मैं घर के सामने बरामदे में बैठकर पेपर पढ़. रहा था कि मेरा पोता जो तीन साल का था मुँह फुलाकर मेरे पास आकर कहने लगा कि दादाजी आपका घर अच्छा नहीं हैं। उसे देखकर मुझे हँसी आई उसे अपने पास बुलाकर पूछा क्यों अच्छा नहीं हैं? इट्स टू हॉट । उससे मजाक करते हुए मैंने कहा कि यह तुम्हारा घर नहीं है उसने कहा कि नहीं यह मेरा घर नहीं है। अच्छा तो तुम्हारा घर कहाँ है। मेरा घर यू एस से में है। वहाँ का घर गरम नहीं होता है। नहीं दादा जी कूल होता है। आप भी हमारे घर चलिए ना। उसी समय आरव मेरे पोते की माँ बहू अपने कमरे से बाहर आकर बेटे को लेकर कमरे में चली गई।
मेरे दो बच्चों हैं अजय औैर अनिता दोनों ही इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करके एम एस करने के लिए अमेरिका चले गए थे। उनकी पढ़ाई पूरी होते ही वहीं नौकरी करते हुए बस गए आई वहीं पर शादियाँ भी कर ली थी। साल में एक बार आकर एक महीना रहकर चले जाते हैं। अनीता दिसंबर में आती है तो अजय मई में जाता है। यह महीने हम पति पत्नी के लिए त्योहार से भी ज्यादा खुशी देता है। बाकी के समय हम दोनों ही एक दूसरे के लिए हैं।
जब मेरी शादी हुई थी तब पिताजी सिंगल बेडरूम के किराए के मकान में रहते थे। हम दोनों को कमरा देकर वे दोनों हॉल में सोते थे। मैंने एक दिन पिताजी से कहा कि पापा हम किसी भी तरह से दो कमरों वाला घर किराए पर लेते हैं। उन्होंने कहा कि मैं रिटायर हो जाऊँगा तो पैसे आएँगे उससे घर ही खरीद लेते हैं।
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पिताजी के रिटायर होने के बाद जो भी पैसे आए थे उसमें मैंने अपने जमा किए हुए थोडे और पैसे डालकर शहर से बाहर सस्ते में आ रही एक जमीन खरीदकर उस पर दो कमरों वाला घर बनाया था। उस समय तक हमारे दोनों बच्चे भी पैदा हो गए थे। घर देखकर दोनों बहुत खुश हो गए और अपने कमरे में अपना सामान जमाने लगे।
पिताजी मां को लेकर फिर से हॉल में आ गए तो मैंने उन दोनों को समझा बुझाकर कमरे में भेजा और खुद पत्नी के साथ हॉल में सोने लगा। मेरी पत्नी सुमित्रा मुझसे कहती थी कि ऊपर एक कमरा डलवा देंगे अच्छा रहेगा। हमेशा कोई न कोई समस्या सामने आही जाती थी । वह कहती थी कि आपके साथ काम करने वाले सब लोगों में दो तीन मंजिलों का घर बना ही लिया हैं जो बिना रिश्वत लिए इमानदारी से जी रहे हैं ।
मुझे मालूम हैं कभी कभी ईष्र्या के चलते वह ऐसा बोलती हैं पर उसे भी रिश्वत लेना पसंद नहीं है। माँ इस घर से खुश नहीं थीं हमेशा कोसती थी कि पुराना घर अच्छा था मंदिर नजदीक था तो मेरा समय कट जाता था यहाँ मेरा दिल नहीं लगता हैं। पिताजी कहते थे कि जीवन सुख दुख का संगम होता है
तुम्हें अपनी खुशी खुद ढूँढऩे की कोशिश करनी चाहिए यहाँ घर पर भी पूजा पाठ कर सकती हो पुस्तकें पढ़ सकती हो कौन मना करेगा मंदिर जाने से ही खुशी मिलेगी ऐसा नहीं हैं ना तब से मां ने घर पर ही अपनी खुशियाँ ढूँढ तो थी। कुछ ही सालों में बच्चे बाहर पढ़ने चले गए माँ पिताजी एक साल के अंतराल में हमें छोड़कर चले गए थे। सुमित्रा अभी भी बीच में मुझे याद दिलाती हैं कि ऊपर एक कमरा बनवा देते हैं ना।
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सुमित्रा ने मेरे कंधे पर हाथ रखकर कहा कहाँ खो गए हैं। मैं अपने विचारों से बाहर आया और देखा कि वह हाथ में चाय का प्याला लेकर खडी है। हम दोनों चाय साथ में बैठकर बातें करते हुए पीते हैं। हम कभी कभी तो बातों में इतना खो जाते हैं कि खाना खाने का समय हो जाता था और खाना बन नहीं पाता था तब हम बाहर जाकर खा लेते थे या करी पाइंट से सब्जी लाकर चावल बना लेते थे। सुमित्रा ने फिर से मुझे बुलाया कहाँ खो गए हैं। उसने चाय पीते समय बताया था कि अजय वापस जाना चाहता है। इतनी जल्दी अभी तो उसे आए हुए ज्यादा दिन नहीं हुए हैं ना । जी आप सही कह रहे हैं परंतु उनका कहना है कि इस साल गर्मियi बहुत हो रहीं हैं तो रह नहीं पा रहे हैं। मैंने जोर से कहा कौन? मुझे गुस्सा आया और अभी मैं कुछ कहता इसके पहले अजय कमरे से बाहर आया और कहने लगा था कि जी पापा यहाँ गरमी बहुत हैं इसलिए दोनों बच्चे नहीं रह सक रहे हैं।
मैंने थोडी ऊँची आवाज में कहा कि कमरे में एसी तो लगवा दिया हैं ना। एक रूम में हैं तो हो जाएगा क्या उसी कमरे में घुसे नहीं रह सकते हैं ना। ठीक हैं हॉल में भी एक ए सी लगवा दूँ क्या?
क्या है पापा यहाँ लो ओल्टेज है जिसके कारण बेडरूम की ए सी ही ठीक से नहीं चलती है। पुराना घर हैं लो ओल्टेज मैं मन ही मन दोहरा रहा था कि सुमित्रा ने कहा कि वह गलत क्या कह रहा है। पत्नी की बातों में गूढ़ अर्थ था। वे दोनों वहाँ से चले गए थे । मैंने अपने आँखों को बंद किया और कुर्सी पर सर रखकर बैठ गया था। बच्चों की शादी के बाद सुमित्रा ने ऊपर कमरा बनवाने की बात कहना छोड़कर कहने लगी थी कि कम से कम सफेदी करा लेते हैं। उसे भी मालूम है कि मुझे बच्चों से जितना प्यार है उससे ज्यादा प्यार इस घर से है। मैं इस घर में अपनी जिंदगी के पैंतीस साल मैंने गुजारे हैं।
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सुमित्रा ने अजय को समझाया था या बेटे बहू ने ही कुछ तय किया है मुझे मालूम नहीं है पर दूसरे दिन सुबह बेटा बहू मेरे पास आए बेटा कहने लगा कि हम लोग गर्मी खत्म होते तक किसी होटेल में रह लेंगे यह आपकी बहू कह रही है कहते हुए सर झुकाए खड़ा रहा। जब मैंने कुछ नहीं कहा तो वे दोनों कमरे में चले गए थे।
सुमित्रा ने कहा कि देखिए वे लोग अच्छे हैं इसलिए होटेल में रहने की बात कह रहे हैं वहीं कोई और होते तो अब तक अपना सामान लेकर फुर्र हो जाते थे। मैं सोच में डूब गया था कि सही हैं अजय मेरा बेटा है उसे बचपन से दुख सहने की आदत है पर उसके बच्चों को यह सब सहने के लिए कहना गलत है। अब मैं क्या करूँ? सुमित्रा से कहा कि अब वह होटेल में रहते जाएगा तो सब लोग हँसेंगे I
सुमित्रा ने कहा कि लोग कौन हैं? आप ही तो कहते हैं कि हम अपने लिए जी रहे हैं कि ना दूसरों के लिए फिर आप उनके बारे में क्यों सोच रहे हैं कहते हुए मेरी सीख मुझे ही सिखा दिया। मैंने सुमित्रा से कहा कि एक दिन उन लोगों जो एडजेस्ट होने के लिए कहो?
सुमित्रा हँसते हुए कहने लगी कि एक दिन में गर्मी खत्म हो जाएगी कहकर किसी ज्योतिष ने आपकों बताया है क्या? मैं उसक़े प्रश्नों का उत्तर देने के मूड में नहीं था। वहां से उठकर चप्पल पहना कि थोडा घूमकर आता हूँ अचानक मेरे मन में एक उपाय आया।
दो दिन बाद पोता कहा रहा था। दादा जी घर बहुत ठंडा हैं उसने कान में नहीं जोर से कहा पीछे से अजय भी आकर कहने लगा सच में पिताजी घर बहुत ठंडा है। मैंने हँसते हुए सुमित्रा की तरफ देखा यही सोच पहले होती तो कितना अच्छा होता था कह रही थी। मुझे भी लग रहा था कि यह तो मैं पहले भी कर सकता था।
हुआ यह कि छत पर मैंने मिट्टी से दो कमरे बनवाए छत पर सीलिंग नहीं बल्कि टाट से ढंक वाया था। टाट के ऊपर पानी डालने रहने से और छत पर कमरे बनवाने के कारण नीचे का पूरा घर ठंडा हो गया था। उसका खर्चा भी मुझे बीस हजार ही हुआ था ए सी से भी कम खर्चा हुआ था। बेटा परिवार के साथ होटेल जाने की बात को भुला दिया था। मैंने हँसकर कहा कि सुमित्रा तुम्हारी ख्वाहिश भी पूरी हो गई है। पास ही किसी के घर से गाने की आवाज आ रही भी दुख भरे दिन बीते रे भय्या अब सुख आयोरे ।
के. कामेश्वरी