ताली एक हाथ से नहीं बजती – नीरजा कृष्णा

“मम्मी जी!ताली कभी भी एक हाथ से नहीं बज सकती है, ये कह कर मैं छोटे मुँह बड़ी बात कर रही हूँ , क्यों कि आप मुझसे हर बात में बड़ी हैं…उम्र में भी और तजुर्बे में भी।”

सरला जी नेहा की बात सुन कर बहुत चौंक गई,” नेहा बेटी! क्या हो गया ? अचानक ये सब बात हमारे तुम्हारे बीच कहाँ से आ गई?”

” जी मम्मी!बात कहीं से नहीं आई पर शायद मेरे मन का फ़ितूर भी हो सकताहै ।मुझे कुछ दिनों से ऐसा लगने लगा है… जैसे आप मन पर बोझ लेकर ,मन को दबा कर जी रही हैं, पर क्यों ? मैं आपका पूरा ख्याल रखने की कोशिश करती हूँ और आप भी ऐसा ही करती हैं, इन फैक्ट मुझे तो आप पर बहुत गर्व होता है! मेरी सहेलियों को तो मुझसे जलन भी होती है कि मुझे आप जैसी प्यार करनेवाली सासु माँ मिली हैं पर इधर आपका मूड उखड़ा उखड़ा सा लग रहा है, प्लीज़ बताइएगा ना?”

सरला जी अपनी बहू नेहा की प्यार भरी मनुहार सुन कर निहाल ही तो हो गई और खिलखिला कर हँसते हुए कहने लगीं,” नेहा !तू भी मेरी बहू नही बल्कि बेटी है पर कभी कभी तेरी बात पचा नही पाती हूँ । पर बकबक करके घर का माहौल तो खराब नही ना करती ,चुप्पी साध लेती हूँ।”

” पर आप एक तरफ़ तो मुझे बेटी कहती हैं पर समझती बहू हैं, खाली कहिए मत ,बेटी समझिए भी।”

“ठीक कह रही है तू! सच्ची इधर कुछ दिनों से मेरा मुँह फूला हुआ था , तू मेरे थके हारे आए बेटे से काम लेने लग जा रही थी, मुझे ये बुरा लगता था।”

” पर मम्मी ! आपके बेटे की तरह मैं भी तो ड्यूटी पेल कर थकी आती हूँ, हमारे पीछे आप भी कोई चैन से तो नहीं बैठ पाती है तो अगर आवश्यकता पड़ने पर आपके मोतीचूर के लड्डू (आपके लाडले पुत्र) कुछ मदद कर देते हैं तो हर्ज़  ही क्या है?”

यू आर राइट माई डियर…कह कर सरला जी हँसने लगी।

नीरजा कृष्णा

पटना

स्वरचित

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