सुख-दुःख – वीणा सिंह : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi:  अपना शहर और पारस हॉस्पिटल को  छोड़ना डॉक्टर वरुण और  डॉक्टर विदुषी दोनों को बहुत दुखी कर दिया था.. पर पापा का व्यवहार उफ्फ.. कोई पिता ऐसा भी हो सकता है…

                                      दोस्त के सहयोग से दो कमरों का एक मकान जिसमे लगभग सत्तर साल से ऊपर के वृद्ध दंपति  जो मकान मालिक थे, उपर रहते थे.. पहली बार दोनो से मिलकर अच्छा लगा..

                  नया शहर नया बिस्तर विदुषी को नींद नही आ रही थी.. अतीत में पहुंच गई.. पापा प्राइमरी स्कूल के टीचर, मां गृहणी एक छोटी बहन एक छोटा भाई और दादी.. पैसे कम थे पर खुशियां सुख संतुष्टि और आपस में प्यार भरपूर था..

                  विदुषी शुरू से हीं मेघावी छात्रा थी.. मेडिकल में उसका  चयन कोई आश्चर्य की बात नहीं थी..

                    वरुण को दूसरे सेमेस्टर से उसने नोटिस करना शुरू किया.. कम बोलने वाला अंतरमुखी स्वभाव का वरुण उसे अच्छा लगता था.. धीरे धीरे वरुण से उसकी दोस्ती प्यार में बदल गई.. वरुण के पापा उच्च प्रशासनिक अधिकारी थे.. ट्रांसफर और स्टेट्स के कारण उसे बचपन में हीं मसूरी के बोर्डिंग स्कूल में डाल दिया गया..

                    वरुण स्कूल में हीं था तभी उसकी मम्मी की मृत्यु हो गई थी..

                    पढ़ाई खतम होते हीं हमने शादी का फैसला कर लिया था.. मेरे घर में सभी को वरुण बहुत पसंद था.. मेरी मम्मी का कहना था अब तुम दोनो अपने पापा के साथ रहो और वहीं प्रैक्टिस करो.. रिटायर हो गए हैं इस साल.. उनका अकेलापन भी दूर हो जाएगा..

                     और हम शादी करके पापा के बड़े से बंगले में आ गए.. पारस हॉस्पिटल ज्वाइन कर लिया.. पापा हमारी शादी में भी शामिल नहीं हो पाए क्योंकि अचानक से उन्हे सिंगापुर जाना पड़ गया.. बीस दिन बाद वापस आए.. चेहरे पर कोई भाव नहीं..

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                         मैं और विदुषी प्लानिंग कर रहे थे बंगले के बगल वाले खाली जमीन पर धीरे धीरे अपना हॉस्पिटल बना लेंगे पर…

                 पापा से जब इस विषय पर बात की तो बोले एक सप्ताह के अंदर ये घर छोड़कर चले जाओ वरना प्रशासन का सहारा भी लेना पड़ा तो…

                   हम दोनो हक्के बक्के रह गए.. शाम को वरुण के बहुत कहने पर हम मंदिर गए वहां सोहन काका मिल गए.. मां के समय वो हमारे यहां थे.. उन्होंने हीं बताया मालिक को कई औरतों से संबंध थे, और बहुत ही कड़क रूखे और  बददिमाग  स्वभाव के थे.. और बहुत ऊंची पहुंच थी उनकी..इसलिए आपको मेमसाब के विरोध के बाद भी हॉस्टल में डाल दिया था..मेम साब को घुटन से दिल का दौरा पड़ा और वो..

              अगले दिन पापा बंगला रेंट पर लगा पूना के किसी ओल्ड एज होम में चले गए.. वहां फाइव स्टार होटल जैसी सुविधा इनको मिली थी.. पैसे की कमी नहीं थी.. बहुत घुस भी कमाए थे..

          हम दोनो अपने शहर में रहते किराए का मकान लेकर पर लोग पूछ बैठते पापा वृद्धाश्रम क्यों चले गए.. कितने लोगों को जवाब देते…

                             अरे सुबह के सात बज गए कौन घंटी बजा रहा है.. अरे आप इतनी सुबह.. हाथ में चाय का ट्रे लिए मकान मालकिन खड़ी थी.. आप क्यों परेशान हुई.. अरे बेटा परेशानी कैसी.. नाश्ता बना रही हूं दोनो फ्रेश होकर आ जाना.. और परेशान तो अब हम दोनो करेंगे क्योंकि बुढ़ापा अपने आप में एक रोग है.. तुम दोनो डॉक्टर हो..हंसती हुई चली गई..

         रविवार होने के कारण कल से हमारी ज्वाइनिंग थी.. नाश्ता करने हम दोनो नीचे पहुंचे..

           दोनो पति पत्नी के चेहरे खिल उठे.. बातचीत करने पर पता चला अंकल जी जेएनयू में इंग्लिश के प्रोफेसर थे.. पर इतने दूर आकर घर बना लिया उत्सुकता थी.. सोचा कभी पूछूंगी..

           तीन महीने हो चुके थे.. अंकल जी और आंटी जी हमे मम्मी पापा की कमी महसूस नही होने देते.. हम दोनो भी उन्हें खूब प्यार और सम्मान देते..

             मदर्स डे पर वरुण केक मिठाई आंटी के लिए साड़ी और अंकल के लिए कुर्ता पायजामा लाए.. दोनो रोने लगे.. हमे महसूस हुआ कोई गहरा दुःख उन्हें अंदर हीं अंदर खोखला कर रहा है..

                हम दोनो उनको सहज करने के लिए अपनी कहानी बताई..

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            फिर आंटी से कहा वरुण को बेटा कहती हैं तो फिर कह दीजिए अपना सारा दुःख मन हल्का हो जायेगा..

           आंटी ने कहना शुरू किया संजय शर्मा जेएनयू में इंग्लिश के प्रोफेसर मां सरस्वती का वरदान था इनपर.. मैं भी बैंक में नौकरी करती थी पर मयंक की परवरिश करने के लिए नौकरी छोड़ दिया.. मयंक बचपन से हीं जीनियस स्टूडेंट था.. डीपीएस आरके पुरम से पढ़ाई खतम कर आईआईटी कानपुर में इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग की पढ़ाई की..

         कैंपस सिलेक्शन हो गया और पढ़ाई खतम कर यूएसए चला गया..

                 दो साल बाद अपनी कंपनी की हीं एक विदेशी ग्रीन कार्ड होल्डर लड़की से शादी कर ली.. हमारे सारे अरमान धरे के धरे रह गए..

                  शर्मा जी को डेंगू हो गया था.. और मार्था मां बनने वाली थी.. मयंक मेरा टिकट भेज दिया था.. एक और पति दूसरी ओर बेटे का मोह.. इन्होंने जबरदस्ती भेज दिया.. जाओ अमेरिका घूम लेना..

                 मार्था को ट्विन बच्चे हुए.. तीन महीने रही.. पर बेटा मां को नहीं कामवाली को बुलाया था ऐसा उन दोनो के व्यवहार से लग रहा था.. ना कहीं घुमाने ले गया ना हीं कभी मेरे पास बैठता मां कैसी हो.. आंटी के आंखों से आसुओं को अनवरत धारा बह रही थी..

            शर्मा जी को मैने फोन पर बोला की मन नहीं लग रहा तो इन्होंने टिकट बना कर भेजा..

                गांव का जमीन बेचकर हम ग्रेटर कैलाश में डुप्लेक्स ले चुके थे..

             इनकी पहली पोस्टिंग रांची में हुई थी, साथ में काम करने वाले प्रोफेसर एक जगह सस्ती जमीन मिल रही थी तो ले रहे थे.. पांच कट्ठा इनको भी दिलवा दिया.. मैने अपनी सोने की चूड़ियां और चैन भी बेच दिया था पैसा घटने पर…

                  शर्मा जी को कई बड़े बड़े शिक्षण संस्थान से जगह जगह से लेक्चर के लिए बुलाया जाता था.. बहुत इज्जत और नाम था.. ये ट्रॉफी और पुरस्कार देख रहे हो बेटा..

                        शर्मा जी रिटायर हो गए.. अच्छा खासा पीएफ का पैसा मिला.. पैसे की कोई कमी नही थी पर अब बेटा बहु और बच्चे की कमी बहुत महसूस होती थी.. उसी साल मयंक आया दोनो बच्चों और मार्था के साथ.. घर में जैसे बहार आ गई हो.. दो महीने की छुट्टी थी.. एक रात मयंक ने कहा पापा मम्मी आपलोग इस बार हमारे साथ यूएसए चल रहे हैं.. मुझे हमेशा ये अपराध बोध सालता रहता है.. इतना किया है मेरे लिए पर आपलोगो को इस उम्र में अकेला रहना पड़ रहा है.. दो तीन दिन तक कनविंस करता रहा. बच्चों का वास्ता दिया.. हमदोनो बेटे की ममता में बह गए.. बेटा यूएसए से हीं डुप्लेक्स का सौदा कर लिया था, बस हमारे सिग्नेचर की जरूरत थी..

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                   बच्चों के साथ रहने की खुशी थी तो अपना घर शहर सब कुछ हमेशा के लिए छूट जाने का गम भी था..

                 बच्चों के स्कूल खुल जाने और मार्था की छुट्टी खत्म हो जाने के कारण वो लोग एक सप्ताह पहले हीं चले गए थे.. मयंक का टिकट हमारे साथ था..

      और वो दिन भी आ गया जब हम अपने देश को सदा के लिए अलविदा कह यूएसए जा रहे थे.. एयरपोर्ट पर पहुंचने के बाद मयंक अंदर चला गया हमे बैठा कर और कहा आ रहा हूं.. बैठे बैठे दो घंटा बीत गया.. मयंक का फोन स्विच ऑफ आ रहा था.. एक स्टाफ से पूछा फ्लाइट के विषय में उसने कहा बहुत पहले जा चुकी है… हमारे पैरों के नीचे से जैसे जमीन खिसक गई हो..

                   जैसे तैसे एयरपोर्ट से अपने घर आए और उसके मालिक से कुछ दिन रहने की मोहलत मांगी.. उसने पंद्रह दिन की मोहलत दी.. पेंशन पंद्रह दिन के बाद मिला तो हम दोनो यहां आ गए.. दिल्ली में वो पंद्रह दिन हम दोनो घर से बाहर नहीं निकले क्योंकि सबको पता था हम अमेरिका चले गए..उनके यहां मेरे जाने के पहले मेरा विदाई समारोह भी हुआ था..

                        यहां इनके साथियों ने बहुत सहयोग किया.. दो कट्ठा जमीन बेचकर जो पैसे आए इन लोगों के सहयोग से ये घर बनाया.. पेंशन के पैसे काफी है हमारे लिए पर थोड़ा अकेलापन दूर हो इसलिए नीचे  का दो कमरा किराए पर दे दिया..

                   मुहल्ले वाले बहुत अच्छे हैं.. हमारे सुख दुःख में अपनो की तरह साथ देते हैं.. पर ये घाव जो नासूर बन चुका है शर्मा जी को हृदय रोगी बना दिया है और मुझे हाई बीपी और हाइपर टेंशन का मरीज.. कभी कभी जी भर कर बाथरूम का नल खोलकर रो लेती हूं.. अपने संतान से मिला धोखा इंसान को न जीने देता है न मरने.. आंटी और अंकल दोनो रो रहे थे..

वरुण की आंखों से भी आंसू बह रहे थे.. वरुण दोनों को अपनी बाहों में लेकर कहा आज से मैं आपका बेटा.. मुझे भी मां की कमी महसूस नही होगी और जो प्यार दुलार अपने पापा से नही मिला आपसे चाहिए.. मैं भींगी आंखों से सुख और दुःख दोनो को देख रही थी महसूस कर रही थी.. आंटी ने मुझे भी खिंचकर गले से लगा लिया.. मेरी बहु बेटी सब तुम हो.. बूढ़ी आंखों में प्यार स्नेह आशीर्वाद सुरक्षा अधिकार और खुशी के मिले जुले भाव दिख रहे थे.. दुःख दूर बहुत दूर मुंह छुपाए चला जा रहा था.. सुख की तेज रोशनी में उसका अस्तित्व समाप्त हो चुका था..

    #सुख दुख #

   # स्वलिखित सर्वाधिकार सुरक्षित #

        Veena singh

 

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