“स्वाभिमान ” – अनुज सारस्वत 

“थैले ले लो थैले हाथ से बने थैले” गंगा किनारे सावित्री थैले बेच रही थी चल चलकर ,प्लास्टिक पर पूर्ण प्रतिबंध के बाद अब सिर्फ कपड़े के बनाकर बेचती थी ,एक दिन एक व्यक्ति की नजर उस पर पड़ी “अम्मा कैसे दिए थैले “–“बेटा ₹10 -₹15 के हैं ले लो सुबह से बोहनी नहीं हुई है सूरज चढ़ आया है ” –“”हां हां ले लूंगा अच्छा आप एक बात बताओ आपकी उम्र कितनी है “सावित्री बोली “आईएम नाइनटी वन ईयर ओल्ड “वो  चौंका और बोला ” आप तो पढ़ी लिखी लगती हैं और इस उम्र में यह हालत “

यह सुनते ही सावित्री ने टूटी कमानी बाला चश्मा जो उसने धागे से बाँध रखा था उतारते हुये बोली “देखो बाबू मुझे  कोई परेशानी नहीं है मैं खुश हूँ अपना कमाती हूँ  जीती हूँ, स्वाभिमानी हूँ, कम से कम इन हट्टे कट्टे भिखारियों की तरह भीख नहीं मांगती हूं,और तरस मत दिखाओ गंगा मैया ने सब व्यवस्था कर रखी है मेरे लिए ,दो पैसे मिलते हैं ,सामने रैन बसेरे में सो जाती हूं मर जाऊंगी तो गंगा किनारे कोई ना कोई क्रिया कर्म कर ही देगा,भाग्यशाली हूं जो गंगा मैया की शरण में हूँ ।”

ऐसी ओजस्वी वाणी सुनकर वह व्यक्ति बहुत प्रभावित  हुआ और उसने मन ही मन प्रणाम करके  उस देवी  से पूछा कि “आपके बाल बच्चे नहीं हैं ,आपका घर कहां है” यह सुनकर सावित्री की बूढ़ी आंखों में पानी आने को ही था कि उसने खुद को संभालते हुए कहा” ऐसा है बाबू बाल बच्चे सब अच्छे हैं और तुम खलनायक न समझो उन्हें वह विदेश में हैं  मुझे बुलाते हैं पर मैं नहीं गई” पास में खड़ी सावित्री की सहेली पर अब रहा नहीं गया वो बोल पड़ी” सावित्री क्यों झूठ पर झूठ बोल रही “मैं बताती हूं सहाब  वैसे तो यह इंटर पास है और एक लड़का और लड़की है जो विदेश में रहते हैं 20 साल पहले गंगा दर्शन के  बहाने से यहां लाए थे और रात को छोड़कर चले गए उससे पहले यहां के घर बगैरा को भी बैच दिया था इससे धोखे से साइन करा कर”,”तू चुप कर बिमलेश पागल हो गई है क्या ” सावित्री उसे डाँटते हुए बोली” फिर उस आदमी से बोली “ऐसा है बाबू थैले लेने हो तो बात करो”लेकिन वह व्यक्ति भी जिद्दी था उसने फिर कहा कि “आप वापस क्यों नहीं गई “अब सावित्री फूट पड़ी ” कहां जाती कोई रिश्तेदार काम आया ना कोई अपने,  मेरा सहारा गंगा मैया है”

उसकी आंखे स्वाभिमान से लबालब भर गयी कहा “और बाबू तुम कौन हो जो इतनी पूछताछ कर रहे हो सब का ठेका ले रखा है क्या तुमने जाओ तुम अपना काम करो यह सुनकर वह व्यक्ति मुस्कुराया और कहा “लाओ सारे थैले दे दो आप ” और दुगने दाम दिए सावित्री ने केवल असली दाम ही  लिए उस व्यक्ति ने अपने लोगों को कुछ कहा और दो-तीन फोन करें और सावित्री से बस आखरी सवाल पूछा की “अम्मा आधार कार्ड है क्या?”

सावित्री ने हाँ  में उत्तर दिया फिर गंगा घाट पर 8-10 लोग और आ गए और उस व्यक्ति को सैल्यूट करने लगे उसने सब को निर्देश दिया कि अम्मा की व्यवस्था संभालो राशन ,मेडिकल रैन बसेरे से गरीब आवास में शिफ्ट  और विधवा पेंशन, लघु कुटीर उद्योग में रजिस्ट्रेशन सावित्री अवाक रह गई और उसी व्यक्ति से पूछा “बाबू तुम कौन हो ?” -“मैं आपका बेटा ” उस आदमी ने उत्तर दिया ।

पास खड़े लोगों ने सावित्री को बताया कि यहां के कलेक्टर साहब हैं यह बहुत भले हैं शहर में चर्चे हैं इनके अपराधी,जालसाजो को छोड़ते नहीं और गरीब बेसहारा को उनका हक दिलाते।  यह सुनकर सावित्री की आंखों में पानी भर आया इतने में कलेक्टर साहब ने पैर छू कर कहा “अम्मा अब आपको किसी बात की कोई परेशानी नहीं होगी और मैने सिर्फ आपको आपका हक दिलाया है आपके स्वाभिमान को बिना ठेस पहुंचाये ।”सावित्री ने  दिल भर भर कर आशीर्वाद दिया “ऐसा बेटा सबको हो”।

#पराए_रिश्तें_अपना_सा_लगे

-अनुज सारस्वत की कलम से

(सारे अधिकार सुरक्षित)

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