सुखना – रूद्र प्रकाश मिश्र

बिल्कुल अपनी नाम के मुताबिक था वो । सूखी सी देह , अंदर की ओर धँसी हुई आँखें , बाहर निकला हुआ पेट और सूखे हाथ – पाँव । यही कोई बारह या पंद्रह वर्ष के आस – पास उम्र होगी उसकी ।

          उसको आज सुबह से ही पास वाले गाँव के जमींदार के यहाँ बेगारी पर रखा गया था । सुबह ही जमींदार के बेटे ने कड़कते हुए कहा था – देख ले सुखना , आज शाम तक घर के पिछवाड़े का जँगल साफ़ हो जाना चाहिये । उसने चुपचाप हामी में सिर हिला दिया और काम में लग गया ।

          आखिर उसने शाम होते – होते लगभग सारे जँगली घास और पौधे साफ़ कर दिये थे । जमींदार के नौकर ने उसे आवाज देकर कहा – आ जाओ , साँझ हो गई है अब । वो चुपचाप गरदन झुकाए आकर खड़ा हो गया । वहीं पास में जमींदार का पोता दूध पी रहा था , उसने एक बार ललचायी निगाहों से उसकी तरफ देखा । आखिर बच्चा ही था वो ,, उसपर भी पूरे दिन का थका और भूखा । जमींदार की औरत ने डाँटते हुए पूछा – इधर क्या देख रहा है ? वो चुपचाप गरदन झुका कर दूसरी तरफ घूम गया । जमींदार की औरत ने नौकर को आवाज लगाते हुए कहा – सुबह की कुछ रोटियाँ बची हैं , दे दो इसको ।


               सुखना बड़े उमँग के साथ दी हुई रोटियों को मैले से गमछे में बाँध रहा था । उसने आज कुछ जंगली कंद और सब्जियाँ चुपचाप छुपाकर रखा था कि आज रात के खाने का इंतजाम हो जाएगा घर में ।

तभी जमींदार के बेटे की नजर उनपर पड़ गई , बोला – उधर क्या बाँधा है गमछे में , दिखा इधर , चोरी करता है । सुखना ने निरीह सी आवाज में कहा – कुछ नहीं है मालिक , जँगली कंद हैं , आपलोग इसको नहीं खाते हैं ,  घर ले जाने के लिये रखा है । मगर शायद उसका ये जबाब देना जमींदार के बेटे को नागवार गुजरा । अगले ही पल सुखना के मुँह पर एक जोरदार थप्पड़ पड़ा । वह दूसरी तरफ गिर पड़ा और उसका गमछा उसके हाथ से छिटककर दूर जा गिरा ।

         जमींदार के बेटे ने नौकर को आवाज लगाते हुए कहा – उठाकर फेंक दो इसका गमछा । चोर कहीं का । सुखना ने बहुत निरीह सी नजरों से जमींदार के बेटे की तरफ देखा , मानो कह रहा हो –  दे दीजिये मालिक , पूरे घर के लिये आज के रात का खाना है ये ।

                    जमींदार के नौकर ने मालिक की आज्ञा का पालन किया । अगले ही पल सुखना के हाथ से गमछे को लेकर दूर फेंक दिया गया ।

          सुखना चुपचाप अपने घर की तरफ जा रहा था । खाली हाथ , गरदन झुकाए , बेबस , लाचार , थके – माँदे कदमों के साथ ।

       रूद्र प्रकाश मिश्र

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