Moral stories in hindi: सुख और दुःख के अपने-अपने फायदे नुकसान हैं. दुःख न हो तो इन्सान सुख का महत्त्व न समझ पाए और सुख न हो तो हम दुःख से उबरने का प्रयास न करें, आशा न रखें. सब कुछ बस यन्त्रवत चलता रहे अगर जीवन में सुख-दुःख न आते रहे. इतना कह के आंटी कुछ सोचने लगी.
कुछ याद करने लगीं हो शायद. वैसे भी वो अक्सर कहीं खो जाती थी. कभी कुछ कहतीं कुछ भूल जाती थी. आंटी मुझे पार्क में मिलती थीं अपनी हाउस मेड के साथ. हाउस मेड साउथ इंडियन थी तो उसे हिंदी या इंग्लिश नहीं आती थी. इसलिए वो केवल मुस्कुरा भर देती थी, वो भी कभी-कभी.
इधर कुछ दिनों से ऑफिस का काम ज्यादा होने की वजह से मेरा पार्क जाना नहीं हो पा रहा था. आज भी सुबह हड़बड़ी में घर से निकली ही थी कि गेट पर आंटी की मेड मिल गयी. मैंने आंटी के बारे में पूछा तो उसने जो भी कहा समझ नहीं पायी, हाँ पर इतना जान गयी कि आंटी ठीक नहीं हैं.
फिर मैं ऑफिस चली गयी, सोचा आज शाम को आंटी के घर जाके उनका हालचाल पूछूँगी. शाम को उदित, मेरे पति, भी जल्दी आ गए तो वो भी मेरे साथ हो लिए. आंटी का पता गार्ड से पूछकर हम उनके फ्लैट के सामने पहुंचे. बेल बजाने पर एक व्यक्ति आये और हमारे आने का प्रयोजन पूछा. ज़ब हमने बताया कि आंटी से मिलने आये हैं तो वो हमें आंटी के पास ले गए. वो सच में बीमार थी और हफ्ते दस दिन में ही वो काफ़ी कमजोर भी हो गयी थी.
अंकल मेरे हाव भाव देखकर समझ गए और बताया कि आंटी को दरअसल डिमेंशिया है और धीरे-धीरे वो सब भूलती जा रही है. अब तो उनको ये भी याद नहीं कि उनके दो बच्चे और पति हैं. कभी-कभी कुछ याद आता है पर थोड़ा बहुत. बस बीच-बीच में किसी मधु को याद करती हैं, पर ये मधु कौन है पता नहीं.
इस कहानी को भी पढ़ें:
अंकल ने आगे बताया कि शादी के बाद अंकल आंटी पर बहुत शक करते थे, बहुत पाबंदियाँ लगाते थे क्यूंकि आंटी बहुत खूबसूरत थी बिल्कुल बैजयंती माला जैसी दिखती थी और अंकल उनके समकक्ष कुछ भी नहीं थे, बैंक में मैनेजर थे तो शादी हो गयी. फिर दो बेटे हो गए और उनको पालने-पोसने में आंटी ने खुद को समर्पित कर दिया.
वो वैसे तो बिल्कुल सामान्य रहती पर जब भी मायके जाती और आतीं बहुत खुश होती थी. मायके का मोह ही ऐसा होता है. व्यस्तताओं के कारण धीरे-धीरे जाना कम हुआ और फिर एकदम बंद तो आंटी अपने में सिकुड़ने लगीं थी. बस जब मन होता डायरी में कुछ लिखने बैठ जाती थी.
फिर पता नहीं कब इस बीमारी ने आ घेरा और वो भूलने लगी. शुरुआत में सबको लगा लापरवाह हो गयी है उम्र के साथ-साथ. बच्चे भी बाहर सेटल हो गए और अंकल भी रिटायर हो गए तो आंटी के साथ समय बिताने लगे. एक दिन करवाचौथ था तो अंकल ने शादी वाली साड़ी आंटी को पहनानी चाही और वार्डरोब से साड़ी निकालने गए.
वहाँ उन्हें 2 डायरी मिली. उन्होंने सोचा लाओ देखूँ क्या लिखती है और डायरी पढ़ने लगे. एक डायरी ग्रे कलर की थी और एक पिंक. पिंक वाली डायरी के ऊपर हैप्पी वाली स्माइली लगी थी. उन्होंने ग्रे वाली पढ़ी तो उसमे केवल अंकल के साथ कहासुनी और लड़ाईयों का ज़िक्र था. मतलब जब वो दुःखी होतीं तब इस डायरी में लिखती थीं.
वहीं पिंक में किसी मधु नाम के व्यक्ति का ज़िक्र था जिसके साथ वो अपनी खुशियाँ अपने सुख साझा करती थीं. मधु उनके मायके में पडोसी थे और दोनों के पापा रेलवे में थे. इसलिए दोनों साथ के घरों में रहते थे, रेलवे कॉलोनी में. हालांकि ये भी ज़िक्र था कि आंटी का प्यार एकतरफा था, मधु की तरफ से ऐसी कोई बात नहीं थी. आंटी ने उन्हें अपने जेहन में बसा रखा था और अब बीमार रहने के बाद वो उनका ही नाम लिया करती थी, अंकल याद नहीं थे.
अंकल ने आगे बताया कि आंटी वाराणसी के पास मुग़लसराय स्टेशन की रेलवे कॉलोनी में रहा करती थी. इतना सुनते ही मेरा माथा ठनका और कुछ देर और बातें करने के बाद हम घर वापस आ गए. आते ही मैंने पापा को सारी बात बताई और उनको मेरे पास आने के लिए बोला. अगले दिन उनके आते ही हम आंटी अंकल से मिलने गए. संयोग से अंकल घर पर ही मिल गए.
अंकल से औपचारिक बातें करने के बाद पापा आंटी से मिले. आंटी को जब उन्होंने बताया कि वो ही उनके मधु यानि मधुकर मिश्रा हैं तो आंटी की आंखें पापा के चेहरे पर टिक गयीं. पापा उनका हाथ पकडे इधर उधर की बातें करते रहे. अनगिनत हावभाव उनके चेहरे पर आ रहे थे. उनकी आंखें कभी चमकती, कभी बुझ जाती, पर जो भी हो उन्हें पापा का होना अच्छा लग रहा था.
मैं, उदित और अंकल इन दोनों को देख कर कभी खुश हो रहे थे, कभी दुःखी. अंकल कह रहे थे कि काश! उन्हें सच पहले पता चल गया होता तो शायद आंटी की ये स्थिति न होती और हम सोच रहे थे कि इस बीमारी के बाद भी पापा याद थे! सच कितना अमूल्य भाव है ये प्रेम! सुख-दुःख दोनों का एहसास कराता है.
स्वरचित
पूजा गीत
Pyar jab dil ki gahraiyon mein se hota hai.To bo karnewale ke dil aur dimag mein anantgahraiyon mein rahta hai yahi pyar amar hota hai.Baki pyar mein to hawas hoti hai.