मिनी के पापा दिल्ली में एक प्राईवेट कंपनी में जॉब करते हैं,,मिनी से बड़ी बहन निधि और छोटा भाई विजय है,,
मिनी के पापा ने बेटे और बेटी में कभी भेद नहीं किया,,बेटियों को भी पूर्ण शिक्षित किया ताकि जरूरत पड़ने पर उन्हें किसी का मुंह न देखना पड़े और वो स्वाबलंबी बन सकें,,
मिनी का MA का फायनल ईयर था तभी किसी रिश्तेदार ने उन्हें वीर के बारे में बताया,,जो आई स्पेशलिस्ट था और अपना प्राइवेट क्लिनिक चलाता था,,मिनी के पापा ने घर में सलाह मशविरा किया और सबकी सहमति से रिश्ता पक्का हो गया,,
आँखों में ढेर सारे सपने सजाये दिल्ली जैसी मैट्रो सिटी की मिनी छोटे से गाँव में दुल्हनिया बन कर आ गई,,डॉक्टर की पत्नी बनकर बहुत खुश थी परन्तु यह खुशी ज्यादा दिन नहीं चली,,जब वीर की माँ ने यह कहते हुए उसे रोक लिया कि अभी कुछ दिन परिवार में रहेगी,,तभी तो सबको जानेगी,,
वीर अपने काम पर लौट गया,, यहाँ सारे काम अलग तरह के थे,,उसको कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे,,उसका कोई भी काम सासू माँ को पसंद नहीं आता था,,सारे दिन कलेश रहता घर में,,वह मन ही मन घुटने लगी,,
मन की कहे भी तो किससे ,,उस समय फोन भी नहीं थे,,काफी समय बाद जब वीर आया तो उसकी हालत देखकर बिना कुछ कहे ही सब समझ गया,,और अपने साथ ले गया,,
पर अभी वीर की प्रेक्टिस इतनी अच्छी नहीं थी कि वह पूरा खर्चा उठा पाता,,इधर घरवालों ने पूरी तरह से रिश्ता तोड़ लिया था,,
मिनी खुद्दार लड़की थी,,उसने अपने मम्मा-पापा को इसके बारे में कुछ भी नहीं बताया और फैसला किया कि वह वीर को अकेले परेशान नहीं होने देगी और एक प्राईवेट स्कूल में नौकरी कर ली,,
नौकरी के साथ-साथ उसने B.ed और BTC का कोर्स भी किया,,घर में सुविधा के नाम पर सोने के लिए पलंग तक नहीं था,,बरसात में जब लाईट चली जाती तो दोनों पति-पत्नि जीने पर बनी गुमटी में बैठे रहते और इन्तज़ार करते कि छत सूखे तो चटाई बिछायें और सोयें ,,
पर मिनी ने कभी उफ्फ़ तक नहीं की,,उनके जीवन में सुविधाओं का अभाव भले ही था पर प्यारबेशुमार था,,
कुछ दिनों बाद मिनी ने 2 कमरों के किराये के घर में ही स्कूल खोल लिया,,वीर ने उसी में एक कमरे में क्लिनिक शिफ्ट कर लिया ताकि डबल किराया न देना पड़े,,जब वह फ्री होता तो बच्चों को पढ़ाने में मदद भी कर देता,,स्कूल के बाद दोनों बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ाने लगे,,उनकी मेहनत रंग लाई और दिनोंदिन विध्यार्थियों की संख्या बढ़ने लगी,,
इसी बीच मिनी दो प्यारे-प्यारे बच्चों की माँ भी बन गई,,अब जिम्मेदारियां और भी अधिक बढ़ गईं,, पर उसे तो बस जुनून था कुछ कर दिखाने का,,
जब हौसलों की उड़ान ऊँची हो तो छोटी-मोटी परेशानियां कहां दिखाई देतीं हैं,,जब कभी थोड़ा परेशान होती तो अपनी पसंद का गाना गुनगुनाने लगती,,
रुक जाना नहीं,तू कहीं हार के,,
काँटों पे चल के मिलेंगे साये बहार के
ओ राही,ओ राही
यह गाना उसमें नया जोश भर देता और फिर वह दुगनी उमंग के साथ लग जाती नये सपनों में रंग भरने,,
कुछ पैसा हाथ में आया तो एक प्लॉट खरीद लिया,,2 साल बाद उसमें 4 कमरे बनवा लिए,,अब घर और स्कूल दोनों खुद के हो गये,,धीरे-धीरे करके उन्होने तीन मंजिल इमारत बना कर स्कूल उसमें शिफ्ट कर दिया,,
दोनों पति-पत्नि आज भी स्कूल और टयूशन में दिन रात मेहनत करते हैं,,आज उनके पास 3 प्लॉट और 5 बीघा जमीन है अपनी कमाई की,,
पिछ्ले दिनों उनसे मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ तो वीर बोला,,दीदी यह सब इसने अपनी मेहनत से हासिल किया है,,साक्षात् लक्ष्मी मिली है मुझे,,
पहली बार किसी पुरुष को पत्नी के परिश्रम की तारीफ करते सुना,,उसकी नजरों में मिनी के लिए गर्व की अनुभूति साफ दिखाई दे रही थी,,
हो भी क्यों न,,वह स्वयंसिद्धा जो थी
कमलेश राणा
ग्वालियर