बनारस की राइशो में एक नाम ठाकुर बलवंत सिंह का था। वह अपनी शानो-शौकत तथा रुतबो के लिए जाने जाते।
बलवंत की मां कमला बहुत ही बुद्धिमान तथा गंभीर महिला थी । बलवंत सिंह अपनी मां की बहुत इज्जत किया करते ।
इनके दो पुत्र बड़ा बेटा गोपाल और छोटा गोविंद । पत्नी दुर्गा बोले तो इस हवेली की दूसरी शेर– यूं तो देखने में ठकुराइन बहुत सीधी परंतु दिमाग से बहुत शातिर थी– और इन सब की वजह से ही वह बलवंत सिंह से अक्सर मार खा जाया करती ।
“अरे बलवंत काहे मेहरारू को मारता है रे– ।
क्या करें अम्मा शैतानी दिमाग से बाज नहीं आती।
बड़े बेटे गोपाल की शादी दूर– गांव के एक गरीब लड़की सावित्री से किया गया— । “अब आप लोग के मन में सवाल उठ रहा होगा कि ठाकुर इतने रईस– तो गरीब घराने की लड़की से बेटे की शादी क्यों की—? तो कारण यह था कि— बलवंत सिंह और “सावित्री के पिता मान सिंह” दोनों बचपन के जिगरी मित्र थे और जब सावित्री छोटी थी–
तभी मानसिंह ने बलवंत सिंह से वादा लिया कि– गोविंद से सावित्री की शादी होगी—और तभी से बलवंत सिंह के जेहन में सावित्री का ही नाम था (प्राण जाए पर वचन न जाए ।)गोविंद बड़ा हुआ तो दोनों की शादी हो गई । “गरीब तथा अनपढ़” होने की वजह से सावित्री में हीनता की भावना थी और जुबान तो जैसे भगवान ने दिया ही ना हो– जिसका फायदा ठकुराइन बखूबी उठाती–
कहीं किसी का भी गुस्सा अक्सर वह सावित्री पर उतार दिया करती– ।
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घर में एक दादी ही थी जिनसे सावित्री अपना सुख- दुख बाटा करती ।
बलवंत सिंह का छोटा बेटा गोविंद कॉलेज में दाखिला लिया तो पढ़ाई में काम लड़कियों को तारने में ही अपना समय बर्बाद करता– उसके ही कॉलेज में श्रद्धा नाम की लड़की जो, कानून की पढ़ाई कर रही थी । काफी सुंदर, शांत और समझदार थी ।
एक दिन गोविंद की नजर श्रद्धा पर गई तो वह श्रद्धा का जैसे दीवाना हो गया—। कई दिनों के कोशिश के बाद वह श्रद्धा से अपने प्यार का इजहार करने में सफल हो गया– ।
“श्रद्धा मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूं– और तुमसे ही शादी करना चाहता हूं–!
पर मैं तुमसे शादी नहीं कर सकती– क्योंकि हम दोनों की जाती भी अलग है और तुम मुझसे उम्र में भी छोटे हो श्रद्धा गोविंद से बोली।
पर श्रद्धा— मैं जात-पात नहीं मानता रही बात उम्र की तो तुम ज्यादा से ज्यादा दो-तीन साल बड़ी होगी इससे क्या फर्क पड़ता है—?
पर—
पर-वर मैं नहीं जानता–!
” मैं कल ही बाबूजी को तुम्हारे घर भेजूंगा— !
श्रद्धा कुछ बोल न सकी क्योंकि वह भी कहीं ना कहीं गोविंद से प्यार कर बैठी– पर उसे ये भी पता था कि गोविंदा के घर वाले इस शादी से हरगिज़ राजी नहीं होंगें ।
“बाबूजी– मैंने अपने लिए एक लड़की पसंद कर ली है– वह मेरे ही कॉलेज में पढ़ती है–!
फिर गोविंद ने श्रेया के बारे में सारी बात बता दी। सुनकर— बलवंत सिंह गुस्सा हो गए कि– लड़की अलग जाती की है
परंतु– बेटे की जीद के आगे उन्हें झुकना ही पड़ा ।
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“श्रेया के पापा एक सरकारी कार्यालय में कर्मचारी थे । आखिर थक-हार के बलवंत सिंह “गोविंद और श्रेया” का रिश्ता पक्का कर आए ।
” अरे वो कोई हमारी औकात के तो हैं नहीं— फिर भी आप काहे जाकर रिश्ता तय कर आए–
हम छोटे को समझा लेते ना–! ठकुराइन ने अपना मुंह खोला तो–
” चुप कर तू— ।
” बेटे की इच्छा है और अगर रिश्ता नहीं करू तो वह भाग के शादी कर लेगा और इससे हमारी जग-हसाई ही होगी इससे अच्छा है इज्जत और मान मर्यादे के साथ उसकी पसंद की शादी करा दी जाए– । वैसे भी उसने जो एक बार पसंद कर लिया वह उसी को ही लावेगा—!
ठकुराइन चुप हो गई।
बड़े धूमधाम से बलवंत सिंह ने गोविंद की शादी करा दी— । श्रेया आब ससुराल आ गई– । कोई खुश हो या ना हो पर दादी बहुत खुश थी आते ही सबसे पहले उसने दादी का दिल जीत लिया–!जेठानी सावित्री भी अब काफी खुश थी क्योंकि उसके सुख-दुख बांटने के लिए बहन के रूप में श्रेया थी–श्रेया सावित्री की बहुत इज्जत करती
और ख्याल रखती–दोनों का प्यार देखकर दादी भी खुश हो जाया करती–। “अगर कोई ज्यादा दुखी और परेशान थी तो वो—ठकुराइन । श्रेया उसको फूटी आंख भी नहीं भा रही थी कारण उसका विनम्र स्वभाव और पढ़ी लिखी होना। अब कोई भी परेशानी या कोई भी समस्या होती तो– वह तुरंत उसका हल निकाल देती– एक बार बलवंत सिंह के जमीन पर किसी ने अवैध कब्जा कर लिया फिर क्या था ।
” क्या बे– इतनी हिम्मत कोई कैसे कर सकता है– कि हमार जमीन पर अवैध कब्जा कर ले–। और हम हाथ पैर हाथ भर के बैठे रहें–अरे– हम पूरे बनारस का गुंडा लगवा देंगे उसके पीछे– ओ बड़का–जा– पूरा गुंडा लेकर “तोरण सिंह “पर हमला कर दे– फिर पता चलेगा कि बलवंत के जमीन पर कब्जा करने का क्या नतीजा होता है– ।
“जी बाबूजी” हम अभहिये जाते हैं– !
गोपाल जैसे ही जाने को हुआ कि ठहरिए भैया– इतनी लड़ाई झगड़ा करने की कोई जरूरत नहीं—! श्रेया गोपाल को रोकते हुए बोली– । “
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अब तुम हमको बताओगी की हमें क्या करना चाहिए और क्या नहीं–!
” जा रे बरका– समय को बर्बाद ना करो जाकर तीन चार हड्डी तोड़कर हाथ में धारा देना–! ठकुराइन गोपाल से बोली ।
“अरे—रे–रे– एक बार सुन तो लो अम्मा-बाबूजी, श्रेया क्या कहती है–गोविंद कमरे से निकलते हुए बोला ।
ओ– छोटेलाल–! ‘अब क्या तुम बाबूजी को समझाएगा–!
ठकुराइन टपाक से बीच में कूद पड़ी–!
“अब तू तो चुप कर ठकुराइन काहे कि हम नहीं चाहते कि तुम बीच में बोलो नहीं तो फिर लतिया देंगे– !
चल बोल– छोटकी बहुरिया क्या बोलती है—!
बलवंत सिंह श्रेया से बोला “बाबूजी जमीन या मकान पर अवैध कब्जा से हमें लड़ना झगड़ना नहीं चाहिए– इसे हमें कानून के तहत शिकायत कर , संपत्ति तो ले ही सकते हैं साथ ही साथ मुआवजा भी ले सकते हैं यानी एक तीर से दो निशान
आप कोर्ट से मदद ले लीजिए–!
” देखा बाबूजी– कानून पढ़ने वाली बीवी लाए हैं–तो तुमको कितना फायदा हुआ– गोविंद श्रेया पर इतराते हुए बोला ।
हां– बात में दम है— मैं पहले कोर्ट जाकर आता हूं–काहे की– एक वकील तो चाहिए ना– जानकारी देने के लिए– !
हां बाबूजी मैं हूं ना–” मैं बताती हूं आपको क्या करना होगा– ! श्रेया ने बलवंत को पूरे नियम कानून बताएं—और फिर 2 महीने बाद– सारा मसला ही सुलझ गया–!
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” अरे ठकुराइन– छोटेलाल की मेहरारू तो बहुत बड़ी वकीलाइन है— देखो बिना हाथ पैर तोड़े जमीन भी वापस दिलवा दिया–और मुआवजा भी मिल गया–!
सुनकर ठकुरान मुस्कुराई पर कलेजे में जैसे आग लग गई हो–।
अब उस दिन के बाद से तो ठकुराइन कोई मौका नहीं छोड़ती श्रेया को नीचे गिराने की ।
श्रेया ने कभी कोई शिकायत गोविंद से अम्मा के बारे में नहीं की परंतु गोविंद सब कुछ जानता था कि अम्मा उसे पसंद नहीं करती— ।
“अरे अम्मा तुम यार– एक बार भी मेरी मेहरारू को अच्छी नहीं बोल सकती क्या–? तुमको उससे क्या शिकायत है—? वह तो तुमको अपनी मां जैसी प्यार करती है– !
” अरे तितलियां– जाकर अम्मा को चाय दि आ नहीं तो उसके लिए भी हल्ला करेगी–!
सुन के अनसुना करते हुए ठकुराइन नौकरानी से बोली ।
“यार कमाल है– कुछ बोलो तो सुनती भी नहीं— !
कहते हुए गोविंद वहां से चला गया ।
“आज रात जब सभी खाना खाकर सोने चले गये— तो करीब
आधी रात को श्रेया ने रोने की आवाज सुनी– तब उसने गोविंद को जगाने की कोशिश की— तो–” अरे यार कोई रो रहा होगा तुमको क्या—? यार तुम सो जाओ–!
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पर श्रेया को रहा नहीं गया वह कमरे से बाहर निकली तो आवाज ठाकुर बलवंत सिंह के कमरे की तरफ से आ रही थी– वह फौरन उसे तरफ चल पड़ी देखा कि बलवंत सिंह ठकुराइन को मार रहे थे–।
” बस कीजिए बाबूजी— औरत पर हाथ उठाना भी बहुत बड़ा जुर्म है और उसके लिए आपको जेल भी जाना पड़ सकता है– ।
बहू की बात सुनकर ठाकुर बोले– “लो सुन लो– जिस बहुरिया की अभी-अभी तुम इतनी शिकायत कर रही थी वही तुम्हारी तरफदारी करने चली आई–! अरे अभी– भी– वक्त है संभल जा बहुरिया नहीं बेटी है बेटी के तरह प्यार कर—!
“बाबूजी आप आज के बाद अम्मा पर कभी हाथ नहीं उठाएंगे ऐसा हमसे वादा कीजिए— ठाकुर बलवंत श्रेया के सर पर हाथ रखकर बाहर चले गए । आज ठकुराइन को अपनी गलती का एहसास हो रहा था जिस बहू को वह रात दिन नीचे दिखाने की कोशिश करती–रही आज वह उसके लिए खड़ी थी–!
सही कहा है कि अगर “अपनों का साथ “हो तो जिंदगी खूबसूरत बन जाती है ।
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धन्यवाद ।
मनीषा सिंह
#अपनों का साथ