ञा में सहमति जताता है तो उसकी पत्नी भी ऐसी ही हो जाती है,
बहुएं तो बेटों के हिसाब से ही चलती है! बहु सुनंदा ब्याह कर घर आ गई !सुनंदा भी अपने सास ससुर का माता-पिता के समान ही ध्यान रखती, वैसे तो विशंभर जी के किसी बात की कोई कमी नहीं थी, शहर में उनका जाना माना नाम था इज्जत थी, आखिरकार शहर के सबसे बड़े वकील थे वह, किंतु उनकी एक ही इच्छा होती थी कि वह अपनी बहू के हाथ की गरम-गरम रोटियां और दिन में एक कप कॉफी पिए!
सुनंदा भी सास ससुर का हर चीज का ध्यान रखती, किंतु अब दोनों बड़ी बहूओ को यह डर सताने लगा कहीं ऐसा ना हो सुनंदा अपनी सास ससुर की सेवा के बदले उनकी सारी प्रॉपर्टी अपने नाम करवा ले, एक दिन बड़ी बहू ने सुनंदा को फोन किया और कहने लगी.. अरे सुनंदा.. तू आजकल के जमाने की लड़की होकर भी बड़े बूढ़े लोगों के साथ रहती हो,
हमें देखो.. हम कितनी आराम से अपनी जिंदगी जीते हैं, कोई रोकने टोकने वाला नहीं, अपने पैसे को जैसे चाहो वैसे उड़ाओ मौज करो, तुम तो उनकी सेवा ही करती रह जाओगी! अगले दिन फिर दूसरी बहू का फोन आया उसने भी ऐसी ही बातें करी, अब आए दिन दोनों बहुएं सुनंदा को अपने सास ससुर के खिलाफ भड़काती रहती,
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अरे.. हम भी तो इसलिए अलग हुए थे घर से, क्योंकि वहां पर हमारी तो आजादी छीन गई थी हर समय बस बहू यह कर दो बहू वह कर दो, जैसे बहू नहीं मशीन हो, कहीं भी आने-जाने की कोई आजादी नहीं! तब सुनंदा को लगने लगा की दोनों भाभियों सही कह रही है, वैसे तो मम्मी पापा जी मुझे किसी भी चीज की मना नहीं करते,
ना कहीं आने जाने की, ना अपनी मर्जी से रहने की, किंतु अलग रहने के तो मजे कुछ और ही है! और बार-बार अगर कोई आपसे एक ही बात करें तो वह बात सच प्रतीत होने लगती है, और यही फिर सुनंदा के साथ होने लगा! अब जैसे ही विशंभर जी सुनंदा को किसी काम के लिए
आवाज लगते वह वहां जाती ही नहीं और बिना कारण ही उसने घर में एक बोझिल सा माहौल पैदा कर दिया! रोहित उसे बहुत समझता कि तुम दोनों भाभियों की बातों में आकर क्यों अपनी जिंदगी सत्यानाश करने पर तुली हो, पर उसको तो लगता था अलग रहने में ही जिंदगी के मजे हैं!
क्या मैं जिंदगी भर उनकी सेवा करते-करते ही मर जाऊंगी, इसी बात को लेकर रोहित और सुनंदा में में खूब तकरार होने लगी और जब बात विशंभर जी तक पहुंची तब उन्होंने कहा.. देखो बेटा.. मैं नहीं चाहता था कभी भी कि तुम दोनों हमसे अलग हो जाओ, हमने तुम्हें किसी भी बात की कोई मनाही नहीं की, एक ही शहर में बाप बेटा अलग रहते शोभा नहीं देते,
आज तक हमारे परिवार के ऊपर कोई उंगली नहीं उठा पाया, किंतु अब हमारी सारी इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी! किंतु मैं यह भी नहीं चाहता कि हमारी वजह से तुम दोनों पति-पत्नी में रोज-रोज तकरार हो इसलिए तुम अपनी मर्जी से जिंदगी जीने के लिए आजाद हो! सुनंदा के ऊपर तो अलग रहने का भूत सवार था और आखिरकार वह अपने पति को लेकर अलग हो ही गई!
कुछ दिन तो उसके बड़े मजे में निकले, किंतु अब वह बोर होने लगी, ना ही उसका किसी काम में मन लगता न हीं कहीं आने-जाने में, घर से बाहर जाने पर घर को सूना रहने का डर सताता !महीना भर भी नहीं बिता कि उसने रोहित से कहा, रोहित…. हम अपने घर वापस चलेंगे, मुझे यहां नहीं रहना! किंतु रोहित ने कहा…
नहीं अब तुम यहीं पर रहो अकेली, तुमने इस उम्र में मेरे माता-पिता को कितनी ठेस पहुंचाई है, हमारे अलग होने से वह बीमार जैसे रहने लग गए हैं, लोग कितनी तरह की बातें बना रहे हैं, जो लोग हमारे परिवार की मिसाले दिया करते थे, आज उनके सामने हमारी इज्जत दो कौड़ी की रह गई है और यह सब तुम्हारे कारण है सुनंदा!
रोहित और सुनंदा में फिर से खूब तकरार हुई! सुनंदा के आंसुओं के आगे रोहित पिघल गया!0 सुनंदा भी समझ गई किसी की बातों में आकर अपने परिवार से होना अलग होना कितनी बड़ी बेवकूफी है! किस घर में छोटी-मोटी तकरार नहीं होती, जहां तकरार होगी वही तो प्यार होगा और यह बात सुनंदा के समझ आ गई थी!
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आज विशंभर जी अपने बेटे बहु को अचानक अपने सामने देखकर आश्चर्यचकित रह गए और उन्होंने अपनी पत्नी को आवाज़ लगाई, देखो ….हमारे बच्चे वापस आ गए! तब सुनंदा उनके पैरों में पढ़ते हुए बोली… पापा जी मम्मी जी, मुझे माफ कर दीजिएगा, मेरी नासमझी की वजह से आपको अपने बेटे से दूर रहना पड़ा, किंतु मुझे अब समझ में आ गया है
परिवार का महत्व ! तब रोहित की मम्मी हंसते हुए बोली… बेटा तुम्हारे चले जाने के बाद रोज हम दोनों में तकरार होती की बहू होती तो ऐसी कॉफी पिलाती, बहू होती तो ऐसी रोटियां खिलाती, बहु होती तो यह करती बहू होती तो वह करती! तब मैं कहती… अरे अब बहू नहीं है तो क्या हुआ.. मेरे हाथ की खा पी लो! तब सुनंदा बोली.. मम्मी पापा आज के बाद आपको मेरे कारण किसी भी प्रकार की शिकायत नहीं होगी और अब मुझे भी समझ में आ गया है किसी की बातों में आकर अपने घर को कभी भी नहीं तोड़ना चाहिए!
हेमलता गुप्ता स्वरचित
. कहानी प्रतियोगिता (तकरार)
प्रेरक कहानी, जो परिवार में बड़ों के होने को लाभप्रद सिद्ध करती है ।