सुख-दुःख का संगम – डाॅ संजु झा : Moral Stories in Hindi

मनुष्य का जीवन वास्तव में सुख-दुःख का संगम ही तो है!कभी उसके जीवन में सुखों की लाली छाई रहती है,तो कभी गमों का पहाड़ आ खड़ा होता है।महाकवि सुमित्रानंदन पंत जी ने भी कहा है’सुख-दुख के मधुर मिलन से यह जीवन हो परिपूरण।’

कथानायिका रीना के जीवन में भी सुख-दुःख की आँख मिचौली चल रही है।अस्पताल के काॅरिडोर में बैठकर रीना अपनी रिपोर्ट का बेसब्री से इंतजार कर रही है।बेचैनी में एक बार फिर  रिपोर्ट सहायक के पास जाकर पूछती है -” रिपोर्ट कब तक मिलेगी?”

सहायक-“मैडम!इंटरनेट में कुछ गड़बड़ी है!वैसे चाहे तो आप घर जा सकती हैं।मैं रिपोर्ट ऑनलाइन भेज दूँगा।”

रीना -“नहीं!मैं इंतजार करूँगी।रिपोर्ट डाॅक्टर को दिखाने के बाद ही घर जाऊँगी।”

सहायक-“अच्छा।”

रीना आकर फिर से रिपोर्ट के इंतजार में कुर्सी पर बैठ जाती है। बैठे-बैठे छः पूर्व  घटित अपने अतीत की यादों में खो जाती है।जिस प्रकार  वसंत के मौसम में प्रकृति रंग-बिरंगे फूलों से शृंगार करती है और खुशगवार होकर अपना खजाना लुटाने लगती है,उसी प्रकार युवावस्था में रीना का मन भी  सतरंगी सपने संजोने लगा था।उसपर अभी जवानी की खुमार चढ़नी शुरु ही हुई थी।वह बार-बार दर्पण में अपने अक्स को देखने को मचल उठती थी।पहली बार काॅलेज जाने के लिए कदम उठे थे।बावरा मन बार-बार उतावला हो मचल उठता।काॅलेज के पहले दिन ही चेतावनी देते हुए उसकी दादी ने सख्त  हिदायत  देते हुए कहा था -” ऐ छोरी!मन को लगाम में रखना।कहीं ऊँच-नीच हो गई, तो पढ़ाई  छुड़वा दी जाएगी!”

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उसकी माँ ने भी दादी की हाँ -में- हाँ मिलाते हुए कहा था -” बेटी!परिवार की इज्जत का मान रखना।”

पिता ने बस संक्षिप्त में कहा था -“रीना!केवल पढ़ाई पर ध्यान देना।”

परिवार की हिदायतों को ध्यान में रखकर  रीना ने काॅलेज में कदम रखा।कुछ दिनों तक तो वह कछुए के समान अपनी खोल में सिमटी रही,पर यौवन के वसंत में रीना का दिल काबू में न रहा।आखिरकार एक सीनियर लड़के राजेश से उसका दिल टकरा ही गया।दादी,पिताजी,माँ सभी की सीखें धरी-की-धरी ही रह गईं,उसका दिल राजेश पर आ गया।उसके जीवन में प्यार के फूल खिल उठे।प्यार के सुरमई रंग से उसकी जिन्दगी सराबोर हो उठी।दोनों की आँखों में इन्द्रधनुषी सपने सजने लगें।प्रकृति के बिखरे रंग उसकी आँखों को मनभावन और सुन्दर लगने लगें।उसे एहसास होने लगा था मानो प्रकृति के चारों तरफ बिखरे रंग-रूप को मानो वह पहली बार देख रही हो।आँखों से ही नहीं वरन् मन से भी उसकी सुन्दरता और शीतलता महसूस कर रही थी। प्यार में पड़कर पहली बार कोयल की कूक उसके मन में मादकता का एहसास करा रही थी।प्यार में पड़कर उसे जिन्दगी खुबसूरत लगने लगी थी।

रीना अब इठलाते हुए जब-तब दर्पण के सामने खड़ी होकर खुद को निहारने लगती।जीवन के खुबसूरत रंग उसके  सपनों पर बिखरकर उसकी जिन्दगी महकाने लगें।उसके दिल में प्यार की कोपलें धीरे-धीरे फूटने लगीं।उसके मन में छिपे प्यार का प्रतिबिंब उसके प्रेमी राजेश की आँखों में भी नजर आने लगा।एक-दूसरे को देखकर दोनों की धड़कनें तेज हो जाया करतीं।दोनों चोरी-छुपे एक-दूसरे को निहारा करतें।जब आँखें टकरा जातीं तो एक अजीब-सी मदहोशी और सिहरन शरीर में छा जाती।सच था कि दोनों को एक-दूसरे से प्यार हो गया था।चाहत दोनों की थी कि हमेशा के लिए  विवाह के पवित्र बंधन में बँधकर एक हो जाएँ।दोनों अपने प्यार को अंजाम देने के बारे में परिवारवालों से सहमति लेना चाहते थे,परन्तु अचानक से रीना की जिन्दगी में दुखों का कोहराम मच गया।

उसी समय कंपाउन्डर ने उसके ध्यान को भंग करते हुए कहा -” सारी मैडम!रिपोर्ट कल ही मिल पाएगी।आज तो डाॅक्टर साहब  भी चले गए। कल आकर रिपोर्ट लेकर  डाॅक्टर साहब से दिखा लेना।”

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रीना निराश होकर घर लौट आई। माँ ने जिज्ञासावश पूछा -” बेटी!रिपोर्ट तो ठीक  आ गई न!”

रीना -” माँ!रिपोर्ट कल मिलेगी।”

माँ-” रीना!कोई बात नहीं।ईश्वर सब ठीक  करेंगे।तुम कुछ खाकर आराम कर लो।”

नाश्ता करने के बाद रीना अपने कमरे में आराम करने लगी,परन्तु अतीत एक बार फिर उसकी आँखों के समक्ष आ खड़ा हुआ। उस दिन काॅलेज से आने के बाद  रीना काफी खुश थी।उसने अपने माता-पिता से अपने रिश्ते के बारे में रात में बात करने का दृढ़ निश्चय कर लिया था।काॅलेज से आने के बाद वह बाथरूम में शावर लेते हुए गुनगुना रही थी।अचानक से उसके हाथ को वक्षस्थल के पास कुछ कठोर-सा एहसास हुआ। वह गुनगुनाना भूल गई  और 

जल्दी से कपड़े पहनकर बदहवास-सी बाहर आकर माँ को अपनी गिल्टी के बारे में बताया।गिल्टी की बात सुनकर उसके माता-पिता सदमे में आ गए। उसे लेकर तुरंत डाॅक्टर के पास गए। जाँच-पड़ताल के बाद  डाॅक्टर ने जो बताया,उससे उसकी जिन्दगी में भूचाल आ गया।कहाँ तो वह जीवन की खुबसूरत पगडंडियों पर खुबसूरत सपनों के साथ दौड़ रही थी!कहाँ वक्षस्थल में कैंसर की बात ने उसे औंधे मुँह जमीन पर पलटकर लहु-लुहान  कर दिया था।कल तक उसके जीवन में सुखों की लाली थी,जिसे पलक झपकते ही दुखों की कालिमा ने निगल लिया था।कुछ ही पल में कैंसर नाम की चिंगारी ने उसके जीवन में विस्फोट कर दिया था।

दुख की घड़ी में रीना के माता-पिता मजबूत स्तंभ के रूप में उसके साथ  खड़े थे।कीमोथेरेपी की कष्टदायी प्रक्रिया उसके लिए  मौत से भी भयावह थी।अब इलाज के दौरान  रीना उदास और मायूस रहने लगी थी।कभी-कभार माता-पिता को देखकर खुश दिखने का बहाना करती।कभी खुद को आईने में देखकर सहम-सी जाती।जिसे पल-पल दर्पण देखना अच्छा लगता था,वही अब दर्पण से मुख चुराने लगी थी।माता-पिता उसकी दयनीय हालत और सूनी आँखें देखकर सांत्वना देते हुए कहते -“बेटी! एक दिन ईश्वर दुख के दिन को सुख में अवश्य बदलेंगे।धैर्य रखो।”

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उसका दोस्त राजेश उससे मिलने अवश्य आता था , परन्तु वह अनमना ही रहता।रीना को एहसास  होने लगा था कि राजेश उसके केशविहीन और बेजान चेहरे से विरक्त होता जा रहा है।जिस प्रकार धीरे-धीरे उसकी बीमारी दूर हो रही थी,उसी प्रकार राजेश भी उसकी जिन्दगी से दूर होता चला गया।रीना को एहसास हो चुका था कि राजेश का प्यार  झूठा था।झूठ की नींव तो कभी पक्की नहीं होती है।उसपर बने महल भी कच्चे होते हैं।जब सच सामने आता है तो पल भर में ही सब ढ़ह जाता है।रीना के भरोसे की कड़ी टूट चुकी थी।उसे राजेश की यादों से सर्पदंश-सी पीड़ा उठती।

रीना के माता-पिता उसे आत्मबल देते हुए कहते-“रीना!ये जिन्दगी तुम्हें दुबारा मिली है।इसे खुदा की नेमत समझकर प्यार करो।”

समय के साथ अतीत की धुँधलाती टीस रीना की जिन्दगी से कम होने लगी थी।रीतते-रीतते

 जख्म अब भरने लगें थे।सहेजी हुई व्यथा की आँच अब क्रमशः धीमी होने लगी थी।मन की गति भी कितनी विचित्र है!कभी  तो राकेश के बिना उसने जीने की कल्पना भी नहीं की थी,आज उसी की यादों को रद्दी पेपर की भाँति अपनी जिन्दगी से निकाल फेंकना चाह रही थी।वह सहनशील होकर  रिश्तों के खोखलेपन  और खालीपन को पीने का प्रयास कर रही थी।

कुछ समय बाद रीना को  बीमारी से मुक्ति मिल गई। उसका चेहरा फिर से खुबसूरत हो गया।उसके केशविहीन सिर और मुरझाए चेहरे की रंगत लौटने लगी थी।उसे खुद से प्यार होने लगा था।अब उसने जिन्दगी का मकसद अपने पैरों पर खड़ा होना बना लिया था।अपनी मेहनत के बल पर पढ़ाई पूरी कर स्कूल में शिक्षिका बन चुकी थी।बच्चों की जिन्दगी में रंग भरने के साथ-साथ अपनी जिन्दगी में भी खुबसूरत रंग भरने लगी,परन्तु भविष्य के गर्त में क्या छिपा है,आज तक कोई नहीं समझ पाया है!

किस्मत एक बार फिर से रीना की परीक्षा लेने को तैयार थी।छः साल  बाद  एक बार फिर उसकी बीमारी उभरकर सामने आ गई। इस बार रीना हिम्मत हारने लगी।संबल प्रदान करनेवाले पिता भी नहीं रहें।वह हिम्मत और धैर्य खोने लगी थी,परन्तु मजबूत आलम्बन के रुप  में माँ का साया था।इस बार  रीना के दिलो-दिमाग में नकारात्मक विचार  भरते जा रहें थे।पिछली बार की बीमारी की यादों की धुंध गहराती जा रही थी।पुरानी असहनीय पीड़ा बाढ़ के पानी की तरह हर हद को तोड़कर  उसके मन-मस्तिष्क पर छाने लगी।अस्पताल के बिस्तर पर रात की गहराती कालिमा के साथ उसकी उम्मीदें भी क्षीण होती जा रहीं थीं।डाॅक्टर  का सकारात्मक रहने का सुझाव भी उसके हारे मन को संबल प्रदान नहीं कर पा रहा था।

रीना की माँ पल-पल बेटी को जिन्दगी से हारते देखकर किंकर्तव्यविमूढ़ हो रहीं थीं।इलाज के दौरान डाॅक्टर ने रीना को मेडिटेशन  केन्द्र जाने की सलाह दी।उसकी माँ उसे मेडिटेशन केन्द्र लेकर गई। वहाँ का संचालक रमण बहुत ही खुशमिजाज इंसान था।उसने धीरे-धीरे रीना के मन की गहराईयों में उतरकर उसमें सकारात्मकता के बीज बोने शुरु कर दिएँ।आरंभ में तो  रमण की बातों का नीरा के व्यथित मन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा।परन्तु रमण हार न मानकर उसे प्रकृति के सानिध्य में रखकर  छोटी-छोटी बातें समझाते हुए कहता -” देखो!रीना,पक्षियों का चहचहाना, फूलों का खिलना हमारी जिन्दगी में कितना सुंदर संदेश देते हैं!मुरझाने के डर से फूल खिलना नहीं बंद कर देते हैं।चिड़ियाँ इतनी मेहनत से चूजों को पालती है,परन्तु उनके उड़ जाने पर शोक नहीं मनाती ह,फिर से नवजीवन के संचार में तल्लीन हो जाती है।तुम्हारा जीवन भी अनमोल है!सकारात्मक विचार के साथ इस जिन्दगी को प्यार करो।”

रमण के सानिध्य और उसकी बातों से रीना की जिन्दगी में दुख के बादल धीरे-धीरे छँटने लगें।उसमें सकारात्मक  विचार भरने और खोए हुए आत्मविश्वास को जगाने में रमण देवदूत साबित  हुआ। रमण का भावनात्मक सहारा पाकर प्यार में टूटा रीना का दिल मजबूत सहारा तलाशने लगा।अपनी बिखरी जिन्दगी और अवसाद से छुटकारा पाते-पाते वह रमण के अत्यधिक करीब आ गई। रीना एक बार फिर से खुशियों के सागर में डूबने-इतराने लगी,परन्तु उसे भय था कि  कहीं पहले की तरह रमण का प्यार भी हरा-भराकर उसकी जिन्दगी का रस निचोड़ न लें।इस कारण वह इस बार  खुद पहल न कर रमण के जबाव का इंतजार कर रही थी।यादों के समंदर में गोते लगाते-लगाते रीना नींद के आगोश में समा गई। 

अगले दिन  उसके साथ रमण  फाइनल रिपोर्ट लेने जाता है। रीना धड़कते दिल से रिपोर्ट लेने आगे बढ़ती है।उसे डर है कि इस बार अगर रिपोर्ट  निगेटिव नहीं आई,तो उसे फिर से कष्टप्रद यातना से गुजरना पड़ेगा।रमण उसके कंधे पर हाथ  रखकर इशारों-ही-इशारों में हिम्मत देता है। रीना रिपोर्ट लेकर  काँपते हाथों से लिफाफा खोलती है।निगेटिव रिपोर्ट  पढ़कर  खुशी से धम्म से कुर्सी पर बैठकर फूट-फूटकर रोने लगती है।तभी रमण ने उसे गले से लगा लिया।डाॅक्टर से रिपोर्ट दिखाने के बाद घर आकर रमण रीना की माँ से कहता है-“माँ!मैं रीना से प्यार करने लगा हूँ।उसे अपना हमसफ़र बनाने की इजाजत चाहता हूँ।”

रीना की माँ ने खुशी से हामी भर दी।सचमुच जीवन तो सुख-दुःख का संगम ही है!

समाप्त। 

लेखिका-डाॅक्टर संजु झा (स्वरचित)

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