“इस धूप छांव से जीवन में,
होने लगे कैसे कैसे व्यापार प्रभु
अर्थी भी अपनी पसंद करो अब,
और साजो सज्जा का सामान भी…
मर के देख ना पाया जो कुछ अभी तक,
अब जीते जी देख परख कर जाओ सब”
जीवन की संध्या बेला में, जब परिवार के बड़े – बुजुर्गो की एक ही ख्वाहिश होती है की इस समय उनके बच्चे उनकी सेवा करे, बेटे – बहुएं, पोते – पोतिया सब के साथ वो अपना अंतिम वक्त हंसी खुशी से गुजार सके।…
पर अभी कुछ समय से बदलती परिस्थितियों और बदलते वक्त के कारण ये सब जैसे बहुत ही असाधारण हो गया है…. हमारा भारत देश जो अपनी संस्कृति और सेवा भाव के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है, आज दिल्ली के प्रसिद्ध अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेले में एक जगह जाकर मैं जैसे जड़वत हो गई,…क्या हमारे बुजुर्ग और अकेले रहने वाले वरिष्ठ नागरिकों को असुरक्षा की भावना ने इतना जकड़ लिया है की इस तरह की कंपनियां खोलने की नौबत आ गई?
क्या सचमुच हम अपने संस्कार खो चुके है?…..और क्या आने वाले समय को देखते हुए ये व्यापार सही है?….
सवालों और जवाबों के बीच झूलती हुई में कोई जवाब ना ढूंढ पाई…अब आप सब को में रूबरू कराती हूं एक ऐसे नए व्यापार के बारे में जो आपको सोचने पर मजबूर कर देगा।……
एक नई कंपनी बनी है, जो अंतिम क्रिया करवाएगी..
जिसकी फीस 37500/ हैं, ये फीस भरकर आप सदस्यता ले सकते है, जिसमे आपको निम्न सुविधाएं दी जाएंगी..
अर्थी(आपकी खुद की पसंद की गई)
पंडित और नाई, कांधा देने वाले, साथ में चलने वाले और राम नाम सत्य बोलने वाले, सब उसी कम्पनी के होंगे…
अस्थियां विसर्जन भी वही करवाएगी….यानी मरने के बाद भी आपको अपने लिए क्या क्या करवाना है, कैसे करवाना है और कहा करवाना है, ये सब आप पहले से ही तय कर सकते है…
अब आप इसे New start up ही समझ लो, जो अब तक 50 लाख प्रॉफिट तो कमा ही चुकी है और आने वाले समय में बढ़ने की ही संभावना है।….सुनकर दिमाग ही हिल गया एक बार तो, ये है अब नए भारत की नई संस्कृति….
क्योंकि ऐसा लगता है जैसे इस कंपनी को पता है कि भारत में अब रिश्ते निभाने का समय किसी के पास(ना बेटे के पास, ना भाई के पास) नहीं रहा है।… माना जीवन में कभी गम की धूप और कभी खुशी की छाव होती है, परिवार को प्राथमिकता देने वाले हम भारतवासी क्या अब ऐसी बेहूदा कंपनियों के भरोसे अपने खून के रिश्तों की बलि दे देंगे?….. ऐसा क्या कारण रहा होगा जो इस तरह की कंपनी को भारत देश में आना और व्यापार करना सरल लगा….माना कुछ आपसी मतभेदों और काम की वजह से परिवारों का विघटन हो रहा है , परंतु इतना भी नही की अंतिम समय को लेकर जीते जी इतनी असुरक्षा हो की ऐसी कंपनियों के भरोसे रहना पड़े, या इनकी जरूरत पड़े…
कंपनी की माने तो वो अब तक 5000 अंतिम संस्कार करवा चुकी है… जिससे ये तो पता चल गया की लोग कितने अकेले होते जा रहे है, जोकि बहुत परेशान करने वाला जवाब था।…..
अब तक मय्यत के सामान की दुकान तो देखी थी, पर मय्यत के सामान की प्रदर्शनी में स्टाल पहली बार देख रही थी।….मन बहुत परेशान हो चुका था, बहुत बुरा भी लग रहा था की आधुनकिता की अंधी दौड़ और एक दूसरे से आगे निकलने ही होड़ में हम अपनी आने वालीं पीढ़ियों और अपने बच्चो को क्या सीख देकर जायेंगे…..
आप सभी पाठकों से निवेदन है कि अपने बड़े बुजुर्गों को अपने साथ रखें, अगर मजबूरीवश उनसे दूर रहना पड़ रहा है तो उनसे जल्दी जल्दी मिलते रहे और उन्हें अहसास कराएं की आप हमेशा उनके पास, उनके साथ है,उन्हे अकेलापन महसूस ना होने दे….प्यार और सम्मान दे ताकि इस तरह की कंपनियों को भारत से अपना बोरिया बिस्तरा उठा कर भागना पड़े….
इस संवेदनशील विषय पर कोई कहानी ना लिख कर आप सभी के साथ ज्यों का त्यों सांझा किया है…सभी की प्रतिक्रियाओं और सुझावों का सादर स्वागत है…
धन्यवाद
#कभी धूप, कभी छांव
कविता भड़ाना…