Moral stories in hindi : कभी तो मेकअप कर लिया कर, तेरी उम्र की लड़कियाॅं साज श्रृंगार में ही अच्छी लगती हैं। ऑफिस के लिए तैयार होकर कमरे से निकली रेणुका को देखते ही उसकी मम्मी सारिका कहती है। छोड़ो ना मम्मी, अभी तो मैं अपनी पहचान बनाने के लिए ही संघर्ष कर रही हूॅं। मेकअप से कौन सी पहचान बनने वाली है। रेणुका कहती हुई फटाफट नाश्ता करने लगी।
लंबी, छरहरी, बालों को सिर पर ऊंचा कर पोनी बनाए रेणुका ऑफिस जाने के लिए घर से निकल कर बिल्डिंग की सीढ़ियां जल्दी जल्दी उतरती अपार्टमेंट के दरवाजे की ओर भागी जा रही थी कि अपार्टमेंट के बीचो बीच बने पार्क में लगे होर्डिंग पर उसकी नजर गई और दौड़ती हुई रेणुका होर्डिंग देख थमती हुई गिरते गिरते बची।
मम्मी, मम्मी, जल्दी नीचे पार्क के पास आओ। रेणुका होर्डिंग देखती बैग से मोबाइल निकाल कर हाॅंपती हुई सारिका को कॉल करती है।
कल सविता आंटी पूछ रही थी कि तुम रेणुका की मम्मी हो ना और बातों बातों में वॉक करते करते तेरे जन्मदिन की बात मैंने उन्हें बताई थी। लेकिन उससे उन्हें क्या, उन्हें तो याद भी नहीं होगी। “लेकिन ये क्या?” सारिका भी होर्डिंग देखकर असमंजस में थी।
वो बासठ में रहती हैं बेटा, कल ही मुझे भी पता चला, जब वो मेरे पास आकर बातें करने लगी। रेणुका के “कौन सविता आंटी” पूछने पर सारिका कहती है।
अच्छा, उनका नाम सविता है…
“तू जानती है उन्हें” सारिका रेणुका की प्रतिक्रिया पर पूछती है।
“नहीं, बस ऐसे ही। अभी तो ऑफिस पहुंचा जाए।” रेणुका कहती है।
“हूं, शाम में देखते हैं क्या माजरा है ये?” सारिका रेणुका को अपार्टमेंट के गेट तक पहुॅंचा कर होर्डिंग देखती हुई अपने घर की तरफ लौटती हुई सविता जी के घर की ओर बढ़ गई और फिर “शाम तक की प्रतीक्षा कर लेती हूं”, सोचती फिर से अपने कदम को अपने घर की ओर मोड़ लेती है।
होर्डिंग पर रेणुका की तस्वीर के साथ बड़े बड़े शब्दों में लिखा था, आज हमारी प्रिय रेणुका का जन्मदिन है, संध्या समय आठ बजे सभी अपार्टमेंट के कम्युनिटी हॉल में पहुॅंचे।
क्या है मम्मी, स्वर्णाभूषण मुझसे नहीं संभलते, इतनी सजावट क्यों कर रही हो। क्या है आज? सच सच बताओ मम्मी! सारिका द्वारा उसके कान और गले में सोने के गहने डालने की जिद्द करने पर रेणुका नाराज होती हुई कहती है।
“कैसी होती जा रही है तू, हर बात काटती रहती है। छोटे से टॉप्स और ये पतली चेन नहीं डाल सकती तू।” सारिका नाराजगी से टेबल पर टॉप्स और चेन रखती हुई कहती है।
“मम्मी, मैं ये कॉल सेंटर की नौकरी से थक गई हूं, अपनी एक पहचान चाहती हूं। कब तक पापा के छोड़े गए पैसे चलेंगे। कुछ अच्छा करना है मम्मी। अच्छा लो, मैं डाल लेती हूं, खुश।” घुटनों के बल सारिका के सामने बैठती हुई रेणुका कहती है।
“स्वर्णाभूषण, गुलाबी रंग की कुर्ती और गुलाबी रंग के लिपिस्टिक का हल्का टच दिए रेणुका खूबसूरत लग रही थी। बस मम्मी, इससे ज्यादा नहीं।” बॅंधे बालों को देख सारिका की बात पर रेणुका कहती है।
कम्युनिटी हॉल से वापस आकर अपने बिस्तर पर बैठी रेणुका वहाॅं हुए सारे वाकये को याद करती सोच रही थी, क्या सच में ये सारे लोग मुझे मेरे नाम और चेहरे से पहचानते हैं? क्या ये छोटी छोटी चीजें आपकी पहचान बन जाती हैं?
जैसे जैसे रेणुका और सारिका के कदम कम्युनिटी हॉल की ओर बढ़ रहे थे, उनकी आंखों में हैरत भी दिख रहा था। दूर से ही काफी भीड़ भाड़ नजर आ रही थी।
“मम्मी, ऐसा तो नहीं है कि कोई और रेणुका हो और गलती से मेरी तस्वीर लगा दी गई हो। बहुत ही अजीब लग रहा है।” रेणुका की आवाज में घबराहट थी।
“देखते हैं”, सारिका रेणुका की बाॅंह पकड़ती हुई कहती है।
कम्युनिटी हॉल की दीवारों पर उसकी होर्डिंग वाली तस्वीर ही अलग अलग आकर और रंगों के साथ लगी हुई थी। दोनों ही आश्चर्य से हॉल की सजावट और लोगों के जमघट को देख रही थी।
“हमारी आज की स्टार रेणुका पांडे हमारे बीच आ चुकी हैं, जोरदार तालियों से इनका स्वागत कीजिए।” अपार्टमेंट के सेक्रेटरी मिस्टर दयाल माइक लेकर कहते हैं।
“ये तो हमारी ही बात हो रही है मम्मी, क्या हमें ये सारे लोग पहचानते हैं?” सेक्रेटरी की बात सुनकर और तालियों के बीच में रेणुका अपनी मम्मी से धीरे से कहती है।
“बेटा उस दिन जब मैं ऑटो से उतरने के बाद लड़खड़ा गया था तो तुम ही मुझे आनन फानन में अस्पताल ले गई थी। तुम्हारे कारण ही आज मैं स्वस्थ हूं।” एक बुजुर्ग पुरुष रेणुका के पास आकर कहती है।
और उस दिन आप ही तो स्कूल बस से उतरने पर मेरे बेटे को रोता देख ऑफिस में देर होते हुए भी वही रुक गई थी, वो तो दो तीन दिन मैंने आपको इसी अपार्टमेंट में आते जाते देखा तब समझी आप भी यही रहती हैं।” उम्र में रेणुका से तीन चार साल बड़ी एक महिला अपने बेटे के साथ आकर कहती है।
“और उस दिन पार्क में मेरा पैर मुड़ने पर आप ही तो मेरी मम्मी को घर तक ले कर आई थी” सविता आंटी का बेटा सविता आंटी की ओर इशारा करता रेणुका से कहता है।
ऐसी कितनी छोटी छोटी बातें रेणुका के कानों में पड़ रही थी और रेणुका उन सबकी बातों से घटित घटनाएं याद कर रही थी।
“क्या सोच रही है बेटा”, सारिका रेणुका के कमरे में आकर उसके बगल में बैठती हुई पूछती है।
“मम्मी, मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा है कि यहाॅं लोग मुझे पहचानते हैं।” रेणुका का दिमाग अभी भी वही अटका हुआ था।
सारिका ने रेणुका की बातों को ध्यान से सुना और उसकी बातों में संवेदना भरी ताकत महसूस की। उसने रेणुका के मनोभाव को सहजता से समझा और उसकी पहचान में नई दिशा देखी।
रेणुका ने स्नेह से सारिका के कंधे पर हाथ फिराया और कहा, “तूने आज अपने वजूद की नई परिभाषा बनाई है, बेटा। तू वहाँ है, जहाँ तू होना चाहिए, और मैं तुझे हमेशा समर्थन करूँगी।”
“सच मम्मी, आज का दिवस पहचान की एक नई परिभाषा बन मेरे वजूद को सहला गया।” सारिका की बात पर रेणुका उसके कंधे पर सिर रखती हुई प्रसन्नतापूर्वक कहती है।
उसके वजूद की सराहना करते हुए, सारिका ने उसे एक बड़े तथा अनूठे दृष्टिकोण से समझाया।
“ये सब तेरे अपने स्वभाव के कारण है बेटा,” माँ ने कहा, “दुनिया में बड़ा काम कर पहचान बनाना आसान है, लेकिन अपने स्वभाव से लोगों के दिलों में जगह बना लेना बहुत मुश्किल है और तूने बिना स्वार्थ ये कर दिखाया। गर्व है बेटा तुझ पर। तुझे तेरी पहचान मुबारक हो।”
यह रेणुका के जीवन का एक महत्वपूर्ण पल था, जो उसे उच्चतम मानकों की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित कर रहा था। उसने अपने लक्ष्यों की ओर बढ़ने के लिए सार्थक प्रयास और समर्पण की भावना को और भी मजबूती से महसूस किया।
आरती झा आद्या
दिल्ली