तड़के का जादू – डॉ. पारुल अग्रवाल : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : आज सब जगह मुग्धा की ही चर्चा थी। मुग्धा ने सिंगापुर में अंतर्राष्ट्रीय शेफ प्रतियोगिता तो जीती ही थी पर साथ साथ वो मात्र दस रुपए में वो अपनी अक्षयपात्र योजना के अंतर्गत गरीबों को भरपेट भोजन करवाती थी। अपने देश भारत पहुंचते ही उसको सरकार की तरफ से भी साल के दस बड़े समाजसेवक के अंतर्गत सम्मानित किया जाना था।आज मुग्धा की आंखों से नींद पूरी तरह गायब थी। 

वो बहुत खुश तो थी पर मन ही मन किसी के साथ अपनी इतनी बड़ी खुशी को सांझा ना कर पाने की टीस भी थी। आज उसे बीते दिन का एक एक संघर्ष याद आ रहा था। वो अभी कॉलेज के आखिरी साल में ही थी कि नैतिक के घर से उसका रिश्ता आया था। 

जहां उसके पापा मामूली से क्लर्क थे वहीं नैतिक एक बहुत बड़े धनाढ्य परिवार का इकलौता चिराग था। कई सारी चावल मिल और पेट्रोल पंप थे। नैतिक ने उसको अपने एक दोस्त की शादी में देखा था। असल में दोस्त की बहन और मुग्धा बहुत ही पक्की सहेली थी। 

मुग्धा अपनी पक्की सहेली के भाई की शादी में बिल्कुल घर की तरह ही काम में लगी थी। जब नैतिक ने उसको देखा तो देखता ही रह गया था। 

उसकी हिरनी जैसी आंखें और मासूम सा चेहरा वो भूल नहीं पा रहा था। घर आकर उसने सोच लिया था कि वो शादी करेगा तो सिर्फ मुग्धा से ही करेगा। उसने अपने घर पर अपने माता-पिता को भी उसके विषय में बताकर शादी का निर्णय सुना दिया था।

 उन लोगों को पता था कि नैतिक वैसे भी इकलौता होने की वजह से बहुत ज़िद्दी है जो कह दिया वो करके ही मानेगा। नैतिक अपने दोस्त से मुग्धा का पता निकलवाकर अपने माता-पिता के साथ उसके घर पहुंच गया। 

मुग्धा के माता-पिता के लिए तो ये दिवास्वप्न जैसा था पर अभी मुग्धा बहुत छोटी थी और पढ़ाई भी पूरी नहीं हुई थी।वे लोग मध्यम वर्गीय अवश्य थे पर उसके पिता को शिक्षा की महत्ता का पता था। 

उन्होंने अपनी तरफ से काफ़ी कोशिश की और चाहा कि किसी तरह मुग्धा की पढ़ाई खत्म हो जाए फिर शादी हो पर नैतिक और उसके परिवार के आगे उनकी एक ना चली।

उन लोगों का कहना था कि उनके घर की बहुएं बाहर नौकरी तो करती नहीं,फिर पढ़ाई पूरी नहीं भी हुई तो क्या हो जायेगा। 

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बस इन्ही सब तर्क-वितर्क के बीच मुग्धा नैतिक की दुल्हन बनकर अपनी ससुराल आ गई। मुग्धा के लिए तो ज़िंदगी जैसे परियों की दुनिया के सामान हो गई थी।

नैतिक ने उसको इतना प्यार दिया था कि वो अपने भाग्य पर इठलाए बिना नहीं रह पाती थी। खुशी-खुशी शादी का पहला साल बीत रहा था।सब कुछ ख्वाब जैसा था पर कहते हैं ना कि कई बार खुशियों को खुद की ही नज़र लग जाती है,

 ऐसा ही कुछ मुग्धा के साथ हुआ। वो और नैतिक शादी की प्रथम सालगिरह मनाकर कहीं बाहर से आ रहे थे,रास्ते में कार अनियंत्रित हो गई।नैतिक के तो फिर भी कम चोटें आई पर मुग्धा बुरी तरह ज़ख्मी हो गई। उसको तुरंत हॉस्पिटल ले जाया गया।

सही समय पर इलाज़ मिलने से वो खतरे से बाहर थी पर पेट पर चोट आने की वजह से उसका गर्भाशय निकलना पड़ा। 

अब वो ज़िंदगी भर ले लिए मां नहीं बन सकती थी।उसको हॉस्पिटल से तो छुट्टी मिल गई थी पर ससुराल में उसकी सास का रवैया उसके प्रति बदलने लगा था। वो अब उससे बात भी करना पसंद नहीं करती थी।ससुर तो पहले ही अपने काम ने व्यस्त रहते थे। उसने इस विषय पर नैतिक से भी बात की।

 नैतिक ने मुग्धा को यह कहकर कि अभी तुम्हारे घाव ठीक नहीं हुए हैं, तुम्हें आराम की जरूरत है इसलिए कोई तुम्हे तंग नहीं करता है। 

नैतिक के इस तरह के जवाब मुग्धा को संतुष्ट नहीं कर पा रहे थे। वैसे भी किसी लड़की का मां ना बन पाना उसके लिए सबसे बड़ा दुख है ये केवल मुग्धा ही महसूस कर पा रही थी।

इसी तरह दिन बीत रहे थे एक दिन मुग्धा घर की बैठक की तरफ आ रही थी। अंदर नैतिक और उसके माता-पिता थे।

 उसको सुनाई दिया कि वो नैतिक से उसकी दुसरी शादी की बात कर रहे थे। नैतिक की मां का कहना था कि इतनी बड़ी जायदाद की संभालने के लिए कोई वारिस तो चाहिए ही होगा। वे लोग ये कह रहे थे कि अब तक उन्होंने नैतिक की हर ज़िद्द मानी है।

उसकी और मुग्धा की शादी की भी सहमति भी दे दी थी पर अब वो अपनी इच्छा से उसकी दुसरी शादी करवाएंगे।

 वो बिना पोते पोती की मुंह देखे मरना नहीं चाहते। मुग्धा के तो पैरों तले ज़मीन खिसक गई पर उसको नैतिक पर पूरा भरोसा था। 

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जब रात को नैतिक कमरे में आया तब मुग्धा ने उससे इस विषय पर बात की और बताया कि उसने सब कुछ सुन लिया था तब नैतिक ने बिना लाग- लपेट के उसको बोला कि अच्छा हुआ तुमने सब सुन लिया क्योंकि अपने घर को वारिस देने के लिए मेरे को दूसरी शादी तो करनी ही पड़ेगी।

 मैं तुमसे ये भी वादा करता हूं कि तुम्हें यहां कोई दिक्कत नहीं होगी तुम कोठी के ऊपर वाले हिस्से की मालकिन रहोगी। मेरी पहली पत्नी का दर्ज़ा तुम्हारा ही होगा।

अब मुग्धा अपनेआप पर नियंत्रण नहीं रख सकी और बोली कि क्या पति पत्नी का रिश्ता इतना कच्चा और खोखला होता है,जिसका आधार केवल संतान प्राप्ति मात्र होता है। 

अगर दुर्घटना में जो मेरे साथ हुआ वो आपके साथ होता तब आपके माता-पिता और आप क्या करते,तब भी आप क्या मेरी दूसरी शादी करवाते?

रही बात संतान की तो हम किसी बच्चे को गोद भी ले सकते हैं और आजकल तो सरोगेसी से भी बच्चे होते हैं उनकी इन। सब बातों का नैतिक के पास कोई जवाब नहीं था। वो नज़रे झुकाए वहां से निकल गया।

एक महीने के अंदर नैतिक की दूसरी शादी हो गई। शादी बहुत धूमधाम से तो नहीं हुई थी पर फिर भी एक दूसरी लड़की नैतिक की दूसरी पत्नी के रूप में घर आ गई थी। मुग्धा पर तो जैसे दुखों का पहाड़ टूट गया था।

एक ही छत के नीचे अपने पति को किसी दूसरी स्त्री के साथ देखना उसके लिए बहुत कष्टदाई हो रहा था। 

उसके अपने माता-पिता भी विवश थे क्योंकि पिता के रिटायरमेंट के बाद सारी बागडोर भाई-भाभी के हाथ थी। वो तो वैसे भी मुग्धा से कोई मतलब ना रखते थे। मुग्धा हर तरफ से अकेली हो गई थी। उसकी तो पढ़ाई-लिखाई भी पूरी नहीं थी। 

पर उसमें आत्मसम्मान कूट कूट कर भरा था। वो चाहती तो कोर्ट में अपने पति और ससुराल वालों के खिलाफ जा सकतीं थी पर वो उसके स्वाभिमान को गंवारा ना था। वैसे भी जो संबंध खोखले रिश्ते में बदल जाए तो उसको पुनः जीवित करना संभव नहीं होता। 

अब मुग्धा किसी तरह से वहां से निकलकर अपनी अलग दुनिया बनाना चाहती थी। तभी उसको अपनी एक दोस्त रुचि की याद आई जो मुंबई में बैंक में जॉब करती थी और वहां पीजी में रहती थी। मुग्धा ने उसको फोन लगाया और सारी बात बताई।

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पहले तो रुचि को समझ नहीं आया कि वो मुग्धा की कैसे मदद करे,फिर उसे याद आया कि मुग्धा खाना बनाने में बहुत निपुण है, उसको लगभग हर तरह की डिश आती है।

 उसकी पीजी वाली आंटी को एक अच्छा खाना बनाने वाली कुक की बहुत जरूरत है। तब उसने मुग्धा से ये सब बताया, मुग्धा इस काम के लिए एकदम तैयार हो गई क्योंकि ये तो उसका मनपसंद काम था।

रुचि ने ही मुग्धा का मुंबई का टिकट बुक कराया और इस तरह मुग्धा के नए सफर की शुरुआत हुई। यहां उसके भी रहने की व्यवस्था पीजी में मुफ्त में हो गई। 

खाना बनाना उसका शौक था पर इतने सारे लोगों का खाना उसने कभी नहीं बनाया था पर उसने हिम्मत नहीं हारी। धीरे धीरे उसके हाथों का जादू सबकी जीभ को भाने लगा।

अब वो खुद की भी टिफिन सर्विस चलाकर लोगों को खाना भेजने लगी थी। अब उसकी अच्छी खासी कमाई होने लगी। अब उसने गरीब लोगों के लिए 10 रुपए में भरपेट खाने की अक्षयपात्र योजना भी शुरू की जिसको बहुत सराहा गया। 

इसके साथ उसने अपनी रुकी हुई पढ़ाई भी पूरी की,एक दिन उसको मास्टर शेफ कार्यक्रम का पता चला उसने उसमें भाग लिया और उसके तड़के का जादू वहां भी चल पड़ा। वो आखिरी तीन में भी पहुंच गई और इसका फाइनल सिंगापुर में होना था।

सब पासपोर्ट और वीजा की ज़िम्मेदारी कार्यक्रम कमेटी की थी। वो इसमें भी विजेता बनी। आज घर घर में लोग उसको पहचान रहे थे। नैतिक और उसके परिवार ने भी वो कार्यक्रम देखा था। उसके तड़के के जादू और जिजीविषा ने आज उसको सब बातों से ऊपर पहुंचा दिया था।

 वो ये सब सोच ही रही थी कि मोबाइल के फोन ने उसकी तंद्रा भंग कर दी देखा तो रुचि का फोन था। रुचि ने उसको बधाई दी और कहा जल्दी आ सब लोग पीजी में तेरा इंतजार कर रहे हैं।

मुग्धा को लगा वो बेकार ही उन खोखले रिश्ते के विषय में सोचकर परेशान होती है, उसका अपना तो रुचि और पीजी का परिवार है जिसने उसको आसरा और इतना सम्मान दिया।

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 बस ये सोचते सोचते मुग्धा एयरपोर्ट पहुंच गई और शाम को उसको एक समारोह में उसकी अक्षयपात्र योजना के लिए भी सरकार से सम्मान और सहायता प्रदान की गई। सम्मान प्राप्त कर जैसी ही वो बाहर निकली तो न्यूज चैनल वालों की लाइन थी जो उसकी एक झलक को कैमरे में कैद कर लेना चाहते थे।

 उनके पूछने पर कि वो अपनी कामयाबी का श्रेय किसे देना चाहती है,तो उसने मुस्कराकर आत्मविश्वास से जवाब दिया खोखले रिश्ते को। उसकी इस लाइन को सभी न्यूज़ चैनल वालों ने ब्रेकिंग न्यूज़ की तरह दिखाया। ये नैतिक जैसे लोगों पर एक तमाचा था।

 अगले दिन समाचार पत्रों में भी उसके तड़के के जादू की सुगंध फैली हुई थी। इस तरह मुग्धा ने अपने बलबूते पर खोखले रिश्ते के दंश से छुटकारा पा लिया था।

दोस्तों कैसी लगी मेरी कहानी? अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें। अगर इंसान ठान ले तो भगवान भी सही राह ही दिखाते हैं फिर खोखले रिश्ते भी उसके लिए सबक बनकर ही आते हैं।

डॉ. पारुल अग्रवाल

नोएडा

#खोखले रिश्ते

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