अचानक ऊंघते हुए उसके हाथ से कलम गिर गई,वो हड़बड़ा कर उठी,तब तक नींद उसकी आँखों से दूर जा चुकी थी।
वह डूब गई जीवन के तमाम उतार चढ़ावों में।
सुजाता यही नाम था उसका,,,,,,जब दुल्हन बन कर आई तो कैसे वह सुजाता से राधिका हो गई,अब घर के सभी लोग उसे राधिका कहते।उसके पुराने नाम के साथ साथ कुछ और भी था जो खो गया था वह था उसका पढ़ लिख कर कुछ करने का सपना।
अचानक उसने अलमारी से अपनी डिग्रियां निकाली और पलट उलट के देखने लगी। उसे याद आया कैसे जिद कर कर के उसने उच्च शिक्षा प्राप्त की थी ,,,,गुरु जी जो तारीफों के पुल बांध रहे थे ,,,उसे सब याद आ गया,,,,,निश्चित ही अफ़सर बनेगी बिटिया-उन्होंने कहा था।
तभी बाबा ने उनके हाथ पर शादी का कार्ड रख दिया।वो बोझिल मन से वापस लौट गए,वो शादी में भी नए आये फिर।
सुजाता जो राधिका बन गई थी ब्याह के बाद व्यस्त हो गई घर के काम काज और परिवार की सेवा में,,,,,।
फिर कैसे वह अपने दायित्वों में उलझ पति को समय न दे पाई और कलह चिड़चिड़ाहट भर गई जीवन में,,,,उफ्फ़। इस एकांकीपन के बीच कुछ था तो उसकी सकारात्मकता और दिनभर की दिनचर्या को कलमबद्ध करना जो उसे उसके उज्जवल भविष्य का संकेत देती थी।
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तभी अचानक घण्टी बजी,उसने दरवाजा खोला तो सामने सुधीर थे। सुधीर सुजाता के पति। सुधीर का अपना खुद का व्यापार था मगर कुछ समय से व्यापार में हो रहे घाटे से वह बहुत अस्त व्यस्त सा था। सुजाता हर समय सोचती कैसे उसकी मदद की जा सके और परिवार संभालते हुए वह उसकी आर्थिक मदद भी कर सके।
एक दिन उसने सुधीर से पूछ ही लिया। सुनिए –
बच्चे दोनों बाहर पढ़ रहे है ,,,ऐसे में अक्सर घर के काम काज के बाद मेरा काफी समय बच जाता है।आप कहे तो आपकी व्यापार में कुछ मदद कर दूं।
सुधीर भी दरअसल यही चाहता था मगर पुराने विचार ,घर में महिलाओं का बाहर न जाने देने जैसे रीति रिवाजों की वजह से वह सुजाता से यह कह न पाया।मगर जब सुजाता ने खुद से काम करने की इच्छा जतायी तो उसने हां में जवाब दिया।
जमाना बदल रहा है,,,,,तुम भी मेरा साथ देने का सोच रही हो तो मुझे क्या हर्ज़ होगा- वह बोला।
सुबह सुबह घर का सब काम निपटाकर सुजाता तैयार थी ,,,सुधीर के साथ एक नई उड़ान पर।
सुजाता ने दुकान पर देखा ,सुधीर के अवसाद में होने से नौकर अक्सर ही काम चोरी करते थे।दुकान की साज सज्जा भी आधुनिक नहीं थी जिससे अक्सर ग्राहक आकृष्ट न होकर पास की अन्य दुकान पर चले जाते थे।
जल्द ही उसने अपनी सहेलियों एवं परिचितों से सम्पर्क कर दुकान की रूपरेखा बदली और स्टाफ बदला,, नई कार्यशैली से दुकान तो चल ही पड़ी साथ ही सुधीर को भी अब बहुत अच्छा अनुभव हुआ।
दोनों अब दिनभर साथ रहते शाम को थोड़ा समय मिलता तो साथ घूमने फिरने जाते ,पसंद का खाते पीते।
बच्चों के साथ वीडियो कॉल के माध्यम से दिनभर की बातें सांझा करते।
कुछ ही दिनों में बच्चों की परीक्षाएं खत्म हो रही थी वो घर आ रहे थे।दोनों ने दुकान और घर को खूब सजाया और बच्चों का खूब मन से स्वागत किया। दोनों जीवन मे आई नई तब्दीलियों से बहुत खुश थे।
कवयित्री इंदु विवेक
उरई, उत्तर प्रदेश