स्वाद के खातिर सेहत से समझौता नही – निशा जैन : Moral Stories in Hindi

ये क्या मम्मी..आपने फिर वही घिसी पिटी तोरई की सब्जी बना दी, मुझे नही खानी ये मरीजों वाली सब्जी…तान्या चिढ़ते हुए मां से बोली

बेटा तुम लोग पिछले दो दिनों से फास्ट फूड खा रहे हो । और लगभग हर वीकेंड पर तुम्हारे लिए बर्गर या पिज्जा बनता है या बाहर से ऑर्डर होता है और बाहर का पैकिंग फूड जैसे चिप्स कुरकुरे का तो कोई हिसाब नही होता इसलिए कहीं तुम मरीज ना बन जाओ यही सोचकर बनाई है ये मरीजों वाली पौष्टिक सब्जी…..

पर पता नही खाने से पहले ही क्यों नाक भौं सिकोड़ते हो तुम लोग…. कनक खाना परोसते हुए बोली

तुम लोग से क्या मतलब है तुम्हारा?

कनक के पति सुजॉय ने कनक को टोका

अरे तो आप कौनसे कम हो बस आप अपने मन की बात मुझे बोल नही पा रहे हो वरना शक्ल तो आपकी भी बिगड़ी हुई है सब्जी को देखकर…. कनक व्यंग्यात्मक लहजे में बोली

वैसे बात तो तेरी मां सही कह रही है… सुजॉय पास बैठी तान्या के कानों में फुसफुसाया…तान्या और सुजॉय दोनो हंसने लगे

हां हां कर लो दोनो बाप बेटी मेरा मजाक जब तबियत खराब हो जायेगी न ये जंक फूड खाकर फिर आना मेरे पास … फिर बताऊंगी… कनक बोले जा रही थी

अरे मां आप तो नाराज हो गई… खा तो रही हूं ना अब आपकी पसंदीदा तोरई

बेटा तुम सबकी सेहत की जिम्मेदारी मेरी है यदि तुम्हे कुछ हुआ तो फिर मुझे ही सुनने मिलेगा तेरी दादी मां से….आजकल की बहुओं के पास न के बराबर काम है फिर भी बच्चों का ध्यान नहीं रख सकती.. और हमे देखो कितना काम हुआ करता था फिर भी चार चार बच्चे पाल लिए … मजाल है आज तक कुछ हुआ हो

हां आए दिन इनको बाहर का खिलाओगी तो बीमार तो पड़ेंगे ही न…

सुजॉय ने अपनी मां का नाम सुन कनक को घूरा फिर बोला अब मेरी मां को बीच में कहां से ले आई

माफ करो जी गलती हो गई… आपकी मां को नही लाई मेरी सासू मां को लाई….और हंसने लगी 

देखो तान्या बेटा कल को तुम बाहर पढ़ने जाओगी , होस्टल में रहोगी तो पता नही वहां कैसा खाना मिले कभी सब्जी अच्छी हो तो कभी नही हो और वैसे भी हमे हर तरह के खाने की आदत होनी चाहिए और कभी सब्जी न मिले तो दही या अचार या नमकीन से भी खाना पड़ सकता है तो कभी घर के बाहर इन डिब्बा बंद खाने के आइटम से पेट भरना पड़ सकता है इसलिए मैं थोड़ा बहुत ये बाहर का बना या जंक फूड खाने की इजाजत दे देती हूं पर हर चीज लिमिट में रहकर खाई जाना जरूरी है चाहे वो घर का खाना हो या बाहर का…अति हर चीज की बुरी होती है। 

ये हरी सब्जियां भी तो शरीर में बैलेंस बनाने के लिए खानी ज़रूरी हैं ना और फिर तुम बढ़ते बच्चों को तो पोषण मिलना बहुत जरूरी होता है इसलिए हफ्ते में दो दिन तुम्हारी पसंद का खाती हो तो पांच दिन मेरी पसंद का भी खाना जरूरी है ना

जब तुम मां से दूर होगी न तब तुम्हे मेरी बातें याद आएंगी और इन घिसी पिटी सब्जियों की कीमत भी

 पर फिर ये लौकी तोरई भी तुम्हे नसीब नही होंगी कहकर कनक थोड़ी भावुक हो गई और तान्या भी …

 क्योंकि तान्या का बस ये लास्ट ईयर था उसके मम्मी पापा के पास इसके बाद उसे बाहर ही पढ़ने जाना था । उसको दिल्ली के अच्छे कॉलेज में दाखिला जो मिल गया था ग्रेजुएशन करने के लिए।

और वो दिन भी आ ही गया जब तान्या को होस्टल के लिए निकलना था

तान्या बहुत खुश थी कि बाहर जाएगी तो तरह तरह का खाना खाने मिलेगा क्योंकि बाहर के खाने की बहुत शौकीन थी वो और मम्मी के डर से उसे सब लिमिट में ही मिलता था।पर कनक दुखी थी क्योंकि वो जानती थी तान्या सेहत से ज्यादा स्वाद को महत्त्व देती है तो कहीं वो अपना ध्यान रख पाए या नहीं… पर सुजॉय का कहना था बच्चे अपने आप समझदार हो जाएंगे जब उनके सामने विषम परिस्थिति आयेगी।

 पर मां का दिल तो आखिर मां का ही होता है इसलिए जाने से पहले उसने कनक को भर के लड्डू,मठरी , ड्राई फ्रूट रख दिए कि खाना अच्छा स्वादिष्ट नही बना तो वो भूखी नही रह जाए और कमजोर न हो जाए

 तान्या को मन मारकर वो सब भी ले जाना पड़ा

 शुरू में तो तान्या को होस्टल बहुत रास आया क्युकी 

होस्टल में वहां रोज़ छोले, राजमा, आलू,पनीर जैसी सब्जियां ही बनती है जो उसे बचपन में बहुत पसंद थी। और फिर अब तो उसे रोकने टोकने वाला भी कोई नही था तो जब चाहे तब बाहर जाकर बर्गर, वड़ा पाव, नूडल्स जो मन किया खा लेती।

पर ये ज्यादा दिन नहीं चल पाया क्योंकि ये सब स्वाद के खाने के चक्कर में वो ज्यादा खा लेती और फिर उसे गैस या पेट दर्द होने लगता और फिर ये सब चीजें पचाने में भी भारी रहती थी तो पूरा दिन वो बैचैन रहती इसका असर उसकी पढ़ाई पर भी पड़ने लगा ।

ये सब वो घर पर भी खाती थी पर मां उसके खाने का ध्यान रखती इसलिए हरी सब्जियां , फल भी साथ में देती थी और स्वाद के चक्कर में उसकी सेहत से समझौता कभी नहीं करती चाहे इसके लिए उसको तान्या से कुछ भी सुनना पड़े या उसके गुस्से को सहना पड़े । मां तो मां ही होती है ना आखिर…..

 अब उसको मां की रह रह कर याद आती और मां की कही बात भी कि “मां के हाथ से बने घिसी पिटी सब्जियों की कीमत तुम्हे बाहर जाकर पता लगेगी जब वो भी तुम्हे नसीब नहीं होगी”

और कनक मन ही मन मां को याद करके खूब रोती

मां पापा दुखी होंगे ये सोचकर उसने घर पर कुछ नही बताया बस होस्टल के डॉक्टर के हिसाब से दवाइयां लेती रहती लेकिन कनक जब भी उससे बात करती उसकी आवाज़ से कनक को कुछ शक सा होता था कि उसकी तबियत ठीक है या नही पर तान्या हर बार कुछ न कुछ बहाना मारकर कनक को कुछ नही बताती

 जब कुछ दिनों बाद कनक को उसकी हालत के बारे में पता चला वो और सुजॉय उसे कुछ दिनो के लिए घर ले आए 

 तान्या को डर था कनक उससे नाराज होगी पर मां आखिर कब तक नाराज रह सकती है अपने बच्चों से…. हां कनक को थोड़ा गुस्सा जरूर आया तान्या पर लेकिन जब तान्या ने अपनी गलती मान कर गलती नही दोहराने का वादा किया तो कनक ने अपनी बच्ची को गले से लगा लिया 

 तान्या बोली.. मां आज आपके हाथ का बना कोई भी देसी खाना बनाओ न मुझे बहुत मन है खाने का

 जैसे ही तान्या बोली सुजॉय और कनक एक दूसरे को देखने लगे कि यकायक ये हुआ क्या.. सूरज आज पश्चिम से कैसे निकला जो विदेशी खाने की शौकीन थी वो आज देसी खाना कैसे मांग रही है

 हां मां ये बर्गर , पिज्जा, फास्ट फूड से अब मन भर गया मेरा । जब आपसे दूर थी तब आपकी कीमत समझ आई मुझे कि आप कितना ध्यान रखती थी मेरा । मैं सिर्फ स्वाद देखती थी और आप स्वाद के साथ सेहत भी 

 हां बेटा मुझे पता है ये स्वाद हम पर कई बार भारी पड़ जाता है और इसकी कीमत हमे अपने स्वास्थ्य को दांव पर लगाकर देनी पड़ती है

 तुम्हे पता है ? मेरी बुआ के बेटे भी खाने के बहुत शौकीन थे और नियम से दो कचोरी रोज़ खाते थे वो भी सुबह सुबह ही । उनको रोकने टोकने वाला कोई था नहीं क्योंकि वो घर के बड़े बेटे थे और जिद्दी भी और यकायक उन्हे एक दिन पेट दर्द हुआ और कई बीमारियां एक साथ निकल आई

उसमें एक ब्लड पीलिया भी था जो इन्फेक्शन से हुआ था और ज्यादा मिर्च मसाले और जंक फूड के कारण बहुत बढ़ गया था उनका काफी उपचार करवाया पर वो ठीक नही हो पाए और चौबीस साल की उम्र में ही हम सबको छोड़कर चले गए … कहते कहते आंखे भर आई कनक की

 तब से ही मुझे डर सा लगता है कि कहीं कोई अपना फिर लापरवाही के चलते अपनी जान से हाथ न धो बैठे

 पर कनक ये जरूरी नहीं कि खाने पीने से ही पीलिया हुआ हो सुजॉय बोला

 हां सुजॉय शायद …. पर मुझे लगता है कि वो अपने खान पान पर ध्यान देते तो शायद स्थितियां इतनी गंभीर नहीं होती और उनको बचाया जा सकता था क्युकी पीलिया में मिर्च मसाले और जंक फूड जहर का काम करता है 

 चलो छोड़ो अब … हमारी बेटी इतने दिनो बाद आई है कुछ तो अच्छा बनाओ… सुजॉय तान्या के सर पर हाथ फेरते हुए बोला

 हां मम्मी …. आज दाल बाटी चूरमा और लहसुन की चटनी बनाओ… अब वो तो नुकसान नहीं करेगा न… तान्या ने हंसते हुए पूछा 

 हां नही करेगा … तुम्हे तो बल्कि जरूरत है घी खाने की इतनी कमजोर जो हो गई हो पर हां पापा को शायद नुकसान कर जाए क्योंकि इनको आज गैस है और भूख कम ही है इसलिए आज ये दलिया खाने वाले थे

 किसने कहा… मैं कभी भूख के लिए खाता ही कब हुं मै तो सिर्फ मन भरने के लिए खाता हूं और स्वाद के लिए 

 सुजॉय ने जैसे ही बोला कनक उसको घूरने लगी और कुछ बोलती उससे पहले ही ….

 सुजॉय और तान्या एक साथ बोल पड़े 

 पर स्वाद के चक्कर में सेहत से समझौता कभी नही करेंगे इसलिए चाहे कम कम ही खाएं पर खाएंगे जरूर….

 अब कनक के पास बोलने के लिए कुछ नही बचा क्योंकि उसको जो बोलना था वो बाप बेटी बोल चुके थे और शायद समझ भी चुके थे

 दोस्तों कहीं न कहीं हमारी जीवन शैली ऐसी बन चुकी है कि हम बाहर के डिब्बा बंद खाने या जंक फूड से हमेशा के लिए परहेज नहीं कर सकते पर हां अपनी दिनचर्या नियमित बनाकर उनसे थोड़ी दूरी जरूर बना सकते हैं। थोड़ा संयम रखकर स्वाद के खातिर सेहत से समझौता नहीं करे तो खुद को हमेशा ऊर्जावान और सक्रिय बना सकते हैं जिससे ढलती उम्र का असर भी अपना प्रभाव हम पर न डाल पाएगी यकीन मानिए …

और यह सर्वविदित है कि छोटी उम्र में बच्चों मे डायबिटीज जैसी बीमारी लगना इसी जंक फूड की देन है। मोटापा , आलस, उम्र से बड़े लगना , सिरदर्द की समस्या , चिड़चिड़ापन आजकल आम बात हो गई है और इसके लिए हमारे जीने का तरीका और खानपान काफी हद तक जिम्मेदार है 

इसलिए मुझे लगता है कि हम स्वाद के खातिर अपनी सेहत से समझौता नहीं करके सेहत के खातिर स्वाद से समझौता जरूर कर ले तो कोई बुराई नही है और परिणाम भी अवश्य ही हमारे हित में होंगे 

आपको क्या लगता है?

आप मेरे विचारों से सहमत हैं या असहमत भी हैं तो कृपया कमेंट करके बताना नही भूलें।

धन्यवाद

स्वरचित और मौलिक

निशा जैन

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