तकनीकी की जादुई  दुनिया – मीना माहेश्वरी

 आज हमारे किटी का ग्रुप पिकनिक मनाने आया था,बहुत ही सुन्दर नज़ारा था। चारों तरफ़ ऊंची _ऊंची  पहाड़िया, हरे _भरे विशाल वृक्ष, पहाड़ियों के बीच से कल _कल की मधुर ध्वनि करता चांदी_सा स्वेत इठलाता झरना, पेड़ों के बीच से छन_ छन कर आती सुनहरी मखमली धूप और मंद _मंद बयार,सब प्रकृति के इस हसीन नज़ारे का पूरा लुत्फ़ उठा रहें थे।

                  मैं और बरखा बातें करते करते एक बड़े से पत्थर पर बैठ गए, अचानक  से मुझे पैरों तले कुछ  खिसकता सा महसूस हुआ, डर कर मैंने बरखा के हाथ को कसकर पकड़ लिया, वो भी हड़बड़ा गई। हम दोनों ने जैसे ही नीचे देखा हमारे आश्चर्य का ठिकाना न रहा,,,,,,,,,

              हम जहां बैठे थे, ठीक वहीं से नीचे की ओर जाने के लिए बहुत सुंदर सीढियां बनी हुई थी, उत्सुकतावश हम दोनों सीढ़ियां उतरने लगे,डर भी लग रहा था, बस एक _दूसरे का हाथ थामे भगवान का नाम लेकर सारी सीढ़ियां उतर गए। नीचे पहुंच कर तो हमारी आंखे फटी की फटी रह गई,,,,,,,,,,,,साफ_सुथरी बड़ी _बड़ी सड़कें, करीने से बने सुंदर _सुन्दर घर, सड़कों के किनारे घने छायादार वृक्ष, इक्के _दुक्के लोग नज़र आए।

                    हम ने बात करने की कोशिश की,पर सब मुस्कुरा कर आगे बढ़ गए। कुछ समझ नही आ रहा था, भूख भी जोरों की लगी थी, तभी बरखा की नज़र एक बड़े से बोर्ड पर पड़ी , बोर्ड पर रंग _बिरंगी ढेर सारी बटन्स लगी थी, उनपर रेस्टोरेंट ट्रांसपोर्ट, हॉस्पिटल, ब्यूटी पार्लर, स्पा,,,,,,,,,,,आदि,आदि  लिखा था। मैंने रेस्टोरेंट की बटन को प्रेस किया, मिनटों में एक रोबोट जैसा कुछ हमारे पास आ खड़ा हुआ और हमे रास्ता दिखाते हुए रेस्टोरेंट ले आया, बड़ा आलीशान रेस्टोरेंट था,हर टेबल पर बटनों वाले बोर्ड रखे थे पसंद का बटन प्रेस करो, सब मिनटों में हाज़िर, बड़ा मज़ा आ रहा था। ईश्वर का धन्यवाद पर्स साथ में था गूगल पे, पेटीएम की सुविधा थी,कोई प्राब्लम नही हुई।  चार्जेस भी बड़े रीजनेबल थे।

                     अब बोर्ड और बटन का  खेल हमें पूरी तरह समझ आ गया था, हमने फटाफट  स्पा का बटन प्रेस किया, खिदमत में बंदा हाज़िर, कैब प्रेस की कैब हाज़िर, स्पा का पूरा आनंद लिया। बाकी सब कुछ बढ़िया चल रहा था,पर कुछ तो था जो  हमें खल रहा था। चार _पांच घंटे कब निकल गए पता ही नही चला।


                      जहां भी जाओ सब अपना _अपना काम कर रहें थे, सब के चहेरों पर मुस्कुराहट थी, लोग तो थे,पर चहल _पहल नही थी, सारे ऐशों _आराम थे पर कुछ तो कमी थी, शायद संवेदनाएं नहीं थी। सब कुछ मशीन की तरह घटित हो रहा था।

                        ये बात अच्छी थी कि मैं और बरखा साथ थे, अकेले होती  तो क्या होता सोच कर मन घबराने लगा,,,,,,,,ना बाबा ना, मुझे तो रास ना आए ऐसा आराम,ऐसी शांति, जिंदगी में थोड़ा शोर, थोड़ी भाग_दौड़,थोड़ा नमक बहुत जरूरी है, मीठी _मीठी ,,,,, डायबिटीज हो जाएंगा।

                      दुनिया अपनी वाली ही भली,,, ,,,,,,,दौड़ _दौड़ कर काम करने का मज़ा ही कुछ और है, तभी तो रात मे सुकून की नींद आयेंगी। थोडा बहुत टेंशन होंगा तभी सुबह एनर्जी आयेंगी। मैने बरखा की ओर देखा,,,,,,,,, जैसे कह रही हो,,,,, सेम पींच,,,,, हम दोनों सिर पर पैर रख सीढ़ियों की ओर दौड़ पड़े,,,,,,,,,,,,,,

            मम्मी मुझे लेट हो रहा है,उठो ना,,,,,,,,,,     मैं हड़बड़ा कर उठी,,,,,,,,,,, ईश्वर का लाख लाख शुक्र,,,,,,,,, मै अपनी ही दुनिया मे  हूं और बहुत खुश हूं,,,,,,,, आप क्या कहते है,,,,,,,,,,,,

मीना माहेश्वरी स्वरचित

रीवा मध्य प्रदेश

 

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