सुख दुख का संगम – मीनाक्षी सिंह : Moral Stories in Hindi

 वाह  कैलाश भाईसाहब…

बहुत खूब….

इतने समय पहले ही भाभी हम सबको छोड़कर   करके चली गई थी जब शुभी बिटिया ने दुनिया में कदम रखा ही था …

फिर भी आपने शुभी  की परवरिश इतने ढंग से की…

कि  एक मां क्या करेगी…

और आज विदाई के समय आपकी आंखें इतनी नम है…

ये बात ज़मी नहीं कुछ….

आपको तो खुश होना चाहिए कि आपने खुद शुभी  को इतना पढ़ाया लिखाया….

वह घर के कामों में निपुण होने के साथ-साथ आज एक प्रतिष्ठित डॉक्टर भी है….

उसे खुशी-खुशी विदा कीजिए….

समझ सकता हूं…

उसने आपका कितना ख्याल रखा है …

लेकिन बेटी है विदा तो करना ही  है….

अगर आपको ऐसा रोता हुआ शुभी देखेगी  तो उसके दिल पर क्या गुजरेगी…

क्या वह पूरे मन से अपने ससुराल में अपने परिवार वालों को दे पाएगी…

चलिए भाई साहब …

इन आंसुओं को पोंछिये….

कैलाश जी जिनकी आंखें आंसुओं से भरी हुई थी….

और गला रूँधा  हुआ था…

उन्होंने राजेशजी  की बात सुनकर आंसुओं को पोंछा ….

और फिर पंडाल में पहुंच गए….

जहां पर बिटिया और दामाद दोनों ही जल्द  निकलने की तैयारी में खड़े हुए थे ….

कन्यादान पूरा हो चुका था…

अभागन – हेमलता गुप्ता   : Moral Stories in Hindi

कैलाश जी को मन ही मन ये  बात खाये  जा रही थी…

कि अभी तक तो मेरे जीवन में उद्देश्य था…

कि शुभी  को पढ़ाना है….

 उसका ब्याह करना है…

अब तो रिटायर भी हो गया….

अब मैं अपनी लाडो के जाने के बाद क्या करूंगा….

कैसे इसके ऊपर निर्भर था…

 छोटी-छोटी चीज शुभी से ही  मांगा करता था …

अब मैं कैसे रहूंगा…

बस यही सोच सोच कर उनका दिल बैठ जा रहा था….

तभी आवाज आई,,,पंडित जी बोले…

विदाई का शुभ समय निकल रहा है….

बेटी को विदा कीजिए….

शुभी  अपनी आंखें ऊपर नहीं कर पा रही थी…

यह देखकर उसके जीवन में सिर्फ उसके पिता के अलावा था ही कौन  …

जो कहने  के लिए उसका मायका है…

चाचा , चाची ,ताऊ ताई , मामा मामी  तो बहुत से थे …

लेकिन मां के जाने के बाद पापा ने कितने ताने सुने …

कि  दूसरी शादी कर ले…

शायद कहीं चक्कर चल रहा होगा…

तभी  शादी नहीं कर रहे हैं भाई साहब…

कैसे इस अभागन लड़की की परवरिश करेंगे.. ..

अरे अब तो लड़की जवान हो रही है ….

जल्दी इसका ब्याह कर दीजिए….

डॉक्टर बन गई तो क्या हुआ….

हमारे समाज में ब्याह करना भी तो जरूरी है …

मनमुटाव – प्रतिभा भारद्वाज ‘प्रभा’   : Moral Stories in Hindi

तभी पापा ने समाज को देखते हुए 25  साल में ही मेरा विवाह कर दिया है  ….

शुभी  धीरे-धीरे कर आगे की ओर बढ़ रही थी….

तभी चाची बोली….

जी भर के अपने पापा से मिल ले….

पता नहीं कितने कितने दिन के  मेहमान है भाई साहब…..

अब तेरे जाने के बाद तो सूखकर  कांटा हो जाएंगे….

शुभी  समझ नहीं पा रही थी….

कि उसकी चाची  दुख को कम कर रही है….

य़ा  व्यंग कस रही हैं….

वह धीरे-धीरे कदमों से आगे आई ….

अपने पिता के झुके हुए सर को शुभी ने ऊपर किया…

अरे पापा ….

यह क्या…

आप रो रहे है…

आज तो आपका सर ऊंचा करने का दिन है…

आज आप अपनी शुभी को ब्याह के विदा कर रहे  है….

एक ऐसे पिता  ने,,जिसकी पत्नी उसकी छोटी सी बेटी को उसकी गोद में छोड़कर ही चली गई …

तब से लेकर आज तक आपने बस मेरे लिए ही अपना जीवन बिता दिया…

मेरी चोटी करना,,कैसे जल्दी-जल्दी मेरा  लंच बनाना और भाग करके मुझे बस में बैठ कर आना …और तब तक खड़े रहना जब तक कि  मेरी बस निकल ना जाए…..

कभी-कभी बस अगर छूट जाए तो मुझे जल्दी से अपने फटफटिया वाले स्कूटर पर स्कूल छोड़कर आना…

लेकिन मुझे गर्व होता था कि मैं अपने पापा के साथ आयी  हूं …

लौट कर जाती स्कूल से घर…

तब भी आप मुझे घर पर ही मिलते …

आपका ऑफिस पास ही तो था …

आधे घंटे के लिए आप मुझे खाना खिलाने के लिए आ जाते…

पता नहीं मैं अकेले कैसे खाना खाऊंगी …

और लोगों की तरह कभी भी आपको  ऑफिस के बाद इधर-उधर दोस्तों के साथ कहीं भी जाते नहीं देखा पापा….

बस सीधा आपको आपका घर याद आता ….

और मेरे लिए कुछ ना कुछ लेकर आते…

जो एक मां के काम होते हैं…

आपने  सारे ही काम किये  पापा…

सिर्फ और सिर्फ किसलिए …

सिर्फ मेरे लिए…

और आज आपकी आंखों में आंसू….

बस बस अब चुप भी कर बिट्टू …

क्या चाह रही है…

चलती का नाम ज़िन्दगी – स्नेह ज्योति’   : Moral Stories in Hindi

तेरा पापा तेरे आगे ही टूट जाए…. 

तो फिर रो क्यों रहे हैं …

खुश होकर विदा कीजिए ना मुझे …

अब  कैलाश जी का सब्र का  बांध टूट रहा था…

उनसे ना रहा गया…

फफककर  रो पड़ा एक पिता जो अपनी नौकरी की जगह शेर के नाम से जाना  जाता था….

और बिटिया को कस के गले लगा लिया कैलाश जी ने….

उसके माथे को चूमा…

खुश रह तू …

ऐसे लग रहा है जैसे मेरे सीने में से  मेरा कलेजा निकाल लिया हो किसी ने…

  पापा …

मेरे प्यारे पापा….

बोलकर शुभी सिस्कती जा रही थी….

इससे पहले शुभी  कुछ और  बोलती…

तभी दामाद जी आ गये आगे…

पापा …

अभी इतना मेरा हक नहीं है …

शायद आप मुझे इतने अच्छे से जान भी नहीं पाए होंगे….

लेकिन अगर आपकी इजाजत तो आपसे एक बात कहना चाहूंगा….

हां बेटा जरूर….

अभी कुछ सुनने की स्थिति में नहीं हूं …

फिर भी बोल बेटे…. 

कैलाश जी ने कहा ….

हमारे घर के बगल में फ्लैट है….

वहां पर हमने आपके लिए एक फ्लैट ले लिया है …

क्या आप हमारे साथ वहां चलकर रहेंगे ….??

इस घर को किराए पर उठा दीजिएगा…

कम से कम शुभी और हम आपको देखते  रहेंगे …

उम्र हो गई आपकी …

आपकी फिक्र लगी रहेगी हमें …

और आपका मन भी भरा  रहेगा…

कि  बिटिया के पास है….

दामाद जी की बात सुनकर कैलाश जी के चेहरे पर एक पल को तो मुस्कान आई…

फिर अगले ही पल बोले…

नहीं नहीं….बेटा …

मैं यहीं  सही हूं…

और जीवन के दिन ही कितने बच्चे हैं….

हां बिटिया है तो याद तो आयेगी उसकी…

उस घर में बचपन से अपनी शुभी  की और  मेरी यादें जुड़ी है…

वहां पर उसे याद कर जीवन बिता ही लूंगा…

यह बोलकर कैलाश जी ने दामाद जी को  गले लगा लिया …

और बड़े ही भारी मन से आंखों में आंसू लिए बिटिया को विदा कर दिया …

टेंट वाले का हिसाब,,,गेस्ट हाउस का हिसाब कर,,आज वह घर लौट आए थे ….

पूरा घर उनको खाने को दौड़ रहा था …

चारों तरफ लाइट लगी हुई थी…

पूरा घर फूलों से सजा हुआ था….

लेकिन पूरे घर में एकमात्र कौन थे…

कैलाश जी ही नजर आ रहे थे….

दोपहर हो चली थी…

तभी एकदम से ध्यान आया …

कि आज उन्होंने दवा ही नहीं ली है …

तभी उनका मन घबरा रहा है …

एकदम से नींद खुली ….

तो आवाज लगाई शुभी  दवाई तो लाना…

सुनाई नहीं देता क्या ….

अरे अब शुभी  कहां हैं यहां…

क्या सच में मैं शुभी  को इतना याद कर रहा हूं….

दोपहर को जब भूख लगी…

तो किसी तरह उन्होंने आज भी पांच रोटी बनाई ….

फिर आवाज लगाई…

शुभी आजा  खाना खा ले….

क्या पूरे दिन फोन में ही लगी रहती है…

यह क्या अब शुभी तो है ही नहीं….

 फिर यह रोटी कैलाश जी ने किसके लिए बनाई …

वह शायद अभी भी शुभी को महसूस कर रहे थे …

इतना आसान भी नहीं था…

कि ज़िस बेटी के  साथ उन्होंने 25 साल अकेले बिताये हो इस घर में….

उसको ऐसे एक पल में भूल जायें ….

अब तो हर दिन कैलाश जी को काटने को दौड़ता…

हर पल उन्हें शुभी  की याद आती…

शुभी को आवाज लगाते …

वह तो बांवरे  से होते जा रहे थे….

एक  बेटी को विदा करना इतना आसान नहीं होता उन्हे समझ आ रहा था …

शुभी  दिन में चार-पांच बार फोन करती …

लेकिन कभी वह अपना दुख उससे जाहिर नहीं करते …

लेकिन जब एक-दो दिन पापा का फोन नहीं आया…

तो शुभी  घबरा गई…

वह अपने पति के साथ घर आई है…

 पापा को क्या हुआ…

 कुछ आवाज नहीं आ रही जी…

कमरा खुला हुआ था …

शुभी ने अंदर जाकर देखा तो… 

पापा को  तेज बुखार है …

तभी यह फोन नहीं कर रहे थे …

आज से हम पापा को अपने पास ही रखेंगे…

अपने घर में …

सुनिये जी मैं  नहीं मानती कि  एक पिता अपनी बेटी घर में नहीं रह  सकता…

पापा ने मुझे पढ़ाकर इस काबिल बनाया…

क्या मेरा इतना फर्ज नहीं बनता…

कि उनके जीवन के अंतिम समय में उन्हें अपने साथ रखूं…

सेवा कर सकूं….

शुभी के मुंह से यह  बात सुन उसके पति को भी बहुत खुशी मिली ….

शुभी मैं अभी यही चाहता था…

लेकिन मैं यह चाहता था कि इस बात का तुम्हें खुद एहसास हो….

हम पापा को यहां से लेकर चलते हैं…

और घर पर चलकर इनका इलाज करेंगे ….

जी…. 

दोनों ही लोग खुशी-खुशी कैलाशजी को लेकर अपने घर आ गए….

जैसे ही कैलाश  जी की नींद खुली….

शुभी उन्हें दवाई खिला रही थी …

कैलाश जी के सर पर चोट भी लगी थी …

शायद वह बुखार में कहीं टकराकर गिर गए थे…

तुम लोग मुझे यहां लेकर के आ गए हो …

तेरे जीवन के ये  खुशनुमा पल है बिट्टो…

 दामाद जी के साथ इसका आनंद ले…

कहीं मेरी तरह ,,जीवन की जिम्मेदारियां के बीच पिस गई तो जीवन निकल जायेगा ….

नहीं नहीं…पापा…

अब आपने इतनी जिम्मेदारियां संभाली है …

कुछ जिम्मेदारियां मेरे हिस्से भी दीजिए…

ना …

अब आप यही रहेंगे …

और जिम्मेदारियां ही  क्या है  …

आप तो इतनी जिम्मेदारी संभालते थे …

मुझे करना ही क्या है …

बस आपको देखना ही तो है….

यह बोल शुभी  अपने पापा के गले से एक छोटे बच्चें  की तरह चिपक गई….

कैलाश जी ने भी शुभी  के सर पर हाथ रख दिया …

कि काश सभी बेटिय़ां  इसी तरह हो …

सच ही कहा गया है जीवन सुख दुख का संगम है…

कैलाश जी के जीवन में बहुत दुख आये लेकिन फिर भी उन्होंने दुखों में से कुछ सुख के पल अपनी बेटी के रूप में पा ही लिए थे….

मीनाक्षी सिंह की कलम से

 आगरा

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