सुलक्षणी बहू – शिव कुमारी शुक्ला : Moral Stories in Hindi

माधवी जी का बेटा पढ लिख नौकरी में लग गया था। अब उन्हें उसकी शादी की चिन्ता हुई। सोचने लगी कि पहले का जमाना तो रहा नहीं जो लड़कों के रिश्ते घर बैठे आ जाते थे। छोटी  उम्र  की लड़कियां होती थीं  जो ससुराल में सामंजस्य बैठा ही लेतीं थीं। किन्तु अब परिस्थितियां  भिन्न हैं। अब तो जैसे लड़की के लिए वर खोजना मुश्किल होता था वैसे ही लडके के लिये उचित  लड़की खोजना भी एक समस्या हो गई है। 

माधवी जी अपनी हम उम्र महिलाओं  की हालत देख रहीं थी जिनके बहुएं आ चुकी थीं। सो वे बहुत ही सर्तकता बरत रहीं थीं। वे ऐसी लड़की चाहती थीं जो पढ़ी लिखी समझदार  हो जिसे परिवार की कीमत पता हो पारिवारिक मूल्यों को समझती हो।घर में जो सामंजस्य बिठाकर रह सके। भले ही घर के काम में अधिक  निपुण न हो वह तो समयानुसार आ ही जायेंगे किन्तु स्वभाव नहीं बदला जा सकता ।

आखिर उनकी खोज अक्षिता पर जाकर  रूकी। वह साफ्टवेयर इंजीनियर थी और एक एम एन सी में अच्छे पद पर कार्यरत थी। सुन्दर सुशील  बोलने चालने में भी संयत  सादगी से परिपूर्ण अक्षिता एवं उसका परिवार माधवी जी एवं उनके पति मंयक जी को भा गया। बेटे अरुण एवं बेटी अक्षिता की भी स्वीकृती से रिश्ता पक्का हो गया एवं दो माह में ही अक्षिता माधवी जी के घर बहू बन कर  आ गई ।

चूंकि अक्षिता के माता-पिता भी एक खुले विचारों वाले  परिवार की तलाश में थे जहाँ बहू को बेटी भले ही न समझा जाए किन्तु एक इंसान तो समझा जाए  , जहां वह खुले वातावरण में सांस ले सके। कम से कम एक मुफ्त की नौकरानी तो न समझा 

जाए जो केवल सबकी सेवा करने के लिए लाई गई हो।उसकी अपनी इच्छाओं, आकांक्षाओं का गला घोट दिया जाए। वे भी कई दिनों से रिश्ता तलाश रहे थे तो उपयुक्त रिश्ता मिलते ही  झट शादी कर दी। 

 शादी से पहले ही  अक्षिता ने अपनी शर्त रख दी थी कि वह नौकरी नहीं छोडेगी। जिस मुकाम  पर  वह इतनी मेहनत करके पहुंची है वह छोडना उसके लिए नमुमकिन है। 

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अरुण  एवं उस के माता-पिता को भी उसके नौकरी करने से कोई परेशानी नहींं थी। 

माधवी जी ने खुले मन से बहू का स्वागत किया और आराम से दिन बीतने लगे। वे चार पाँच दिन बाद घूमने चले गये लौटकर आये तो छुट्टियाँ खत्म होने को थीं। अक्षिता एक संस्कारी, समझदार लड़की थी वह माधवी जी के मना करने पर भी कि अभी तो तेरी हाथों की मेहन्दी भी नहीं उतरी है बाद में काम करना, 

नहीं मानती और उन्हें पूरा सहयोग करती। एक सप्ताह बाद दोनों ने ऑफिस जाना शुरू कर दिया। अब अक्षिता ने जल्दी उठकर अपना और अरुण का टिफिन तैयार किया एवं मम्मी-पापा का नाश्ता बना कर रख दिया चाय बना कर सबको आवाज दी। सबने चाय पी और वे दोनों अपने-अपने ऑफिस  रवाना हो गए।

माधवी जी ने  किचन में जाकर देखा कि नाश्ता तैयार है, दोपहर के खाने के लिए आटा भी लगा दिया, सूखी  सब्जी भी कढ़ाही में रखी है। यह देखकर उनका  मन भर आया। इतना सब करने के लिए यह बच्ची कितनी जल्दी उठी होगी। कितनी शांति से काम किया

कि  बिल्कुल खटपट  की आवाज भी नहीं आई। क्या  ये इतना  काम करके अपने मायके में भी जाती होगी नहीं उसके  मन में  ससुराल का भय है जो निकालना होगा नहीं तो रोज-रोज नींद पूरी न होने से बीमार न पड़ जाए कहीं।

शाम को दोनों के बापस  आने  पर पर्स रख वह बोली मम्मी जी मैं अभी चाय बनाकर लाती हूँ। 

अभी मेरे पास बैठ चाय तैयार है थक गई होगी ।

हां मम्मी जी चाय पीकर थोडा आराम करती हूं फिर रात का खाना बनाती हूं। क्या तुमने अपनी मम्मी जी को इतना 

बूढ़ा समझ लिया है कि में खाना  भी नहीं बना  सकती ।अभी तुम्हारे आने से पहले में पूरा घर सम्हाल रही थी क्या मैं दो माह में ही  इतनी लाचार हो गई कि सारे काम  का  बोझ तुम्हारे कन्धों पर डालकर  काम से सन्यास ले लूं ।

नहीं मम्मी जी मेरा वो मतलब नहीं था। 

तो क्या मतलब था ,क्यों सुबह इतनी जल्दी उठकर इतना काम करने की क्या जरूरत थी। थोडा देर से उठ कर दोनों मिलकर कर लेते। क्या मायके में भी इतना काम करके जाती थी। तुम्हारे मन में जो ससुराल का ,सास का, भय है वह मन से निकाल दे बेटा इसे अपना ही घर समझ आराम से रह ।रोज-रोज इतनी जल्दी उठोगी तो नींद कैसे पूर होगी बीमार नहीं पड जाओगी। 

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मम्मी जी, मम्मी एवं मेरी सहेलियां  कहती थीं कि ससुराल में काम करना पड़ता है. नहीं तो सास नाराज हो जाती हैं सो में इसीलिए यह सब करके गई। नहीं तो आपको बुरा लगता कि मैं बिना कुछ करे ऑफिस चली गई। भोलेपन से कही उसकी बात सुनकर माधवी जी ने प्यार से उसे अपने से चिपकाते हुए

कहा ऐसा  कुछ भी नहीं है बेटा तू चैन से साँस ले। अपन दोनों मिल बाँटकर काम कर लेंगे।मन में  किसी तरह का भय मत रख।अब हमें हमेशा साथ रहना है कोई  एक दो दिन की बात तो हैं नहीं। असल में शादी के कारण उसने पहले  से ही अपना  ट्रान्सफर पूना की कम्पनी में करवा लिया था।घर का वातावरण भी नया था, कार्य स्थल का भी नया था सो वह अपने को पूर्णतया एडजस्ट नहीं कर पा रही थी।

अब वह सुबह जितना संभव होता माधवी जी मदद करके जाती। शाम को आने पर भी पूरा सहयोग करती।उसके मस्त मौला 

अंदाज एवं सबकी जरुरतों का ध्यान रखना एवं सबको सहयोग करना,इन गुणों के कारण वह सबकी चहेती बन गई ।

 परिवार में पूरी तरह घुल मिल गई । माधवी जी अपनी हम उम्र महिलाओ से अपनी बहू  की तारीफ करते नही थकतीं।

तभी माधवी जी की एक दिन अचानक तबीयत खराब हो गई। तेज बुखार था। अक्षिता ने तुरंत  उन्हें  दवा दी  और आराम करने को कहा। अरुण और मंयक जी काम पर निकल  गये थे सो उसने अपनी नैतिक  जिम्मेदारी समझते हुए तुरन्त फोन कर अवकाश लिया। घर में अकेला छोड़ कर कैसे जाती। पाँच दिन  तक अवकाश लेकर पूरे मन से घर को सम्हाला एवं माधवी जी की सेवा की।

 उसने कहा मम्मी जी शाम को पूरा खाना बनता है आप अकेले  बनाते हो मुझे अच्छा नहीं लगता। शाम के लिए  कुक 

लगा लेते हैं आपको भी आराम मिलेगा।

परिवार में सबको यह विचार सही लगा और एक कुक का इंतजाम  हो गया। 

समयान्तराल   उसे एक  बेटा हुआ। छः माह तक तो प्रसूति अवकाश  पर रही किन्तु उसके बाद माधवी जी पर पूरी जिम्मेदारी  आ गई ।वे बच्चे को सम्हालने में थक जातीं। कहती तो कुछ नहीं  किन्तु थकान उनके चेहरे पर दिखाई देती। अब उसने एक आया रखने का  प्रस्ताव सबके समक्ष रखा। पापा जी हम  कमाते किसके लिए हैं , मम्मी जी अकेली कनु के साथ 

परेशान हो जातीं हैं क्यों नहीं हम एक आया की व्यवस्था कर लें। मम्मी जी की देखरेख में  वह बच्चे  को सम्हाल लेगी और मम्मी जी भी थोडा आराम से रहेंगी।

 सबने एक मत से उसका प्रस्ताव मान  लिया और आया  की  व्यवस्था कुछ ही दिनों में हो गई।

 अक्षिता को माधवी जी की इतनी चिन्ता

करते देख पापा एवं अरूण दोनों ही मन ही मन खुश होते। उनके घर में कभी भी चिल्लाहट ,जोर-जोर से बोलने की आवाजें नहीं आतीं। माधवी जी तो आपनी बहू की अपने प्रति चिन्ता एवं उसकी समझदारी से भाव विभोर रहतीं।

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वे  अपने भाग्य को सरहातीं  कि हम लोग बहुत भाग्यशाली हैं जो हमें इतनी समझदार बहू मिली।

उनकी सहेलियां  भी मधवी जी को छेड़तीं कि ऐसी क्या जादू की छडी घुमाई तुमने बहू पर कि वह इतने प्रेम से तुम्हारे साथ रहती है। यह सुन कर माधवी जी की खुशीभरी जोरदार खिलखिलाहट  वाताबरण में गूंज जाती और कहती बड़ों का आर्शीवाद एवं पिछले पुण्यकर्मों का ही फल है कि ऐसी सुलच्क्षणी बहू मिली।

शिव कुमारी शुक्ला

1-9-24

स्व रचित मौलिक एवं अप्रकाशित

वाक्य प्रतियोगिता****हम भाग्यशाली हैं जो ऐसी समझदार बहू मिली

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