मु — न्ना,जल्दी आ रे देख तो तेरे बाबूजी को क्या हो गया है?जल्दी आ रे।
मम्मी क्या हुआ बाबूजी को?अरे ये तो बेहोश लग रहे हैं।मैं इन्हें अभी हॉस्पिटल लेकर चलता हूँ।मम्मी तुम चिंता न करो,मेरे बाबूजी को कुछ नही होगा।
राम शरण जी ने अपने बेटे शोभित को बड़े अरमानों से पाला था,वे उसे अब जवान होने पर भी मुन्ना ही बुलाते थे।शोभित को बुरा नही लगता था।उसे भी मुन्ना सुनने से प्यार की गंध महसूस होती थी।रामशरण जी एवम उनकी पत्नी सरोज की बहुत इच्छा थी कि उनके यहां एक बेटी भी आ जाये,पर ईश्वर ने नही सुनी,बस मुन्ना ही अकेला रह गया।दोनो ने ही इसी पर संतोष कर लिया और मुन्ना की संस्कारित परवरिश पर ही ध्यान केंद्रित कर लिया।मुन्ना ने भी उन्हें निराश नही किया।सौम्यता का प्रतीक रहा मुन्ना।
पढ़ाई पूरी होते ही मुन्ना की एक बड़ी कंपनी में जॉब भी लग गया। जॉब लगने पर रामशरण जी ने मुन्ना की शादी शुभ्रा से कर दी।मुन्ना अपने माता पिता को अपने साथ ही शहर लिवा कर ले गया। रामशरण जी ने ना नुकर की,शहर में मन न लगने का तर्क भी दिया,पर मुन्ना ने एक न सुनी,बोला पापा साफ सुन लो,आप कुछ भी कहो मैं आपको तथा मम्मी को यहां अकेले बिल्कुल भी नही छोडूंगा,साथ ही लेकर जाऊंगा।उसकी बात सुन रामशरण जी को मन ही मन अत्यधिक प्रसन्नता हुई,उनका मुन्ना उनसे कितना प्यार करता है।
शुरू शुरू में शहर में फ्लैट की जिंदगी उन्हें रास नही आयी, उन्हें घुटन सी महसूस होती,कहाँ उनका कितना खुला खुला घर था,स्वच्छंद जीवन था,यहां कबूतर से दड़बे में आकर सिमट गये। मुन्ना अपने पिता की मनःस्थिति को समझ रहा था,पर वह उन्हें अकेले कस्बे में छोड़ना नही चाहता था,यही कारण था कि ऑफिस से आने के बाद वह अपने बाबूजी के पास जरूर बैठता था,इससे रामशरण जी को बड़ा सुकून मिलता था।मुन्ना ने अपने पापा को समझाया पापा आप नीचे क्लब में जाया करो ना,वहां और भी सीनियर सिटीजन साथ बैठते हैं, उनसे दोस्ती कर लोगे तो मन भी लगेगा और आपका समय भी व्यतीत होगा।पर राम शरण जी संकोच वश जाते ही नही थे।
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एक दिन मुन्ना खुद ही पापा को क्लब में ले गया,वहां उस समय 6-7 सिनियर सिटीजनस बैठे थे,उनके पास जाकर मुन्ना ने अपने पिता का परिचय करा दिया।मुन्ना अपने बाबूजी को वही छोड़कर वापस आ गया।रामशरण जी का इस प्रकार अनजान हमउम्र व्यक्तियों के साथ बैठने का पहला अवसर था,पर उन्हें अच्छा लगा।अब वे नियमित रूप से क्लब में अपने नये नये बने सखाओं के पास स्वयं ही जाकर बैठने लगे।परस्पर हर तरह की बाते होती एक दो घंटे कब बीत जाते पता ही नही चलता।अब धीरे धीरे रामशरण जी इस नये वातावरण के अभ्यस्त होते जा रहे थे।
मुन्ना का नया नया जॉब था,इस कारण उसे अपने को प्रूव करना था,सो वह कम्पनी में काफी समय दे रहा था।सुबह जल्दी जाना और देर से आना उसका लगभग क्रम हो गया था।मुन्ना के लिये अपनी पत्नी और माता पिता को अलग अलग समय निकालना कठिन होता जा रहा था।छुट्टियों में जरूर वह पापा, मम्मी और पत्नी शुभ्रा को बाहर घुमाने ले जाता था।
समय की कमी के कारण अब उसका बाहर लेकर जाना अनियमित हो गया।ऐसे ही डेढ़ वर्ष बीत गया।एक दिन रामशरण जी अपनी पत्नी से बोले सरोज लग रहा है अपना मुन्ना बदल गया है,देखो पहले कितनी कितनी बार हमारे पास बैठता था,और अब?अब तो कई कई दिन उसे देखे हो जाते हैं। अरे नही जी अपना मुन्ना बिल्कुल खरा है जी,जब उसके पास टैम ही नही है तो वह क्या करे?आप बिना वजह फालतू मत सोचा करो।पत्नी की दो टूक सुन रामशरण जी चुप हो गये।
उस दिन रात को रामशरण जी ने अपनी पत्नी को कहा सरोज मेरा दिल घबरा रहा है,दर्द भी हो रहा है, लगता है हार्ट अटैक है।कहते कहते रामशरण जी ने आंखे बंद कर ली।सरोज जी एक दम घबरा गयी और चिल्ला कर मुन्ना को आवाज लगा दी।
मुन्ना अपनी गाड़ी में अपने पापा और मम्मी को लेकर तुरंत ही पास के अच्छे नरसिंग होम में ले गया।डॉक्टर अपने काम मे जुट गये, ईसीजी, इको आदि सब कर डाले,हार्ट अटैक का मामला नही था,सबने राहत की सांस ली,फिरभी मुन्ना ने डॉक्टर्स से कहा कि आप मेरे पापा की बॉडी के सब टेस्ट कर ले,जिससे कोई भी बीमारी हो तो पता चल जाये।तीन दिन लगे,मुन्ना रात दिन पापा के पास ही हॉस्पिटल में रहा, उसने ऑफिस से छुट्टियां ले ली थी।तीन दिन बाद जब सब मेडिकल रिपोर्ट आ गयी और पता चला कि सब सही है तब मुन्ना अपने पापा को घर वापस लाया।
घर आकर रामशरण जी सोच रहे थे,उन्होंने नाहक ही बीमारी का नाटक किया,मुन्ना बदला नही है,वह तो उनका ही है।वे ही सटीया गये है।भला अपने ही बेटे को कोई ऐसे परखता है क्या?उन्हें अपने पे शर्मिंदगी हो रही थी,यही कारण था उन्होंने इस नाटक के बारे में अपनी पत्नी को भी कुछ नही बताया।उनपर अपराध भाव हावी होता जा रहा था,
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फिर एक झटके में उन्होंने यह सोचकर अपने मन को तस्सली दी कि यदि वे ऐसा नही करते तो उन्हें कैसे पता चलता कि उनके मुन्ना के मन मे उनके प्रति कितना असीम प्यार भरा पड़ा है।सोचते सोचते उन्हें अपने द्वारा रचे खेल को सोच कर ही हंसी आ गयी।अकेले में उन्हें हंसते देख सरोज जी बोली क्यों जी क्या याद आ गया जो अकेले अकेले हंस रहे हो?अरे कुछ नही भागवान इस उम्र में एक तजुर्बा और मिल गया, जिससे ये समझ लो सरोज हमारा बुढापा सुधर गया।
बालेश्वर गुप्ता,नोयडा
मौलिक एवं अप्रकाशित
*# कभी कभी सेवा कराने के लिये बीमारी का दिखावा करना होता है* वाक्य पर आधारित कहानी: