सूझबूझ – शिव कुमारी शुक्ला : Moral Stories in hindi

सौम्या और राघव की शादी को चार वर्ष हो गए थे, किन्तु वे अभी तक संतान सुख से वंचित थे। अड़ोस-पड़ोस की महिलाएं उसकी सास शान्ति जी से पूछतीं बहू कब खुशखबरी सुना रही है ‌।

शान्ति जी उदास हो कहतीं पता नहीं भाग्य में संतान सुख है भी या नहीं, कोई आसार ही नजर नहीं आते।अब वे जब-तब बहू सौम्या को बांझ होने का ताना भी मारने लगी थीं। 

सौम्या एक पढ़ी-लिखी समझदार लड़की थी। शादी  से पहले वह बैंक में नौकरी भी करती थी किन्तु राघव ने छुड़वा दी  यह कर कि नौकरी के साथ परिवार की और घर की सार सम्हाल संभव नहीं है। 

सौम्या ने दुखी मन से नौकरी छोड़ी।सोचती कितनी भी महिला सशक्तीकरण, महिलाओ की उन्नति , आज़ादी की बातें करली जाएं हाकिकत में आज  भी अधिकांश महिलाओं की  जिन्दगी शादी के बाद ससुराल, पति के रहमोकरम पर ही चलती है। माता पिता कितना पैसा खर्च करते हैं बेटियों की शिक्षा पर किन्तु माता पिता का पैसा, बेटी की मेहनत सब पर एक वाक्य से  पानी  फिर जाता है कि हमें तुम्हारा नौकरी करना पसंद  नहीं चुपचाप  घर बच्चे सम्हालो बुजुर्गों की सेवा करो। बेटी की खुशहाल जिंदगी की खातिर मां बाप भी हथियार डाल देते  हैं , बेटी को  घर में रहने की सलाह देकर।इस तरह से आधी आबादी अपनी शिक्षा, बुद्धिमत्ता का उपयोग नहीं कर पाती।

एक दिन उसने अपनी सास से कहा मम्मी जी क्यों न हम दोनों बड़े शहर में जाकर किसी अच्छे डॉक्टर को दिखा आएं।यह सुनकर शान्ति जी भड़क गईं , क्यों मेरा बेटा क्यों दिखायेगा उसमें क्या कमी है दिखा तो तू, तेरे में ही मां बनने की क्षमता नहीं है।

वह तो चेक अप कराने पर ही पता चलेगा 

कि किसमें कमी है वह बोली। 

खबरदार जो एक शब्द और मुंह से निकाला मेरे बेटे में कोई कमी नहीं है वह पूर्ण मर्द है तू ही है कोख जली । 

 सौम्या चुप हो गई यह सोचकर इन्हें समझाना बेकार है  उसने समझदारी  की उम्मीद अब  राघव से  लगाई । जब उसने राघव से बात की तो माँ की तरह ही वह भी बिफर पडा, मुझे क्यों चेक अप कराना, कमी तो तुम में ही  है जो मैं बच्चे का  मुंह नहीं देख पा रहा।

राघव के मुंह से ऐसी बातें सुन कर वह

चकीत रह गई। फिर बोली चलो मेरा ही चेक अप करा दो। वह सोच रही थी कि पुरुष कितनी सफाई से अपनी कमी को उजागर होने से पहले ही मर्दानगी का बहाना बना कर  छिपाना चाहते हैं, उनकी तो समाज में इज्जत चली जाएगी और औरत बाँझ न होते हुए  भी जिन्दगी भर बांझ होने का दंश झेलती है।

राघव उसका भी चेक अप कराने से डर रहा था कहीं उसकी रिपोर्ट सही आ गई तो। 

 तभी  एक दिन एक साधु उनके दरवाजे आ गया और अपने को त्रिकालदर्शी होने का दावा कर भविष्य बताने लगा। शांति जी उसके झांसे आ गई और उन्होंने सोम्या को भी आवाज दे बुलाया और हाथ दिखाने को बोला।

सौम्या हिचकिचाई तो यह बोला कोई जरूरत नहीं मैं तुम्हारी मस्तिष्क की रेखायें देख कर समझ गया तुम संतान सुख से वंचित हो। तुम्हारे ऊपर साया है जो बाधा उत्पन्न कर रहा है मैं उपाय बताऊँगा वैसा ही करना जरूर तुम्हें औलाद की प्राप्ति होगी। सौम्या को इन सब बातो में यकीन न था अतः वह चुप रही और वापस चली गई। 

शांति जी पूर्ण रूप से उसके  झांसे में आ गई।और वे सौम्या से उसके पास चलने की जिद करने लगी। किन्तु सौम्या  को उसकी वासना युक्त लोलुप नजरों से डर लग रहा था। 

शान्ति जी बेटे  की चाह में इतनी अंधी हो गई के उसके कहे अनुसार धन दौलत, चढ़ावा देने को तैयार  और देना भी शुरु कर दिया। आए दिन  वह पूजा अनुष्ठान के नाम पर मोटी रकम ऐंठ लेता। 

सौम्या ने देखा कि उसके समझाने का  सास पर कोई असर नहीं हो रहा तो उसने राघव  को समझाने प्रयास किया। किन्तु वह भी कुछ सुनने को ही तैयार नहीं था। सौम्या परेशान हो गई। क्या करे। अपनी अस्मत कैसे बचाऐ  ।राघव की तो सोचने समझने की बुद्धि  ही भ्रष्ट हो गई। कैसा पति है जो उसे पत्नी के साथ गलत होता नही दिख रहा।  बाबा के झांसे में मां फंसी थी और मां के झांसे में राघव।

 जिसका उसे अन्देशा था वही हुआ। पन्द्रह दिन तक पूजा पाठ का ढोंग करने और खूब पैसा ऐंठने के बाद आखिर बाबा ने अपना पांसा फेंक ही दिया। जिसे शांति देवी ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। वह बोला परसों अमावस्या की रात है सौम्या बेटी को एक अनुष्ठान करना होगा जिससे जो साया उसके  ऊपर है वह उसे छोड जाएगा और जो मां बनने में  बाधाआ रही है वह दूर हो जाएगी ।

अब शान्ति जी सौम्या को चलने के लिए बाध्य करने लगीं, जबकि वह नहीं जाना चाहती थी, राघव  भी उसे माँ के साथ जाने को कहने लगा। 

अन्त में थकहार कर उसने अपनी  सहेली को फोन मिलाया और पूरी बात बताकर सहयोग माँगा। उसने महिला थाने में रिपोर्ट दर्ज करवा कर स्थान, समय सब बता दिया और अनुरोध किया कि वे  समय पर पहुंच कर इस घटना  को अंजाम देने से रोक लें।

सौम्या नीयत समय पर शांती जी एवं  राघव के साथ साधु के आश्रम में पहुंचे। उसने कहा अनुष्ठान सौम्या बिटिया को अकेले करना होगा सो आप दोनों बाहर ही बैठें। सौम्या की नजर बार बार दरवाजे की ओर थी वह घबरा रही थी कि पुलीस समय पर पहुंचेगी या नहीं।

सौम्या  को कमरे में ले जाकर उसने कमरे का दरवाजा बन्द कर दिया। वह सौम्या के निकट आ उसे छूने की कोशिश करने लगा। सौम्या बोली ये क्या कर रहे हैं बाबा आप । 

अनुष्ठान बच्चे अनुष्ठान जिससे तुझे पुत्र की प्राप्ती हो सके।

बह मन ही मन   भगवान से प्रार्थना कर रही थी  हे  ईश्वर मेरी मदद करो। मुझे इस राक्षस से बचा लो।

सौम्या के विरोध के कारण बह आक्रमक हो जवरजस्ती करने लगा। तभी दरवाजा खटखटाने  की आवाज सुन जैसे ही उसने दरवाजा खोला पुलिस  को देख अचम्भीत हो गया  ।सौम्या की ओर देखकर चिल्लाया धोखा तुमने मेरे साथ धोखा किया है इसका परिणाम  तुम्हें भुगतना पड़ेगा।

पुलीस ने उसे पकड लिया परिणाम तो बाबा जी तुम्हें भुगतना पडेगा, आश्रम की तलाशी में कई आपत्तिजनक वस्तुएं मिली। सबको लेकर थाने गए। पूछताछ के बाद उन्हें हिदायत देकर घर भेज दिया। आफिसर  द्वारा सौम्या की भूरी- भूरी प्रशंसा कि गई ,कि उसने अपराधी को पकड़वाने मे बहुत ही सूझबूझ से काम लिया अन्यथा वह ना जाने कितनी महिलाओं को अपने चंगुल में फंसा कर  उनका जीवन बरबाद करता। 

शान्ति जी  एवं राघव सौम्या से नजरें  नहीं मिला पा रहे थे। उनकी वजह से कितने बड़े हादसे का शिकार होने से सौम्या बच गई। 

शांति जी सोच रहीं थीं कि  बेटे की चाहत में वे कैसे गलत आदमी के झांसे में आ गई पैसा लुटाया साथ ही घर की इज्जत  भी लुटा देती यदि सौम्या इतनी हिम्मत नहीं दिखाती। 

दोंनों सौम्या से अपने किए की माफी मांग रहे थे ,हम अपने किए पर शर्मिन्दा हैं। शान्ति जी बोली सौम्या मुझे  माफ़ कर दे और कल ही शहर जाकर दोंनों डाक्टर  को दिखा आओ तुम कह सही कह रही थी।

शिव कुमारी शुक्ला

24-1-24

स्व रचित मौलिक एवं अप्रकाशित

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