स्वार्थी माँ – स्मिता सिंह चौहान

“माँ आप क्यो ऐसा कर रही है? जरा सोचिए तो सही कि बिना किसी वजह आप अकेले रहने की जिद किये बैठी हैं। पापा तो कभी आप से कुछ कहते भी नहीं। मुझे समझ नहीं आ रहा हो क्या रहा है इस घर में। ” कहते हुए रोहन अपने पिता की ओर देखता है। 

“पापा आप क्यो चुप बैठे हो? मुझे जानना है कि वजह क्या है?” रोहन ने मयंक (पिता)की तरफ देखकर फिर बोला। 

“रोहन अब तुम अपने पैरों पर खडे हो गये हो। तुम्हारी शादी हो गई है सब सैटल है तुम अपनी गृहस्थी संभालो। ये निर्णय तुम्हारी माँ ने लिया है और मैं उसे रोक नहीं सकता। “मयंक ने अपनी सफाई देते हुए कहा। 

“नहीं मुझे जानना हैं उम्र के इस पड़ाव पर अब ये सब क्यो?” रोहन ने जिद की कि तभी किरन बोल पडीं” कयोंकि हम एक साथ नहीं रहना चाहतें। हमारी सोच हमारा वयवहार सब अलग है अब हम चाहते कि जो समय बचा है उसे अपने तरीके से जिये। इतना हक तो है हमें। ” 

“लेकिन अब मुझे तो आप दोनो के बीच ऐसा कुछ नहीं दिखाई देता। आप दोनों कितने कूल पेरेंट हो। “रोहन ने बोला। 

“तुम जाओ रोहन। शुभी (बहू)तुम्हारा वेट कर रही होगी। तुम चाहो तो पापा को अपने साथ अपने फ्लैट में ले जा सकते हो। मै किसी के साथ नहीं रहना चाहती मैं स्वतंत्र होकर जीना चाहती हूँ सभी रिश्तो से आजाद। सिर्फ एक औरत बनकर।

“किरन की ये बात सुनकर रोहन बोला” माँ आप कितनी सैलफिश हो। पापा ने मेरी नजर में आज तक वही  किया जो आपने कहा। और आप…पापा कोई नहीं अगर माँ की यही जिद है तो आप हमारे साथ रहिये। “

“नहीं बेटा मैं भी तुम्हारी गृहस्थी पर बोझ नहीं बनना चाहता। मैं यही रहूँगा शायद कभी किरन वापस आ जाये। “मयंक की यह बात सुनकर रोहन ने अपनी माँ को देखा और बिना कुछ बोले वहां से चला गया। 




किरन एक बैग लेकर अपना सामान पैक कर रही थी और मयंक उसे देख रहा था। वो उसे रोकने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था कि तभी किरन अपने बैग की चेन लगाते हुए बोली”थैंक्स मयंक गृहस्थी के इस सफर में मेरा साथ देने के लिए। रोहन बच्चा है और तुम्हारी बहुत इज्जत करता हैं। तुम उसके लिए बैस्ट पापा हो। मैं उसके सामने यह राज कभी नहीं खोल सकती कि तुम्हारी मेरी शादी एक समझौता था मैंने अपने ही बलात्कारी से शादी कि। पंचायत ने हमारी शादी का फरमान सुनाया और हमारे घरवालों ने तार तार हुईं इज्जत को शादी के जोड़े के नीचे छुपा दिया। लेकिन तुमने जो जवानी के जोश में मेरे शरीर से लेकर आत्मा तक घाव दिये वो भर ही नहीं पाये। मैं उस फरमान का विरोध करना चाहती थी लेकिन किसी ने मेरी नहीं सुनी। हमने शादी के बाद गांव छोड़ा रिशतेदारों से नाता तोड़ा एक नई जगह रोहन को जन्म दिया। हाँ तुमने पश्चाताप के तौर पर शायद   मुझे कभी किसी बात की कमी नहीं कि कभी भी मेरी इच्छाओ का विरोध नहीं किया। तुम्हारी वजह से ही मैं इस नये शहर में आत्म निर्भर होकर जी पायी। लेकिन मयंक I am sorry मैं अपनी उस रात की नफरत को इतने लम्बे सफर में भी  प्यार में नहीं बदल पायी। रोहन मेरे पेट में तुमहारे गुनाह का फल था हाँ उसके लिए मैं वात्सल्य से भरी माँ बन गयी। लेकिन एक बीवी के रूप में मैं खुद को कभी स्वीकार नहीं कर पायी। तुम मेरे पास आने की कोशिश करते तो मैं घिन से भर जाती ये बात तुम जानते हो। इसलिए ही मैंने कहा था कि मै रोहन के सैटल होने तक तुम्हारे साथ हूँ। अगर मैं रोहन को लेकर अलग जाने की भी सोंचती तो उस वक्त मुझ में इतनी हिम्मत नहीं थी कि मैं समाज के सवालों के जवाब दे पाती कयोंकि तब तो मैं अपने ऊपर थोपे फैसलो से अंदर ही अंदर लड़ रही थी। लेकिन अब मैं इस कोफ्त इस नफरत की सहभागिता से खुद को आजाद करना चाहती हूँ। उम्मीद है आप समझते हो। “

“मैं जानता हूँ उस दिन ठीक नहीं किया मैने तुम्हारे साथ। लेकिन मैंने उस गुनाह का प्रायश्चित दिल से किया लेकिन शायद जो तुमने महसूस किया होगा उसको मैं आज भी महसूस करने में असमर्थ हूँ। तुम चाहो तो यहाँ रह सकती हो मैं रोहन के पास रह लूँगा। ” मयंक ने बोला। 




“नहीं मैंने कहा ना मैं आजाद रहना चाहती हूँ। इस घर की दीवारों पर मेरी बेबसी की कोफ्त का रंग चढा हैं। अब बस मुझे जाने दो हाँ कभी भी भावनाओं में आकर रोहन को  सही वजह मेरे जाने के बाद भी  मत बताना ये राज हम दोनों के बीच में ही रहेगा मरते दम तक। मैं नही चाहती कि उसकी जिंदगी नफरत के रंगों में रंग जाये वो मुझे स्वार्थी मानता रहे ये ज्यादा बेहतर हैं। ” कहते हुए किरन ने बैग उठाया और एक लम्बी सांस लेते हुए दरवाजे से बाहर चल दी। मयंक उसे जाते हुए एकटक देखता रहा। 

आज किरन की संस्था औरतों के प्रति होने अन्यायों के प्रति लड़ती है। मयंक जी का इंतजार पूरा हुआ किरन एक बार उस घर में आयी उनके आखिरी दर्शन करने। रोहन आज भी उन्हें कई बार स्वार्थी होने का तमगा पहना देता है लेकिन ये भी सच है वो अपनी माँ को एक वात्सल्यमयी और मजबूत महिला के रूप में पूर्ण आदर देता हैं। किरन आज भी उस राज को अपने दिल में छुपा कर जीवन में आगे की तरफ बढ़ रही हैं। 

दोस्तों आज हमारे समाज में कई कानून हैं जो महिलाओं को अपने साथ हुए अन्याय का विरोध करने को जागरूक करते है। लेकिन किरन जैसी युवतियां एक जमाने में ऐसे ही फरमानो का शिकार हुई कि उनकी जिन्दगी नफरत और कुढन का पर्याय बन कर रह  गयी। आज भी कई जगह युवतियां कभी समाज तो कभी परिवार के दबाव में ऐसे विभतसता के साथ अपनी जिंदगी गुजारने को मजबूर होती हैं। हमारा समाज शादी को हर समस्या का समाधान मान तो लेता है लेकिन इस समाधान में कई बार किरन जैसे लोग समाधान का हिस्सा नहीं बल्कि  नफरत का हिस्सा बनकर रह जाते हैं। आपकी इस बारे में क्या राय है अवश्य बताएं। 

आपकी दोस्त

स्मिता सिंह चौहान

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