सुनीता- बहुरानी दरवाज़ा खोलो वरना झाड़ू-पोछा किए बिना चली जाइब।
सीमा- आज तो संडे है, आप आज भी जल्दी आ गई। पहले नीचे का काम निपटा लीजिए फिर ऊपर का करिएगा।
सुनीता- नीचे का तो हुई गवा हैं। अगर कहो तो हम ज़ाई।
सीमा- रुको आंटी आपसे कौन जीत सकता है।
सुनीता-तो काहे कोशिश करत हो।
यह सुनीता शर्मा जी की कामवाली है, अरे नहीं नहीं कामवाली तो क़तई नहीं कहना, ऐसा मिसेज़ शर्मा का कहना है।
एक बार उनकी बहू सीमा का भाई घर आया था तो उसी वक़्त शाम को सुनीता बर्तन करने आई। तो सीमा ने भाई से परिचय कराया कि ये हमारी सुनीता आंटी है, तो भाई ने कह दिया अच्छा कामवाली आंटी। बस ये बात मिसेज़ शर्मा ने सुन ली, उस वक़्त तो कुछ नहीं बोली पर भाई के जाने के बाद बहू को समझाया-सुनीता हमारे यहाँ 10 सालों से है, उसको कोई कामवाली कहे मुझे क़तई पसंद नहीं। तुमसे ज़्यादा मैं उसे जानती हूँ,
मेरे सुख-दुख में वो बराबर खड़ी रही है, अभी अभिनव की शादी में अपने परिवार को छोड़कर हमारे साथ गाँव गई थी, वहाँ पूरी तैयारियों में मदद की। मेरे खाने पीने का पल पल ध्यान रखा। तुम्हारी प्रेगनेंसी में भी तो कितना ध्यान रखा है तुम्हारा। जहाँ पानी होता था झट से पहुँच जाती थी तुम्हें बताने कि बहुरानी ध्यान से आना पानी पड़ा है। हम भी उसकी परेशानियों में हमेशा उसके साथ रहे है, वो हमारे घर के सदस्य की तरह है, तो अपने भाई और वहाँ सबको बता देना वो सुनीता को कामवाली ना कहें।
ये सुनकर सीमा को थोड़ा दुख हुआ कि सुनीता आंटी की वजह से उसे इतना कुछ सुनना पड़ा, पर दूसरी तरफ़ उसे ये भी अच्छा लगा कि आजकल जहां लोग अपने अधीनस्थों एवं काम करने वालों को सिर्फ़ काम से जानते है, उनके सुख-दुख से उन्हें कोई मतलब नहीं होता है, वहाँ मेरे यहाँ काम करने वालों को भी इतनी अहमियत दी जाती है।
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मेरा सबसे निवेदन है कि जो हमारे घर और कार्यालय में काम करते है, घर और कार्यालय को स्वच्छ करते है, हमारे लिए ख़ाना बनाते है, हमारे बच्चों की देखभाल करते है, हमारे हर सुख दुख में साथ निभाते है, क्या हमारा कोई फ़र्ज़ नही कि हम भी उनकी ज़रूरतों का ध्यान रखें हर महीने ना सही त्योहारों पर कुछ उपहार व मीठा देकर उनके त्योहार में भी चार चाँद लगाए, हमारे लिए जो अनुपयोगी चीज है वो उन्हें दे क्योंकि वो उनके लिए उपयोगी हो सकती है। कभी कभार अपने मन से एक दो छुट्टियाँ दे दें। कभी कभार उनके बच्चों की पढ़ाई, स्वास्थ्य के बारे में पूछ लें।
उनके बच्चों के विवाह में जाकर उन्हें आशीर्वाद दे, यक़ीन मानिए इससे आपकी शान में कोई कमी नही आएगी। अंत में कुछ पंक्तियाँ-
अपनों के लिए तो पूरी दुनिया जीती है,
कभी दूसरों के सुख-दुख में शरीक होकर देखो।
अपना-पराया, ऊँच-नीच से परहेज़ कर,
इंसानियत का चोला ओढ़कर देखो।
प्रेम, सद्भाव के इन्द्रधनुषी रंग बिखेरकर,
कलयुग में सतयुग लाकर तो देखो।
ये वाक़या मेरे घर का है, और ये हमारी सुनीता आंटी है, उन्हें हम प्यार से ‘तूफ़ान एक्सप्रेस’ कहते है, क्योंकि जैसे ही ये घर में आती है माहौल शोरगुल से भर जाता है, पर इस शोरगुल की ऐसी आदत पड़ गई है कि एक दिन भी वो ना आये तो कुछ ख़ालीपन लगता है। सुनीता आंटी ऐसे ही हमारे यहाँ 10 साल से नहीं है, उनकी ईमानदारी, सहयोग की भावना, अपनापन वो गुण है, जिसके कारण कभी उन्हें हटाने का सोच ही नहीं पाए। कई बार नोक झोंक भी हुई पर जल्द ही फिर सब पहले जैसा।
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स्वरचित एवं अप्रकाशित।
रश्मि सिंह
#दोहरे_चेहरे