तकरार – पूजा शर्मा : Moral stories in hindi

देहरादून में आए राघव की नजर राह चलती मानवी पर पड़ी तो उसने उसका रास्ता रोक कर पूछ ही लिया कैसी हो मानवी, तुम यहां कैसे ?इतना ही पूछ पाई मानवी, आशु को गोद में उठाकर कितना प्यार किया राघव ने आखिर उसका खून जो था। बाप बेटे को एक साथ देख कर मानवी की आंखों में भी आंसू आ गए थे वह कुछ बोल ही नहीं पाई थी।

घर में सब कैसे हैं मानवी ने पूछा तो राघव ने कहा मा दुनिया में नहीं रही और दिल्ली में नंदनी की भी शादी हो गई है और आकाश की बेंगलुरु में नौकरी लगे हुए एक महीना हुआ है। काफी नहीं पियोगी मेरे साथ मना नहीं कर पाई मानवी, कितना बदल गई हो तुम। क्या इस बीच में तुम्हें मेरी याद नहीं आई, तुमने अपना नंबर भी बदल लिया तुम्हारे बिना मैं जैसे जिया हूं

मुझे ही पता है। मियां बीवी में तकरार किस घर में नहीं होती लेकिन अपना घर छोड़कर कौन जाता है । मैं पिछले 1 महीने से यही देहरादून में ही हूं और यही एक इंस्टिट्यूट में पढ़ाने लगा हूं। लगातार बिना रुके बोले जा रहा था राघव ।फूट फूट कर रो पड़ी थी मानवी लेकिन कुछ बोल नहीं पाई। राघव से दूर जाने के बाद उसने जाना अपना घर ही अपना घर होता है।

मुझे आज भी तुम्हारा इंतजार है मानवी। राघव ने उसके हाथ पर हाथ रखकर कहा। उसने भी अपनी मौन स्वीकृति दे दी थी। आज सुबह की ही तो बात थी, शायद भगवान भी ऊपर खड़ा उसकी बात ही सुन रहा था जब मानवी ने अपनी मां से कहा था।-मां हमेशा के लिए अब मैं यहां से चली जाऊंगी।आशु को लेकर बस आपका आशीर्वाद चाहिए,

लेकिन कहां जाएगी बेटी? छोटी-छोटी बातों को बढ़ावा नहीं देते नंद भाभी की तकरार तो चलती ही रहती है। और फ़िर आशु स्कूल जाता है कौन संभालेगा इसे जब तू अपने स्कूल में पढ़ाने के लिए चली जाती है। कविता जी बोली। मां मुझे आशु के स्कूल में ही नौकरी मिल गई है आशु भी मेरे साथ जाया करेगा और मेरे साथ ही आया करेगा।

बस आप मुझे मत रोकिए अगर आज नहीं गई तो फिर कभी नहीं जा पाऊंगी। और फिर मेरा खुद का घर तो है पहले ही बहुत देर कर दी है, कितना कुछ बदल गया पिछले 4 सालों में सही कहा करते थे पापा, वही तो हुआ जो उन्होंने कहा था। कहते-कहते मानवी अपनी मां की गोद में सर रखकर रो ही पड़ी और कविता जी उसके बालों को सहलाने लगी मानवी यूं ही अतीत में खो गई।

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 दो भाइयों की अकेली छोटी बहन मानवी। पापा बैंक मैनेजर थे, दोनों भाई सरकारी नौकरी में थे देहरादून में उनका अपना घर था मानवी ने। मैथ में पीएचडी की थी और एक स्कूल में पढाती थी। कितने अरमानों से उसकी पापा ने राघव के साथ शादी की थी मानवी की। राघव देहरादून के एक इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ाता था।

उनके परिवार में उसकी छोटी बहन छोटा भाई और मां के अलावा कोई नहीं था, पलकों पर बिठाकर रखा था मानवी को उसकी ससुराल वालों ने और उसके पति ने । उनका घर नोएडा में था, देहरादून में नौकरी करने के कारण राघव ने छोटा सा घर देहरादून में भी खरीद लिया था जहां मानवी और राघव ने अपनी गृहस्थी बसाई थी।

शुरू शुरू में तो सब कुछ ठीक था लेकिन अधिक लाड प्यार में पली मानवी को यह बर्दाश्त नहीं होता था कि छोटी-छोटी जरूरत के लिए उसके घर वाले राघव को फोन करते थे राघव ने कहा भी था मैं तुम्हारे किसी खर्चे में कोई कमी नहीं करता हूं लेकिन उनकी जिम्मेदारी भी मेरी जिम्मेदारी है इस बात में तुम ना ही बोलो तो अच्छा है

और फिर माँ की पेंशन भी आती है जिसे वह उन पर खर्च करती हैं मैं खर्च ही कितना करता हूं उन पर उसमें भी तुम्हें परेशानी रहती है। इन्हीं बातों के के चलते उनमें आपस में बहुत तकरार रहने लगी थी, और गुस्से में लड़ झगड़ कर एक दिन मानवी अपने घर भी आ गई थी दो-तीन बार राघव उसको लेने भी आया लेकिन घर वालों ने उसके साथ भेजने को मना कर दिया मानवी के दोनों भाइयों ने भी राघव का कम अपमान नहीं किया था और बोल दिया था

आइंदा से हमारे घर की तरफ रुख भी मत करना हम अपनी बहन को तुम्हारे साथ नहीं भेजेंगे वह हमारे ऊपर बोझ नहीं है।अपनी मां का पूरा सपोर्ट मिला था मानवी को । राघव फिर कभी उसे लेने नहीं आया ना ही उनकी फोन पर आपस में कोई बात हुई। इतना तो पता चला था कि अब वह नोएडा में ही किसी इंस्टिट्यूट में पढ़ाने लगा था।

मानवी के पापा बहुत समझाया करते थे बेटा हमेशा एक जैसी स्थिति नहीं रहती तेरे भाइयों की गृहस्ती है वह अपनी दुनिया में मस्त हो जाएंगे हमारा भी कोई भरोसा नहीं है तू अकेली कैसे करेगी अपना घर अपना घर ही होता है और राघव की कोई गलती भी तो नहीं है आखिर अपने परिवार की जिम्मेदारी वो नहीं निभाएगा तो कौन निभाएगा?

लेकिन मानवी की माँ हमेशा अपने पति को यह कहकर चुप कर देती थी कि हमारी बेटी के लिए हमारे घर में कोई कमी नहीं है मैं उसके साथ अपनी बेटी को नहीं भेजूंगी। एक दिन अचानक मानवी के पापा भी चल बसे दोनों भाई भी अपनी अपनी दुनिया में मस्त थे। अब माँ भी लाचार हो चुकी थी।

दोनों भाभियाँ भी मानवी के साथ उपेक्षित व्यवहार करने लगी थी और उसके बेटे से भी प्यार नहीं करती थी । कल भी उसने अपनी भाभियों को आपस में बात करते हुए सुना ,न जाने कब तक हमारी छाती पर मूंग दलेगी खुद कमाती है तो अपने घर में जाकर रहे। आगे मानवी सुन नहीं पाई थी और चुपचाप अपने कमरे में आकर रोने लगी थी।

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मानवी ने निश्चय कर लिया था कि वह अपने देहरादून वाले घर में जाकर ही रहेगी, जिसकी एक चाबी उसके पास रहती थी और दूसरी राघव के पास और आज ही आशु को स्कूल से लाते हुए राघव से उसकी मुलाकात भी हो गई थी। मानवी ने अपना और अपने बेटे का सारा सामान बैग में रखा और अपनी मां से बताया कि राघव उसके घर में उसका इंतजार कर रहे हैं , आज कविता जी की आंखों में खुशी के आंसू थे।

 किसी ने उसे रोकने की आज कोशिश भी नहीं की।

 आज वह सच में अपने घर जा रही थी वो घर जो सिर्फ उसका था। राघव ने जैसे ही उसे देखा बोल पड़ा मुझे पता था तुम जरूर आओगी, अपने उस घर में जो हमने कभी प्यार से बसाया था। मुझे माफ कर दो राघव मैंने बड़ी गलती की है। बस मानवी चुप हो जाओ अब पिछली बातों को मत दोहराओ हमें नई जिंदगी शुरू करनी है जो बीत गया वह वापस नहीं आता। कहते हुए मानवी को और अपने बेटे को उसने गले से लगा लिया। आज सच में एक अधूरा परिवार पूरा हो गया था। सही कहते हैं लोग

  लाख लुभाए महल पराए अपना घर ही अपना घर है आअब लौट चले

 बाहें पसारे तुझको पुकारे देश तेरा,आ अब लौट चलें।

 पूजा शर्मा

 स्वरचित।

VM

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