सुमी! सुमी!सुनो यार!कहां बिजी हो? चिराग ने घर में घुसते ही अपनी पत्नी सुमी को बुलाया।
तभी उसकी मां दया सामने आई,”पार्लर गई है,आती होगी अभी,दो घंटे हो गए हैं।”
ठीक है!ठीक है मां,बेरुखी से बोलता वो कमरे में घुस गया।
मैंने कुछ गलत बोल दिया क्या?मां आश्चर्य में सोचती रह गई।
तभी सुमी लौट आई और चिराग और उसके हंसने बोलने की आवाज़ आने लगीं।
सुमी!खुशखबरी सुनाऊं एक,कल हमारे नए
बॉस आ रहे हैं ऑफिस में,सुनने में आ रहा है बहुत जेंटलमैन हैं…
अरे वाह!ये तो बहुत अच्छी बात है,ऐसा करना,उन्हें किसी दिन जल्दी डिनर पर बुला लेना, मै इतनी बढ़िया डिशेज खिलाऊंगी,फ्लैट हो जायेंगे।
पर वो विदेश रहकर आ रहे हैं कई वर्ष? उन लोगों को तो वहीं की चीज़ पसंद होंगी?चिराग ने शंका जाहिर की।
तुम मुझे क्या समझते हो,सुमी इतराते हुए बोली,चाइनीज मै जानती हूं,इटेलियन और दूसरे भी सीख लूंगी।
बस…इसी लिए तो मै तुम्हारा इतना दीवाना हूं,जी में आता है तुम्हारे हाथ ही चूम लूं…
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तो रोका किसने है?वो खिलखिलाई।
दया वहां से हट गई थीं,बेटे बहू के रोमांस को वो किरकिरा नहीं करना चाहती थीं लेकिन उन्हें दुख बस इस बात का था कि वो उन्हें और उनके पति रामनाथ को कभी सम्मान नहीं करते थे और अक्सर उन्हें अपने मखमल जैसे घर में टाट के पैबंद की उपमा से नवाजते तो वो अंदर तक अपनी बेबसी पर रो देते जिन्होने अपना सब कुछ(बुढापे की सिक्योरिटी)अपने इसी इकलौते बेटे चिराग के कैरियर और शादी में लगा दिया था ये सोचकर कि वो है तो उन्हें क्या फिक्र है?
दो दिन बाद ही,चिराग का बॉस सुनील अपनी पत्नी रेखा के साथ उनके घर आने वाला था।
चिराग और सुमी बहुत उत्साहित थे क्योंकि सुनील तो चिराग का पुराना क्लासफेलो ही निकला,वो अलग बात थी कि सुनील कहां पहुंच गया था और चिराग अभी उसका सब ऑर्डिनट ही था।
सुमी को उम्मीद थी कि सुनील को खुश करके,चिराग को भी जल्दी प्रमोशन मिलेंगे और वो ऊंचाइयों पर पहुंचेगा।
उसने ढेरो खाने की चीज़ बनाई थीं,मंचूरियन, पास्ता,पिज्जा और केक वगेरह,बहुत थक गई थी उस दिन वो।
अपने सास ससुर को खास हिदायत दी थी उसने,आज आप खाना नौ बजे खा लेना,बॉस साढ़े सात बजे आयेंगे,नौ बजे तक चले ही जायेंगे,और हां!आप अपने कमरे में ही रहिए, बाहर न आना,उनके सामने…वो लोग विदेश से आ रहे हैं…ये पापाजी जो पायजामा कुर्ता पहने रहते हैं और आप ये सूती धोती,अच्छी नहीं लगेगी मेहमानों के आगे…चिराग के प्रमोशन की बात है न।
दया बहू के स्वभाव से भली भांति परिचित थीं इसलिए उन्होंने बुरा नहीं माना पर पति के लिए चिंतित थीं,उन्हें आठ बजे खाना चाहिए होता था।सोचा उन्होंने…बेटे के प्रमोशन की बात है इतना तो हम कर ही सकते हैं,कोई नहीं, मै उन्हें दोपहर की चाय के साथ कोई हेवी नाश्ता करा दूंगी,वो नौ बजे तक रुक जायेंगे।
और हां..अपना खाना आज खुद ही बना लें,मैंने तो आज स्पेशल चाइनीज,इटेलियन डिशेज बनाई हैं..वो गर्व से बोली।
बेटा! मैं बड़ी वाले आलू,टमाटर मटर की रसीली सब्जी बना दूंगी,फुल्के उसी समय सेंक दूंगी,तेरे बाउजी को गर्म ही पसंद हैं न..वो बोलीं।
सुमी मुंह बनाती बोलती चली गई…वही एक बड़ी वाले आलू टमाटर.. उन्ह्ह…
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ठीक साढ़े सात बजे…सुनील और उसकी पत्नी रेखा आ गए थे।
सुमी ने टाइट सी जींस और टॉप पहना था और बाल खुले थे,स्मार्ट लग रही थी वो लेकिन उसे ये देखकर आश्चर्य हुआ कि रेखा सिल्क की शानदार साड़ी पहने,लंबी चोटी बनाए हुए थी।
उसने हाथ जोड़कर नमस्ते की सबको जबकि सुमी ने हाथ बढ़ाया था उससे मिलाने के लिए।
पुराने दोस्त थे,बहुत दिल से मिले,खुल कर हंस बोल रहे थे।सुनील का स्वभाव बहुत अच्छा था,उसने चिराग को रिलैक्स किया हुआ था,बॉस मै तुम्हारा ऑफिस में हूं ,यहां हम दोनो पुराने दोस्त हैं बस।
खाने के दौर चलते रहे,कितनी चीज़ स्टार्टर के तौर पर खा चुके थे वो लोग और खूब तारीफ भी कर रहे थे सुमी की पाक कला की।
जब खाना परोसने की बारी आई,साढ़े आठ बज चुके थे।
सुमी ने सब उनकी टेस्ट की चीज़ परोसी,हंसते हुए सुनील बोला,भाभी जी!ये क्या?आपने कुछ इंडियन खाना नहीं बनाया?हमें तो बड़ी उम्मीद थी आज कुछ पुराना जायका मिलेगा आपके हाथ का?
सुमी का चेहरा सफेद पड़ गया,उसे लगा कि आज उसकी मेहनत पर पानी फिर गया।
तभी रेखा बोली,चिराग भाईसाब!आपके तो पेरेंट्स साथ रहते थे आपके शायद,वो लोग कहां हैं?
चिराग हड़बड़ा सा गया,तभी सुमी बोली,वो जल्दी खा लेते हैं,सो गए हैं शायद,पिताजी की तबियत खराब थी आज।
ओह!अच्छा…उनसे न मिल पाने का मलाल था उन दोनो के चेहरे पर।
उधर रामनाथ बेचैन हो रहे थे,और कितनी देर इंतजार करूं खाने का..आज भूखा ही सो जाऊं क्या?
दया उन्हें धीरे बोलने को कह रही थी,प्लीज!चुप रहो…चिराग के बॉस आए हैं…अभी चले जायेंगे…बस ला रही हूं।
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बस ला रही हूं…ला रही हूं.. घंटे भर से यही सुन रहा हूं, मै जाता हूं बाहर देखने कि कौन आया है जो मां बाप को भूखा मारने को कहता है…
उनकी आवाज कुछ तेज हो गई और कमरे से बाहर सबने सुनी,सुनील चौंके…शायद!पिताजी की तबियत ज्यादा खराब है,वो कुछ कहना चाह रहे हैं….
ये कहते वो उठ खड़े हुए,अब तो सबको उधर जाना ही पड़ा।
मेहमान को बेटे बहू के साथ दरवाजे पर देखकर,रामनाथ के तेवर ढीले पड़ गए,वो निढाल हो बिस्तर पर ढेर हो गए।
सुनील झट उनकी चारपाई के पास आए,”नमस्ते चाचा जी”,प्यार से किए गए अभिवादन की महक जैसे उनको जिला बैठी,पलट कर देखा और प्रसन्नता से सुनील के सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया।
रेखा ने सिर पर पल्लू ढका और दया और उनके पांव छू लिए।
दोनो बुजुर्गों की आत्मा तृप्त हो गई।
क्या तबियत खराब है आपकी? स्नेहिल स्वर में सुनील ने पूछा।
“बुढ़ापा” बेटा! बुढ़ापे से बड़ी क्या बीमारी हो सकती है? वो हंसे,समझ गए थे बेटे ने यही कहा होगा मेहमानों से तो उनकी बात की लाज तो रखनी होगी।
कुछ कुछ समझ सुनील और रेखा को भी आ रहा था चिराग और सुमी का स्वभाव।
सुनील को दुख हुआ उनका ये व्यवहार देखकर…वो बोला,आपने खाना खाया?
दया बोल पड़ी तभी,आज बहू ने नाश्ता काफी ज्यादा खिला दिया था तो अभी भूख ही नहीं लगी थी,बस इसीलिए…मैंने तो हल्की सी रस दार सब्जी छौंक दी थी एक।
जरा हमें भी तो टेस्ट कराएं भाभी…सुनील मुस्कराया और झट उन दोनो को लेकर बाहर डाइनिंग टेबल तक लाया।
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आज आपके साथ खाना खायेंगे…तरस गया मैं मां बाप के प्यार के लिए…कितना कमाया मैंने ,ढेरो लगा दिए…इतनी बड़ी संपत्ति और एस्टेट हैं मेरी पर एक मां बाप के साए के लिए तरसता हूं,आज वो होते तो कितने खुश होते…कहते हुए सुनील की आंखें भर आई।
तभी रेखा,सुमी के साथ जाकर रसोई से उनकी थाली भी लगा लाई जिसमें बड़ी आलू की सब्जी थी।
चाची जी…आप बुरा न माने तो आपकी जरा सी सब्जी मैं भी खाऊं?सुनील ने कहा तो दया भावुक हो गई।
आओ बेटा, मै अपने हाथ से तुम्हें खिलाती हूं।
बहुत प्यार से सबने संग खाया।चिराग और सुमी अवाक हो सब देख रहे थे।चिराग को अपनी गलती महसूस हुई कि इतने समय से वो अपने भगवान स्वरूप मां बाप को इग्नोर कर रहा था।
जाते जाते,सुनील बोला चिराग से…यार! तू मुझसे कुछ फेवर मांग रहा था कंपनी में, मै तुझे सब कुछ देने को तैयार हूं लेकिन मेरी एक शर्त है…
क्या?कांपते स्वर में वो बोला।
तुम अपने मां बाप को मेरे साथ रहने की अनुमति दे दो,मेरे घर में मेरा मंदिर सूना है, मै उन्हें अपने साथ रखकर इनकी पूजा करूंगा।
चिराग का मुंह पीला पड़ गया…भला कोई मां बाप का सौदा करता है,वो कितना अभागा बेटा है जो उनके साथ रहकर उनकी वैल्यू न समझा,उनके आशीर्वाद को कम आंकता रहा।
तभी रामनाथ बोले,बेटा सुनील! मै तुम्हारी भावनाओ की कद्र करता हूं पर अब इस बुढ़ापे में मैं अपने बेटे का घर छोड़ कर कहीं नहीं जा सकता,तुम जब चाहे ,हमारे घर आओ,तुम्हारा बहुत स्वागत है पर हमारा घर तो ये ही है।
चिराग और सुमी के चेहरे खिल उठे,उन्हें अपनी गलती समझ आ चुकी थी,मां बाप के आशीर्वाद के बिना कोई भी तरक्की अधूरी है।उन्होंने आज अपना बड़प्पन दिखा ही दिया था।
डॉ संगीता अग्रवाल
वैशाली,गाजियाबाद
बहुत सुन्दर और शिक्षा प्रद कहानी है।