जया , पिंटू , ललिता सब कहां मर गये…. जल्दी आओ यहां …..
रंजन जी घबराते हुए, पत्नी, बेटे, बहू को आवाज लगाते है ……
क्या हो गया पापा…. क्यूँ रात के दो बजे चिल्ला रहे है … मोहल्ले में भी सब जाग गये होंगे आपकी आवाज से…..
क्या हुआ….???
बोलिये……
बेटा पिंटू टी -शर्ट पहनते हुए सीढ़ियों से नीचे आता हुआ बोला….
जब से मास्टरी से रिटायर क्या हुए हैं हेड मास्टर साहबजी …. ऐसे ही बिना बात के चिल्लाते रहते हैं ….
सबकी नींद खराब कर दी…..
आँखों को मलती हुई पत्नी जयाजी बोलीं …..
तुम सब चुप करो …. तुम लोगों को अपनी नींद और मोहल्ले वालों की पड़ी है … वहां घर की बेटी शिवाजी चौराहे पर दो बच्चे और सामान को लिए अकेले खड़ी है ……. मेरा तो मन घबरा रहा……
जा उसे लेकर आ नालायक…..
रंजन जी गुस्से में बेटे पिंटू से बोले…..
दीदी कब तक ये नौटंकी करती रहेंगी पापा ….
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हर दो चार महीने में ससुराल में झगड़ा करते आ जाती है …… वो भी समय भी नहीं देखती क्या हुआ है …… ओला ही कर लेती बुक घर तक की…. रो रोकर आपका और हम सबका बीपी और बढ़ा देती हैं ….. आपके कहने पर ले आ रहा हूँ… पर कब तक वो ऐसा करेंगी….. आपके बाद मैँ तो उनके झगड़े निपटा नहीं पाऊंगा…. हर बार आपकी तरह उनके ससुराल वालों से माफी मांग उन्हे फिर छोड़कर आऊँ ….. मुझसे तो होगा नहीं ये…..अबकि आयेँ तो अच्छे से समझा दीजियेगा ……..
रंजन रोष में बोलता है …..
जी ऐसे मत बोलिये …. जाईये लेकर आईये पहले दीदी को …… रात में अकेले खड़ी है बच्चों को लेकर…..
बहू ललिता पिंटू से बोली….
जब इतना ही डरती है दीदी तो रात में क्यूँ झगड़ा किया …. सुबह ही कर लेती…. जाओ चाभी लेकर आओ गाड़ी की…..
जल्दी से ललिता चाभी लेकर आयी…..
अब आप भी चलेंगे य़ा यहीं रहेंगे ??
पिंटू पिता रंजन जी से पूछता है ….
नहीं नहीं… चल रहा हूँ… चल जल्दी…..
धोती कुर्ता पहने कंधे पर साफी डाले रंजन जी बेटे के साथ घर की बेटी मधू को लेने पहुँच गये…..
एक घंटे बाद गाड़ी आ चुकी थी …..
सास जया, बहू ललिता बाहर लौबी में ही चक्कर लगा रही थी ….
गाड़ी की आवाज सुन दोनों बाहर आयीं…..
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गाड़ी से बेटी मधू और उसके दोनों बच्चों को उतारा बहू ललिता ने…..
मधू तो सामने माँ को देख उनसे लिपट गयी…. दहाड़े मारकर रोने लगी….
माँ…. अब मैँ उस घर में नहीं रहूँगी…….
मधू जोर जोर से रोकर बोलने लगी….
बेटा रात हो रही है …. आवाज और घरों में भी जा रही होगी… चल अंदर चलकर बात करते हैं …..
माँ जयाजी सबको लेकर अंदर आ गयी……
रंजन बिना बहन के अचानक से आने का कारण जाने सीधा ऊपर अपने कमरें में सोने चला गया……
हां तो अब बता क्या हुआ मेरी बच्ची…..
जयाजी ने बेटी मधू के सर को सहलाते हुए पूछा …..
माँ हर बार तो झगड़ा करती ही थी मेरी सास…. पर अबकि बार तो हद कर दी……
अबकि क्या हुआ बेटा????
माँ मुझसे बिना पूछे मेरा सारा जेवर ननद को दे दिया किसी की शादी में पहनने को ,,,,मेरी महंगी महंगी साड़ी भी ….. जब मैँ बाहर बच्चों को स्कूल लेने गयी तब ….
मैने पूछा तो बोली तुझे क्या मतलब……. घर का जेवर, साड़ी मैँ किसी को भी दूँ पहनने को …. तुम्हे मतलब नहीं होना चाहिए मधू …. सास ही बोलती तो इतना बुरा ना लगता मुझे…. पर जब इनसे बताया आज रात को तो गुस्से में थप्पड़ मार दिया मुझे…. मैँ अपनी चीज क्यूँ किसी को दूँ….. मेरा भी कोई आत्मसम्मान है …. मैने रात देखा ना दिन….. आ गयी बच्चों को लेकर …. बबलू के पापा ने एक बार भी जाने से नहीं रोका माँ …..
माँ अब मैँ उस घर में वापस नहीं जाऊँगी…… यहीं रहूँगी…..
यह बोलते हुए मधू माँ के गले लग गयी…..
माँ जयाजी कुछ बोलती उससे पहले बहू ललिता ने जयाजी को मधू से कुछ ना कहने का इशारा किया …..
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दीदी… आप आराम करिये अभी….. मैँ खाना लेकर आती हूँ….. खाना खाकर सो जाईये आप सब…..
बच्चों को मेरे कमरे में भेज दीजिये …. आप अच्छे से सो लीजिये ….
मैँ देख लूँगी रिंकी को……
ठीक है भाभी……
खाना खाकर सब सोने चले गये…..
सुबह बहू ललिता ने जल्दी से उठ सबके लिए चाय नाश्ता बनाया……
मधू ने उठकर ब्रश किया…. माँ पापा के साथ चाय नाश्ता करने बैठ गयी……
कुछ सोचकर पिता रंजन जी बोले……
बेटा…. मैँ दामाद जी से बात करूँ ?? आखिर ऐसी क्या बात हो गयी……
नहीं नहीं पापा…. आप कुछ नहीं पूछेंगे ….. अगर आपको और भाई को मेरा यहां रहना पसंद नहीं तो मैँ कहीं किराये पर रह लूँगी बच्चों को लेकर…..
मधू रोने लगी…..
नहीं नहीं दीदी ….. ऐसे मत कहिये …. ये आपका ही घर है …. वो तो पापाजी बस आपकी चिंता करते हैं … ऐसलिये बोल रहे है …..
अब नहीं पूछेगा कोई आपसे …..
ठीक है पापा जी…
बहू ललिता बोली….
हां बहू ठीक है …..
तुम लोगों ने ही सर चढ़ाय़ा है ललिता दीदी को… ऐसलिये छोटी छोटी बातों पर बैग लेकर चली आती हैं …. बातें तो हमारे घर में भी होती हैं पर तुम तो कभी नहीं गयी ऐसे…….
पिंटू चाय की चुस्की लेते हुए बोला…..
मधू गुस्से में चाय छोड़कर दूसरे कमरे में चली गयी……
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तभी मधू के पति घर के दामाद रवि का फ़ोन पिंटू के पास आया….
जीजा जी नमस्ते ….
नमस्ते पिंटू…..
वो मधू बच्चों को लेकर घर ही आयी है ना??
जी जीजा जी…. अबकि बार क्या बात हो गयी जीजा जी???
कुछ नहीं पिंटू….. अभी तक मधू इस घर को, घर के लोगों को अपना ही नहीं पायी है …. इतनी अपना तेरी है इसमे …. माँ ने कुसुम (बहन) को उसकी सहेली की शादी में जाने के लिए मधू के जेवर, साड़ी पहनने को दे दिये तो क्या गुनाह कर दिया….. उसका ससुराल कितनी दूर है …. हम ही मना कर देते हैं उससे कि इतनी दूर से गोल्ड , हेवी साड़ी लाने की ज़रूरत नहीं…. यहां मधू , माँ है उनकी पहन लेना… बेचारी ने मधू से डरते हुए पहना….. और जब उसे पता चला कि उसकी वजह से भाभी घर छोड़कर चली गयी है …. तब से रोये जा रही है ……सब कुछ वैसे का वैसा लाकर रख दिया है अलमारी में उसने….. रात में मीटिंग से आया तो खाना तो दिया नहीं सीधा बोली अभी दीदी को फ़ोन करो …. मुझे अपनी सारी चीज अभी की अभी वापिस चाहिए नहीं तो मैं करती हूँ फ़ोन… हिम्मत कैसे हो गयी उनकी पहनने की…..
मधू ज़िद पर ही अड़ गयी थी पिंटू तो मुझे भी गुस्सा आ गया…. मधू को एक थप्पड़ लगा दिया मैने…. जानता हूँ गलती की मैने भी …. माफी भी मांगी…. पर मधू को तो तू जानता है चली गयी बच्चों को लेकर…. मुझे लगा रात में नहीं जायेगी… थोड़ी देर में हर बार की तरह बाहर बैठकर आ जायेगी……
जीजा जी मैँ जानता हूँ हर बार गलती दीदी की होती है……
आप माफी ना माँगा करे …..
छोटी छोटी बातें तो मैँ बताता नहीं… कभी सुबह की चाय नहीं बनाती…. माँ ही सबको बनाकर देती है …… मधू को भी उसके कमरे में दे जाती हैं ….. खाना भी एहसान की तरह बनाके एक साथ रख देती है …. कभी किसी को हाथ से परोस के नहीं देती…… और भी बहुत कुछ…..
रवि बोले…..
जी जीजाजी मैँ जानता हूँ….. आप लोग बहुत अच्छे है तभी दीदी के इतने नखरे सह लेते है …..
पिंटू बोला….
ठीक है पिंटू मैँ शाम को आता हूँ…… मधू और बच्चों को ले जाऊंगा…. तुम लोग भी इतना परेशान हुए होगे…..
नहीं जीजाजी…. इतनी जल्दी मत आईये दीदी को लेने…. फिर उन्हे अपनी गलती का एहसास नहीं होगा…. अबकि बार दीदी खुद आयेंगी…. आप नहीं आयेंगे…. आपसे रिक्वेस्ट है इतनी बात मान लीजिये मेरी……
अरे नहीं पिंटू….. ऐसे अच्छा नहीं लगता……
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जीजा जी…. एक बार मान लो बात…. अगली बार से नहीं कहूँगा……
दामाद जी … मैँ रंजन बोल रहा…. मान जाओ… शायद कुछ सुधार हो जायें मधू में…..
ससुर जी की बात सुन रवि बोला….
ठीक है पापा जी…. जैसा आप लोग ठीक समझे……
फ़ोन रख दिया…..
हमारे दामाद जी देवता है देवता….. पर मधू को कदर नहीं……
माँ जया जी साग काटते हुए बोली….
जब मधू का गुस्सा शांत हो गया तो किचेन में आयी….
भाभी खाना बन गया….
हां दीदी कबका ……. मैने बच्चों को खिला भी दिया……
तो क्या सबने खा लिया….
हां बस मैँ और माँ जी रह गये है …. आप नहीं खायेंगी तो हम कैसे खा सकते है …. आप सो रही तो सोचा उठ जायें तब एक साथ खा लेंगे…..
ललिता को ब्याह के आयेँ इस घर में अभी एक साल ही हुआ था पर पूरे घर की बागडोर उसने अपने हाथों में ऐसे ले ली थी कि ऐसा लगता था जैसे सालों से इसी घर में रह रही हो……
ललिता की बात सुन मधू सोचने लगी…. मैँ तो ससुराल में कभी सास, ननद का इंतजार नहीं करती कि वो खाये तभी मैँ खाऊँ …..
ललिता ने खाना लगाया…..
इतने पकवान बनाये थे उसने,,,मधू देखती ही रह गयी…..
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भाभी ये सब भरवा चीजें आपने बनायी है ….. ??
हां बेटा…. अब घर में भरवा करेला , मिरच, कुन्द्रू , बैंगन खत्म होने से पहले ही बना देती है ललिता…. पूरा मसाला एक दिन तैयार कर लेती है …. पूरे महीने चलता है …….
जया जी चटकारें लेते हुए बोली….
वाह भाभी…. कितना अच्छा बनाया है सब…. इतनी मेहनत कर लेते हो आप….
दीदी मुझे शौक है हर चीज का…. जब सब लोग मन से खुश होकर मेरे हाथ की बनी चीज खाते है तो सारी मेहनत वसूल हो जाती है …..
रोटी भी कितनी अच्छी बनायी है भाभी… एकदम रुमाली…..
ये तो मैँ भी सीख रही हूँ बहू से…. इतनी मुलायम रोटी तो मुझे भी नहीं आती थी ….
हंसते हुए जया जी बोली…..
मधू ने मन भरकर खाना खाया……
दोपहर को मधू ललिता के कमरे में ही आ गयी….
ललिता अलमारी से कुछ निकाल रही थी …..
भाभी आपके पास बच्चे कहानी सुनते हुए सो भी ज़ाते हैं …. मजाल हैँ घर पर कभी दोपहर को सोये हो….
तभी मधू की नजर अलमारी में सामने टंगी नीले रंग की साड़ी पर गयी……
भाभी ये साड़ी तो दिखाना… बहुत सुन्दर लग रही है ….
ललिता ने साड़ी हैँगर से निकालकर मधू के हाथों में रख दी….
भाभी ये तो देखी नहीं पहले , नयी ली है क्या …. इस पर गुलाबी रंग के फूल कितने प्यारे लग रहे हैं …..
मधू साड़ी को देखते हुए बोली….
दीदी अबकि जब मम्मी के पास गयी थी तब उन्होने ही दी……
दीदी आपको अच्छी लग रही है आप ले लो…. आप पर अच्छी लगेगी…… देखिये कितनी जंच रही है आप पर ….
ललिता साड़ी मधू के कंधो पर डालती हुई बोली…..
अरे नहीं नहीं भाभी…. आपकी साड़ी मैँ कैसे ले सकती हूँ…..
मधू बोली….
क्यूँ आप इस घर की नहीं…. मैँ आपकी भाभी नहीं….
पर भाभी ये तो आपको आपके मायके से मिली है ना ??
मधू बोली….
तो क्या हुआ दीदी…. मैँ तो आपके घर की हूँ…. मुझे मिली हर चीज इस घर की है …. तो आप क्यूँ नहीं ले सकती …. वैसे भी दीदी मैँ सूट ज्यादा पहनती हूँ…… रख लो ना आप…… एक बार भी नहीं पहनी है …. आप अपनी नाप का ब्लाऊज सिलवा लेना……
मधू के मना करने के बाद भी ललिता ने जबरदस्ती वो नीले रंग की साड़ी उसे दे दी….
मधू मन ही मन सोची कि मैँ तो अपने मायके की चीजों पर ऐसे हक ज़माती हूँ कोई उन्हे हाथ ना लगा ले…. एक ललिता भाभी है ऊमर में मुझसे कितनी छोटी है पर कैसे ख़ुशी नयी साड़ी दे दी अपनी……
मधू को मायके में रहते हुए दस दिन होने को आयेँ….. वो ललिता की एक एक हरकत गौर से देखती…. कैसे उसके बच्चों को बहलाकर खाना खिलाती ललिता …… पापा की दवाई, माँ के घुटनो पर तेल लगाना …. भाई के आने से पहले खुद को भी सजा संवार लेना…. कितने भी बजे आयेँ पिंटू उसे एक एक रोटी गर्म गर्म देना….. भाई भी हर दिन कुछ ना कुछ भाभी की पसंद और सबकी पसंद का लेकर आते……
पूरे दिन फुर्ती से काम करती ललिता…… चेहरे पर सिकन भी नहीं होती थी …… माँ पापा भी तो हाथों हाथ लेते है भाभी को…. हर चीज में उनकी राय लेते है … खैर मेरे ससुराल वाले भी तो ऐसे ही है शायद इससे भी अच्छे…. कितने फ़ोन किये सास ने….. पर मधू ने एक बार भी नहीं उठाया…… पर शायद मैँ ललिता भाभी जैसी नहीं……
अब मायका मधू को काटने को दौड़ रहा था … चारों तरफ हंसी ख़ुशी थी पर मधू का मन अकेला था ….
आज मधू पर बर्दाश्त नहीं हुआ….
बोल पड़ी…..
भाई छोड़ आओ मुझे मेरे घर…. नहीं लग रहा मेरा मन यहां……
पर इन्होने तो एक बार भी फ़ोन नहीं किया माँ….
क्या ऐसे जाना ठीक है ??
मधू बोली…
घर के सभी लोग हंस पड़े….
बेटा…. रिश्तों में कोई बड़ा छोटा नहीं होता… चाहे कोई भी पहल कर दे….
माँ जया जी बोली….
लेकिन दीदी यहां भी पहल जीजा जी ने ही पहले की….
पिंटू बोला….
मजाक मत कर पिंटू…. एक बार भी फ़ोन नहीं किया उन्होने…..
जिस दिन आयीं था ना दीदी आप उसी दिन जीजा जी ने माफी मांगी….. और आपको लेने आ रहे थे ??
क्या सच में?? तू झूठ तो नहीं बोल रहा…..
नहीं दीदी…. जीजा जी आपसे ,,बच्चों से बहुत प्यार करते हैं ……
तभी डोर बेल बजी….
ललिता ने दरवाजा खोला…..
सामने मधू के पति रवि खड़े थे ……..
मधू रवि को देख शर्मा गयी….
उनके पास आयी….
जी मुझे माफ कर दीजिये ….. बहुत स्वार्थी हूँ मैँ…. पर अपनी से छोटी भाभी से बहुत कुछ सीख गयी इतने दिनों में… रिश्ते कैसे संभालते है ….
माँ पापा…. माफ कर दो…. अबकि झगड़ा करके रात में नहीं आऊंगी ….
तो दिन में आयेंगी दीदी??
पिंटू बोला…
धत पागल…. अब झगड़ा करूँगी ही नहीं….. अब तो ख़ुशी ख़ुशी प्यार से आया करूंगी ….
ये हुई ना बात बेटा….
रंजन जी बोले….
पापा बीपी ठीक रहेगा अब आपका… जब भी दीदी का फ़ोन आता है तो घबरा ज़ाते हैं ……
मधू गुस्से में पिंटू को देखती है ….
अब बस भी कीजिये ….मेरी दीदी को ज्यादा परेशान मत करिये……
ललिता मधू के गले लग गयी….
ननद भाभी दोनों की आँखों में आंसू थे……
तुम्हारी भी ननद आँखों में आंसू लिए तुम्हे लेने आयी है …..
रवि बोले….
दीदी भी आयी है ??
हां…..बाहर गाड़ी में बैठी है कुसुम…….
मधू भागती हुई अपने बिगड़े हुए रिश्ते संभालने चली गयी…..
कहानी कैसी लगी…. बताईयेगा ज़रूर ……
मौलिक अप्रकाशित
मीनाक्षी सिंह
आगरा
Beautiful story. A heart touching. Salute to writer.
Very nice story.
Bahut hi sunder story hai hraday sparsi
Bahut Sundar man ko bhane bali