दिल्ली स्थित साकेत में चोपड़ा नामक एक परिवार रहता है।कहने को मिस्टर चोपड़ा जी के दो बेटे,बहुए,पोता-पोती एक संपन्न परिवारहै।दोनों भाई एक ही छत के नीचे रहते है लेकिन उनकी रसोई अलग है।जयसिंह पेशे से एक व्यवसायी है,जब की वीर एक सरकारीनौकरी करने वाला सीधा-सादा नरम दिल का मालिक।
बड़े भाई के दो बेटे एक बेटी हैं और छोटे भाई के एक बेटी। इस बात पे माया को बहुत मान हैं कि उसके दो बेटे है और वो ममता सेबेहतर है।लेकिन ममता को इस बात से कोई फर्क नही पड़ता वो अपनी दुनिया में खुश हैं।ख़ैर जो भी हो सब एक छत के नीचे रह रहे थे।चाहें दोनों भाईयो में ना बनती हो लेकिन इनकी बेटियों में सगों से भी ज्यादा प्यार है।रिया और सिया दोनों
हम उम्र है इस लिए दोनों कीखूब बनती है या ये कहे कोई भी बात एक दूसरे के बिना हज़म नहीं होती। बारहवीं करने के बाद रिया का एक प्राइवेट कॉलेज मेंएडमिशन हो गया और सिया का सरकारी कॉलेज में।रिया सिया के कॉलेज में जाना चाहती थी क्योंकि वो जानती थी कि चाचा जीइतने बड़े कॉलेज में सिया का दाख़िला नहीं करेगे इसलिए उसने ज़िद्द पकड़ ली कि वो तो सिया के ही साथ जाएगी।
इस बात पर माया ने सिया की माँ को खूब सुनाया बताओ हमारी बेटी इनकी बेटी के कॉलेज में जाएगी जहाँ कोई सुख-सुविधा नहीं है।हमने इतना अच्छा कॉलेज चुना है रिया के लिये और वो… इस बात पे काफ़ी दिन खिचा-तानी चली और अंत में रिया का एडमिशनउसके पापा के पसंद के कॉलेज में हुआ। सिया बेचारी कम बोलने वाली अपने आर्थिक हालत से वाक़िफ़,
कुछ ना कर पायी।मिस्टरचोपड़ा को रोज-रोज ये क्लेश अच्छे नहीं लगते थे।वो चाहते थे कि उनका बड़ा बेटा अलग रह ले और वो वीर के साथ इसी मकानमें,लेकिन जय बहुत शातिर था इतना सब होने के बाद भी उसकी नज़र हमेशा इस बात पे रहती थी कि बाबूजी वीर को क्या दे रहे है।
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जय सिंह -आप चाहते है मैं यहाँ से जाऊ तो इस घर में मेरा हिस्से के बदले पैसे दे दो।
मिस्टर चोपड़ा- कैसे पैसे?? जब तुम्हें बिज़नेस करना था तो मैंने तुम्हें पचास लाख दिए थे। वीर को तो मैं कुछ नहीं दे पाया और ना हीउसने कभी माँगा।वो तो बस अपनी छोटी सी सरकारी नौकरी में खुश है।अब जो भी है वीर का है तुम्हार कुछ नहीं ये सुन !जय सिंह कोग़ुस्सा आया और वो चीजें फैकने लगा तभी वीर ने उसका हाथ रोका और कहा भाई साहब ! आप ऐसा मत करे मुझे कुछ नहीं चाहिए।
इस वाक्या के बाद कुछ दिनों तक सब शांत रहा और तभी एक धमका हुआ की रिया की अठारहवी वर्ष गाँठ आ रही ही और उसके माँ-बाप उसका बर्थडे बड़ी धूम धाम से एक होटल में मानना चाहते है।ये सुन ! रिया बहुत खुश हुई और भाग के सिया के पास गई और बोलीसिया तुम्हारी भी अठारहवी वर्ष गाँठ है तो हम दोनों साथ में मनाएगे। सिया कुछ हिचकिचाती हुई नहीं रिया ऐसे कैसे हो सकता है??वोतुम्हारा ख़ास दिन है तुम्हें अपने परिवार के साथ मानना चाहिए जैसा वो चाहते है।
रिया- तो क्या हम एक परिवार नहीं है ??
सिया- है ,पर तुम बात को समझो जिसमे सब को ख़ुशी मिले वो करना चाहिए ना की ख़ुद को जो पसंद हो
रिया- खैर तुम तो रहने दो ,हम साथ मनायेगे तो बस।मैं दादा जी से बात करती ही ये बोल वो चली गई….
शाम को दादा जी से सिया की काफ़ी देर बात हुई और वो मान गए पर जय और माया नहीं माने उन्हें अपनी ऊँची नाक और झूठी शानजो दिखानी थी।
मिस्टर चोपड़ा-बताओ एक जन्म दिन के चक्कर में इतना खर्च करना कहाँ की अक़्लमंदी है।मैं तो इसके सख़्त ख़िलाफ़ हूँ।इतनी ही हाथमें खुजली हो रही है तो किसी ग़रीब-यतीम के लिए कुछ करो और दोनों थोड़ा पुण्य कमाओ।यें कह दादा जी वहाँ से चले गए…..
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जब सालगिरह वाला दिन आया तो रिया उदास दिखी वो शोर शराबा नहीं बल्कि सादगी से सिया के साथ केक काटना चाहती थी।बसयही उसका छोटा सा अरमा था जो बड़ो की शान तले चूर-चूर हो गया।रिया ने इस बात को ज्यादा ही दिल पे ले लिया और वो बेहोश होफर्श पे गिर पड़ी।तभी जय उसे अस्पताल ले कर भागा उसके पीछे-पीछे वीर सिया के साथ अस्पताल पहुँचा।सब बहुत परेशान थे।वीरअपने भाई को दिलासा दे रहा था और सिया एक कोने में जा कर रोने लगी।तभी रिया के पापा उसके पास गए और बोले क्या हुआ??सिया क्यों रो रही हो? ताऊ जी रिया…बोल गले लग गई,अगर उसे कुछ हुआ तो मैं अपने आप को कभी माफ़ नहीं करूँगी ये सब मेरीवजह से है !
नहीं बेटा इसमें किसी की कोई गलती नहीं तुम चुप हो जाओ वो ठीक है
तभी डॉक्टर बाहर आए और बोले सिया कौन है ??
जय -ये है सिया बोलो! डॉक्टर रिया कैसी है?
अब वो ठीक है,उसे एंजाइटी हो गई थी।जिसकी वजह से वो बेहोश हो गई ,आगे से ध्यान रखना बच्चे बड़े नाज़ुक दिल और भावुक होतेहै उन्हें किसी भी तरह का तनाव नुक़सान पहुँचा सकता है।
सिया भाग के अंदर गई और रिया से लिपट गई
रिया- जन्मदिन मुबारक हो सिया देखा मैंने कहा था ना कि हम जन्मदिन साथ मनायेगे अब वो होटल ना सही हॉस्पिटल ही सही….
सिया-रिया को प्यार करते हुए आई लव यू रिया मेरी प्यारी बहना
इन दोनों बहनों का प्यार देख जय सिंह भी आँसू संग हल्की सी मुस्कुराहट लिए घर जाने की तैयारी करने लगा।
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जैसे ही रिया घर पहुँची तो उसकी मम्मी,चाची सब भूल गई।उसकी आरती उतार नज़र का टिका लगा खाने में क्या खाना है पूछनेलगी??पूरे परिवार को यूँ हँसता देख मैं अपना दर्द भी भूल गई ।
कुछ दिनों बाद जय सिंह रिया के पास आए और बोले बर्थडे तो माना नहीं पाए।तो चलो एक पिकनिक पे ही चलते है।रिया ने ये सुनसिया को बोला जाओ सिया जाने की तैयारी करो।सिया एक्टुक हो ताऊजी की तरफ़ देखने लगी
जय- देख क्या रही हो जाओ हम सब चलेंगे
रिया- सब
जय-हाँ बेटा सब मतलब सब
रिया ने अपने पापा को शायद दूसरी बार गले लगाया हो।यह देख जय सोच में पड़ गया कि हम बड़े अपने काम अपने स्वार्थ के लियेअपने बच्चो की छोटी छोटी ख़ुशी उनकी मासूमियत को कितनी बार अनदेखा कर जाते है।
तो आओ चलो फिर चलते हैं
परिवार रूपी कश्ती का सफ़र करते हैं
थामे एक दूजे का हाथ
हर भव सागर को पार करते है ।।
#परिवार
स्वरचित रचना
स्नेह ज्योति