“ झुमकी “ अरे ओ झुमकी कब से आवाज दे रही हूँ तुझे ,किन खयालों में खोई रहती है री तू ,तेरी दादी तुझे कब से ढूँढ़ रही है और तू हे कि यहाँ खेत पर आकर बैठी है ।
हाँ काकी आती हूँ ….आने का बोल तो दिया लेकिन फिर से वह उदास हो गई ,उसका उदास होना भी जायज है क्योंकि इतनी कम उम्र में उसने बहुत कुछ झेला है ।
मात्र 16 साल की उम्र में ही उसके माता -पिता की एक एक्सीडेंट में मृत्यु हो गई फिर झुमकी और उसकी बूढ़ी दादी दोनों अकेले रह गई ,एक तो पहले से ही गरीबी का दंश झेल रही थी और अब तो उसके माता- पिता के जाने के बाद तो जैसे झुमकी के ऊपर दुखों का पहाड़ ही टूट गया था ।
झुमकी के माता – पिता दोनों ही मजदूरी करते थे ताकि झुमकी को इतना तो शिक्षित कर दे कि आगे चलकर उसे किसी के भी सामने झुकना ना पड़े , उन्होंने झुमकी को एक सरकारी स्कूल में भर्ती करा दिया और ख़ुद पूरा दिन मजदूरी करते ,शाम को घर लोटतें इसी तरह से झुमकी धीरे – धीरे बड़ी होने लगी ।
पढ़ाई – लिखाई में तो वह शुरू से ही अव्वल थी साथ ही उसे संगीत का भी बहुत शौक था उसकी आवाज भी इतनी मधुर थी कि कोई भी एक बार अगर उसका भजन या गीत सुन ले तो तारीफ किए बिना नहीं रहता था ।सब कुछ ठीक ठाक ही चल रहा था लेकिन भगवान को कुछ ओर ही मंजूर था ,झुमकी के माता पिता दोनों को ही एक साथ भगवान ने छीन लिया अब सिर्फ वो और उसकी दादी दोनों ही थी लेकिन दादी की उम्र हो गई थी तो अब वो हाथ पैरों से लाचार थी ।
कोई साथ देने वाला नहीं था सो झुमकी को ही काम करने जाना पड़ा अब उसकी पढ़ाई छूट गई क्योंकि उसकी दादी की देखभाल करने वाला कोई नहीं था ।
झुमकी अरी ओ झुमकी कितनी देर लगा ली तूने कब से में तेरी बाट जोह रही थी ,कहीं नहीं दादी बस आपकी दवा लेने गई थी तो वहीं देर हो गई दादी को दवा देकर झुमकी ने सुला दिया लेकिन उसकी आँखों में वही सूनापन और उदासी थी वो सोच रही थी कि क्यों उसकी “ तकदीर “ में ये सब लिखा है ।
ये सब सोचते सोचते उसकी आँख कब लग गई उसे पता ही नहीं चला ,सुबह उठकर वह घर के बाहर ही गीत गुनगुना रही थी उसी समय वहाँ से शहर के एक बड़े व्यापारी निकल रहे थे उन्होंने उसकी आवाज सुनी तो मंत्रमुग्ध हो गए वह झुमकी के पास गए और एक और गाना सुनाने को कहा फिर उसके घर भी गए उसकी एसी हालत देखकर उनको बहुत दया आई उन्होंने झुमकी की दादी से बात कर के उसका एडमिशन एक अच्छे स्कूल में करा दिया ।
उसके संगीत सीखने की भी व्यवस्था कर दी सारा खर्चा उन्होंने ही उठाने की जिम्मेदारी ले ली ।झुमकी ने भी रात दिन बहुत मेहनत की और आगे बढ़ती गई उस व्यापारी ने उसे समझाया की सिर्फ तकदीर के भरोसे नहीं बैठना चाहिए ,अगर इंसान चाहे तो अपनी लगन और मेहनत से बहुत कुछ कर सकता है ।
इस तरह से झुमकी ने अपनी मेहनत और लगन से अपनी तकदीर बदल डाली ।।
शीतल भार्गव
छबड़ा जिला बारा
राजस्थान