सूनी कलाई पर राखी – बालेश्वर गुप्ता : Moral Stories in Hindi

    ताशकंद में अपने प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी का निधन हो गया था,उनका पार्थिव शरीर भारत अगले दिन यानि 12 जनवरी 1966 को लाया जा रहा था,हवाई अड्डे से उनकी शव यात्रा प्रारंभ होनी थी।मार्ग में दोनो ओर हजारों की संख्या में लोग अश्रुपूरित श्रंद्धाजलि देने एवम उनके अंतिम दर्शन को खड़े थे।मेरठ से 16 वर्षीय लोकेश भी अपने मित्र के साथ शास्त्री जी के अंतिम दर्शन हेतु दिल्ली गया था,वे जनपथ पर खड़े हो शव यात्रा का इंतजार कर रहे थे।चारो ओर गमगीन वातावरण था।लोग परस्पर भी कम ही बात कर रहे थे।

लोकेश के बराबर में एक महिला अपनी दो ढाई वर्षीय बेटी को गोद मे लिये खड़ी थी।अचानक स्पर्श से लोकेश चौंक गया,उसने देखा कि वह बच्ची उसे हाथ से पकड़ कर खींच रही है।लोकेश ने बच्ची को प्यार किया।उसे 9 वर्षीय अपनी बहन पिंकी की याद आ गयी,जो हमेशा उससे ही चिपकी रहती थी।लोकेश को लगा अनजान बच्ची को इस अनजान से कैसा लगाव।वह बार बार लोकेश की गोद मे आने को मचल रही थी।उस महिला ने कहा भी ये एनी तुम्हे चाहने लगी है।लोकेश मुस्कुरा कर रह गया।कुछ देर बाद लोकेश ने उस महिला से कहा भी कि वह एनी को उसकी गोद मे दे दे।

पर उस महिला में झिझक थी,जो स्वाभाविक भी थी कि भीड़ में एक अनजान लड़के को अपनी बच्ची कैसे दे दे।पर एनी को इससे क्या मतलब वह तो अपनी मम्मी की गोद मे मचल मचल कर लोकेश की ओर हाथ पसार रही थी।आखिर उस महिला ने एनी को लोकेश की गोद मे दे दिया और खुद लोकेश के बिल्कुल करीब खड़ी हो गयी,जिससे लोकेश उसकी जद में रहे।इतने में शास्त्री जी की शव यात्रा वहां से गुजरने लगी।लोग शास्त्री जी अमर रहे नारे लगाने लगे,

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उस महिला ने झट से एनी को अपनी गोद मे ले लिया।शव यात्रा गुजर चुकी थी,लोग जो पहले चुपचाप कतार में खड़े थे,अब अनियंत्रित हो इधर उधर जाने लगे।लोकेश भी वापस आने के लिये चल पड़ा,वह महिला अपनी बेटी एनी के साथ उस भीड़ में गुम हो चुकी थी।लोकेश वापस मेरठ आ गया।एक दो दिन उसे एनी की याद आयी,माँ को भी एनी के बारे में बताया।फिर लोकेश पिंकी के साथ ही हिलमिल गया।एनी उसकी स्मृति से विलुप्त हो चुकी थी।

       समय चक्र घूमता गया,पिंकी बड़ी हो गयी थी,उसके ग्रेजुएशन करने के बाद उसकी शादी एक अति संपन्न घर मे हो गयी।लोकेश के बहनोई हालांकि इंजीनियर थे,पर उन्होंने पिता के बड़े कारोबार को ही संभालने का निर्णय लिया था। लोकेश ने भी पिता का व्यापार ही संभाला।रक्षाबंधन के दिन प्रतिवर्ष लोकेश पिंकी के यहां जाता था और राखी बंधवाता था।लोकेश की माँ पिंकी के लिये खूब सारे महंगे तोहफे भी भेजती थी।खुद लोकेश उन उपहारों के अतिरिक्त ग्यारह हजार रुपये भी टीके के समय बहन को भेंट करता था।इसी बीच  लोकेश के पिता का देहांत हो गया,

सब जिम्मेदारी लोकेश के कंधों पर आन पड़ी।लोकेश को व्यापार का अभी इतना अनुभव नही हुआ था,इस कारण व्यापार में घाटा होने लगा।लोकेश और माँ ने निर्णय लिया कि घर का एक पोर्शन किराये पर दे दिया जाये, जिससे कुछ अतिरिक्त आमदनी हो सके।कुछ लोग घर देखने आने लगे।माँ चाहती थी कि कोई छोटा शालीन परिवार ही घर किराये पर ले।

      एक दिन एक पति पत्नी लोकेश के घर के पोर्शन को देखने आये।पुरुष नगर में ही एक इंटर कालेज में प्रिंसीपल बनके आये थे।महिला को देख लोकेश को लगा कि उनको कही देखा है, ऐसे ही शायद महिला को भी लग रहा था।घर उन्हें पसंद आ गया था,वे पहली तारीख से आने वाले थे।किराया भी उन्होंने एडवांस में दे दिया था।

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       लोकेश के दिमाग मे उस महिला का चेहरा घूम रहा था,कहाँ देखा था उसे,ध्यान ही नही पड़ रहा था।अचानक उसे ध्यान आ गया कि उस महिला से लोकेश की मुलाकात प्रधानमंत्री शास्त्री जी की शव यात्रा के समय हुई थी।उसे उस प्यारी सी बच्ची एनी की भी याद आ गयी जो उसकी गोद मे आने को बार बार मचल रही थी।पर आज एनी तो उनके साथ नही थी।

        लोकेश के व्यापार में घाटा बढ़ता जा रहा था।लोकेश ने अपने व्यापार को समेट कर छोटे रूप में करने का निर्णय लिया।किरायेदार आ चुके थे।एनी भी बड़ी हो गयी थी, लोकेश तो पहचान ही नही पाया,उसके स्मृति पटल पर तो वही छोटी सी एनी अंकित थी,जो उसकी गोद में आने को मचल मचल रही थी।एनी को उसकी माँ ने बता दिया कि कैसे उसके बचपन मे लोकेश से मुलाकात हुई थी और वह कैसे लोकेश की गोद मे जाने को मचल रही थी।सुनकर एनी शरमा गयी।उसके बाद से वह लोकेश को भैय्या ही पुकारने लगी थी।

          रक्षाबंधन आ गया,अबकि बार माँ चाहकर भी पिंकी वास्ते उपहार नही जुटा पायी थी।पर बहन से राखी तो बंधवानी थी सो लोकेश उपहारों के बिना ही राखी बंधवाने चला गया।वहाँ पहुंचा ही था कि पिंकी लोकेश को अलग कमरे में जल्दी से ले गयी और बोली भाई मैं जानती हूं कि आपकी आर्थिक स्थिति ठीक नही है,पर मुझे तो यहां अपने घर की इज्जत रखनी है।आप ये पचास हजार रुपये रख लो और टीके के समय दे देना।सुनकर लोकेश तो जैसे आसमान से गिरा, क्या पैसा ही सबकुछ है।असमंजस में आया लोकेश बहन के भाव समझ रहा था,

पर उसे अपनी स्थिति पर ग्लानि और क्रोध भी आ रहा था।उसे बहन की बोली में उसके आत्मसम्मान के स्थान पर घर की इज्जत का ध्यान अधिक लग रहा था।उसने बहन का दिया लिफाफा  ले लिया,उस लिफाफे के ऊपर 2100 रुपये रखकर जो वह बहन को देने को लाया था,वही कमरे की मेज पर रखकर पिंकी के घर से बिना राखी बंधवाएं चला आया।

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      सूनी कलाई को देख माँ समझ गयी कि पिंकी के घर लोकेश को सम्मान नही मिला है।इसी कारण माँ ने कुछ नही पूछा।लोकेश सीधा अपने कमरे में चला गया।आज पहली बार उसकी कलाई सूनी थी,बहन की राखी उसके हाथ मे नही बंधी थी।उसकी आँखों मे आंसू बस छलकने को ही थे,जिन्हें वह मुश्किल से रोक पा रहा था।

       इतने में ही उसके कमरे में चहकती सी एनी आ गयी भैय्या भैय्या देखो मैं आ गयी राखी बांधने।जल्दी से हाथ आगे करो मुझे राखी बांधनी है।आश्चर्य से लोकेश एनी की ओर कलाई बढ़ा देता है,एनी ने सूनी कलाई पर राखी बांध दी।तिलक लगाकर,साथ लायी मिठाई से मुँह भी मीठा करा दिया।सब कुछ पल भर में हो गया।लोकेश तो एक टक एनी को देख रहा था,उसे वही एनी दिखाई दे रही थी जो फुटपाथ पर उसकी गोद मे आने को मचल रही थी।लोकेश जा ध्यान टूटा जब एनी बोली भैय्या अपनी छोटी बहन को कुछ दोगे नही?उसके हक से बोलता देख लोकेश की आंखों से आंसू बह निकले।एनी बोली भैया सुनो पूरे 101 रुपये लूंगी।

        लोकेश ने उठकर एनी को गले से लगा लिया,मेरी छोटी सी बहन तुझ पर तेरा ये भाई कुरबान।

#बहन 

बालेश्वर गुप्ता,नोयडा

मौलिक एवं अप्रकाशित

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