“माँ मेरा नाश्ता लगा दो, मुझे कॉलेज को देर हो रही है।”
“मम्मी मेरी यूनिफॉर्म कहाँ रख दी आपने? मिल नहीं रही है ढूंँढ कर दे दो जरा …।”
“बहू एक गिलास पानी देना…दवा खानी है मुझे।”
ये उसकी दिनचर्या के वे शब्द थे जो स्वाति रोज सुनती थी पर पलट कर इनका कोई उत्तर नहीं दे पाती थी।
सुबह से उठकर इधर से उधर काम करती हुई ,सब की फरमाइशें पूरी करती हुई वह किसी कठपुतली से कम नहीं लगती थी।बस फर्क इतना था कि कठपुतली सूत की डोरी के सहारे नाचती थी और स्वाति को रिश्तों की, मर्यादाओं की, कर्तव्यों की डोरियाँ नचाती थीं। इन सब कामों को करते-करते वह इतनी आदी हो चुकी थी अब तो किसी के कहने की भी जरूरत कम ही पड़ती थी और वह काम पूरा कर देती थी।
स्वाति की सास रमादेवी अपनी बहू के दर्द को महसूस करती थीं । कुछ उम्र का तकाजा था,कुछ हाथ पैरों के दर्द के कारण वे ज्यादा तो नहीं पर बैठे-बैठे के काम कर दिया करती थीं। अपनी सास से स्वाति को हमेशा ही मांँ जैसा प्यार मिला और उसी प्यार के भरोसे ने उसे इतनी शक्ति दे रखी थी कि काम का बोझ होने के बाद भी वह सुकून का अनुभव कर पाती थी। रमा देवी ने बच्चों शानू और रूबी से भी कई बार कहा कि अपनी मांँ के काम में उनका सहयोग किया करो..तुम्हारी मांँ दिन भर काम करते करते थक जाती है,
मगर बच्चे एक कान से सुनते और दूसरे से निकाल देते ।
स्वाति की तबीयत आज सुबह से ही कुछ खराब थी। हल्का सा बुखार भी था। ऐसी ही स्थिति में उसने सारा काम किया। काम से थक कर जरा आराम करने को बैठी तो पुरानी बातें, बीते हुए पल मन में हिलोरे सी मारने लगे ।वह सोचने लगी…क्या दिन थे वे भी ..भरा पूरा परिवार था उसका दादा-दादी चाचा चाची और ताऊजी और उनका पूरा परिवार सब एक ही छत के नीचे एक साथ रहते थे । काम अधिक था लेकिन सभी मिल बाँटकर हंँसी-खुशी कर लेते थे तो पता ही नहीं चलता था कि कब काम निबट गया ।
रसोई तो पूरे दिन खुली रहती थी । किसी एक को अगर कुछ खाने का मन किया तो समझो फिर सभी के पेट में चूहे कूदने लगते थे । जब स्कूलों की छुट्टियाँ पड़ जाती थी तो फिर ऐसा लगता था कि रसोई ना होकर कोई फाइव स्टार होटल खुल गया हो । रोज नई फरमाइश…रोज नए पकवान ।कपड़े भी इतने धुलते थे कि छत पर सुखाने की जगह भी कम पड़ जाती थी।उसके बाद भी थकान क्या होती है ,किसी को एहसास नहीं होता था । दादा दादी की परवरिश ऐसी थी कि उन्होंने पूरा परिवार जोड़ रखा था ।
साझा चूल्हा और सारे दुख सुख भी साझे। किसी की तबीयत खराब हुई तो पूरा परिवार उसकी सेवा में तत्पर हो जाता था। मजाल है कि स्वस्थ होने से पहले वह कोई काम भी कर ले। कितने खूबसूरत दिन थे वे….सोचते सोचते स्वाति की आंँखों में आंँसू ढलक आए.. और कब उसकी आंँख लग गई उसे पता ही नहीं चला ।
शाम के चार बज चुके थे ।शानू और रूबी भी स्कूल से आकर कोचिंग जा चुके थे ।स्वाति गहरी नींद में थी। रमा देवी को चाय पीने की इच्छा हुई। उन्होंने स्वाति को आवाज़ लगाई मगर स्वाति का कोई उत्तर न पाकर पर धीमे से चलती हुई स्वाति के कमरे में गईं। स्वाति गहरी नींद में थी। रमा देवी ने पहले तो धीरे से आवाज लगा कर उठाने की कोशिश की. मगर कोई उत्तर न पाकर उन्होंने उसे छूकर देखा तो स्वाति का शरीर बेहद गर्म हो रहा था ।वह बुखार से तप रही थी। रमा देवी घबरा गईं। उन्होंने अपने पति दयाशंकर जी को आवाज़ लगाई।
दयाशंकर जी ने आकर जब बहू की स्थिति को देखा तो
उन्होंने तुरंत डॉक्टर को फोन किया.. फिर अपने बेटे रजत को भी फोन करके सूचना दी । दोनों बच्चे भी कोचिंग से आ चुके थे। दोनों ही अपनी माँ की हालत देखकर घबरा गए। डॉक्टर ने आकर चेकअप किया । इतने में रजत भी आ गया उसने डॉक्टर से बात की। डॉक्टर ने कहा…” ज्यादा घबराने की कोई बात नहीं है । अधिक तनाव और थकान की वजह से इनकी यह हालत हुई है ।मैं दवाइयांँ लिख देता हूंँ। आप लाकर इन्हें खिला दीजिए…और इन्हें अब आराम की सख्त जरूरत है। एक-दो दिन तो बिल्कुल भी इन्हें उठने मत दीजिए ,ना ही कोई काम करने दीजिए ।शायद काम की अधिकता के कारण ही इनकी स्थिति बिगड़ी है” ।
रजत तो इतना घबरा गया कि उसके मुँह से कोई बोल ही नहीं निकल रहा था ।शानू और रूबी की बंद आंँखों से भी आंँसू ढलक रहे थे । दोनों आंंखें बंद करके शायद भगवान से अपनी मांँ के स्वस्थ होने की कामना कर रहे थे । आज उन्हें दादी की बातों में सच्चाई नजर आ रही थी ।जब दादी घर के कामों में माँ का सहयोग करने के लिए कहा करती थीं। उनकी दादी से नजरें मिलाने की हिम्मत नहीं हो रही थी। शायद उन्हें इस बात का एहसास हो रहा था कि घर के कामों में माँ का सहयोग किया होता तो उनकी ऐसी हालत ना होती ।दोनों शर्मिंदा से दादी से चिपट गए ।दादी ने उन्हें ढांढस बंधाया ।रजत भी तब तक दवाइयांँ लेकर आ चुका था।अचानक स्वाति ने आंँखें खोल कर देखा ।सबको अपने चारों ओर देखकर वह घबरा गई। उसने उठने की कोशिश की ..रजत ने सहारा देकर उसे उठाया….”लो दवा खाओ”… रजत में दवा और पानी से भरा गिलास स्वाति को पकड़ा दिया।
” मुझे क्या हुआ है…?
“तुम्हें कुछ नहीं हुआ है…”,ईश्वर की कृपा से तुम ठीक हो और हमारी सेवा से एक-दो दिन में बिल्कुल ठीक हो जाओगी ।रजत ने हँसते हुए कहा ।
“आपकी सेवा से….!
“आज से और अभी से हम सब ने निर्णय लिया है कि हम सब अपना अपना काम स्वयं करेंगे और तुम्हारे हर काम में तुम्हारा सहयोग करेंगे”।
” अरे यह सब करने की जरूरत नहीं है…” स्वाति ने झिझकते कहा ।
“नहीं बेटा….! यह मेरा भी आदेश है..आज से घर के सभी कामों को मिल बाँटकर किया जाएगा ।उसमें मैं भी शामिल रहूंँगा…। दयाशंकर जी ने कहा।
“बाबूजी कैसी बातें कर रहे हैं आप क्यों काम करेंगे….? आपके आराम करने के दिन हैं अब।
“नौकरी से ही रिटायर हुआ हूंँ मगर हाथ पैर अभी भी काम कर रहे हैं मेरे…और ये हाथ पैर जब तक चलते रहें अच्छा है।आज तुम्हारी तबीयत देखकर हम सब कितना घबरा गए थे यह हम ही जानते हैं “।
स्वाति अपने आप को सहज दिखाने की कोशिश कर रही थी । उसने बिस्तर पर से उठना चाहा मगर रमा देवी ने इशारे से मना कर दिया।
“बहू ….अब तुम सिर्फ आराम करोगी…और हम सब काम करेंगे….”और जैसे तुम रोज कठपुतली की तरह नाचती थी ना आज नाचने की बारी हम सब की है…. “। रमा देवी ने हँसते हुए कहा।उनकी बातों से कमरे का माहौल कुछ हल्का सा हो गया ।तभी रूबी ट्रे में चाय और बिस्कुट ले आई । शानू भी अपने पिता रजत का रसोई के काम में हाथ बँटा रहा था। दयाशंकरजी मटर छील रहे थे।यह सब देखकर स्वाति की आंँखों में मायके के खुशनुमा दिनों की चमक सी दिखाई दी और उसने श्रद्धा भाव से रमादेवी की तरफ देखा ।दोनों एक दूसरे को देखकर मुस्कुरा दीं।
नाम – एकता बिश्नोई