स्वर्णा – गीता वाधवानी

आज जब स्वर्णा कंप्यूटर इंजीनियर बन कर मेरे सामने आई तो, मैं खुशी से अपलक उसे निहारती ही रह गई। कितनी प्यारी और सुंदर लग रही थी हमारे स्वर्णा। अपने नाम के अनुरूप उसने गुण भी पाए थे। वह सचमुच सोना है सोना, खरा सोना।

      हंसमुख, दयालु, कुशाग्र बुद्धि, थोड़ी चंचल चप्पल, खट्टी मीठी और समझदार।

     मैं नीरा उसकी मां। आज मुझे वह दिन याद आ रहा है जब स्वर्णा मुझे मिली थी।

       तब हम लोग चंबा घूमने गए थे। मैं, मेरे पति राजेश और हमारा बेटा शुभम। पूरा दिन घूमते घूमते हम थक चुके थे। पिकनिक स्पॉट, जो होटल से काफी दूर और ऊंचे पहाड़ों पर था वहां से लौटते समय हमें देर हो गई थी ।अंधेरा हो गया था। शाम गहराती जा रही थी।

      टेढ़े मेढ़े पहाड़ी रास्तों पर हमारी कार का ड्राइवर  बहुत संभालकर और धीरे-धीरे गाड़ी चला रहा था।


      रास्ते पर एक तरफ ऊंचे ऊंचे पहाड़ और दूसरी तरफ विशाल, गहरी खाई, जिसे देखकर किसी की भी रूह कांप जाए।

     वहां से गुजरते समय कुछ आवाज आई। हमने कार की खिड़की का शीशा खोल कर आवाज सुनने की कोशिश की लगा कि कोई बच्चा रो रहा है। हमने ड्राइवर से गाड़ी एक तरफ रोकने को कहा। उसने हमारी सुरक्षा की वजह से मना किया, लेकिन हम लोगों का मन नहीं माना।

      हमारे बहुत कहने पर उसने गाड़ी रोक दी। हम सब गाड़ी से उतरकर आवाज की तरफ बढ़ने लगे । ड्राइवर भी छड़ी जैसी कोई लकड़ी लेकर हमारी साथ आया। अब आवाज साफ सुनाई दे रही थी लेकिन अंधेरे के कारण कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था।

     ड्राइवर के पास गाड़ी में एक छोटी टॉर्च रखी थी। मेरे पति राजेश ने शुभम को आवाज की तरफ रोशनी करने को कहा। आवाज एक पेड़ की तरफ से आ रही थी। कोई बच्चा बहुत रो रहा था। टॉर्च की मध्यम रोशनी में एक कपड़ा जैसा नजर आ रहा था।

     ड्राइवर ने कहा-“आप लोग रूकिए, मैं आगे जा कर देखता हूं।”पेड़ बिल्कुल खाई के किनारे पर था इसीलिए हमने ड्राइवर से कहा कि”पहले आप मेरी चुन्नी अपनी कमर से बांध लीजिए।”

ड्राइवर ने चुन्नी कमर में बांध ली। मेरे पति ने उसका एक हाथ कस कर पकड़ा और हमने उनका हाथ कस कर पकड़ा। आगे बढ़ने पर ड्राइवर ने बताया-“पेड़ की डालियों के बीच में कपड़े में लिपटा एक बच्चा अटका हुआ है।”

हमने उससे कहा-“सावधानी से बच्चे को डालियों के बीच में से निकाल लो।”

      बहुत कोशिश करने के बाद उसने बच्चे को पेड़ से उतार लिया। हमने देखा कि वह नवजात बच्ची है। पेड़ पर उस बच्ची के कोमल शरीर पर लाल चीटियों ने हमला कर दिया था और वह दर्द के कारण जोर जोर से रो रही थी। हमने अनुमान लगाया कि शायद किसी ने उसे खाई में फेंकने की कोशिश की थी और वह पेड़ की डालियों के बीच में अटक गई थी। सच कहा है किसी ने जाको राखे साइयां मार सके ना कोय।


    उसके शरीर से चीटियों को हटाकर हम उसे अस्पताल ले गए और पुलिस को भी जानकारी दी। हम पूरे सप्ताह भर चंबा में रहे। पुलिस ने भी रात दिन एक कर दिया उस बच्ची के मां-बाप का पता लगाने के लिए लेकिन कुछ पता ना चला। अंत में पुलिस ने कहा-“हम इस अनाथ आश्रम में भेज देते हैं।”

      हमने पुलिस से कहा-“आपकी इजाजत हो तो हम इस बच्ची को गोद लेना चाहेंगे।”

      पुलिस ने इजाजत दे दी और हम उसे घर ले आए।वो शुभम की बहन और हमारी प्यारी लाडली बेटी स्वर्णा है।

     हम बहुत भाग्यशाली हैं कि स्वर्णा हमारी है।

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