Moral stories in hindi: मनुष्य के एक ही जीवन में कितने रंग बदल लेती है यह जिन्दगी!कभी ऊषा का उल्लास लिए खड़ी होती है,तो कभी काली रात- सी भयावहता!परन्तु व्यक्ति के मन में एक विश्वास भी अडिग रहता है कि अँधियारा छँट जाएगा ,फिर अरुणोदय होगा। सुमित्रानंदन पंत जी ने भी कहा है-‘सुख-दुःख के मधुर मिलन से ,यह जीवन हो परिपूरण। ‘
प्रस्तुत कहानी में भी गम के गहरे बादल हैं,तो सुख की असीम अनुभूति भी।कथानायक गगन का मन काफी उद्वेलित है,उसे अपना भविष्य अंधकारमय नजर आ रहा है।खिड़की के बाहर उसकी नजर जाती है। पूर्णिमा का चाँद पूर्ण यौवन पर था।उसकी चाँदनी बिखरकर अपनी रोशनी से पूरी धरा को नहला रही थी।लोगों के तन-मन में शीतलता का एहसास करा रही थी,परन्तु उसे देखकर भी गगन के अन्तर्मन की पीड़ा की जलन कुछ कम नहीं हो रही थी।शरद की श्वेत रात्रि में भी उसका मन व्यथित था।वह संज्ञाशून्य-सा परकटे पंछी की तरह फड़फड़ा रहा था।उसके मन में विचार आ रहा था कि क्यों न वह आत्महत्या कर लें?सारी समस्याओं से एक ही बार में छुटकारा मिल जाएगा।वह अन्दर-ही-अन्दर पल-पल तिल-तिलकर घुट-घुटकर मर रहा है।
कुछ ही देर में उसकी पत्नी निशा दफ्तर से आती है।आते ही उसने पूछा -” गगन!आज का दिन कैसा बीता?”
गगन मायूस आवाज में कहता है -“कैसा बितेगा?बस दिनभर टेलीविजन देखता रहा और कुछ -से -कुछ अनर्गल ख्याल मन में आते रहें।”
निशा दफ्तर से आकर काफी थक चुकी थी,इस कारण गगन से बातों में उलझना नहीं चाहती थी।फ्रेश होने के बाद उसने खाना लगाया और दोनों खाकर सोने चले गए।थकी होने के कारण निशा जल्द ही नींद की आगोश में समा गई, परन्तु गगन की आँखों से नींद कोसों दूर थी।उसकी नजर सोई हुई निशा पर जाती है।मानव मन भी अजूबा है,जो वर्त्तमान की नीरसता और निराशा से पनाह पाने अतीत के मधुर पलों को पुनः जीने लगता है।निशा के पिता शादी के लिए जब मान नहीं रहे थे,तब उसने कितने गरुर से उन्हें कहा था -” मैं आपकी बेटी की झोली में सारे जहां की खुशियाँ भर दूँगा।पर आज स्थिति क्या -से -क्या हो गई है!पत्नी को खुशियाँ देने के बदले वह खुद अपाहिज बनकर उसपर बोझ बन गया है।”
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गुजरा हुआ वक्त उसकी आँखों के समक्ष चलचित्र की भाँति गुजरने लगा।उसकी शादी के शुरुआती दिनों में जीवन में खुशियों के अनगिनत पल थे।उसे ऐसा महसूस हो रहा था कि एक-दूसरे को पाकर उनकी जिन्दगी अत्यधिक हसीं हो गई है।दोनों एक-दूसरे की खुशियों में अपना जहां ढ़ूढ़ते थे।वैसे निशा जितनी खुबसूरत और सहृदय पहले थी,उतनी आज भी है।इतनी बड़ी विपत्ति के बाद भी गगन के प्रति उसका प्रेम कम नहीं हुआ है,परन्तु गगन ही उसके प्रेम को सहानुभूति समझकर आत्मग्लानि महसूस करता है।नियति ने मानो उसके जीवन में सुनामी ला दी।
उसके उजियारे जीवन को दुःख के बादलों ने पूरी तरह ढ़क लिया।सबकुछ तहस-नहस हो गया।एक दिन दफ्तर से लौटते हुए रात के अंधेरे में एक ट्रक ने उसकी बाइक को धक्का दे दिया।ट्रक चालक तो अपनी जान बचाकर भाग गया,वह काफी देर तक सड़क किनारे अचेत पड़ा रहा। काफी देर बाद किसी सहृदय ने उसे अस्पताल पहुँचा दिया।अत्यधिक खून बह जाने के कारण उसकी दोनों टाँग काटनी पड़ी।
गगन के मन में बार-बार सवाल कौंधता है कि किसी ने मुझे अस्पताल क्यों पहुँचाया?ऐसी जिल्लत भरी जिन्दगी से तो मर जाना ही बेहतर था।सारी जिन्दगी अपाहिज बनकर व्हीलचेयर पर रहना कोई जिन्दगी है!हर रात शून्य आँखों से वह आसमान निहारा करता ।रात उसके लिए पहाड़ के समान प्रतीत होती।उसके जीवन के सारे सपने ध्वस्त हो चुके थे।वह रातभर बिस्तर पर करवटें बदलता रहता।बैचैनी में खिड़की से आसमान में टूटे तारों की ओर उसकी नजर जाती है।उसे ऐसा महसूस होता है कि आसमान के टूटे तारों की भाँति उसके जीवन के सारे सपने खंड-खंड होकर टूट चुके हैं।उसकी जिन्दगी की रात भयावह और लम्बी हो चुकी है।अपने अतीत का मंथन करते हुए कब उसकी आँखें लग गईं,पता ही नहीं चला।
सुबह-सुबह निशा की खटर-पटर से उसकी नींद खुल गई। निशा मुस्कराते हुए उसे गुड मार्निंग (सुप्रभात)कहती है।वह भी बुझे हुए स्वर में सुप्रभात कहता है।निशा सुबह-सुबह उसे सहारा देकर नित्य कर्मों से निवृत्त कराकर व्हीलचेयर पर बिठा देती है।उसके मन में हौसलाअफजाई करते हुए कहती है-“गगन!जिन्दगी में कठिन परिस्थितियों से सामना होने पर भी धैर्य नहीं खोना चाहिए!”
गगन अन्यमनस्क भाव से निशा की बातें सुनता है और उसे कहता है-” निशा!तुम मेरी चिन्ता छोड़ो।तुम्हें दफ्तर के लिए देरी हो रही है।”
निशा दफ्तर चली जाती है।गगन व्हीलचेयर के सहारे खिड़की के पास आ जाता है।खिड़की के बाहर आसमान में उगता हुआ सूरज मानो उसे चिढ़ा रहा होता है!उसके मन में इतनी निराशा ब्याप्त हो चुकी है कि उसे कोई भी चीज अच्छी नहीं लगती है।अब चिड़ियों का चहचहाना,कोयल का कूकना सभी उसे बेमानी प्रतीत होते।सच ही कहा गया है कि जब मन दुखी रहता है, तो दुनियाँ की कोई भी खुबसूरती उसे लुभा नहीं पाती है।
गगन व्हीलचेयर को खिड़की के पास से धीरे-धीरे मोड़ने लगता है,तभी उसकी सहायिका राधा कमरे में प्रवेश करती है।वह गगन की कुर्सी को ड्राइंग रुम में ले आती है और टेलीविजन चला देती है।फिर पूछती है-“साहब!अभी चाय लोगे या काफी?”
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गगन -” काफी!”
फिर राधा पूछती है -” साहब!नाश्ते में क्या बनाऊँ?”
गगन झल्लाते हुए -” राधा!तुम्हें जो मन होता है,वो बना लो।बार-बार पूछकर मुझे परेशान मत करो।”
राधा वहाँ से चली जाती है।
गगन कुछ देर तक टेलीविजन पर समाचार देखता है,फिर उसका मन उचाट हो जाता है।वह राधा को टेलीविजन बन्द करने कहता है।राधा आकर टेलीविजन का चैनल बदलते हुए कहती है -” साहब!कुछ देर टेलीविजन पर इंडियन आइडल प्रोग्राम देख लो।रातवाला प्रोग्राम अभी आ रहा है।तबतक मैं नाश्ता बनाती हूँ।”
गगन का मन बिल्कुल नहीं है,फिर भी बेमन से वह प्रोग्राम देखने लगता है।बच्चों के डांस प्रोग्राम में उसका मन रमने लगता है।उसी में वह देखता है कि एक बच्चे के दोनों पैर नहीं हैं,परन्तु वह बड़ी खुबसूरती से हाथों के बल पर डांस करता है।वह उस बच्चे का डांस देखकर अचंभित हो उठता है।उसे महसूस होता है कि उसके अंदर जो जिजीविषा मर रही थी,अचानक से पुनर्जीवित हो उठी हो।उस बच्चे का डांस देखकर उसके मन में दिनभर आत्ममंथन चलता रहा।
शाम में जाते समय राधा सारे घर की रोशनी जला देती है और खाना टेबल पर ढंककर रख। देती है।गगन को सहारा देकर बिस्तर पर से व्हीलचेयर पर बैठाकर टेलीविजन चलाकर अपने घर चली जाती है।कुछ ही देर में निशा घर में प्रवेश करती है और रोज की तरह पूछती है -” गगन!आज का दिन कैसा बीता?”
आज गगन मायूसी से जबाव नहीं देता है,बल्कि कहता है -“अच्छा बीता!”
कुछ देर में निशा चाय लेकर उसके पास बैठती है।गगन निशा को बताता है कि कैसे बिना दोनों पैर के हाथ के बल पर एक बच्चे ने खुबसूरत डांस किया!”
निशा -” गगन!इस दुनियाँ में कितने ऐसे लोग हैं,जिनके पैर नहीं हैं,तो क्या वे जीना छोड़ देते हैं? क्या उनकी जिन्दगी खामोशी के साथ ठहर जाती है?”
गगन कुछ जबाव न देकर चुपचाप निशा की ओर देखता है।
निशा फिर कहती है-” गगन!तुम्हारा अपना ऑफिस है।तुम एक चार्टर्ड एकाऊन्टेंट हो।अभी भी सारे क्लाइंट तुम्हारा इंतजार कर रहें हैं।तुम जिन्दगी की जंग को बिना लड़े हार जाना चाहते हो!रात चाहे कितनी भी अंधेरी क्यों न हो,सुबह जरुर आती है!”
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उस दिन सारी रात पत्नी निशा की बातें और दिव्यांग बच्चे का डांस उसके अन्तर्मन में ऊथल-पुथल मचाते रहें।वह खामोशी से खिड़की के बाहर आसमान को निहारता रहा।अकस्मात् आसमान में उसे भोर का तारा अपनी चमक बिखेरते हुए जगमगाता हुआ दिख रहा था।जगमगाते हुए तारे को देखकर उसने अपने मन में निर्णय लेते हुए सोचा -” मैं अपनी जिन्दगी को अमावस की काली रात नहीं बनने दूँगा। मैं भी भोर के तारे की भाँति अपनी आशाओं,इच्छाओं को सपने के साथ जिऊँगा!”
कभी-कभी अंधकार में जब मनुष्य को कोई रास्ता नजर नहीं आता है,तब एक छोटी -सी बात भी उसका मार्गदर्शन कर जाती है।मन में छाई हुई धुंध मिट जाती है और आगे का रास्ता साफ नजर आने लगता है।आज भोर के तारे और दिव्यांग बच्चे ने उसके मन में आशा की नई किरण दिखा दी थी। काफी दिनों बाद उसके होठों पर एक मुस्कराहट खेल गई।
अगली सुबह उसके व्यवहार में परिवर्त्तन नजर आ रहा था।वह पहले की तरह ऊर्जा से लबरेज दिख रहा था।सुबह-सुबह सहायिका उसे नाश्ता के बाद ड्राइंग रुम में ले जाने लगती है, तो वह कहता है-“राधा !तुम मुझे मेरे दफ्तर में ले चलो।”
राधा को आज गगन के चेहरे पर आशा की किरणें दिखलाई देती है।वह गगन को मकान में बने उसके ऑफिस में ले जाती है।वह दिनभर ऑफिस में लैपटॉप पर काम करता है।एक-दो क्लाइंट भी उसका हाल-चाल पूछने आ जातें हैं।उनसे बातें कर उसमें आत्मविश्वास जगने लगता है।
शाम में राधा आकर उसे पूछती है -” साहब!ड्राइंग रुम में ले चलूँ?मुझे घर भी जाना है!”
गगन-“तुम दरवाजा भिड़ाकर चली जाओ।कुछ देर में मैं धीरे-धीरे चला जाऊँगा।”
राधा अपने घर चली जाती है।
शाम में निशा घर में प्रवेश करती है और ड्राइंग रुम में गगन को न पाकर उसका कलेजा धक्क से रह जाता है।उसके मन में सैंकड़ों तरह के बुरे-बुरे ख्याल आने लगते है। उसकी आँखों से अनवरत अश्रुधारा प्रवाहित होने लगती है।वह बदहवास-सी घर के हर कमरे में गगन को खोजने लगती है।उसे गगन कहीं नजर नहीं आता है।वह हताशा में धम्म से बाहर पड़ी कुर्सी पर बैठ जाती है।अचानक से उसे ऑफिस से रोशनी आती दिखलाई देती है।वह दौड़कर वहाँ जाती है।उसे वहाँ गगन लैपटॉप पर व्यस्त दिखाई पड़ता है।वह खुशी से गगन को अपने आलिंगन में भरते हुए कहती है-“गगन!हमारे दुख के दिन दूर हो गए। एक बार फिर से प्रकाश ने अंधेरे को चीरकर अपनी जगह बना ली।हमारी जिन्दगी के काले बादल छँट गए। “
गगन निशा की ओर देखकर मुस्करा उठा।उनके जीवन में चाँद भी अपनी उज्ज्वल रश्मियों के साथ आनेवाले सुख का संकेत दे रहा था।
सचमुच सुख-दुःख का नाम ही जीवन है।
समाप्त।
लेखिका-डाॅ संजु झा(स्वरचित)
#सुख-दुख