आज जब मानव फैक्ट्री पहुंचा तो देखा दो महीने पहले काम छोड़कर गया चपरासी रामदेव ऑफिस के बाहर खड़ा था। उसके पीछे एक श्याम वर्ण ,पतला दुबला,कोई बारह तेरह साल का लड़का दुबका हुुआ खड़ा था।
पूछने पर बोला ” साहब ये मेरे गाँव से है… बाप मर चुका है सिर्फ मां है…वहां भूखों मर रहा था तो मैं शहर ले आया….बहोत गरीब है..कुछ भी काम दे दिजिए..इसे रख लिजिए…आपका भला होगा साहब..”
एक छोटे बच्चे से मैं क्या काम कराऊंगा ये सोच मानव ने मना कर दिया। कुछ निराश हो रामदेव बोला “ठीक है शाम को इसे ले जाऊंगा।”
बच्चे का नाम सूरज था। सारा दिन बाहर स्टूल पर बैठा रहा। शाम तक भी जब रामदेव नहीं आया तो मजबूरी वश मानव बच्चे को घर ले आए।
घर में मात्र चार प्राणी थे। मानव,पत्नी करूणा,और दो बेटे अनुराग व अनुज।इस नए सदस्य के आगमन से सभी उत्सुक व उत्साहित थे। सब उसे घेर कर बैठ गए और उसके बारे में पूछने लगे। उसे उदास देख जब करूणा ने पूछा बेटा क्या मां की याद आ रही है तो आंखों में आंसू भर बोला ” मां जी ढोर पशु को भी मां चाहिए होती है ।”सुन करुणा पसीज गई और स्नेहवश उसके सिर पर हाथ फेरने लगी।
कई दिन हो गए पर रामदेव लौटकर नहीं आया। धीरे धीरे सूरज घर में रमता गया।
अनुराग नवीं कक्षा में था। सूरज छोटे बेटे अनुज का हमउम्र था।।अभी मिड टर्म था, करुणा बार बार दोहराती कि जब नई कक्षा शुरु होंगी तो सूरज को भी स्कूल में एडमिशन दिलवा देंगे…ये भी हमारे बच्चों जैसा है। वह बच्चों का नाम ना लेकर बडे भैया या छोटे भैया ही बुलाता था।
कुछ ही दिनों में सूरज घर के माहौल में ढल गया। करूणा के साथ छोटे मोटे काम कराने लगा।काम करते करते अपने गांव देहात की बातें बताता।अपने मीठे स्वर में लोकगीत गाता। दोनों भैया के स्कूल से आने का बेसब्री से इंतजार करता। जब वो दोनों पढने बैठते तो ज़मीन पर बैठ अखबार पलटता, छपी हुई तस्वीरों को देख खुश होता। जब दोनों भाई खेल खेल में गुतथमगुतथा होते तो वह भी खौं खौं की आवाज निकालकर उछलता रहता।
छोटे भैया अनुज जब तब उसे अक्षरज्ञान देने लगे थे।एक पुरानी कॉपी पर आड़ा तिरछा अभ्यास चलने लगा। कृतज्ञ सूरज हर सुबह उनका स्कूूल बैग पास वाले बस स्टैंड तक ले जाने लगा।
शाम को जब दोनों भैया साइकिल चलाते सूरज हंसता उछलता उनके पीछे दौड़ लगाता। उसका भी मन करता साइकिल चलाने को ,एक बार कहा भी तो बड़े भैया नाराज़ हो गए थे।वो टी वी देखते तो वहीं ज़मीन पर बैठ खुश हो रहता।
इस नई तिलिस्मी दुनिया में उसका खूब मन लग रहा था।
पर घर में धीरे धीरे समीकरण बदलने लगे थे।
पहले वो छुटपुट काम करता था,पर अब करूणा उस पर ज्यादा काम छोडने लगी थी। घर की साफ सफाई से लेकर बर्तनों का ढेर उसे ही साफ करना पड़ता। काम वाली बाई को हटा दिया गया था। सुबह चाय और दो ब्रैड खाकर वो चकरघिन्नी सा काम में जुट जाता।दोपहर दो बजे तक कई बार करुणा की डांट खाता। कई चक्कर बाज़ार के लग जाते।
दोनों भैया भी स्कूल से आते ही उसे दौड़ाने लगते, एक एक मिनट में उसे आवाज़ लगाते। देरी होने पर चिल्लाने लगते। उनके जूते पाॅलिश करने से लेकर पेंंसिल छीलने तक के काम उसके जिम्मे थे। सुबह से काम करके थका हुआ वह कुछ देर आराम करना चाहता, बरामदे में लेटता तो कई बार बडा भैया पैर मार कर उसे जगा देता।
पहले की हंसी और मस्ती अब सूरज के चेहरे से गायब हो चुकी थी। पर मुस्कान अभी बाकी थी। पहले सबके काम वो खुशी से करता था पर अब मजबूरी वश।
करूणा का व्यवहार भी अब कटु होता जा रहा था। उसके खाने पर पूरी नजर रखती। बच्चों को उससे अलग रह कर खाने को कहती। कभी कभार मानव उससे प्यार से बोलते तो कहती “बस बस सिर ना चढाओ इसे, पैर की जूती पैर में ही अच्छी लगती है।”
वह कड़वी बातें सुनकर भी अनसुनी कर देता। पर मन में कहीं कुछ घुट रहा था ,रात को मां की याद आंसू ला देती।
मानव उससे सहानुभूती रखते थे पर अपने परिवार को नियंत्रित नहीं कर पा रहे थे। छोटे बेटे का व्यवहार तो फिर भी ठीक था पर करूणा और अनुराग का मन जाने क्यूं सूरज के प्रति मलिन हो चला था।
उसे स्कूल में दाखिल कराने की बात कहीं हवा में उड़ गई
थी। रात को डांट खाकर सोता पर सुबह जाने किस जिजीविषा से मुस्कुराता हुआ फिर काम में जुट जाता।
एक बार जब मानव शहर से बाहर गए थे तो करूणा की बहन अचानक आ गई। सूरज को फटाफट समोसे लाने को बोला। भैया लोग के स्कूल से आने में अभी समय जान सूरज ने चुपके से बडे भैया की साइकिल उठा ली, सोचा उनके आने से पहले आ ही जाऊंगा। पर समोसे की दुकान पर भीड़ थी तो देर हो गई। घर के दरवाजे पर ही दोनों भैया से सामना हो गया।
मौसी को आया देख दोनो चुप रहे। पर करूणा चिल्लाने लगी, उसके कान उमेठते बोली ” बस खाने में ही शेर है तू और काम में कछुआ। “
मौसी के जाने के बाद बड़े भैया ने उसे काॅलर से पकड़ कर कई थप्पड जड़ दिए। साइकिल को हाथ लगाना उसकी नज़र में अक्षम्य अपराध जो था। वो माफी मांगता रहा पर बड़े भैया का गुस्सा शांत न हुआ। आखिर धक्का मारकर उसे बरामदे में धकेल दिया।करूणा की करूणा जाने कहां विलुप्त हो गई थी बेटे के बेहूदे व्यवहार का जैसे चुप रह कर सर्मथन कर रही थी।
सूरज का मन टूट चुका था।अंधेरे बरामदे में रोते रोते ,बिना खाना खाए वो पड़ा रहा। उसे सबक सिखाने के प्रयोजन से कोई पूछने भी नहीं आया।
सुबह जब घर वालों की नींद खुली तो सूरज के साथ साथ बड़े भैया की साइकिल भी गायब थी। तुरंत घर का सामान चैक किया गया सब यथावत था। घर से थोड़ी दूर साइकिल टूटी फूटी दशा में पड़ी मिली। पर सूरज का कोई अता पता ना था।एक बेबस बच्चे का आक्रोश एक साइकिल तोड़ने से अधिक इस परिवार का नुकसान नहीं सोच पाया। पर उसके मासूम मन पर मानवता और हमदर्दी पर कभी भी विश्वास ना कर पाने की जो परत चढ़ गई थी वो अब ना जाने उसके जीवन के प्रवाह को कहां ले जाएगी।
#आक्रोश
रेणु शर्मा