सुखद बदलाव : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  :   जिन्दगी भी कैसे कैसे रंग दिखाती है… विधाता के पिटारे में विसंगतियों की घुमावदार गलियों से भटकना ही नहीं पड़ता बल्कि मर्मस्पर्शी भावनाएं  भी आहत होती है.

   जीवन के उबड़-खाबड़ रास्ते,कच्ची उम्र , किसी अज्ञात आशंका से कांपता हृदय… वह तड़प उठी..

    ज्यादा से ज्यादा यही न कि वे जान से मार डालेंगे … तो मार डालें..इस जिल्लत भरी जिंदगी से बेहतर है इस जीवन का अंत ही कर दिया जाये.. दिन-रात मार-कुटा‌ई ,लात-बात, सुखी रोटियों के भी लाले , उठते-बैठते ताने…, धरती फट जाए और मैं उसमें समा जाऊं .. इतनी बड़ी दुनिया में कहीं भी सिर छुपाने की जगह नहीं…  ..कलेजा ऐंठने लगा …अब सहा नहीं जाता , आंखें सावन भादों बन ग‌ई …आंसू ढलते रहे.

   शैली दिवाल से टेक कर खड़ी हो ग‌ई … ढलकते आंसुओं को पोंछने के लिये दुपट्टे का छोर खींचा.…चर्र के आवाज से उसके दो टुकड़े हो गये … सड़े-गले दुपट्टे… के  दो टुकड़े  …उतरन आखिर पुरानी ही होती है.

    नहीं … अब वह नहीं सहेगी ..हर चीज की एक सीमा होती है … आजतक वह मार-डांट की परवाह नहीं करती थी … लेकिन अब हद हो गई …. कितनी बेशर्म है वह …पीठ पर लात  पड़ते हैं और वह सूखी रोटी चबाती रहती है … जीने के लिए …पता नहीं वह जीकर क्या करेगी … किसके लिए जी रही है ।

     “आज अभी इस जीवन का अंत कर देती हूं … परन्तु कैसे? आग लगाकर … मिट्टी का तेल डाल माचिस लगा लूं…”

   धू-धू कर उसे अपना शरीर जलता प्रतीत हुआ .. कितनी पीड़ा होगी … सम्भावित कष्ट को याद कर उसके मुंह से शी-शी निकल पड़ा ….

  प्रिया भाभी को जलते देखा था मैंने .. कितना  चीख रही थीं वे… उनकी हृदय विदारक चीखें उसे आजतक याद है ..उन चीखों की याद उसे आज भी चैन नहीं लेने देती …सांझ के सन्नाटे में वे चीत्कार उसे आज भी सुनाई देती है …उस आवाज को दबाने के लिए वह जोर-जोर से बर्तन मांजने लगती है…या दौड़कर फाटक पर खड़ी हो जाती है.. गोधूलि वेला में लौटती गौओं के  गले की घंटी की रूनझून में अपने कानों में आती भयानक चीखों से छुटकारा पाने के  लिए..

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    “कहां मर गई ..”मामी की खीझ उस समय शैली को बेहद सुकून पहुंचाता है … क्योंकि मामी की ऊंची आवाज में  प्रिया भाभी की  चीखें थोड़ी देर के लिए दब जाती है…प्रिया मामी के बेटे की पहली पत्नी थी। वह गरीब घर से थी। दान-दहेज के लिए मामी पति के प्रताड़ना से तंग आकर आग लगा जल मरी थी। शैली के कोमल हृदय पर इस घटना का अत्यंत प्रभाव पडा़ था। मामी ने अपने सुपुत्र का दूसरा विवाह किया…. दूसरी बहू निर्लज्ज मुंहफट थी। बात-बात पर सास-ससुर पति को दुर्व्यवहार पर जेल भेजने की धमकी देती। 

  परिणाम उनके सामने मामी भींगी बिल्ली बनी रहती और सारा क्रोध शैली पर निकालती। 

       “जी मामी ….” शैली की दयनीयता मामी को बढ़ावा देती है..

“तुम दौड़-दौड़ कर काम छोड़ फाटक पर क्या करने जाती हो… तुम्हारा लक्षण देख रही हूं …नाक कटवायेगी यह लड़की..” 

    शैली को सिर झुकाए देख मामी झल्ला उठीं ,”अब खड़े-खड़े  मेरा मुंह निहारोगी या  नाश्ता पानी का इंतजाम करोगी… काम पर से आकर मेरे पति और बेटे क्या खायेंगे… तुम्हारा कलेजा …”

  शैली भारी मन से चौके की ओर चली …जी में आया कह दे..” पति और बेटे जब आपके हैं तब मेरा कलेजा क्यों खायेंगे .. खिलाना है तो खिलाईये अपनी नखरीली बहू बेटी का कलेजा … उससे बात न बने .. उन्हें अपना कलेजा खिलाईये .. बड़ी मजबूत है…”

किन्तु चुप ही रही … अगर एक शब्द भी मुंह से निकला  ..उसका परिणाम उसे मालूम है …चील की तरह मामी का झपट्टा ….बाप रे ..तीन दिनों तक हाड़ दुखता रहता है..

   वह चुपचाप रसोई में लग ग‌ई.. हाथ चल रहा था किन्तु कानों में रह-रहकर प्रिया भाभी की चीखें ….शाम के समय इस रसोई में आते उसे बड़ा भय लगता है … बर्तन बासन ,दाल-मसालों के डिब्बे में उसे प्रिया भाभी की शकल नजर आने लगती है। मामी की रिश्ते की बहन आई हैं… अपने बेटे के लिये लड़की देखने। अब एक और मुसीबत… शैली भीतर से कांप उठी। 

    मामी की  बहन एक दो दिन व्यस्त रहीं। उन्हें बेटे के लिए लड़की पसंद नहीं आई।

     उनका स्वभाव मामी के बिल्कुल विपरीत था। वे शैली से भी बहुत प्यार से बातें करती। साथ  खाने के लिए बोलती, “आओ तुम भी हमारे साथ… सिर्फ काम ही करती  हो या अपने लिए भी सोचती हो। “

    शैली से पहले मामी चीख पड़ी, “जाकर अपना काम देखो… दीदी तुम भी  …इसे सिर छुपाने की जगह दी है… यही बहुत है। “

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सुहागन – अनुज सारस्वत

     शैली वहाँ से खिसक गई। मामी के बहन का संवेदनशील हृदय द्रवित हो उठा, “सब कोई अपने भाग्य का खाता है… यह अनाथ लड़की सारे घर का काम करती है… तुमलोगों की फटकार सुनती है… तुम्हारी  बेटी बहू सब उसी के बल पर तिनका नहीं  खिसकाती… कुछ ईश्वर से भी डरो …इस अबला का हाय मत लो !”

     मामी ने उल्टी पट्टी अपनी बहन को समझाना शुरु कर दिया। दूसरे दिन वे चली गई। पता नहीं क्यों जब उन्होंने अकेले में  शैली के सिर पर हाथ रखकर कहा, “घबड़ाना नहीं  …सब ठीक हो जायेगा । “शैली के आंखों में आंसू आ गये। 

    अगले ही सप्ताह मामी की बहन अपने पति और बेटे के साथ आये। शैली वैसे ही पुराने कपड़े  उदास चेहरे लिए उनके आवभगत में लगी रही। 

 और …मामी की बहन ने अपने बेटे के लिए शैली का हाथ मांग लिया। अचानक आये इस प्रस्ताव से  मामी और उनका पूरा परिवार बौखला उठा। 

  “ऐसे कैसे… इस कंगली को अपना बहू बना लोगी । “

   “खबरदार जो शैली को एक शब्द भी उल्टा सीधा बोला तो… अब शैली मेरी बहू बनेगी …तुम्हें मंजूर है  शैली… मेरा बेटा अच्छा कमाता है चरित्रवान है  …हम पति-पत्नी हैं  सिर्फ  …मुझे ऐसी ही  सुशील  संस्कारी बहू चाहिये”!

    सभी सकते में आ गये। एक मुफ्त की नौकरानी हाथ से जो निकली जा रही थी। शैली के लिए  इतना सम्मान जनकरिश्ता…सभी की आंखें फटी की फटी रह गई। 

  शैली ने उनके आंखों में अपने लिये सम्मान प्यार देख  … सिर झुका दिया। 

    कोर्ट मैरेज कर शैली अपने पति के साथ ससुराल चली गई। नारकीय जीवन से मुक्ति मिली। उसके जीवन में  सुखद बदलाव आया। उसके आँसू खुशियों में  तबदील हो गए।

 सर्वाधिकार सुरक्षित मौलिक रचना -डाॅ उर्मिला सिन्हा ©®

साप्ताहिक विषय— #आँसू

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