अरे अंशू पिछले एक सप्ताह से तुम ऑफिस आ ही नही रहे हो, क्या बात है?सब ठीक तो है
हाँ अंकल सब ठीक है,वो मैंने आपकी वाली कंपनी को छोड़ दिया है,त्याग पत्र कुरियर कर दिया है,मिल जायेगा।
लेकिन बात क्या हुई?अगर वेतन की बात है तो मैं डायरेक्टर साहब से बात करता हूँ,तुम कल सुबह आ जाओ।
अशु ने ग्रेजुएट करते ही अपने पिता की खराब आर्थिक स्थिति को देखते हुए एक कार शो रूम में सेल्स एक्सिक्यूटिव की नौकरी कर ली।प्रातः 9 बजे से रात्रि 7 बजे तक कि ड्यूटी और वेतन मात्र तीन हजार रुपये मासिक।इसमें भी यदि तबियत खराब होने पर
अनुपस्थिति हो जाये तो उस दिन की पगार कट जाती थी। कंपनी के मैनेजर रोशन बाबू अंशू को बेटा ही बोलते थे। वे अंशू के काम और मेहनत को देख उससे प्रभावित थे।उन्होंने धीरे धीरे जो काम उनके जिम्मे था,उस काम को भी अंशू से लेने लगे।
रोशन बाबू के जिम्मे,कार फाइनेंस का कार्य था,वह रोशन बाबू के लिये बहुत ही कष्टकर था, कितना ही ध्यान से करे कुछ ना कुछ गलती कर जाते थे,जिससे उन्हें अक्सर डायरेक्टर साहब से भी फटकार मिलती रहती थी।जब से रोशन बाबू ने अंशू से वह काम भी कराना शुरू किया
तबसे रोशन बाबू का मजा आ गया अब कोई गलती नही हो रही थी और डायरेक्टर साहब अब खुश थे।रोशन बाबू ने उन्हें बताया ही नही कि यह सब कार्य अब अंशू करता है।अंशू द्वारा किये कार्यो का श्रेय रोशन बाबू स्वयं ले रहे थे।
एक दिन अंशू ने रोशन बाबू से कहा अंकल एक साल हो गया है कुछ वेतन में बढ़ोतरी की सिफारिश करो ना।रोशन बाबू ने अंशू को आश्वस्त किया। अगले दिन डायरेक्टर साहब ने अंशू को अपने केबिन मे बुलाकर कहा अरे तुम्हारे वेतन के बारे में बड़े बाबू कह रहे थे,
ठीक है एक हजार रुपये बढ़ा देंगे।तुम एक काम करना अपनी डिग्री लाकर जमा कर देना।नौकरी छोड़ोगे और सब ठीक होगा तब तुम्हे तुम्हारी डिग्री वापस मिल जायेगी।सुनकर अंशू के पैरों के नीचे से धरती खिसक गयी।डिग्री देने का मतलब अपने को इस कार शो रूम में गिरवी रख देना।उसने हिम्मत करके डिग्री को लाने से मना कर दिया।तो अंशू को उत्तर मिला कि कल से फिर तुम्हारी छुट्टी।अंशू कल का इंतजार न करके तभी घर वापस आ गया।
दो दिन अंशू की अनुपस्थिति ने रोशन बाबू को दिन में तारे दिखा दिये।अंशू के कारण निश्चिंतता समाप्त हो गयी थी।डायरेक्टर साहब को भी अपने बड़े शो रूम में लगा कि काम पहले की तरह स्मूथली नही चल रहा है।उन्होंने रोशन बाबू को बुलाकर पूछा आखिर माजरा क्या है?
आखिर रोशन बाबू को खुलना पड़ा, उन्होंने बताया कि अपनी कंपनी का अधिकांश कार्य पर अंशू की पकड़ थी, उसके चले जाने से ही सारी ढील और अनियमितता हो गयी है।आज सब अंशू की कीमत समझ रहे थे।तभी डायरेक्टर साहब ने रोशन बाबू को बोल दिया कि वे अंशू को किसी भी सैलरी पर वापस ले कर आये।
रोशन बाबू के अगले दिन आने को कहने पर भी अंशू नही आया तो शाम को रोशन बाबू ही अंशू के घर पहुंच गये।आखिर दस हजार रुपये की सैलरी पर अंशू का आना तय हो गया।अंशू अगले दिन से ऑफिस जाने लगा।अंशू के आते ही कंपनी का कार्य फिर द्रुत गति से बढ़ने लगा।इस घटना से कंपनी को अंशू की तथा स्वयं अंशू को अपनी कीमत का भान हो गया था।अंशू ने समझ लिया था कि ईमानदारी और मेहनत कभी दगा नही देती।
भारत में उसी दौरान मोबाइल फोन सेवा की शुरुआत हुई थी,इनमें शुरुआती कंपनी थी एस्कॉटल।उस कंपनी ने अपने हर ऑफीसर को लीज पर कार देने की योजना बनायी।अंशू जहां सेल्स एक्सिक्यूटिव था,वहां से जानकारी मांगने पर अंशू ने अपने कुशल व्यवहार एवम त्वरित सेवा से एस्कॉटल कंपनी के अधिकारियों का मन मोह लिया।
अंशू ने कुशलता पूर्वक एस्कॉटल से डील पूरी कराई।एस्कोटल कंपनी के एक उच्च अधिकारी ने अंशू से कहा कि बेटा जो काबलियत तुममें है वह यहां कार बेचते बेचते समाप्त हो जायेगी।मुझसे मिलना मैं तुम्हारा इंटरव्यू अरेंज कराऊंगा।देखना तुम्हारे लिये सुनहरे जीवन के द्वार खुलेंगे, अपनी कीमत समझो।
अपने पिता से सलाह करके अंशू आखिर एस्कॉटल मोबाइल कंपनी में इंटरव्यू देने चला ही गया,जहां वह सफल भी हो गया और प्रारम्भ में ही उसे प्राप्त पैकेज से 18000 रुपये मासिक प्राप्त होने लगे।मेहनत और लगन के आधार पर अंशू सफलता की सीढ़ी चढ़ता चला गया।अपनी 15 वर्ष की सेवा में कई कंपनियों में काम करते करते उसका पैकेज लाखो रुपये पहुच चुका था।
आज भी अंशू सोचता है,जमाना आपकी कीमत तब समझता है,जब आप अपनी कीमत खुद समझे और उस कीमत को सिद्ध करने की क्षमता भी अपने संजोय रखे।
बालेश्वर गुप्ता, नोयडा
सत्य घटना पर आधारित।