स्वयं सिद्धा.(भाग 2) –  प्रीती सक्सेना

 भाग 1 

 समर,,,, आज मैं,, मेरा अस्तित्व,, तुमसे पूरी तरह जुदा हो गए, तुम्हारा नाम,, मेरे नाम के साथ जुड़ा हुआ नहीं रहा,, मैने तुम्हें और तुम्हारी यादों को मलिन कपड़ों की भांति,, अपने बदन से उतारकर,, दूर फेंक दिया,, अब मैं अपने को बहुत हल्का महसूस कर रही हूं।

आज संडे है,, काफी दिन बाद मैं खूब सोई,, न जाने कितने  दिनों बाद इतनी गहरी नींद आई ,, उठी,, आज सुबह की हल्की धूप भी बहुत सुहावनी लग रही है मुझे,, चाय का कप लेकर खिड़की पर खड़ी हूं,,, दूर अनाथ आश्रम का बोर्ड दिख रहा है,,,, आज,, मैं जाऊंगी,, नन्हें मुन्ने बच्चों से मिलकर आऊंगी । बच्चों के लिए कुछ कर सकूं,,, शायद राहत मिले मुझे ।

हल्का सा नाश्ता बनाकर खाया,, नहाकर पूजा की,, हल्के आसमानी रंग की प्लेन साड़ी पहनी, बारीक सी मोती की माला,,, छोटे छोटे मोती की बालियां,, पिंक लिपस्टिक लगाई,,,, क्या ये मैं हूं,,,, अपने आप पर ही मुग्ध हो गई मैं,,,,,,, एक अनचाहा सा वजन, उतर गया,, कितनी खूबसूरत सुबह लग रही है।। 

Oh,,

ढेर सारे बच्चे हैं कितने प्यारे, कैसे अभागे मां बाप हैं जो, फूल से अपने बच्चों को अपने से दूर कर गए,, सामने ऑफिस था,, सोचा कुछ ,, खिलौने ,,डोनेशन दूंगी इन मासूम बच्चों के लिए,,,, अरे,, यहां तो कोई नहीं,, एक पालना और उसमें लेटी ये प्यारी सी गुड़ियां,,, कितनी प्यारी है,, इसे गोद में ले सकती हूं क्या???? किससे पूछूं,,, ले ही लेती हूं, मुझसे सबर नहीं हो रहा,,,, अले  अले। लानी बेटी,,, रोना नहीं,,,, हम आपको खिलौना देंगे देखो देखो,,,,, अचानक किसी के आने की आहट सुनाई दी,,,, देखा तो एक सुदर्शन युवक,, मनमोहक सी मुस्कुराहट के साथ उसे,, बड़ी गहरी नजर से देख रहा है,,,  माफ़ कीजिए,, मैं बच्ची को खिला रही थी,,, कोई बात नहीं,,, आइए बैठिए,,, मैं राजय हूं,, इस आश्रम का मैनेजर और आप??? मैंने अपना परिचय दिया,,, मैं चलने के लिए उठी,,, राजय जी,,,



अगर कोई इस बच्ची को गोद लेना चाहे तो ले सकता हैं न?? राजय हंस दिए,,, बोले ये मेरी बेटी है,,, आपकी बेटी??! मैं हड़बड़ा गईं,,,, पर ये यहां कैसे,, मैने संकोच से पूछा,,,, इसकी मां को मेरा साधारण साथ मंजूर नहीं था इसलिए उसने अपनी राहैं मुझसे अलग कर ली,,,,, ओह,,, जी अब मैं चलती हूं,, वैसे बिटिया का नाम क्या है। ?? नाम तो रखा नहीं अब तक,,, आप ही क्यों नहीं रख देती इसका नाम,,,, मैं???? मैं कैसे,,,,, आप नाम देंगी तो मुझे अच्छा लगेगा,,, राजय गहरी नजरों से देखते हुऐ बोले,,,, मेरा दिल धड़कने लगा,,, ऐसा अहसास तो पहले कभी नहीं हुआ,, मैने जल्दी से कहा,,,, रिया नाम अच्छा है न,,, मैं चलती हूं,,,, अरे आप अपना तो नाम बताती जाइए,,, मैं रचना,,, बिना देखें मैं बाहर निकल आई,,, बार बार रिया का चेहरा मेरी आंखो के सामने आ जाता,,, कैसी मां है जो कुछ महीनो की बेटी को अपने से दूर कर गई।

कुछ दिन बीते, स्कूल में एग्जाम शुरु हो गए,, जब फ्री हुई तो रिया याद आ गई,,, आश्रम पहुंची,, देर तक रिया के साथ खेलती रही,, जाने लगी,, तो राजय बोले,,, फिर आइएगा,,, मैने कहा जरुर,, तो वो बोले कभी रिया और हमें भी तो बुलाइए अपने घर,,, मैं संकोच में कुछ नहीं बोली तो बोले,,, मैं मजाक कर रहा था,,,, ऐसी बात नहीं,,,, आप संडे को मेरे घर आइए।



कुछ गलती तो नहीं की उन्हें घर बुलाकर,,, सहेली भी ससुराल चली गई,, मैंने सिर झटका,, कुछ गलत नहीं,,, सन्डे को मन लगाकर खाना बनाया,,, राजय बिटिया के साथ आए,,,, मेरे घर का सूनापन आज बच्ची की किलकारियों से गूंज रहा था,,, पहली बार बच्चे के साथ को जी भरकर महसूस किया मैंने।

लंबा समय निकला,, एक दिन मैं आश्रम में थी,, मैंने राजय से कहा आप नया जीवन क्यों शुरु नहीं करते,, मुझे रिया दे दीजिए,, मैं मां बनकर पालूंगी इसे,, राजय मेरा हाथ पकड़कर बोले,, बेटी के साथ उसके पिता को भी अपना लो न रचना,,,,, मैं चुप,,,, क्या हमें खुश रहने का हक नहीं?!!! भरी आंखो से मुझे देखकर बोले….. मैंने उनके हाथ पर हाथ रख दिया,,,, ये मेरी मौन स्वीकृति थी ।

  हम आश्रम में ही बने अपने  घर में चाय पी रहे थे,, रिया मेरी गोद में थी,, नौकर आकर बोला,, कोई साहब मेमसाहब बच्चा देखने आये हैं,,,, राजय के साथ मैं भी उनके साथ चली गई,,, राजय ने आने वालो से पूछा,, यहां आने का प्रयोजन?? वो लोग बोले जी हम बच्चा गोद लेना चाहते हैं,, तभी रिया जोर से बोली मम्मा,,,, आने वालो ने पलटकर देखा,,, शर्मिंदगी से झुके सर को पहचान गई ये समर है,,,,, आत्म विश्वास से भरी मैंने जोर से कहा,,,, राजय आप जल्दी आइए बेटी को लेकर पार्क जाना है,,, मैं गर्वीली चाल से आगे बढ़ गई,, पर मैं जानती थी समर की पछताती  निगाहें मेरा ही पीछा कर रही थीं

प्रीती सक्सेना

इंदौर

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