तड़का – अंजू निगम

मैंने सास-ससूर दोनो को खाने पर बिठा दिया था|

“हमे एक एक रोटी गरम दिया करो|ठंडी रोटी दाँतो से कटती नहीं|”सासूजी ने कहा|

   मुझे भी इस बात का अहसास था और दोनो को गरम खाना ही मिले,इस बात का खास ध्यान रखती थी|

  “बहू,सब्जी बहुत स्वाद बनी हैं|”ससूरजी ने कहा तो मेरा चेहरा खिल उठा|

  “अरे!!!!ये सब मेरे बनाये गरम मसाले का कमाल हैं|”सास की कही ये बात मेरे उत्साह को सुला गई|

   ये पहली बार की बात नहीं थी|उस दिन ही मैंने कितने शौक से “शाही पनीर”बनाया|ये सोचा कि रोज के दाल-चावल से अलग जीभ का कुछ स्वाद बदल जायेगा|

“ये क्या बना दिया आज?”सासूजी ने जब टेढ़ा मुँह बना कर कहा तो मुझे लगा कि इस स्वाद बदलने के चक्कर में मेरे मन का स्वाद बिगड़ गया|मैंने धीरे से कहा……”शाही पनीर”!!

“ये कैसा बनाया?न शाही में न पनीर में|”

  खाने का पोस्टमार्टम करने में पति भी पीछे नही रहते थे|अक्सर कहते,”पेट भर गया पर आत्मा नहीं|सब्जी में कुछ कसर रह गयी थी|तुम्हें नहीं लगा|”

  तब चिढ़ कर मैं कहती,”कभी चुपचाप खाना खा लिया करो|”

  बात घरवालो तक रहती तो गनीमत थी,पर मेरी पाक कला के चर्चे सासूजी आस-पड़ोस में बैठ करने लगी तब मुझे लगा कि अब ये बयार बदलनी पड़ेगी|




    अगले दिन आराम से सो कर उठी|काम की कोई चिंता नहीं थी|सुबह की चाय का समय निकल गया|नौ बजने को आये और रसोई में कोई खटर-पटर नहीं|

  “बहू,खाना तो दूर,यहाँ तो नाश्ते के भी आसार नहीं|सबको काम पर जाना है|फटाफट नाश्ता बनाओ|”

   पर मैं आराम से खड़ी थी|

“मम्मी जी,इतने दिन से मेरे हाथ का खाना खा आपके जीभ का स्वाद बिगड़ गया होगा|सो,आज से मैं आपसे खाना बनाना सीखुँगी|वैसे भी मेरी माँ ने मुझे ढंग का खाना बनाना सीखाया नहीं|अब इस घर आई हूँ तो आपसे ,आप सबके  हिसाब से खाना बनाना सीखती हूँ|”

    अगले दिन फिर मैं रसोई में थी|नाश्ता-खाना बनाने के लिए|सास-ससूरजी को आज भी एक-एक रोटी गरम दे रही हूँ|पर आज दाल में लगाया तड़का बराबर पड़ा हैं|

             अंजू निगम

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