अब भी वो अपने पति के साथ इतने बड़े महानगर में अकेली ही थी। बच्चे के साथ नौकरी करना बहुत मुश्किल हो रहा था। बच्चे की तबियत कभी भी खराब हो जाती वो कामवाली के सहारे अपने बच्चे को छोड़ना नहीं चाहती थी। उसने अपने घर और ससुराल दोनों जगह बात की पर उन लोगों की अपनी मजबूरी थी, वो लोग भी साथ में आकर नहीं रह सकते थे। खैर अब बच्चे के सही लालन पालन के लिए उसने घर पर रहना ही उचित समझा।
घर पर तो वो रहने लगी पर अपनी पूरी जिंदगी इतनी पढ़ाई करने के बाद अपनी महत्वाकांक्षाओं से समझौता करना कहीं ना कहीं उसको कुंठा का शिकार बना रहा था। वैसे भी उसने अपने ससुराल पक्ष के कई कार्यक्रम में अपने पीठ पीछे लोगों से अपना परिहास ही सुना था।
कई ससुराल पक्ष की महिलाएं तो दबी जबान में ये तक कह डालती थी कि लो अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे, बड़ा घमंड था नौकरी का, अब तो हो गई ये भी हमारे जैसी। उन्हीं के सुर में सुर मिलाते हुए कोई पहचाना सा स्वर उसके कानों से टकराता था जिसमें औरत के मुख्य काम बच्चे और घर संभालने की हिमायत होती थी।
इन सबकी बातें उसके मन को चीर जाती। वो बहुत उदास और निराशा में घिर गई थी। इन्हीं सब बातों ने स्वास्थ्य पर भी अपना प्रभाव दिखना शुरू किया। उसको इतनी कम उम्र में ही थायराइड और उच्च रक्तचाप और भी ना जानें कितनी बीमारियां हो गई। उसका वजन दो-तीन महीने के अंतराल पर ही बीस किलो तक बढ़ गया।
लोगों को उस पर बातें बनाने का एक मुद्दा और मिल गया। पर अपने साथ होने वाली इसी तरह की छींटाकशी ने उसके व्यक्तित्व को पूरी तरह बदल दिया l हुआ यूं कि, एक बार जब वो कहीं परिवारिक उत्सव में शामिल होने के लिए कहीं जा रहे थे तब उसकी ननद ने उसको बहुत सुंदर से कंगन देते हुए कहा कि ये आपके लिए हैं। उस समय घर के सभी लोग भी वहां बैठे हुए थे। उसके हाथों में थायराइड की वजह से सूजन थी, कंगन नहीं आए।
उसकी ननद ने इस बात को सबके सामने बड़े चटखारे लेते हुए बोला अरे मैं तो अपने बाजू के नाप के कंगन लाई थी क्योंकि मेरे को लगा कि ये नाप तो आपके आ ही जायेगा पर वो भी आपके नहीं आया। सबकी निगाहें मानो उस पर ही उठ गई थी। इससे पहले भी उसकी ननद जब देखो तब उसके वजन को और कपड़े के साइज को लेकर चार लोगों के सामने उसका मज़ाक बना ही देती थी।
कोई भी उसकी स्थिति ना समझ कर ननद के ही सुर में सुर मिला देता था। यहां तक की उसकी सास भी वही होती थी वो भी अपनी बेटी को कुछ नहीं कहती थी। अब तक तो वो सहन कर रही थी पर आज वाले कटाक्ष ने उसको अंदर तक हिला दिया था। कार्यक्रम में जाने का उसका पूरा मन खत्म हो गया था।
किसी तरह वो अपने घर पहुंची तो वो आज पूरी तरह टूट गई थी। वो बिलख-बिलख कर रोने लगी। उसकी हालत देखकर उसका छोटा सा बच्चा भी सहम गया। उसके पति को भी कुछ समझ नहीं आ रहा था। उन्होंने पूछने की बहुत कोशिश की पर वो रोती ही रही। अब उसके पति ने भी सोचा कि शायद दिल का गुबार निकलने के बाद वो शायद कुछ बता दे इसलिए रोने दिया। उसके पति ने बस उसको एक शब्द कहा कि मेरे को तुम पर पूरा भरोसा है।तुम्हारे अंदर स्वयंसिद्धा बनने के सारे गुण हैं। पति की बात से उसको थोड़ा संबल मिला।
खूब रोने के बाद जब मन थोड़ा हल्का हुआ तब रोली ने अपनेआप से सवाल किया कि वो कब से इतनी कमज़ोर होने लगी। बचपन से ही उसने तो खुद अपने बलबूते पर संघर्ष किया है और सब हासिल किया है। उसे तो खुश होना चाहिए कि बच्चे की देखभाल के बहाने उसको कुछ समय अपने साथ बिताने का मिल रहा है जो उसे कभी पढ़ाई और कभी नौकरी की वजह से नहीं मिला है। फिर बच्चा भी तो उसी का है, उसको पालने के लिए उसको किसी सहारे की क्या जरूरत है।
नौकरी पर ही तो जाना बंद किया है,अभी भी बहुत कुछ ऐसा है जो वो करना चाहती थी पर समय की कमी की वजह से नहीं कर पाती थी, पर अब कर सकती है। बचपन से अब तक वो हमेशा कभी पढ़ाई और कभी किसी प्रतियोगिता में व्यस्त रही पर अब तो उसको समय मिला है। वैसे भी आजकल तो सोशल मीडिया का ज़माना है,अगर कोई खुद से ठान ले कि उसको अपना भाग्यविधाता बनना है तो उसको कोई नहीं रोक सकता।
ऐसा मन में आते ही उसने आईने के सामने खड़े होकर अपने आप से वादा किया कि वो अपना सहारा खुद बनेगी। वो अपने बच्चे की अच्छी परवरिश करेगी और साथ साथ कुछ नए कोर्स करेगी जो भविष्य में उसके काम आयेंगे। वैसे भी अगले 2 साल में बच्चा भी पूरी तरह स्कूल जाने लगेगा तो उसको नौकरी करने का भी समय मिल जाएगा। रही बात वज़न की वो अब जितना बढ़ना था बढ़ गया,पर अब वो अपने ऊपर ध्यान देगी।वो अपने खाने पीने का समय सुधारेगी और कम से कम सुबह शाम समय निकालकर टहलना शुरू करेगी।
बस अब उसने परिस्थिति से लड़ने की ठान ली और अगली सुबह उसके लिए एक नया संदेशा लाई थी। उसने अपने कपड़े पहनने और तैयार होने का तरीका बदला,अपने खान-पान पर थोड़ा ध्यान दिया। बस उस दिन के बाद उसने पीछे मुड़कर भी नहीं देखा।जो लोग उसको मोटा बताते थे अब वो ही लोग उसके ड्रेसिंग सेंस की तारीफ करते हैं।आज वो बहुत अच्छी जॉब कर रही थी और साथ-साथ बीच में लोगों को प्रेरित करने के लिए वो प्रेरक कार्यशाला का आयोजन भी करती थी। वो ये सब सोच ही रही थी कि इतनी देर में घर की घंटी बजी और वो अपनी विचारों की श्रृंखला से वापस अपनी आज की दुनिया में आ गई। दरवाज़ा खोला तो ननद और सास थे। आते ही दोनों ने सबसे पहले तो रोली और उसके करीने से सजे घर की तारीफ़ की। आज रोली को अपने पति की बात याद आ रही थी और अपने अंदर स्वयंसिद्धा की अनुभूति हो रही थी। उसे लग रहा था कि लोगों की सोच बदलने में खुद के आत्मविश्वास का बहुत बड़ा हाथ है। सबका ध्यान तो हम बहुत रखते हैं पर जो इंसान आईने के पीछे है उसको पता नहीं क्यूं भूल जाते हैं?अगर हम थोड़ा उसको भी महत्व देना शुरू कर दें तो ज़िंदगी संवर सकती है।आज उसको ये भी लग रहा था कि माना परिवार जीने के लिए बहुत बड़ा सहारा है पर अपनी ही इच्छाओं को पूरा करने के लिए हम परिवार के लोगों से ही क्यूं सारी अपेक्षाएं रखते हैं जबकि हम खुद में ही इतने सक्षम हैं।अब उसने अपनी अगली प्रेरक कार्यशाला भी इसी विषय पर रखने की सोची जिससे कि बाकी लोग भी अपने बलबूते पर अपनी जिंदगी को जी सकें।
दोस्तों कैसी लगी मेरी कहानी?जैसे कस्तूरी मृग के अंदर छुपी होती है पर वो उसको सारे में ढूंढता रहता है ऐसा ही हम लोगों के साथ है। दूसरों से अपेक्षा रखने से बेहतर हैं कि हम अपने को समय दें और अपनी संभावनाओं का विस्तार करें।अगर भाग्यशाली कहलाना है तो खुद का भाग्यविधाता खुद ही बनना पड़ेगा।
डॉ. पारुल अग्रवाल,
नोएडा
Bahut hi badiya prerna Dene wali kahani hai.aage bhi aise hi likh kr hme motivate krte rhe
जी बहुत बहुत धन्यवाद…आगे भी इसी प्रकार का प्रयास जारी रहेगा🙏🙏
Very nice story ramrajay will be very soon if all mom cooprate like MAMTA JI
Thanks
Absolutely