नीता का आज बैंक में सिर भारी-भारी था,इस कारण अपने शाखा प्रबंधक को कहकर घर आ गई। घर आते ही थर्मामीटर लगाकर देखा तो सौ से ऊपर बुखार था।दो दिन से मेड भी नहीं आ रही थी।हिम्मत न होते हुए भी उसने चाय बनाई और दो ब्रेड लेकर दवा खाने बैठ गई। किसी तरह दवा खाकर बिस्तर पर निढल होकर लेट गई।
नीता के तलाक के पाँच वर्ष बीत चुके हैं,फिर भी पता नहीं दुख की घड़ी में हमेशा पति अनिल की क्यों याद आ जाती है? एक ही शहर में रहते हुए कभी-कभार दोनों की भेंट भी हो जाया करती है,परन्तु दोनों मन-ही-मन तलाक का स्पष्ट कारण नहीं ढ़ूँढ़ पाते हैं।दोनों ने अभी तक दूसरी शादी नहीं की है।
आज घर का सूनापन उसे कुछ अधिक ही डरा रहा है।कमरे की नीली मद्धिम रोशनी भी उसकी आँखों को चुभ रही है।उठकर उसे बंद कर पुनः बिस्तर पर लेट जाती है।उसने बहुत कोशिशें की थी कि बीते हुए तल्ख दिनों को भूल जाने की,पर भूल न पाई।यादों के अंधेरे में कुछ अनमोल मोती ढ़ूंढ़ने की कोशिश कर रही थी।
नीता ने अनिल से प्रेम-विवाह किया था।दोनों एक दूसरे पर जान छिड़कते थे,परन्तु शादी के कुछ समय बाद ही नासमझी के कारण के छोटी-छोटी बातों पर दोनों में तकरार होने लगी।आज सोचती है तो उनपर हँसी आती है।अनिल के परिवारवाले इस शादी से नाराज थे,इस कारण उन्होंने उसके झगड़े में आग में घी डालने के समान काम किया।उस समय अगर दोनों ने समझदारी से काम लिया होता ,तो न तो तलाक की नौबत आती न ही अकेलेपन का दंश झेलना पड़ता।जीवनसाथी के वगैर जीवन को भोगनेवाला ही उसका दंश समझ सकता है,अन्य उसके दिल की भीतरी पीड़ा को कहाँ समझ पाते!
पुरानी यादों के समंदर में उसकी उदासियाँ चारों ओर पसर रहीं थीं।अचानक से गला सूखने के कारण उसकी यादों का कारवाँ बिखर चला।उठकर पानी पीकर नींद के आगोश में डूब गई।
अगले दिन नीता कुछ बेहतर महसूस कर रही थी,परन्तु बैंक जाने की हिम्मत नहीं थी। अकेले बैठे-बैठे खाली घर उसके मन में निराशा भर रही थी।उसी समय दरवाजे की घंटी बजती है।मेड की आशा में उठकर तुरंत दरवाजा खोलती है।अचानक से पति अनिल को सामने देखकर आश्चर्यचकित रह जाती है।
अनिल -” नीता! घर के अंदर आने नहीं कहोगी?”
नीता हड़बड़ाकर दरवाजे से हटते हुए कहती है-“अनिल!अंदर आ जाओ। अचानक से कैसे याद आ गई?”
अनिल-“नीता!मैं किसी
काम से बैंक गया था,तुम्हें न देखकर पूछने पर तुम्हारी तबीयत के बारे में पता चला।”
नीता -“अनिल!चाय पियोगे?”
अनिल-“नहीं!तुम कितनी कमजोर हो गई हो?”
नीता -“तुम भी तो कमजोर दीख रहे हो?”
दोनों कुछ देर तक खामोश रहते हैं फिर अनिल बोल उठता है -” नीता!हमारे अलग होने में गलती दोनों की थी।ताली कभी एक हाथ से नहीं बजती है!”
नीता अपनी गलती महसूस कर खामोश रहती है।
अनिल उसकी आँखों में देखकर कहता है -” नीता! क्या हम दोनों कड़वी यादें भूलकर फिर से नई जिन्दगी की शुरुआत कर सकते हैं?”
नीता भी अकेलेपन से ऊब चुकी थी,उसने भी हाँ कहने में देरी नहीं लगाई।
सचमुच उनके सच्चे प्यार का सूरज धुँध के कारण कुछ समय के लिए आँखों से ओझल भले ही हो गया था,परन्तु एकदम से खोया नहीं था।उनके मन पर जमी धुँध के छटते ही जिन्दगी का सूरज पूरी आब के साथ फिर से चमकने लगा।
समाप्त।
लेखिका-डाॅक्टर संजु झा(स्वरचित)