सुगना, देखो सबके नाश्ता करने के बाद ये( बचा हुआ) नाश्ता मिट्ठू को बुला कर खिला देना…. कहते हुए बड़ी ताई जी निकल गई
अरे और कहां, अपने मोहल्ले की सहेलियों के साथ गप – शप करने
बड़ी ठसक थी ताई जी की घर और मोहल्ले सब जगह
और हो भी क्यों ना?
घर में भी ताऊजी की ही कमाई का बड़ा हिस्सा खर्च होता था,सुगना के बाबूजी तो बस थोड़ा बहुत काम कर लेते थे
और मां बहुत सारा
मतलब कि घर गृहस्थी का सारा काम सुगना की मां ने ही संभाला हुआ था… वरना क्या आसान था ये होना कि दोनों भाइयों के बीच दादाजी के नाम रहने के बाद बंटवारा ना हुआ
मैं तो कब का निकाल बाहर करती मगर …. यूं ,कहती तो ताई जी सबसे बड़ी ठसक के साथ थी, मगर सब जानते थे देवर, देवरानी ने मिलकर जिस तरह से घर संभाला हुआ था उसी कारण ही वो उनके साथ मिलकर रहती थीं।
अब मिलकर तो क्या ही कहें, स्वार्थ वश एक में थी
सुगना…
अब इतना प्यारा नाम रखा था दादाजी ने, सुलक्षणा… मगर बुलाने में सबकी जुबान को जरा सी तकलीफ़ क्या हुई घर में सुगना पर आ गई!
और मिट्ठू?
वो तो रामदीन काका जो घर बाहर का सारा काम संभाला करते थे उनकी और उनकी पत्नी की असमय मृत्यु के पश्चात घर के पिछवाड़े पर बनी कोठरी में उसे रहने दिया
घर का काम भी निपटा लेता था.. बचा खुचा खा भी लेता था… और उसे भी उसी स्कूल में पढ़ने डाल दिया था जहां घर के बच्चे जाते थे
और तो और वो सुगना से दो ही कक्षा आगे था तो उसे पढ़ा भी दिया करता था।
और क्या चाहिए?
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वक्त बीतते देर कहां लगती है… वो तो पंख पसार कर उड़ जाता है..
सुगना का बड़ा भाई पढ़कर नौकरी में लग गया। ताई जी के बेटे की शादी हो गई…. उनकी बिटिया बड़ी थी उसकी तो पहले ही हो गई थी
मगर….
बड़े भैया ने कहा पहले सुगना का ब्याह कर दो फिर मेरे बारे में सोचना
तो आज ताऊजी, बाबूजी, बड़े भैया,ताऊ जी के बेटे सब सुगना की बात पक्की करने पास के गांव गए हैं
रात तक वापस आ जाएंगे
मिट्ठू ही एक अकेला मर्द बचा है घर में
छत के रास्ते में बाहर गेट पर सब दरवाजे बंद करके ताई जी के हाथों चाभी सौंपने आया
मिट्ठू सब खा चुके हैं…. तू भी खाना खा ले और आराम कर, अकेले तेरे ऊपर भी बहुत काम हो गया है…
बहुत एहसान है इस परिवार के …. कैसे उऋण हो पाऊंगा?
बस यही सोचता रहता है, मोहन मन में
मिट्ठू अरे मोहन, अभी तक उसका नाम नहीं बताया क्या
अपना पोस्ट ग्रेजुएशन पूरा करके कंपटीशन की भी तैयारी कर रहा है।
कुछेक एक्जाम निकाले भी हैं…. शायद
ट्रिन – ट्रिन
बाहर बैठक में लैंडलाइन फोन बजा
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उनके घर पहुंचने से पहले एक्सीडेंट में सुगना के बाबूजी खत्म हो गए।
घर में तो रोना पीटना मंच गया
कहां सुगना के ब्याह की तैयारी हो रही थी और कहां…
यही कम नहीं था कि कुछ ही दिनों में लड़के वालों के घर से फ़ोन आ गया
उन्होंने ब्याह तोड़ दिया
कहा मनहूस लड़की है…. ब्याह की बात चलते बाप खत्म हो गया
ये तो बाबूजी के जाते ही पहाड़ टूट पड़ा
ताई जी ने सुबह से ही महाभारत मचा रखी है.
ये तो है ही मनहूस.. पैदा होते ही बाप की नौकरी चली गई और शादी की बात चलते ही बाप,
अब जो धब्बा लगा है,तो कौन करेगा शादी??
मां एक कोने में बैठी सुबक रही थी, बाबूजी के बाद और भी असहाय हो गई थी।,सब रूपए पैसे तो ताई जी के हाथों में थे… थोड़ा बहुत बड़ा भाई कमा रहा था… मगर उससे क्या ब्याह होता है?
आप लोग बुरा ना माने तो… मैं सुगना का हाथ थामना चाहता हूं…. मोहन ने डरते हुए कहा.. सुगना को भी आगे पढ़ने और अपने पैरों पर खड़े होने में सहयोग करुंगा
ताईजी जो अभी तक सुगना को जी भर के कोस रही थी,एकदम से बिफर पड़ी
हिम्मत कैसे हुई, हमारे घर की लड़की के बारे में ऐसा बोलने की? औकात तो देखो…. मैं तो पहले ही कहती थी इसे निकाल बाहर करो घर से….
किसे निकालने की बात कर रही हो?… वो तो वैसे ही जाने वाला है घर से… पता है किस पद पर चयन हो गया है उसका…. ताऊजी ने सबको डांटते हुए चुप कराया
ना घर ना परिवार… हमारे यहां पला जिंदगी भर
ताई जी अब भी गुस्से में कांप रही थी
अपनी बेटी की शादी बहुत बड़े घर में की थी ना…. क्या हाल है आज उसका
ये लड़का तो तुम्हारे सामने रहा,कोई ऐब भी नहीं,हम सब अच्छे से जानते हैं
आज घर में सुगना के बाबूजी के जाने के बाद पूजा हुई है।
ताऊजी ने मंदिर से रोली उठा कर, मिट्ठू ( मोहन) के माथे पर टीका लगाते हुए कहा
मैं आज बात पक्की करता हूं…. तुम बनोगे इस घर के दामाद…. शीघ्र ही लगन निकलवाता हूं।
सुगना जो अब तक मां के पीछे खड़े इस सारे बवाल से थर थर कांप रही थी और मां बेटी रो रहे थे…
अब भी रो ही रहे थे… मगर अब इस अप्रत्याशित रूप से आई खुशियों के आंसू थे!!
अब उनके कुल पर धब्बा नहीं बल्कि सम्मान का टीका लग चुका था।
सर्वाधिकार सुरक्षित
पूर्णिमा सोनी
# धब्बा लगना
मुहावरा प्रतियोगिता