Moral stories in hindi: दादू दादू…… दादी दादी…. कहां है आप सब, मुझे यह आवाज सुनकर ऐसा लग रहा था मानों जैसे मैं सपना देख रही हूं, झट मैंने कुणाल के बापू से पूछा, क्या आपको भी किसी बच्चे की आवाज आ रही है ।
कुणाल के बापू हां मालती आवाज तो आ रही है , चलो बाहर चल कर देखते हैं ।
सामने 5 सालों बाद जब मैंने अपनी पोती और पोते को देखा, वह छन मेरे लिए, किसी तीज त्योहार से कम नहीं था।
कुणाल के बापू – अरे बच्चों आओ आओ अरे कुणाल अचानक ना कोई खत ना कोई फोन….
कुणाल कुछ कहता, झट कुणाल की पत्नी मोनिका हां हां पापा जी बच्चों का मन था , इसीलिए हम लोग अचानक आपसे मिलने के लिए आए हैं ।
मैं अपने बच्चों को अपने पास देखकर, बहुत खुश थी परंतु कुणाल के पापा को देखकर ऐसा लग रहा था मानो किसी सोच में पड़ गए हैं ।
मैं तुरंत मोनिका से बोली मोनिका बच्चों को और सामान अंदर ले जाओ ।
मोनिका- जी माँ जी मैं अभी करवाती हूं ड्राइवर सामान अंदर ले आओ और टाइगर को भी ले आओ ।
कुणाल के बापू -यह टाइगर कौन है….?
कुणाल- पापा मैं और मोनिका दोनों जॉब करते हैं, इसीलिए घर की देखभाल करने के लिए टाइगर को रख रखा है ।
मोनिका – पापा जी ये है टाइगर
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कुणाल के बापू झट खड़े होकर यह तो कुत्ता है ।
मोनिका- जी पापा जी यही टाइगर है ।
कुणाल के बापू – तो क्या अब ये यहां रहेगा ……..??
कुणाल- हां पापा इसे हम कहां छोड़ते, घर पर अकेले भी तो नहीं छोड़ सकते थे ।
कुणाल के बापू- अच्छा- अच्छा ठीक है, इसे आंगन में बांध दो ।
मोनिका – पापा जी इसे आंगन में नहीं छोड़ सकते हैं , अगर आपको दिक्कत है तो मैं अपने कमरे में इसको रखूंगी ।
मुझे उनकी बातें सुनकर ऐसा लगा जैसे कोई बहस का मुद्दा ना हो जाए इसलिए मैं बात को संभालते हुए अच्छा मोनिका बेटा तुम इसे भी अपने साथ अंदर ले जाओ ।
मोनिका – थैंक्यू मम्मी जी ।
मैं मम्मी जी शब्द सुनकर हैरान रह गई, जब यह शादी होकर आई थी तब वह मुझे मां कह कर बुलाती थी , परंतु क्या शहर में जाकर ऐसे ही बोलते हैं, खैर कोई नहीं……..
थोड़ी देर बाद मैं और मोनिका खाना बनाने में लग गए।
मोनिका मेरे मन को जांचने के लिए, आप बच्चों को देखकर खुश तो हैं ना ,
मैंने भी झट कह दिया हां हां मेरी तो खुशी का ठिकाना ही नहीं है ।
फिर बातों बातों में मोनिका मुझसे कहने लगी मम्मी जी आपको तो पता है शहर में कितनी महंगाई है और ऊपर से किराए के मकान में हम लोग रहते हैं, बच्चों को पढ़ना लिखना सब कुछ मैनेज नहीं हो पता है । मैं और कुणाल क्या सोच रहे थे , कि हम लोग एक घर खरीद ले शहर में , कम से कम किराया तो बचेगा ।
मुझे भी थोड़ी देर लगा कि क्या यह लोग हमारे साथ नहीं रहेंगे , अपने मन को समझाते हुए ,मैंने भी मोनिका से कह दिया हां हां बेटा ।
मोनिका – बाहर तो सबका खाना हो गया मैं और आप भी खाना खा लेते हैं ।
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हां चलो खा लेते हैं ।
खाते-खाते मोनिका फिर मुझसे कहने लगी, माँ जी मैं और कुणाल क्या सोच रहे थे, कि जो दूर के खेत हैं उसे पापा जी बेच क्यों नहीं देते हैं….. इससे पापा जी की परेशानी भी कम हो जाएगी , देखरेख नहीं करनी पड़ेगी ।
मैं थोड़ी देर चुप सी रह गई,
मोनिका – मां जी कुणाल कह रहे थे उन पैसों को शहर के घर में लगाए तो एक प्रॉपर्टी भी बन जाएगी ।
मुझे तो समझ ही नहीं आ रहा था कि मैं क्या बोलूं । तब तक मोनिका मुझसे कहती है, माँ जी इस बारे में आप पापा से बात करना , कुणाल बहुत उम्मीद लेकर आए हैं ।
मुझे तो समझ ही नहीं आया कि मैं कुणाल के बापू से कैसे बात करूंगी ।
तब तक कुणाल भी वहीं आ गया
कुणाल – माँ तुम मेरे लिए पापा से बात करना …..
कुणाल मुझसे बोलकर सोने के लिए चला जाता है, तभी मोनिका भी चली जाती है ।
मुझे तो समझ ही नहीं आ रहा था कि यह हो क्या रहा है क्या कुणाल के बापू पहले ही समझ गए थे कि यह लोग किसी काम से आए हैं।
खैर मैं कोशिश करूंगी, कि मैं कुणाल के लिए बात कर सकूं ।
कुणाल के बापू को समझाते हुए घंटों बीत गए, लेकिन कुणाल के बापू अपनी ही बात पर अड़े रहे ।
लेकिन मैं भी बस उन्हे समझने में लगी रही, मैंने भी कुणाल के बापू से कह दिया , कि यह सब धन दौलत लेकर क्या होगा अगर बच्चे खुश नहीं रहेंगे, और हमारा तो एकलौता संतान है यह सब उसी का तो है,
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कुणाल के बापू – पर मालती तुम समझ नहीं रही हो अगर हम अभी यह जमीन बेचकर पैसे दे देंगे । हम लोग खाएंगे क्या तुम्हें तो पता है कि मैं नौकरी नहीं करता हूं इन्हीं खेत खलियान से जो उपज होती है उसी से हम दोनों गुजारा कर रहे हैं , और जो जमा पूंजी थी वह कुणाल को पढ़ाने में लगा दिया अब हमारे पास बस यही खेत खलियान है ।
मैंने भी तुरंत कुणाल के बापू से कह दिया आप बेकार ही चिंता करते हैं कुणाल है ना क्या हमें वह भूखा रखेगा ।
कुणाल के बापू मेरी बातों को सुनकर मालती कुणाल अभी नहीं आता है तो बाद में क्या आएगा । 5 साल बाद आया है , तुम तो जानती हो ना ।
मैं भी कुणाल के बापू की बातों को काटते हुए ………हां हां मैं जानती हूं , बच्चे पढ़ने वाले हैं कुणाल और बहू नौकरी करते हैं छुट्टी नहीं मिलता होगा । लेकिन बुढ़ापे में हमें थोड़ी ना छोड़ देंगे , कुणाल के बापू कुछ कहते हैं उससे पहले मैंने अपनी कसम देकर कि आप कुणाल को पैसे दिला दो ।
कुणाल के बापू – मालती तुम समझ नहीं रही हो ।
कुणाल के बापू मुझसे कुछ कहते उससे पहले ही सोने का बहाना करके सो गई दिमाग में तो मुझे भी इस बात की टेंशन थी कहीं कुणाल के बापू सही तो नहीं कह रहे हैं , पर बच्चों के लिए सोचना भी एक माता पिता का फर्ज होता है ।
सुबह-सुबह मोनिका हम दोनों के लिए चाय लेकर हमारे कमरे में आई ।
मैं भी कुणाल के बापू को मोनिका के बारे में बोलने लगी आपको ऐसा लगता है कि मोनिका हम दोनों को छोड़ देगी , मुझे तो मोनिका को देखकर ऐसा नहीं लगता है ।
कुणाल के बापू- अच्छा-अच्छा ठीक है मैं बात करता हूं, मुझसे जितना बन पाएगा , मैं मदद कर दूंगा ।
शाम को जब कुणाल के बापू आए मैंने उनसे पूछा क्या काम हो गया…..?
कुणाल के बापू – हां मालती वह दोनों खेत बिक गए।
कुणाल – पापा कितना पैसा मिला….?
कुणाल के बापू – बेटा छः लाख रुपए मिला है।
मोनिका – यह तो कम है । पापा और देखिए ना हमें 10 लाख की जरूरत है ।
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कुणाल- पापा चार लाख रुपए और करवा दीजिए ।
कुणाल के बापू -जो घर के पास खेत है वह उपजाऊ नहीं है उसके कम पैसे मिलेंगे , उसे बेचकर भी कोई फायदा नहीं तुम्हारी मां उसमें गोबर का काम करती है ।
मोनिका-इससे तो बात नहीं बनेगी ,
मैं भी कुणाल और मोनिका को देखकर तुरंत ही बोल पड़ी मेरे पास कुछ गहने है , और तुम्हारी दादी के समय का कुछ पीतल के बर्तन है तकरीबन चार-पांच लाख रुपये हो ही जाएंगे ।
मेरी बात सुनते ही मोनिका बोल पड़ी ।
हां हां माजी दे दीजिए और आप देखिएगा शहर का घर कितना सुंदर होगा ।
मैने भी अपने गहने और पीतल के बर्तन निकालकर कुणाल के बापू को दे दिए ।
थोड़ी देर बाद कुणाल के बाबू उसे बेचकर पैसे ले आए ।
और 10 लख रुपए कुणाल को देते हुए यह लो बेटा यह हम दोनों की जमा पूंजी है अब हम दोनों की जिंदगी तुम्हारे हाथ में है ।
मोनिका- हा हा पापा जी आप चिंता क्यों करते हैं , हम लोग हैं ना ,
पैसे मिलते ही मोनिका कुणाल से बोलने लगी चलो कुणाल 1 घंटे में निकल जाते हैं ।
मैं कुछ कहती उससे पहले ही कुणाल बोलने लगा हां मोनिका 1 घंटे क्यों अभी निकलते हैं जाओ बच्चों को तैयार करो , मां हम निकलते हैं रात भर गाड़ी में बैठकर जाना है , और सुबह ऑफिस भी जाना है ।
कुणाल के बापू जैसे पत्थर की मूर्ति बन चुके थे, और मैं तो अबाक सी थी, कि यह सब एक सपना तो नहीं है ।
मोनिका आती है और मुझसे कहती है, मम्मी जी गृह प्रवेश मैं जरूर आना है यह पूजा आपको और पापा जी को ही करना है ।
मैं तुरंत कुणाल से बोली बेटा पैसों का ध्यान रखना हम दोनों की जिंदगी है ।
कुणाल मां आप चिंता क्यों करती हो शहर का घर आपके नाम पर होगा ।
कुणाल की यह बात सुनकर मुझे थोड़ी तसल्ली सी हुई ।
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थोड़ी देर में सब चले जाते हैं, बस मैं और कुणाल के बापू घर में अकेले रह जाते हैं । सुबह कैसे बीत गई पता ही नहीं लगा, जिस जगह पर कुणाल हमें छोड़ कर गया हम दोनों बही बैठे रह गए , ना खाना खाए ना नींद आई इस इंतजार में की कुणाल कब तक पहुंचेगा ।
डाकघर में सुबह 7:00 बजे कुणाल का फोन आया कि वह पहुंच गया घर पर खबर भिजवा दे ।
उस खबर के बाद आज 8 महीने होने वाले हैं ना कोई फोन ना कोई पूछने वाला ना कोई मिलने आया।
मुझसे रहा नहीं गया मैंने कुणाल के बापू से कहा कुणाल घर बनाने में और ऑफिस के काम में व्यस्त होगा, क्यों ना हम लोग खुद ही शहर चलते हैं ।
कुणाल के बापू- मुझे समझाते हुए मालती तुम्हें मैं कैसे समझाऊं वहां जाकर कोई फायदा नहीं है ।
एक बार फिर मेरी जिद के आगे कुणाल के बापू हार गए और मुझे लेकर शहर पहुंचे ।
शहर पहुंचते ही मैं और कुणाल के बापू कुणाल के घर पहुंचे
काफी देर तक घर पर खड़े हैं , लेकिन कोई बाहर नहीं आया ।
फिर कुणाल के बापू ने पड़ोस में रह रहे एक व्यक्ति से पूछा की कुणाल का घर यही है उन्होंने हमें बताया कि यह कुणाल का घर नहीं पंकज का घर है….?
मैंने तुरंत कहा नहीं नहीं भाई साहब आपको कोई गलतफहमी हुई है पंकज नहीं कुणाल ,
कुणाल मेरा बेटा है उसने हमें यही पता दिया था।
सज्जन व्यक्ति ने बड़े ही मीठे स्वर में हमसे कहा की मां जी यह एड्रेस आपको कब दिया है ।
कुणाल के बापू सज्जन व्यक्ति से कहा कि 8 महीने पहले ।
उस व्यक्ति ने बताया उसे खुद यहां आए हुए 2 महीने हुए हैं वह कुणाल के बारे में किसी और से पूछे क्योंकि वह जब से आया है तब से वह इस घर में पंकज नाम के व्यक्ति को ही रहते हुए देखा है ।
फिर मैं और कुणाल के बापू दूसरे घर में गए वहां जाकर हमें पता लगा कि कुणाल तो 4 महीने पहले ही घर खाली करके अपने नए मकान में चला गया है ।
मैं भी तुरंत उस व्यक्ति से कुणाल के नए वाले घर का पता लिखवाने लगी , उसने हमें कुणाल का पता बता दिया ।
कुणाल के बापू मुझसे कहने लगे मालती चलो गांव चलते हैं यहां कब तक ऐसे भटकते रहेंगे ।
पर मैं भी जिद पर आ गई, कि यहां आकर कुणाल से मिल कर जायेंगे।
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कुणाल के बापू- मालती कोई फायदा नहीं है वहां जाकर उसने तो हमें घर के बारे में भी नहीं बताया और वह तो गृह प्रवेश की पूजा भी हम दोनों से करवाने वाला था ।
मैं झट कुणाल के बापू को समझाते हुए , अरे ऐसा भी हो सकता है कि जहां पर कुणाल घर ले रहा है वहां देख रेख की वजह से किराए पर चला गया हो , अभी उसका घर तैयार नहीं हुआ होगा , तभी तो हमें नहीं बुलाया ।
कुणाल के बापू अच्छा ठीक है मालती हम उसके नए वाले घर में चलते हैं।
उस व्यक्ति से कुणाल के नए घर का पता लेकर निकल गए पर कहते हैं ना नया शहर नई जगह ……कैसे सुबह से शाम हो गई , हमें पता ही नहीं लगा ।
मैं थक कर एक मंदिर में बैठ गई ।
कुणाल के बापू मेरी तरफ कठोर निगाहों से देखने लगे मैं अपनी नज़रें झुका कर वहीं बैठी रही जैसे तैसे हमने उस मंदिर में रात गुजारी , सुबह फिर निकल गए कुणाल से मिलने के लिए।
बड़ी मशक्कत के बाद हम कुणाल के घर पहुंच गए ।
वहां जाकर मैंने बाहर अपना नाम देखा तो कुणाल के बापू को मैं समझाने लगी , देखो मेरा कुणाल कितना अच्छा है । उसने जैसा कहा था वैसा ही किया है।
लेकिन उस नाम को देखकर कुणाल के बापू खुश नहीं हुए । मैं फिर दुविधा में थी कि कुणाल के बापू को क्या हो गया है ।अंदर पहुंचे तो घर में कोई नहीं था , सिर्फ काम करने वाले दो नौकर.
मैंने उनसे पूछा कुणाल का घर यहीं है
तो उसने बोला जी मैडम यही है कुणाल सर का घर उसने भी तुरंत मुझसे पूछा आप कौन हैं……?
मैंने भी झट से कह दिया हम कुणाल के माता-पिता हैं…… यह शब्द सुनते ही वह दोनों हमें शक की निगाहों से देखने लगे और अंदर आने से मना कर दिया….
इसमें से एक नौकर शंभू मैडम क्षमा चाहते हैं आपको कोई गलतफहमी हुई है मैं यहां 4 महीने से काम करता हूं मैडम या सर कभी भी आप दोनों के बारे में हमें नहीं बताए है ।
यह शब्द सुनकर मेरी आंखें नम हो गई मैं बहुत समझाने की कोशिश की फिर भी वह दोनों हमें घर में नहीं जाने दिए ।
बस एक माँ से माँ होने का प्रमाण मांग रहे थे ।
मैंने कहा…….. देखो बेटा मैं मलती हूं मेरा नाम घर के बाहर भी लिखा है ।
दूसरा नौकर शेखर – मैडम आप किस धोखे में हो वह मलती नहीं मोनिका लिखा है , इस घर की मैडम और कुणाल सर की वाइफ ।
मैं भी यह मानने को तैयार नहीं कि वहां मेरा नाम नहीं लिखा है…… पर कुणाल के बापू नाम पढ़कर समझ चुके थे ।
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तब तक टाइगर भोंकते हुए मेरी ओर आने लगा….
टाइगर जाओ अपने कमरे में शेखर उसे वहां से भागने लगा,
मुझे लगा जैसे टाइगर हमें पहचान गया वह मेरे पैरों को चाटने लगा यह देख शेखर और शंभू को लगा कि शायद मैं ठीक बोल रही हूं फिर मेरी आंखों में कुछ उम्मीद की किरण जगी , और मैं अपना सामान वही गेट के पास छोड़ कर घर के अंदर चली गई ।
कुणाल के बापू देखो हमारा बेटा सही कह रहा था मैं कुणाल के बापू का मन खुश करने में लगी थी ।
तभी स्कूल से दोनों बच्चे आ गए और बच्चे दादी दादू दादी दादू करने लगे……
मैं भी रोब दिखाते हुए बच्चों के पास कई और दोनों नौकर से बोली अब पता चला हम दोनों कौन हैं….?
उन दोनों ने क्षमा मांगते हुए कहा…… मैडम आप सब खाना खा लीजिए ।
खाना खाने के बाद बच्चों के साथ समय कैसे बीत गया पता ही नहीं चला ।
तभी बाहर से आवाज आई शेखर , शंभू कहां मर गए तुम दोनों ………. और यह बाहर किसका पोटला रखा है…..??
शंभू- मैडम वह आपके…….
क्या आपके, ये पोटला उठा कर बाहर फेंको, पता नहीं किस गरीब का है ।
मोनिका की आवाज सुनकर मैं और बच्चे बाहर आ गए……
बच्चों ने मोनिका से कहा – मम्मी देखो ना आज कौन आया है घर दादी दादू आए हैं ।
मोनिका ने बच्चों की बातों को अनसुना करके बच्चों को डांटने लगी कि आज ट्यूशन क्यों नहीं गए……
बच्चों की आंखें नम देखकर मैंने कहा की मोनिका बेटा बच्चों को मैंने मना किया कि आज छुट्टी कर लो आज हमारे साथ रहो ।
तभी कुणाल भी अंदर आ गया और मोनिका उसे कहने लगी कुणाल देखो ऐसा नहीं चलेगा ट्यूशन के हम पैसे देते हैं कितना मेहनत करते हैं तब जाकर के दो चार पैसे कमाते हैं…. फ्री का पैसा नहीं है जो आज बच्चे छुट्टी करके बैठे हैं ।
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कुणाल मेरी ओर देखते हुए……….कोई बात नहीं मोनिका कल से बच्चे छुट्टी नहीं करेंगे ।
फिर मोनिका गुस्से में शेखर मेरी चाय मेरे कमरे में ले कर आओ बोलकर अंदर चली जाती है………
फिर कुणाल मुझसे कहता है मां आप लोग ऐसे अचानक कैसे आए…….. एक फोन तो कर देते ।
बोलते हुए कुणाल भी अंदर चला जाता है…
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थोड़ी देर बाद बाहर आकर हमसे बोलता है आइए आप दोनों को घर दिखा देता हूं …. फिर मैं और कुणाल के बापू दोनों कुणाल के साथ घर देखने लगे ।
कुणाल – माँ यह देखो यह ड्राइंग रूम है ।
मैं कुणाल की तरफ देखने लगी फिर कुणाल बोलता है आपको समझ नहीं आएगा यह बैठक रूम है आइए आगे यह मेरा और मोनिका का कमरा है , माँ यह मंदिर है मुझे मंदिर देखकर बहुत खुशी मिली चलो इतना तो संस्कार है,
फिर हम आगे बढ़े …..
कुणाल-माँ यह किचन है, रसोई घर, मां यह बच्चों का कमरा है, यह स्टडी रूम है।
मैं एकदम से बोल परी बेटा यह कौन सा रूम है…..?
कुणाल -माँ आप भी ना…… आपको कुछ नहीं पता हैं, ये पढ़ाई का कमरा है ।
फिर हम आगे बढ़े….
कुणाल – मां यह गेस्ट रूम है….
मुझे समझ नहीं आया फिर भी मैंने उससे कहा अच्छा-अच्छा ठीक है बेटा ।
फिर एक अखरी में छोटा सा कमरा था …. मैंने पूछा बेटा यह क्या है….?
कुणाल – माँ यह टाइगर का कमरा है ।
फिर हमें कुणाल छत पर ले गया…. वहां एक कोने में पुरानी खाट थी। हमें बिठाकर बोला माँ आप दोनों बैठो मैं आपके लिए खाना लेकर आता हूं……
बहुत देर बाद शेखर हमारे लिए खाना और दो चादर दो तकिया लेकर आया …..
शेखर आप लोग खाना खा लीजिए तब तक मैं यह चादर बिछा देता हूं……
मैं कुणाल के बापू की तरफ बहुत शर्मिंदगी से देख रही थी, और वह बहुत ही उदास निगाहों से मुझे देख रहे थे ।
हम लोग खाना खाने के बाद करवटें बदलते हुए रात बिता दिए । कुणाल के बापू ने एक शब्द मुझसे कुछ भी नहीं कहा……….
सुबह होते ही कुणाल दो कप चाय और कुछ बिस्किट हमारे पास ले कर आया…. और बोला मां पापा यह चाय और बिस्कुट खा लीजिए ।
मैं और मोनिका दफ्तर जा रहे हैं बच्चे स्कूल जाएंगे शेखर दिन का खाना बना देगा और वह बोलकर चला गया…….
मेरी आंखें नम थी…….चाय भी हमें जहर लगने लगी ,.
मैंने कुणाल के बापू से कहा हम चाय पी कर अपने गांव चलते हैं…… कुणाल के बापू एक शब्द नहीं बोले… …… बिना चाय पीए ही हम दोनों गांव के लिए निकल पड़े ।
रास्ते में मैंने कुणाल के बापू से कहा मुझे माफ कर दीजिए यह सब मेरी वजह से हुआ है, कुणाल के बापू मुस्कुराते हुए बोले यह सब तो मैं जानता था इसीलिए मैं पहले ही तुम्हें मना कर रहा था
मेरी आंखें नम देखकर कुणाल के बापू बोले रो क्यों रही हो ……
मैं हूं ना तुम्हारा सुख दुख का साथी और हम खुशी-खुशी अपने गांव लौट आए ।
कामिनी मिश्रा कनक
#सुख-दुख