भव्य हवेलीनुमा आवास,दर्जनों नौकर चाकरों से लकदक हर कोना, रईसी शानो शौकत से आच्छादित पांच मंजिली इमारत के एक विशाल वातानुकूलित कक्ष में आदमकद आईने के सामने बैठी नम्रता खुद को निहार रही थी,परख रही थी ,आत्ममुग्ध थी।
वर्षों की अटूट अनवरत लगन मेहनत और संघर्ष के बल बूते आज वह सफलता और वैभव के इस अभूतपूर्व मुकाम पर पहुंच पाई थी
नाम दाम शोहरत अकूत था उसके पास।शहर की अपराजेय नामचीन महिला वकील का खिताब उसके नाम था।
आज उसकी बेटी का चयन भी वकालत के लिए हुआ था।नम्रता आज बेहद गर्व महसूस कर रही थी।अपने नाम यश और अथाह धन का पूरा लाभ वह अपनी इकलौती बेटी आली के नाम करने को प्रतिबद्ध थी।आज तक ऐसा कोई मुकदमा नहीं आया जो वह हारी हो। असफलता और हार क्या है यह उसने कभी जाना ही नहीं था।शादी के बाद जब उसके पुत्री आली हुई तभी से उसने उसे ही अपना उत्तराधिकारी निश्चित कर दिया था।
आज बेसब्री से इंतजार कर रही थी वह आली का जिसके साथ उसे कोर्ट जाना था।आज आली का पहला दिन था सबसे परिचय करवाना था उसके पैर जमाने के लिए जमीन तो उसे ही तैयार करनी थी। आखिर मां थी वह वो भी इतनी नामचीन मां।गर्वोन्वत थी वह आज स्वयं के ऊपर।
बहुत देर हो गई आली नहीं आई।नम्रता ने बेसब्र हो उसे फोन किया हेलो हेलो आली……
कई बार लगाने पर आली ने फोन उठाया “मां आप मेरा इंतजार मत करिए मुझे वकालत नहीं करनी है मुझे आपकी छत्रछाया में दब कर नहीं रहना मैं जहां भी हूं खुश हूं ।आप मेरी जरा भी फिक्र ना करें….और फोन काट दिया था।
आली… सुन तो मेरी बात नम्रता पागल सी उसे बार बार फोन लगाती रह गई थी लेकिन उसके बाद फोन लगा ही नहीं ..!
ये लड़की पागल हो गई है।उस लफंगे संदीप ने इसका दिमाग खराब कर दिया है हजार बार मना किया धमकी दिलाई संदीप से संबंध खत्म करने की पर हाय री किस्मत!!
पर वह भी हिम्मत हारने वाली नहीं थी।तुरंत ड्राइवर को बुलाया और गाड़ी लेकर संदीप के घर पहुंच गई।बहुत देर तक डोर बैल बजाते रहने पर भी जब कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तब उसने ध्यान दिया कि दरवाजा इंटरलॉक्ड था।मतलब घर में कोई नहीं था।
बदहवास नम्रता गाड़ी लेकर आली और संदीप के दोस्तों के घर और कॉलेज के चक्कर लगाती रही लेकिन उसकी बेटी का कोई समाचार नहीं मिला।
शाम तक नम्रता की हालत खराब हो गई थी और पूरे शहर के कानों में जोरो से हल्ला मच गया था कि नामचीन वकील नम्रता की बेटी गायब ।घर से भाग गई। बेटी अगुवा कर ली गई। वकील साहिबा की बेटी चढ़ी गुंडागर्दी की भेंट।… नहीं बचा पाई अपनी बेटी को..!सभी समाचारपत्र इस घटना को बढ़ा चढ़ा कर हेडलाइंस बना रहे थे।
नम्रता की वर्षों की प्रतिष्ठा की धूनी जलने लगी थी जिसमें सारी धन दौलत के साथ इज्जत का होम हो रहा था। दौलत के अंबार के नीचे दबे पड़े थे न्याय और इंसानियत… जिन्हें उसने अपने हाथों से ही तो दबाया था।
…उसी ढहते हुए अंबार के नीचे से उभर रहा था एक बेबस गरीब महिला का चेहरा .. जो बरसो पहले नम्रता के घर नंगे पांव बेहाल दौड़ते हुए आई थी और विशाल आवास के दरवाजे पर खड़े चुस्त वर्दीधारी गार्ड को दरकिनार करती सीधी नम्रता के पास पहुंच गई थी..
“…….मैडम जी मेरी बेटी का केस आप ही लीजिए बचा लीजिए वरना वह मर जाएगी। ये गुंडे उसके पीछे पड़े थे वह जहां भी जाती थी तंग करने आ जाते थे हिम्मत की थी मैने और मेरी बेटी ने और पुलिस में रिपोर्ट कर दी।
पुलिस को बताने पर भी कुछ फर्क नहीं पड़ा था।ये गुंडे लड़के रईसजादे हैं मुंहमांगी रकम दे पुलिस को खरीद लिया।पुलिस में रिपोर्ट करने के बाद से ये चारों मेरी बेटी से बदला लेने पर उतारू हो रहे थे और दो दिन पहले जब वह कॉलेज से लौट रही थी तब उसे अगुवा कर ले गए और मुंह दिखाने लायक स्थिति में नहीं छोड़ा।
बिचारी मेरी बेटी बेबस चिल्लाती रही पर उन चारों को दया नहीं आई।आप सबसे बड़ी वकील है इस सहर की और एक औरत भी हैं मै बड़ी आस लेकर आपके पास आई हूं आप मेरे लिए भगवान का रूप है आप मेरी बेटी को इंसाफ दिलवाइए और उन चारों को मौत की सजा..!! हाँफ गई थी एक सांस में बोलकर वह औरत जो एक युवा बेटी की मां थी जिसका दिल अपनी कोखजाई बेटी की तार तार दशा से टुकड़े टुकड़े हो गया था।
बिलखती हुई उस दीन हीन मां और उसकी लुटी पिटी मासूम बेटी का चेहरा आज साफ तौर पर याद आरहा था नम्रता को।
उस दिन जब तक नम्रता उसको कोई जवाब देती उन गुंडे लड़कों के रहनुमा शहर के सबसे बड़े प्रतिष्ठित राय साहेब का बुलावा आ गया था उसके पास ।बड़ी लंबी सी कीमती कार उसे लेने आ गई थी।मजलूम मां को हताश छोड़ वह दौलत की नगरी में समा गई थी।मुंहमांगी दौलत के साथ वह कीमती कार भी तोहफे में मिल गई थी उसे लड़कों की जान बचाने की पेशगी के तौर पर।
दौलत के दलदल में गर्दन तक धंसी नम्रता ने मुकदमे के दौरान उस दिन स्त्री के स्त्रीत्व को सरे बाजार नीलाम कर दिया था।झूठी बयानबाजी,गवाहों को तोड़ मरोड़,भ्रष्ट तरीके,कुटिल पैतरेबाजी सब कुछ करने में नम्रता ने ऐडी चोटी का जोर लगा दिया था और हमेशा की तरह वह मुकदमा जीत गई थी।
चारों लड़के बेइज्जत होने के बजाय बाइज्जत रिहा होकर विद्रूप अट्टहास कर रहे थे ।मासूम लड़की बाइज्जत होने के बजाय कुलटा ,लड़कों को फंसाने वाली जालसाज,गिरी हरकतें करनेवाली साबित की जा चुकी थी जिसे सजा सुनाई जा चुकी थी।जिसकी झुकी हुई गर्दन भी हाथों की हथकड़ी की जकड़न से मानो झुककर खतम हो चुकी थी।
तभी उस लड़की की बदहवास मां नम्रता की गाड़ी के पास आकर गर्जन कर उठी थी”…. तू एक स्त्री नहीं है ।तूने एक मां होकर भी दूसरी मां के दिल का दर्द नहीं समझा ।तू एक मां ही नहीं है।बेटी तो मां की आत्मा होती है देख लेना #मेरी आत्मा को तकलीफ देकर तू भी कभी सुखी नहीं रह पाएगी।तेरी बेटी भी तेरी आत्मा को तकलीफ पहुंचाएगी। ये दौलत जिसकी चमक ने तुझे अंधा कर दिया है तुझे सुखी नहीं कर पाएगी।तूने इंसानियत को कुचल कर साबित कर दिया है कि तू एक सच्ची वकील भी नहीं है।
सचमुच में ….आज उस महिला का वाक्य सही साबित हो रहा था।
संदीप एक गुंडा ही है जिसने आली को अपने जाल में फंसा लिया था।संदीप आली के कॉलेज में ही पढ़ता था उसके साथ बेटी की बढ़ती मित्रता नम्रता का खून खौला देती थी।लेकिन जितना ही वह बेटी को संदीप से दूर रहने की समझाइश देती डांटती धमकाती उतनाही बेटी आली संदीप के मोहकर्षण में और उलझ जाती थी जिसका दुष्परिणाम आज सामने था।
थक हार कर नम्रता ने पुलिस में रिपोर्ट करने की सोची तभी एक धमकी भरा कॉल उसके पास आ गया अगर पुलिस में रिपोर्ट की तो तुम्हारी बेटी जीवित नहीं मिलेगी।साथ ही फिरौती की भारी रकम की मांग भी आ गई थी उसके पास।नम्रता के तो हाथ पांव फूल गए थे।आज उसकी दौलत ही उसका काल बन गई थी।आज वह सिर्फ एक मां ही बन गई थी ।वकील प्रतिष्ठा सब भूल गई थी वह। अपनी बेटी सही सलामत मिल जाए बस यही करुण पुकार लगा रही थी।
हे ईश्वर मेरी बेटी सही सलामत वापिस कर दो मैं उस मासूम निरपराध लड़की का केस फिर से खुलवाऊंगी और लड़की को न्याय दिलवाकर उन गुंडे लड़कों को मौत की सजा दिलवाऊंगी ताकि इस तरह की घटना दुबारा किसी लड़की के साथ ना हो…!!
तभी थाने से फोन आया मैडम आप तत्काल थाने आ जाइए क्या आपकी लड़की गायब हो गई थी।
अधीर होकर वह थाने पहुंची तो वहां आली संदीप के साथ बैठी हुई थी देख कर नम्रता की सांस में सांस आई लेकिन संदीप को देख कर वह आपे से बाहर भी होने लगी।
मैडम मुझे माफ कर दीजिए ।मेरी कोई गलती नहीं है ये सब आली की ही योजना थी ।क्योंकि उसे वकील बनने की बिल्कुल इच्छा नहीं थी लेकिन आपके डर से वह कुछ कह नहीं पाती थी।इसीलिए आज उसने ज्वाइन नहीं करने के लिए यह रास्ता निकाला।मैने बहुत समझाया बुझाया आपके नाम और आत्मा दुखने का वास्ता दिया तब कही जाकर यह मानी है तो मैं सीधा पुलिस थाने आ गया मुझे लगा आपने रिपोर्ट तो की ही होगी।वो धमकी भरा कॉल भी इसने करवाया था पूछ लीजिए इससे संदीप हाथ जोड़े सिर झुकाए कहे जा रहा था और नम्रता दौड़ कर आली को कलेजे से लगा ईश्वर को धन्यवाद दे रही थी।
जैसे मेरी आत्मा को आज सुख की अनुभूति हुई मानो मेरी जिंदगी लौट आई हो वैसे ही अब मुझे सारी शक्ति लगाकर उस बेटी की मां की आत्मा को भी सुखी करने की राह निकालनी होगी।ये दौलत ये प्रसिद्धि सिर्फ नाम के हैं इनसे आत्मा की शांति नहीं हो सकती।ईश्वर ने मुझे गलती सुधारने का मौका दिया है सही राह दिखाई है ….अपनी बेटी को कलेजे से लगाए जीजान लगा कर न्याय दिलवाने को कृतसंकल्पित हो उठी थी नम्रता।
लेखिका : लतिका श्रीवास्तव
#मेरी आत्मा को तकलीफ देकर तू कभी सूखी नहीं रह सकती है