स्वार्थ – अपर्णा गर्ग : Moral Stories in Hindi

आज तो बस हद हो गई, मां से अब बात करनी ही पड़ेगी। भाभी रोज किसी न किसी बहाने से मायके

जाती रहती हैं और उनके बदले घर का सारा काम मुझे ही निबटाना पड़ता हैं,”पारुल बर्तन साफ करते

करते खुद से बड़बड़ा रही थी।”

जैसे ही घड़ी में ग्यारह बजे…दीक्षा, सुनीता जी से इजाजत लेकर बाहर चली गई। उसे जाता देखकर पारुल

का गुस्सा फिर से सातवें आसमान पर पहुंच गया।

रसोई से बर्तनों की आवाज ड्राइंग रूम तक आने लगी।

आज ही सारे बर्तन तोड़ डालेगी या कल के लिए भी कुछ बर्तन बचाकर रखेगी।

सुनीता जी की बात ने पारुल के गुस्से में घी का काम किया।

रसोई से आकर पारुल अपनी मां पर भड़क पड़ी, “ पता नहीं भाभी ने तुम्हारी आंखों पर कौन सी पट्टी

बांध रखी हैं। घड़ी में ग्यारह बजे नहीं कि महारानी गायब…जब सारे काम खुद करने पड़ेगें, तब पता

चलेगा।”

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सुबह का नाश्ता और खाना, सब तो बनाकर गई हैं। जरा से बर्तन क्या मांजने पड़ गए, उसमें भी तुझे

आफत हैं। बस अब यही सुनना रह गया था। अब तू अपनी मां से काम करवाएगी।

मैने ऐसा क्या कह दिया, जो मुझ पर ही बरसने लगी। दिन रात बर्तन भी मांजू और तुम्हारे ताने भी सुनूं।

बड़े छोटे का कुछ लिहाज हैं या वो भी सिखाना पड़ेगा,और देखो तो, अपनी मां से कैसे बोल रही हैं… जबान

तो राजधानी एक्सप्रेस से भी तेज चलने लगी हैं,“बोलते हुए सुनीता जी की आवाज भी तेज हो गई।”

हां..हां, अब तो वो ही आपकी अपनी हो गई हैं। आपको तो अब अपनी बहू की अच्छाई के आगे कुछ

दिखाई नहीं दे रहा।

पर अब मुझे सब समझ आ रहा हैं। जरूर कोई बात हैं…कल तक तो खुद ही भाभी के कामों में कमी

निकालती रहती थी और आजकल कुछ भी कहो तो, भाभी के नाम की माला जपती रहती हैं।, “पारुल

बड़बड़ाते हुए अपने कमरे की ओर चली गई।”

सही तो कह रही हैं पारुल, मैं उसके साथ मिलकर दीक्षा के हर काम में नुस्ख़ निकालती रहती थी। जब

तक उसे पूरी बात नहीं बताऊंगी तब तक ऐसे ही सुलगती रहेगी।

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सुन तो मेरी लाडो, इतना गुस्सा क्यूं कर रही हैं? बस पांच – छह दिन की बात हैं, फिर से गाड़ी दोबारा

अपने ढर्रे पर आ जाएगी।

मुझे कोई बात नहीं सुननी, जो बताना या सुनाना हैं, जाकर अपनी लाड़ली बहू को सुनाकर आओ,

“पारुल तकिए में मुंह घुसा कर पड़ी रही।”

सुनीता जी ने भी उसकी बात पर कान न धरा और बोलती चली गई।

मेरी बात को समझ, तुझे तो पता हैं कि मेरे पैरों में कितना दर्द रहता हैं, आधे घंटे भी खड़ी न रह पाती हूं।

कल को तू भी ससुराल चली जाएगी, तो मुझे खाने को कौन पूछेगा, कौन मेरी सेवा करेगा…

पर इस बात का भाभी के रोज रोज मायके जाने से क्या मतलब…मां की बात सुनकर पारुल उठकर बैठ

गई।

उसकी मां की तबियत सही नहीं हैं, और उसकी भाभी बाहर घूमने गई है। घर में और कोई नहीं हैं, जो

उनका ध्यान रख सके। इसलिए मैने उसे जाने दिया…

ओ हो…अब मैं समझी कि तुम्हारे दिमाग में क्या खिचड़ी पक रही हैं। तुम भाभी को मायके उनकी मां की

सेवा के लिए इसलिए जाने दे रही हो,ताकि वो तुम्हारी भी सेवा करती रहे। वाह मां, बड़ी दूर की कौड़ी

सोचकर रखी हैं…

अब तुम मुझे बताओ, मुझे क्या करना है, “पारुल ने हंसते हुए कहा।”

बस तू चुपचाप काम करती रह, बाकी मैं संभाल लूंगी। सुनीता जी के चेहरे पर फिर वही रहस्यमई मुस्कान

तैर गई।

 

अपर्णा गर्ग

#” आपको तो अपनी बहू की अच्छाई के आगे कुछ दिखाई ही नहीं पड़ता हैं।”

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