आज मां से सारी बात साफ साफ कह दूंगा ।कह दूंगा मैंने पढ़ाई अच्छे से नहीं की।कह दूंगा कि पिछले सेमेस्टर में दो पेपर में मेरा बैक लग गया है।कह दूंगा कि आप लोग जो रुपए मेरी एक्स्ट्रा कोचिंग की फीस के लिए भेजते थे उन रुपयों से मै दोस्तों के साथ पार्टी करता था… रोहन हॉस्टल के रूम में अपने रूम मैट आदित्य के सामने अपना अनकहा दुख व्यक्त कर रहा था।
और फिर तेरी मां क्या करेंगी तुझे हंस कर गले लगा लेंगी?? आदित्य ने ताना मारा ।
इसी की कल्पना से तो डर जाता हूं मां कितनी दुखी हो जाएंगी पिता जी से बात देंगी और पिता जी तो मेरे साथ पता नहीं क्या करेंगे रोहन दुखी था।
यार तू अपने मां पिताजी से इतना डरता क्यों है साफ साफ अपने दिल की बातें उन्हें क्यों नहीं बता देता इतना अनकहा दिल में लेकर कैसे जी लेता है आदित्य समझ नहीं पा रहा था देख मैं तो अपनी हर बात अपनी मम्मी से शेयर कर लेता हूं हां पापा से नहीं कह पाता हंसकर उसने कहा।
कितनी अच्छी बात है आदि कि कम कम तेरी मां तो तेरी साझेदार हैं मैं तो अपनी मां से भी नहीं कह पाता हूं रोहन दुखी होकर बोल उठा।
पिता जी ने कितना कर्ज लेकर मुझे यहां बाहर हॉस्टल में पढ़ने भेजा है ।कॉलेज की फीस किताब कॉपियों की फीस सब समय पर भिजवा देते हैं।ताकि उनका बेटा उनके समान किसी ऑफिस का चपरासी बन कर जिंदगी ना बर्बाद कर दे बल्कि किसी बड़े ऑफिस के वातानुकूलित कक्ष में शानदार गद्दी वाली कुर्सी पर बैठा हो, उसके दाएं बाएं चपरासी और बाबू हाथ बांधे खड़े रहें।बचपन से यही स्वप्न पिता जी ने उसके मन में बो दिया था।
हालांकि पिता जी के लाख स्वप्न दिखाने के बावजूद रोहन के मन में कभी भी ऐसे किसी ऑफिस में नौकरी करने की ख्वाहिश नहीं जागी थी परंतु यह बात उसने कभी भी पिताजी से नहीं बताई वह उन्हें दुखी नहीं करना चाहता था।समय के साथ पिताजी की अपेक्षाएं बढ़ती गई और वह अपनी पढ़ाई के प्रति उदासीन होता गया।उसे ऐसी जी हुजूरी वाली नौकरी करना रास नहीं आता था।उसकी ख्वाहिश तो खुद का कोई व्यवसाय खोलने की होती थी ।जिसके लिए पिता जी की तंगहाल आर्थिक दशा और साहब बनाने के उनके स्वप्न अनुमति नहीं देते थे।
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मां तो इतनी सीधी है कि बस पिताजी की खुशी मेही अपनी खुशी समझती है।हमेशा समझाती रहती है देख बेटा तेरे पिता जो बोलते है और जैसा तुझे बनाना चाहते हैं वादा कर तू वैसा ही बनेगा।तेरे पिता ने इस घर के लिए बहुत कष्ट उठाए है।लेकिन तेरी पढ़ाई और नौकरी के लिए वह सब कुछ खुशी खुशी करते रहते है।कॉलेज में हॉस्टल में रह कर मन लगा कर पढ़ाई करतेरहना ।गलत लड़कों की संगत से बच कर रहना।वो पिछली गली में माधवी जी का लड़का हॉस्टल जाकर कुसंगति में पड़ गया था चारों तरफ कितनी बदनामी हुई थी ।तू ऐसा कुछ नहीं करना ।
मां ने भी कभी अपने पति के सिवाय बेटे के मन का दर्द जानने की कोशिश ही नहीं की थी।पिता जी सुबह शाम ढेर सारी पढ़ाई करके ऊंची नौकरी करने के मंसूबे अपने बेटे के सामने बांधते रहते और मां उन्हें पूरे करने के लिए मन्नत मानती रहती।उसके दिल में क्या है उसकी क्या इच्छा है इस तरफ किसी का कभी ध्यान ही नहीं गया।
जब स्कूल में था तब एक दिन रोहन ने मां से अपने दिल की बात कहने की कोशिश की थी मा पिता जी को समझाओ मुझे ये यस सर यस सर वाली नौकरी से नफ़रत होती है मैं नहीं करूंगा ऐसी नौकरी …तभी पिता जी अचानक आ गए और उन्होंने बात सुन ली।आगबबूला हो गए थे।मां को सुनाने लग गए ये सब तुम्हारा ही किया धरा है। मेरे ही विरुद्ध मेरे ही बेटे को भड़काती रहती हो देख लो अपने सपूत को क्या कह रहा है। बोल तो ऐसे रहे हो बरखुरदार जैसे ये नौकरी तो तश्तरी में रखी हुई है तुम्हारे लिए इसके लिए भी एड़ियां रगड़नी पड़ती हैं ।सब तुम्हारे सिखाने और लाड का दुष्परिणाम है।कहा ही जाता है बच्चे को बिगड़ने या संवारने में मां की ही भूमिका होती है।
पिता जी की बात सुनते मां सहम गई थी और मुझे डांटने लगी थी कैसी बातें कर रहा है रोहन अपने पिता का विरोध करता है अरे तेरे पिता जी ने अपनी जिंदगी में जो खुद बनना चाहा था तुझे बनाना चाहते है।शुक्र कर की ऐसे समझदार पिता तुझे मिले हुए है वरना आजकल के जमाने में पिता लोगो को अपने बेटो से ज्यादा मतलब हो नहीं रहता है।ठीक ही कह रहे है ….
अच्छा तो ऐसी नौकरी नहीं करेगा तो कैसी नौकरी करेगा ये भी इससे पूछो…. पिता जी ने गुस्से कहा था।
नहीं नहीं ये कुछ नहीं कर रहा है।बच्चा है अभी समझ नहीं है चल तू मेरे साथ चल आजा मै मंदिर जा रही हू कहती मां जल्दी से उसका हाथ पकड़ पिता जी के सामने से ले गई थी।
मां भी पिता जी से डरती थी ।पिता जी की बात उसके लिए आदेश ही होते थे जिनका पालन वह निशब्द होकर करती थी।क्यों ,कैसा ये प्रश्न उसने कभी नहीं उठाए।इसलिए पुत्र का इंकार उसे भयभीत कर गया था वह अपने को अपराधिनी मानने लगी थी ।जैसे उसके उकसाने के कारण मैने पिता जी को पलट कर जवाब दिया ।
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देख रोहन तेरे पिता जैसा कहते है तुझे वैसा ही करना है।तू कुछ भी गलत करेगा तो सारा दोष मुझ पर ही आएगा…सहमा स्वर था उसका।
और अगर सही करूंगा तो तुमको सम्मान और प्रशंसा मिलेगी क्या रोहन झटके से हाथ छुड़ा मां की आंखों में आंख डाल पूछा तो मां आंख नहीं मिला सकी थी।
मेरा सम्मान तो तेरे पिता ही है उन्हें खुश और प्रसन्न रखना ही हम दोनों का धर्म बनता है मां ने दृढ़ता से कहा था और तभी मैने मां के कई अनकहे दर्द शिद्दत से महसूस कर लिए थे।और अपना अनकहा दर्द मन में रखने की आदत बना ली थी।पिता जी से या मां से अपने दिल की बाते करने का कोई फायदा नहीं है मैने सोच लिया था।
उसके बाद से बिना कुछ कहे मैं पिता जी के अनुसार करता गया था।इसी स्कूल में पढ़ोगे ,यही विषय लोगे, यही कॉलेज ,यही हॉस्टल से लेकर यही कपड़े और यही रूममेट्स तुम्हारे रहेंगे तक हर चीज पिता जी मुझ पर थोपते गए थे और मैं मां की आंखों के उन अनकहे दर्द को महसूस करता सबका पालन करता चला गया था।
घर से दूर हॉस्टल आने पर थोड़े ही दिनों बाद मुझे अहसास हुआ कि मैं यहां स्वतंत्र हूं ।दिन रात कोई टोका टाकी करने वाला नहीं है ये खाओ ये पहनो यहां बैठो वहां मत जाओ जैसी हजारों बंदिशों से में आजाद हूं।धीरे धीरे मैने घर की हिदायते भुलाते हुए दुनियादारी की राह पकड़ ली थी।पढ़ाई लिखाई से ध्यान हटा लिया मौज मस्ती करने वाले लड़कों से दोस्ती बढ़ा ली ।मेरा कॉलेज दूर था किराया बहुत ज्यादा होने के कारण मां पिता जी यहां आ नहीं पाते थे और मैं भी एक्स्ट्रा कोचिंग का बहाना बना कर वेकेशन्स में घर नहीं जाता था बल्कि फीस के नाम पर एक्स्ट्रा रुपए मंगवा लेता था।
आखिरी सेमेस्टर करीब था।पिछला सारा रिजल्ट गड़बड़ हो चुका था।अब मुझे डर सताने लगा था घर जाऊंगा तो पिता जी को क्या बताऊंगा।
सोच विचार कर ही रहा था पिता जी ने खबर भिजवाई मां की तबियत ज्यादा खराब है तुरंत घर आ जाओ किराए के रुपए भेज रहा हूं।
सारे विचारों पर विराम चिन्ह लगाता रोहन आदित्य से विदा ले मां से मिलने को बेकल हो उठा था।
घर तक पहुंचने का रास्ता इतना लंबा कभी नहीं लगा था।
घर पहुंचते ही मां से लिपट गया। कितनी दुबली हो गई है मां तू सूख गई है वह रो उठा मां की दशा देख।
तू कैसा है बेटा ।तेरे जाने के बाद से इसका खाना पीना कम होता गया।हर वक्त तुझे ही याद करती रहती थी कि मेरा बेटा हॉस्टल में क्या खाता होगा कैसा होगा और कौर इसके हलक से नीचे नहीं उतरता था पिता जी ने बहुत धीमे स्वर में कहा तो वह चौंक गया पिता जी भी एकदम बदल गए थे ।उनकी आवाज भी कमजोर हो गई थी।काफी पतले और कमजोर दिख रहे थे।
मुझे क्यों नहीं बताया मै मिलने आ जाता बीच में रोहन ने जोर से कहा।
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अरे तेरी पढ़ाई खराब हो जाती बेटा इसलिए नहीं कहती थी तू अच्छे से पढ़ लेगा तभी तो साहब बन पाएगा मां जल्दी से बोल पड़ी थी।
मुझे नहीं बनना साहब मुझे नहीं बैठना अर्दलीयों के बीच में। मां आज तू मुझे बोलने नहीं रोकना।पिता जी की मुझे साहब बनाने की हठधर्मिता और तेरे पिता जी के प्रति इस डर ने हमेशा मुझे मेरी कहने से रोके रखा।जानते हैं मेरा वहां पढ़ाई में बिल्कुल ध्यान नहीं लगा।मैने आपके द्वारा भेजे सारे रुपए दोस्तों के साथ मौज मस्ती में उड़ा दिए ।आप दोनों यहां मेरे खाने पीने पढ़ाई की चिंता में दिन रात घुलते रहे जबकि मै वहां गुलछर्रे उड़ाता था।जानते हैं मेरा अभी क्या रिजल्ट आया है बैक लग गया है दो विषयों में रोहन आवेशित हो हांफने लग गया था और मां के साथ पिता जी स्तब्ध हो उसे देखते रह गए थे।
हां पिता जी मै नालायक पुत्र हूं आपकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया मुझे साहब नहीं बनना पिता जी … मां मुझे माफ कर दे आज मैने सारा अनकहा कह दिया अब जो भी सजा आप लोग मुझे देंगे सहर्ष स्वीकार कर लूंगा अगर मुझे घर से निकाल देंगे तब भी मैं चला जाऊंगा फूट फूट कर रो उठा रोहन।
इतने सालों का दबा दर्द का ज्वालामुखी आज फूट पड़ा था।
कौन तुझे घर से निकालेगा बेटा।मुझे माफ कर दे मै हमेशा तुझ पर और तेरी मां पर अनावश्यक दबाव डालता रहा।तुम दोनों की इच्छा अनिच्छा को अपनी कसौटी पर कसके परखता रहा ।बेटा कोई बात नहीं तेरा रिजल्ट खराब आया कोई बात नहीं जो तूने मेरे भेजे रुपए बर्बाद कर दिए।आज ये जो मेरा पुत्र बाहर हॉस्टल में रह कर आया है वह आत्मविश्वास से भरपूर है अपनी बात कहना आ गया है उसे।मैं बहुत खुश हूं बेटा
सुनते ही मां की आँखें आंसू बहने लगीं थीं।अरे लेकिन अब ये आगे करेगा क्या..??
खुद का व्यवसाय करेगा।क्यों रोहन यही करना चाहता था ना तू ।मै भी अपनी इस जी हुजूरी वाली नौकरी से तंग आ गया हूं सोचता हूं रिटायरमेंट ले लेता हूं और जितना धन मिलेगा उससे हम दोनों मिलकर अपना कोई व्यवसाय खोल लेंगे
आप भी !!रोहन विस्मित था पिता के परिवर्तित रूप से।
हां हां मैं भी लेकिन अगर तू अनुमति देगा तभी पिता जी ने रोहन की तरफ देख कर धीरे से कहा तो रोहन को हंसी आ गई।
बिल्कुल पिता जी हम दोनों मिलकर एक ऐसा ही व्यवसाय खोलेंगे जहां जी हुजूरी नहीं वरन सबकी मौलिक प्रतिभा दिखे सबको सब कुछ कहने और करने की आजादी हो क्यों मां अब जल्दी से अपनी तबियत ठीक कर लो।
अरे बेटा मेरी तबियत आधी तो अपने बेटे को देख कर ही सही हो गई थी बाकी की तेरी और तेरे पिता की बातों ने सही कर दी … चल मंदिर ले चल मुझे मां भावुक हो उठी।
मै भी चलता हूं तुम दोनों के साथ मां बेटे के पीछे आए हुए पिता जी ने आवाज दी और तीनों चल पड़े।
लतिका श्रीवास्तव
अनकहा दर्द